हींग जो है एक प्रकार का गोंद है जो इसके पेड़ से निकाला जाता है. हींग के पेड़ अफ़गानिस्तान, ईरान इत्यादि में पाए जाते हैं और वहीँ से सबसे अधीक इसका निर्यात होता है. हींग की खेती कश्मीर और हमारे देश के कुछ राज्यों में भी होती है.
भाषा भेद से हींग के नाम
हिन्दी में -हींग
संस्कृत में – हिंगु, जतुक, रामठ, वाल्हिक
गुजराती – हींग, बधारणी
मराठी में – हींग
तमिल में – रुनग्यम
तेलगु में – डगुवा
मलयालम में – रुन्ग्यम, कायम
अरबी में – हिल्तित
फ़ारसी में – अंगोज़, अंग्ज़ह
अंग्रेजी में – असाफिटडा(Asafoetida)
लैटिन में – फेरुला नार्थेक्स(Ferula Narthex) कहा जाता है.
हींग के प्रकार
हींग की सामान्यता दो जातियां होती हैं सफ़ेद और काली. श्वेत वाली हींग सुगन्धित, स्फटिक के आकार वाली और हीरे के जैसी होती है, इसी कारण से इसे ‘हीरा हींग’ कहा जाता है.
हीरा हींग ही सबसे बेस्ट होती है, इसे ही औषधि निर्माण में प्रयोग किया जाता है. कृष्ण जाति की या काली वाली हींग दुर्गंधित होती है जिसे हींगड़ा कहा जाता है. हीरा हींग के अलावा दुधिया हींग, चोखी हींग, तालाबी हींग इत्यादि भी अच्छी होती है.
असली हींग की पहचान
हींग महँगी होने की वजह से इसमें मिलावट बहुत होता है, गोंद, मैदा, हल्दी, चावल का आटा जैसे कई तरह की इसमें मिलावट हो सकती है. असली हींग के पहचान के कुछ तरीक़े हैं जैसे –
असली हींग गर्म घी में डालने से लावा की तरह खिल जाती है और गन्ध तेज़ और लहसुन के जैसी होती है.
असली हींग जलाने पर चमकीली लौ के सामान जलेगी, नहीं जलने पर मिलावटी समझें.
मानक के अनुसार हींग में 15% से अधीक भस्म तथा 50% से कम अल्कोहल विलेय पदार्थ नहीं होना चाहिए.
हींग के ताज़े कटे भाग पर 50% वाला नाइट्रिक एसिड डालने से उसका रंग हरा हो जाता है.
सल्फ्यूरिक एसिड डालने से इसका रंग गाढ़ा लाल या फिर लालिमा लिया भूरे रंग का हो जाता है.
असली हींग को ही उपयोग में लेने से इसका पूरा लाभ मिलता है, मिलावटी हींग से पूरा लाभ नहीं मिलेगा और नुकसान भी हो सकता है.
हींग की शोधन विधि
उपयोग में लाने से पहले हींग को शुद्ध करना ज़रूरी है. शोधित हींग को ही औषध निर्माण में प्रयोग किया जाता है. हींग को दो तरीके से शुद्ध किया जाता है.
1) पहली विधि
असली हींग को इसके वज़न के आठ गुना पानी में घोलकर मन्द आंच पर पानी सूखने तक पकाने से हींग शुद्ध हो जाती है.
2) दूसरी विधि
गाय के घी में खरा होने तक भुन कर उतार लें. इस तरह से हींग शुद्ध हो जाती है, घी में भुनी हींग की उदर रोगों में प्रमुखता से प्रयोग की जाती है.
ऐसे भी रसोई में छौंका लगाने के लिए घी में हींग को भुना जाता है, इस से हींग शुद्ब भी हो जाती है और खाने का स्वाद भी बढ़ जाता है.
हींग के गुणकर्म
आयुर्वेदानुसार यह कफवातशामक और पित्तवर्धक है. तासीर में गर्म होती है. आचार्य चरक ने
‘हिंगू निर्यासश्छेनीयदीपनी यानुलोमिक वातकफ प्रशमनानाम’
कह कर हींग को प्राणवह स्रोतस और अन्नवह स्रोतस की श्रेष्ठ औषधि कहा है. दीपन, पाचन, रोचन, अनुलोमन, शूलप्रशमन और कृमिघ्न जैसे गुणों से यह भरपूर होती है.
