सौ रोगों की एक दवा, जानिए चकौड़ा किन रोगों को दूर करता है

chakramard

आयुर्वेदिक दवाओं में सबसे ज़्यादा इसका बीज ही यूज़ किया जाता है, इसके बीजों को पवांड़ बीज भी कहते हैं.


तो सबसे पहले जान लेते हैं भाषा भेद से इसके नाम –
हिन्दी में – पवांड़, चकवड़ और चकौड़ा
संस्कृत में – चक्रमर्द, दद्रुघन, एडगज(आकार में छोटा होने से), मेषलोचन(मेष की आकृति के जैसे इसके पत्ते होने से), प्रपुन्नाट, पद्माट, पुन्नाट चक्री इत्यादि कहा जाता है.
चक्र(दद्रु) का मर्दन करने के कारण इसका चक्रमर्द है. चक्र या दद्रु को ही आम बोलचाल में दाद या एक्जिमा कहते हैं.
गुजराती में – कुवाडीयो
मराठी में – टांकला, तरोटा, कुंवाडया
अंग्रेज़ी में – रिंगवर्म प्लांट, फिटीड केसिया जबकि लैटिन में कैसिया टोरा कहा जाता है. विभिन्न भाषाओँ में इसका नाम आप देख सकते हैं. वैसे आपके एरिया में इसे किस नाम से जाना जाता है, कमेंट कर ज़रूर बताईयेगा.

chakramard names


चक्रमर्द के गुण-धर्म

आयुर्वेद के अनुसार यह विशेषरूप से कफ़ और वात शामक होता है. यानि कि कफ़ और वात दोष को दूर करता है. सुश्रुत संहिता में कहा गया है –
‘चक्रमर्दः कटुउष्णः स्यान्मेदो वातकफापह:’


स्वाद में यह कड़वा होता है. और तासीर में गर्म होता है. इसके बीज, पत्ते, फुल और जड़ सभी उपयोगी होते हैं.
लगभग सभी आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे कुष्ठगण कहा गया है. अर्थात कुष्ठ रोग या स्किन डिजीज को दूर करने वाला.
वैसे तो कुष्ठरोग के असंख्य भेद होते हैं, पर आयुर्वेद में मुख्यतः 18 तरह के कुष्ठरोग बताये गए हैं. जिसमे सात तरह के महाकुष्ठ और ग्यारह तरह के क्षुद्र कुष्ठ होते हैं.


महर्षि चरक के अनुसार
कपाल, औदुम्बर, मण्डल, ऋक्षजिव्ह, पुण्डरीक, सिध्म और काकणक यह सात महाकुष्ठ कहलाते हैं, जबकि
एककुष्ठ, चर्माख्य, किटीभ, विपादिका, अलस, दद्रु, चर्मदल, पामा, विस्फोटक, शतारु और विचर्चिका ये सब क्षुद्र कुष्ठ कहलाते हैं.
वैसे महर्षि सुश्रुत ने दद्रु या दाद को भी महाकुष्ठ ही माना है.


यह वाली बूटी चक्रमर्द जो है कुष्ठघण होने से कुष्ठरोगों में लाभप्रद है. और विशेष रूप से इसका बाह्य प्रयोग ही किया जाता है, मतलब स्किन पर लगाने के लिए.


इसीलिए लगाने वाली दवा ‘कासीसादि घृत’ में इसके बीजों को भी मिलाया जाता है. ‘कासीसादि घृत’ एक शास्त्रीय औषधि है जिसका वर्णन शारंगधर संहिता में मिलता है.


इसके पत्तों का शाक बनाकर भी खाया जाता है, हमारे क्षेत्र में इसे चकौड़ा का साग कहते हैं, यह आँखों की रौशनी बढ़ाता है और हार्ट के भी बहुत फ़ायदेमंद होता है. इसलिए ह्रदय रोगों को दूर करने के लिए बला और पिप्पली के साथ इसके पत्तों का क्वाथ बनाकर पीना चाहिए.


आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसके बीजों को कॉफ़ी के विकल्प के रूप में भी यूज़ किया जाता है. इसके बीजों को भुनकर पीसकर कॉफ़ी की तरह बनाकर पी सकते हैं.


