आयुर्वेद में अनेकों अनमोल योग भरे पड़े हैं जो आज के समय में असाध्य कहे जाने वाले रोग और एलोपैथिक सिस्टम के बिगाड़े हुए रोगों को भी दूर करने की क्षमता रखते हैं. ऐसे ही नुस्खे रोगियों के जीवन में पुनः सफल आशा करते हैं, इसलिए ही ऐसे योगों को अद्वितीय रसायन कहा जाता है. अद्वितीय यानी इसके जैसे दूसरा कोई नहीं.
जी हाँ दोस्तों, मैं बात कर रहा हूँ ऐसी ही एक औषधि अष्ट संस्कारित हिंगुल वटी की. यह एक गुप्त प्राचीन योग है जिसे स्वर्गीय कविराज बी. एस. प्रेमी शास्त्री जी ने सफल परीक्षण का आयुर्वेद जगत के सामने प्रस्तुत किया था. उन्ही के शब्दों को मैं आप के सामने प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ, तो आईये अष्ट संस्कारित हिंगुल वटी के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं –
सबसे पहले इसके फ़ायदे और रोगानुसार इसके उपयोग जान लेते हैं –
- a) अष्ट संस्कारित हिंगुल वटी एक रसायन औषधि है जो कि संकीर्ण, विकृत, जीर्ण, कष्टकारक और सुदुसाध्य श्रेणी के प्रत्येक रोग को दूर करने में पूर्ण सक्षम है.
b) कायाकल्प विधि से इसका सेवन महान आश्चर्य करता है.
c) यह रसायन सभी ऋतुओं में सभी प्रकार के व्यक्ति और सभी प्रकार के रोगी, स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध निर्भय होकर सेवन कर सकते हैं.
d) इस रसायन में किसी विशेष परहेज़ की भी कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन स्वस्थ नियमों और आयुर्वेदीय सिद्धांत के अनुसार पथ्य पालन करना उत्तम रहता है.
e) इस रसायन की एक-एक गोली सुबह-शाम गाय का दूध, मीठे फलों के जूस, रोग नाशक द्रव्यों के काढ़े या पानी, गरम पानी, ताज़ा पानी या गुलुकोज़ इत्यादि के साथ सेवन कर सकते हैं.
f) इस रसायन का सेवन करने वाले व्यक्ति को कब्ज़ का Constipation नहीं रहनी चाहिए, कब्ज़ हो तो त्रिफला चूर्ण या पंचसकार चूर्ण जैसा मृदु विरेचन बीच-बीच में लेते रहना चाहिए. वैसे लगातार प्रयोग से यही औषधि क़ब्ज़ को स्थायी रूप से दूर कर देती है.
g) इसके गुणों को बात करूँ तो यह औषधि रसायन, दीपन, पाचन, बलकारक, बलप्रदायक, ओज-तेज वर्धक, रस रक्तादि की वृद्धि कारक, वृष्य, ह्रदय के लिए हितकारक और पुनः शारीरिक पुष्टि प्रदान करने वाले गुणों से भरपूर होती है.
h) इसका रसायन गुण प्राप्त करने के लिए गाय का दूध, अंगूर का जूस, गन्ने का जूस या मीठे फलों के जूस के साथ प्रयोग करना चाहिए. घी के साथ भी इसका सेवन अवश्य करें.
i) बाजीकरण गुण के लिए – छोटी इलायची, केसर और बंशलोचन मिलाकर गाय के दूर के साथ सेवन करना चाहिए.
j) नपुँसकता या नामर्दी के लिए अकरकरा, तेज़पात और जायफल मिले दूध के साथ सेवन करना चाहिए और दूध से बने प्रोडक्ट भी खाना चाहिए.
k) उदर रोगों यानि कि पेट की बीमारियों में त्रिफला के पानी से सेवन करें.
l) श्वेत कुष्ठ यानि सफ़ेद दाग़ में नीम के पानी से सेवन करें.
m) सभी प्रकार के प्रमेह रोगों में और ख़ासकर डायबिटीज में सोंठ, मिर्च, पीपल और आँवले के साथ गिलोय के पानी से सेवन करें
n) नेत्र रोगों में मुलेठी के साथ गोदुग्ध से सेवन करें.
o) आमवात-गठिया में चित्रक के काढ़े के साथ सेवन करें.
p) श्वेत प्रदर इत्यादि हर तरह के प्रदर रोगों में पीपल छाल के रस के साथ इसका सेवन करना चाहिए.
q) सभी प्रकार के ज्वरों यानी कि हर तरह की बुखार में शहद के साथ लेना चाहिए.
r) अर्श यानि कि बवासीर और भगन्दर में चित्रक क्वाथ, त्रिफला क्वाथ या पीपल के काढ़े से सेवन करें.
