Swarnmakshik Bhasma Benefits and Use | स्वर्णमाक्षिक भस्म के गुण और उपयोग – Lakhaipur.com

स्वर्णमाक्षिक भस्म को सुवर्णमाक्षिक और सोनमाखी भस्म के नाम से भी जाना जाता है, इसका मुख्य घटक स्वर्णमाक्षिक है, यहाँ बता दूं कि इसमें किसी तरह कोई सोना नहीं होता है बल्कि सोने की तरह दिखने के कारन इसे स्वर्णमाक्षिक कहा जाता है

स्वर्णमाक्षिक भस्म एनीमिया, जौंडिस, नींद नहीं आने, पुराना बुखार, आँखों की जलन, सीने की जलन, पेशाब की जलन, खुनी बवासीर, उल्टी, चक्कर, सर दर्द, ल्यूकोरिया और पेट के रोगों को दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है

स्वर्णमाक्षिक क्या है और इसकी भस्म कैसे बनती है?

यह एक तरह का खनिज है, इसमें कॉपर, आयरन और सल्फ़र पाया जाता है. स्वर्णमाक्षिक को अंग्रेजी में कॉपर आयरन सल्फाइड कहा जाता है

भस्म बनाने के लिए इसे कुल्थी, एरण्ड तेल और छाछ में शुद्ध करने के बाद अग्नि देकर भस्म बनाया जाता है. इसका भस्म लाल रंग का होता है

स्वर्णमाक्षिक भस्म के गुणों की बात करें तो यह रेड ब्लड सेल और हीमोग्लोबिन को बढ़ाने वाला, Antacid, एंटी इंफ्लेमेटरी, वमन नाशक और तनाव, चिंता दूर करने वाले गुणों से भरपूर होता है



स्वर्णमाक्षिक भस्म के फ़ायदे- 

आयरन और कॉपर होने से खून की कमी या एनीमिया को दूर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है

हाई ब्लड प्रेशर, नींद नहीं आना, चिंता, डिप्रेशन, सर्द दर्द में इसका इस्तेमाल करना चाहिए

पेट के रोगों के लिए भी असरदार है, हाइपर एसिडिटी, मुंह का स्वाद ख़राब होना, गैस्ट्रिक, जौंडिस, हेपेटाइटिस, माउथ अलसर, उल्टी, पेप्टिक अल्सर, Ulcerate Colitis में आयुर्वेदिक डॉक्टर इसका प्रयोग करते हैं

पुरुषों के रोग स्वप्नदोष और महिला रोग ल्यूकोरिया और पीरियड की प्रॉब्लम में ही यह फायदेमंद है

इसके अलावा, पेशाब की जलन, खुनी बवासीर, पुरानी बुखार जैसे रोगों में भी दूसरी दवाओं के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है

स्वर्णमाक्षिक भस्म का डोज़- 



इसकी मात्रा रोग और रोगी के अनुसार तय की जाती है, व्यस्क व्यक्ति को 125 mg से 250 mg या अधीक भी दिया जा सकता है. बच्चों को कम मात्रा में देना चाहिए. इसे शहद के साथ या फिर रोगानुसार अनुपान के साथ लेना चाहिए, या फिर आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से.

यह एक सेफ दवा है, सही डोज़ में लेने से किसी तरह का कोई भी नुकसान नहीं होता है. 

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