अब जानते हैं हींग के बाहरी प्रयोग(External Use)
पेट दर्द होने पर
हींग में पानी मिलाकर पीसकर नाभि के चारों तरफ लेप करना चाहिए.
हींग, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और सेंधा नमक का को पानी मिला पीसकर पुरे पेट पर लेप करने से पेट दर्द मिट जाता है.
हर तरह के पेट दर्द में प्राकृतिक चिकित्सक गुनगुने पानी में हींग का घोल बनाकर एनिमा देते हैं.
कृमि रोग में
दो ग्राम हींग को 100 ml पानी में घोलकर एनिमा देना चाहिए
खाँसी-अस्थमा में
हींग को पीसकर छाती पर लेप करने से खाँसी-अस्थमा के रोगी को उत्तम लाभ मिलता है.
दाद-दिनाय में
हींग का लेप करने से दाद ठीक हो जाता है.
सर दर्द होने पर
सर्दी की वजह से होने वाले तेज़ सर दर्द में हींग को पानी के साथ चन्दन की तरह घिसकर माथे पर लेप करने सर दर्द मिट जाता है.
छाती के दर्द में
हींग, एलुआ, सोंठ, वत्सनाभ और रूमी मस्तंगी को पीसकर घी मिलाकर छाती पर लेप करने से पार्श्वशूल या छाती का दर्द दूर होता है.
दांत दर्द में
गर्म पानी में हींग को घोलकर कुल्ला करने से दांत दर्द में फ़ायदा होता है.
मिर्गी का दौरा पड़ने पर
दौरा पड़ने पर रोगी को हींग मसलकर सुंघाना चाहिए
वृश्चिक दंश पर
बिच्छू काटने पर हींग को आक के दूध के साथ मिलाकर लेप करने से दर्द कम होता है.
अब जानते हैं हींग के आभ्यान्तरीय प्रयोग( Internal Use)
आमवात में
शोधित हीरा हींग 5 ग्राम, चव्य 10 ग्राम, विडनमक 20 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, काला जीरा 80 ग्राम और पुष्करमूल 160 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन करना चाहिए.
हिस्टीरिया में
शुद्ध हींग और एलुआ दो-दो रत्ती मिलाकर पानी के साथ लेने से लाभ होता है.
साइटिका में
शुद्ध हींग को पुष्करमूल और निर्गुन्डी के क्वाथ के साथ लेने से गृध्रसी या साइटिका में लाभ होता है.
पेट दर्द में
शुद्ध हींग 250 mg को अजवायन के चूर्ण के साथ लेने से पेट दर्द दूर होता है.
भुनी हींग, पंचनमक और पंचकोल का चूर्ण लेने से भी पेट दर्द और कब्ज़ दूर होता है.
हिक्का या हिचकी होने पर
हींग और उड़द को चिलम में डालकर धूम्रपान करने या हुक्का की तरह पीने से हिचकी दूर होती है.
अम्लपित्त या एसिडिटी होने पर
हींग के साथ हरीतकी चूर्ण और सज्जीक्षार का सेवन करना चाहिय.
अजीर्ण में
हींग, अम्लबेत, त्रिकटु, चित्रकमूल और जावाखार सभी को बराबर वज़न में लेकर चूर्ण बनाकर सेवन करना चाहिए
उदर कृमि में
शुद्ध हींग को अजवायन के चूर्ण के साथ लेने से पेट के कीड़े दूर होते हैं.
पक्षाघात में
अदरक के रस के साथ हींग का सेवन करना चाहिए.
अतिसार में
हींग, अहिफेन और खैरसार बराबर मात्रा में लेकर चने के साइज़ की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. पानी के साथ इसका सेवन करने से अतिसार नष्ट होता है.
इस तरह से हींग के सैंकड़ों प्रयोग हैं जिनसे अनेकों रोगों में लाभ होता है.
हिंगवाष्टक चूर्ण, हिंग्वादि चूर्ण, हिंग्वादि वटी, हिंगु कर्पूर वटी, रजः प्रवर्तिनी वटी जैसी मुख्य शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधियों का हींग एक प्रमुख घटक है.
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