s) पुराने श्वास रोग, पुरानी खाँसी और पुराने नज़ले में हर्रे, काकड़ासिंगी, भारंगी और छोटी कटेरी के हिम कषाय के साथ देवें.
t) वात व्याधियों में लहसुन और दूध के साथ इसका सेवन करना चाहिए.
u) अम्लपित में शतावरी के रस या आंवला के साथ सेवन करना चाहिए.
v) मन्दाग्नि, गैस बनना, उदरशूल इत्यादि में त्रिकटु के पानी से सेवन करें.
w) मस्तिष्क सम्बन्धी सभी विकारों में बड़ और खदिर छाल के शीत कषाय के साथ सेवन करें.
x) ह्रदय सम्बन्धी सभी विकारों में शतपुटी अभ्रक भस्म और आँवला के रस के साथ सेवन करें.
y) पांडूरोग, कृमिरोग तथा रक्त विकारों में शतपुटी लौह भस्म और मंजीठ के शीत कषाय के साथ सेवन करें.
z) बल, स्फूर्ति एवं उत्साह प्राप्ति के लिए विदारीकन्द, आँवला, द्राक्षा और पीपल के शीत कषाय के साथ सेवन करें.
आईये अब जानते हैं अष्ट संस्कारित हिंगुल वटी की निर्माण विधि –
इसके निर्माण का पहला प्रोसेस शुरू होता है हिंगुल के शोधन से, तो आइये सबसे पहले जानते हैं हिंगुल की शोधन विधि –
सर्वप्रथम उत्तम श्रेणी का हिंगुल 50 ग्राम लेकर इसको एक लीटर गोमूत्र, या गजमूत्र या फिर अजामूत्र में दोलायंत्र विधि से स्वेदन कर लें, इसके बाद शुद्ध भिलावा, शुद्ध भाँगबीज, शतावर और काली मूसली बराबर मात्रा में लेकर इसके क्वाथ में स्वेदन करने के बाद दो घंटे तक तीव्र धुप में रखकर सुखा लें. इस तरह से हो गया है हिंगुल का शोधन. अब इसके आठों संस्कार करने हैं –
प्रथम संस्कार –
इस शोधित हिंगुल को खरल करके उसमे चार ग्राम स्वर्ण भस्म मिलाकर इसके दुगनी मात्रा में शतावरी के रस की भावना देकर सुखाकर पाउडर बना लें.
द्वितीय संस्कार –
अब इस पाउडर में पारद-गन्धक की कज्जली उत्तम प्रकार की 20 ग्राम मिलाकर चित्रकमूल क्वाथ की भावना देकर सुखा लें.
तृतीय संस्कार-
अब इस पाउडर में शतपुटी लौह भस्म और शतपुटी अभ्रक भस्म दस-दस ग्राम मिलाकर शिलाजीत के पानी की भावना देकर सुखाकर पाउडर बना लें.
चतुर्थ संस्कार –
अब इस पाउडर में अमृतीकरण की हुई ताम्रभस्म दस ग्राम शुद्ध गुग्गुल बीस ग्राम मिलकर कुटकी के समभाग क्वाथ की भावना देकर सुखा लें.
पंचम संस्कार-
अब इसमें त्रिफला का क्षार बीस ग्राम मिलाकर त्रिफला के ही समभाग क्वाथ की भावना देकर सुखाकर पाउडर बना लें.
षष्टम संस्कार-
अब इस पाउडर में निम्बफल, नागकेसर, छोटी इलायची, नागरमोथा और चिरायता प्रत्येक दस-दस ग्राम क्वाथ मिलाकर भावना देकर कलक सा बना लें.
सप्तम संस्कार-
अब इसमें शंखपुष्पी, गिलोय, अनन्तमूल, मछेछी, खरेंटी, अतिबला और असगंध तीन-तीन तोला लेकर क्वाथ बना भावना देकर कल्क बना लें.
अष्टम संस्कार-
अब इस कल्क में शुद्ध गोघृत सौ ग्राम और शुद्ध मधु 200 ग्राम, पीपल का क्वाथ 150 ग्राम मिलाकर खरल में डालकर ख़ूब मर्दन करें. जब तक वह गोली बनाने योग्य न हो जाये दृढ़ मर्दन करें. अन्त में तीन-तीन रत्ती की गोलियाँ बना कर छाया में ही सुखाकर काँच के जार में रख लें. बस अष्ट संस्कारित हिंगुल वटी तैयार है. आज के समय में आप 500 मिलीग्राम की गोली बना सकते हैं.
अब आपके मन में सवाल होगा कि यह बनी-बनायी कहाँ मिलेगी? तो जवाब है कि यह बनी हुयी कहीं मार्केट में नहीं मिलती, आप इसे ख़ुद या स्थानीय वैद्य जी की सहायता से बना सकते हैं.
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