Eladi Vati | एलादि वटी- गुण उपयोग और निर्माण विधि

eladi vati

एला का मतलब आयुर्वेद में होता है इलायची, एलादि वटी का एक घटक एला या इलायची है इसलिए इसलिए इसका नाम एलादि वटी है. छोटी इलायची और बड़ी इलायची को आयुर्वेद में लघु एला और दीर्घ एला कहा जाता है. 

एलादि वटी के घटक या कम्पोजीशन 

इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है छोटी इलायची, तेजपात और दालचीनी प्रत्येक 6-6 ग्राम, पीपल 20 ग्राम, मिश्री, मुलेठी, पिण्ड खजूर बीज निकली हुयी और मुनक्का बीज निकला हुआ प्रत्येक 40 ग्राम

एलादि वटी निर्माण विधि 

सुखी हुयी चीजों को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और मुनक्का और खजूर को सिल पर पीसकर सभी को अच्छी तरह मिक्स करते हुए थोड़ी मात्रा में शहद भी मिला लें. इसके बाद छोटे बेर के साइज़ की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस एलादि वटी तैयार है. 

एलादि वटी की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली दिन भर में चार-पांच बार मुँह में रखकर चुसना चाहिए. इसे दूध से भी लिया जाता है. या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही इसका प्रयोग करें. 

एलादि वटी के गुण 

यह पित्त शामक है और कफ़ दोष को भी मिटाती है. 

एलादि वटी के फ़ायदे 

इसके सेवन से सुखी खांसी, टी. बी. वाली खाँसी, मुँह से खून आना, रक्तपित्त, उल्टी, बुखार, प्यास, जी घबराना, बेहोश, गला बैठना इत्यादि में लाभ होता है. 

पित्त और कफ़ दोष के लक्षणों में वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं. 

सुखी खाँसी जिसमे कफ़ चिपक जाने से बार-बार खाँसी उठती हो, सांस लेने भी दिक्कत हो तो इस गोली को चूसने से कफ़ ढीला होकर निकल जाता है. 

खाँसी में पित्त बढ़ा होने से खाँसने पर खून तक आने लगता है, ऐसी स्थिति में इसका सेवन करना चाहिए.

खून की उल्टी, हिचकी, चक्कर, पेट दर्द,  बहुत प्यास लगना जैसी समस्या होने पर इसे चुसना चाहिए. 

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