Spine Gourd | कर्कोटकी के औषधिय गुण, उपयोग और प्रयोग विधि

आज एक ऐसी चीज़ की जानकारी देने वाला हूँ जिसे लोग सब्ज़ी के रूप में इस्तेमाल करते हैं क्यूंकि यह सब्ज़ी के रूप में ही दुनियाभर में पॉपुलर है. पर असल में यह एक आयुर्वेदिक औषधि भी है जो कई तरह के गुणों से भरपूर है और कई तरह की बीमारियों को दूर करने में सक्षम है, मैं बात कर रहा हूँ स्पाइन गार्ड या खेकसा की, तो आईये इसके बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं-

आयुर्वेद में इसे कर्कोटकी या ककोड़ा के नाम से जाना जाता है. अलग-अलग जगहों और भाषा में इसका अलग-अलग नाम होता है तो सबसे पहले भाषा भेद से इसका नाम जान लेते हैं –

हिन्दी में – ककोड़ा, ककोरा, खेखसा, पड़वारा

संस्कृत में – कर्कोटकी, पीतपुष्पा, महाजलिनिका, अवन्ध्या, बोधनाजालि, मनोज्ञा, मनस्विनी, महाजाली इत्यादि

बंगाली में – बोनकरेला

गुजराती में – कन्टोला, कंकोड़ा

तेलुगु में – आगाकर

तमिल में – एगारबल्ली

नेपाली में – चटेल, कर्लिकाई, यलूपपाकाई

पंजाबी में – धार करेला, किरर

मराठी में – करटोली

मलयालम में – वेमपवल और

कन्नड़ में – माडहा गलकाई जैसे नामों से जाना जाता है. जबकि इसका वानस्पतिक नाम ‘मोमोडीका डायोयीका'(Momordica-Dioica) है.

कर्कोटकी के गुण –

इसके गुणों की बात करें तो आयुर्वेदानुसार यह कटु, तिक्त, उष्ण या तासीर में गर्म, वात, कफ़, पित्त और विष नाशक है, यह इसके कन्द या जड़ के गुण हैं.

इसके फल को ही सब्ज़ी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है इसके  गुणों की बात करें तो यह मधुर, अग्निप्रदीपक या भूख बढ़ाने वाला, गुल्म, शूल, त्रिदोष, श्वास-कास, प्रमेह, ज्वर नाशक और हार्ट के दर्द को दूर करने वाला होता है.

जबकि इसके पत्तों के गुणों की बात करें तो यह रुचिकारक, वीर्यवर्धक, कृमि, श्वास-कास नाशक, हिचकी और बवासीर को दूर करने वाले गुणों से  भरपूर होता है.

कर्कोटकी दो तरह का होता है जगंली वाला ख़ुद जंगलों में उगता है जिसके फल छोटे होते हैं जबकि मार्केट में जो बड़ा वाला मिलता है इसे किसान लोग सब्ज़ी की तरह उगाते हैं.

आईये अब जानते हैं कर्कोटकी का प्रयोग बीमारियों को दूर करने के लिए – 

कान दर्द में – कर्कोटकी के जड़ को सरसों के तेल में पकाकर इस तेल को कान में दो-दो बून्द डालने से कान का दर्द और सुजन दूर होती है.

सर दर्द में – जंगली कर्कोटकी के पत्तों के रस को दो बून्द नाक में डालने से सर दर्द में तुरन्त लाभ मिलता है.

खाँसी में – कर्कोटकी के जड़ को छाया में सुखाकर चूर्ण कर लें. इस चूर्ण को एक-एक ग्राम सुबह-दोपहर-शाम गर्म पानी से लेने से खाँसी दूर होती है.

भूख की कमी में – कर्कोटकी के फलों को आग में भुनकर इसमें सेंधा नमक, अजवायन और हल्दी मिक्स कर खाली पेट ऐसे ही या फिर रोटी के साथ खाने से एक हफ्ते में ही खुलकर भूख लगने लगती है.

हिचकी में – इसकी जड़ के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चाटने से हिचकी दूर होती है.

उबकाई आने पर – इसके बीजों के चूर्ण को शहद में मिक्स कर चाटने से जी मिचलाना और उबकाई आना दूर होता है.

बवासीर में – कर्कोटकी की जड़ और बबूल की छाल बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें. अब 5 ग्राम इस चूर्ण को सुबह-शाम ख़ाली पेट दूध से लेने से बवासीर दूर होती है.

बुखार में – जीर्ण ज्वर या पुरानी बुखार में इसकी रसदार सब्ज़ी खानी चाहिए. यह भूख बढ़ाती है और बुखार को भी दूर करती है. इसके जड़ के रस को 20ML रोज़ तीन बार तक लेने से बारिश के समय होने वाली बुखार दूर होती है.

ह्रदयशूल या हार्ट में दर्द होने पर – कर्कोटकी के जड़ का रस, प्याज़ का रस और लहसुन का रस तीनों पांच-पांच मिलीलीटर मिक्स कर सुबह शाम ख़ाली पेट लेने से हार्ट का दर्द, हार्ट की कमज़ोरी और भूख की कमी दूर होती है.

कर्कोटकी के फल को फ्राई कर लोग सब्ज़ी की तरह खाते हैं. पर आपको बता दूँ कि इसकी रसदार सब्ज़ी बनाकार खाना ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है.

बाँझ कर्कोटकी के जड़ को अक्सर आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग किया जाता है.

तो दोस्तों, अब आप समझ गए होंगे कि जिसे आप सब्ज़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं यह सिर्फ़ सब्ज़ी ही नहीं बल्कि आयुर्वेदिक औषधि भी है.

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