अब हम जानेंगे तरह-तरह के रोगों में इसके प्रयोग के बारे में, पहले जानते हैं लगाने वाले उपाय यानि बाह्य प्रयोग के बारे में और इसके बाद जानेंगे खाने वाली दवाओं या आतंरिक प्रयोग के बारे में
चक्रमर्द के बाह्य प्रयोग
इसके बाहरी प्रयोग में सबसे पहले नम्बर आता है दद्रु यानि कि दाद का, जैसे कि मैंने पहले ही बताया कि दाद का संस्कृत में एक नाम चक्र भी है.
1) दाद दूर करने के लिए विभिन्न प्रयोग आपको बता रहा हूँ
⦁ a) चक्रमर्द के बीजों के चूर्ण को करंज तेल में मिलाकर लगायें.
⦁ b) इसके बीजों को निम्बू के रस में पीसकर लेप करें
⦁ c) इसके बीज, दूर्वा, हरीतकी और बनतुलसी समान भाग लेकर तक्र में पीसकर पीड़ित स्थान पर लेप करना चाहिए
⦁ d) चक्रमर्द के बीज, तिल, सरसों, कुठ, बाकुची, हल्दी और दारूहल्दी का चूर्ण बनाकर तक्र में मिक्स कर लेप करने से दाद दूर होता है.
⦁ e) चक्रमर्द के बीज, आंवला, राल, हल्दी को सरसों तेल में पीसकर लेप करना चाहिए.
⦁ f) इसके बीजों को आक के दूध में पीसकर इसमें एरण्ड तेल मिलाकर भी लगा सकते हैं.
⦁ g) चक्रमर्द बीज, जीरा और आंवला को पानी या गोमूत्र में पीसकर लेप करने से दाद, खुजली, जलन इत्यादि नष्ट होते हैं.
⦁ h) इसके बीज, हर्रे, सेंधा नमक और बनतुलसी को छाछ में पीसकर लेप करने से ही दाद दूर होता है.
⦁ i) चक्रमर्द बीज, राल, नीला थोथा, और हरीतकी को कांजी में पीसकर लेप करें.
⦁ j) इसके बीजों को थूहर के दूध की भावना देकर गोमूत्र में पीसकर लेप करें
⦁ k) इसके बीज और सुहागा को दही में पीसकर लेप करने से दाद दूर होता है.
⦁ l) चक्रमर्द के बीज, आंवला और कत्था को दही में पीसकर लेप करें.
⦁ m) इसके बीज, लाक्षा, कुठ, सरसों, राल,हल्दी और त्रिकटु को तक्र में पीसकर भी लेप कर सकते हैं.
⦁ n) चक्रमर्द के बीजों को मूली के पत्तों के रस में पीसकर लेप करने से दाद दूर होता है.
⦁ o) इसके बीज और आक के फुल को दही में पीसकर लेप करने से भी लाभ हो जाता है.
⦁ p) चक्रमर्द बीज, घुघची, चित्रक और देवदार को सरसों के तेल में पीसकर लेप करें.
⦁ q) इसके बीजों को तक्र में भिगो दें और जब फुल जाये तो इसे पीसकर उबटन की तरह लगायें और एक घंटे बाद फिटकरी मिले गुनगुने पानी से धोने से सिर्फ सात दिनों में दाद दूर होता है.
⦁ r) चक्रमर्द को जड़ सहित उखाड़ कर इसके छोटे-छोटे टुकड़े कर काढ़ा बना लें, इस काढ़े से दाद को धोने से दाद दूर होता है, चर्मरोगी को इसके काढ़े से स्नान भी करना चाहिए.
⦁ s) इसके बीज, करंज बीज और कुठ को पीसकर लेप करने से भी लाभ होता है.
2) खाज खुजली के लिए
चक्रमर्द बीज और गंधक बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर इसमें घी और दही मिक्स कर लेप करना चाहिए
इसके बीज, तिल, सरसों, हल्दी और दारूहल्दी को तक्र में पीसकर पुरे शरीर में उबटन करें और एक घंटे बाद गर्म पानी से स्नान करें.
3) गंजापन के लिए
इसके बीजों को कांजी में पीसकर सर पर लेप करें
चक्रमर्द बीज, सुहागा, गंधक और सफ़ेद कत्था को तिल तेल में मिक्स कर सर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है.
4) बिच्छू काटने पर
इसके पत्तों को पीसकर डंक वाली जगह पर लेप करना चाहिए
5) सफ़ेद दाग में
चक्रमर्द बीज और बाकुची बीज को भृंगराज के रस में पीसकर सफ़ेद दागों पर लेप करना चाहिए.
6) वात रोगों में
इसके पत्तों को पीसकर पुल्टिस बनाकर हल्का गर्म कर दर्द वाली जगह पर बांधना चाहिए
7) ग्रंथि या ग्लैंड होने पर
इसके फूलों को पीसकर लेप करना चाहिए
8) ज़ख्म होने पर
चक्रमर्द के पत्तों को एरण्ड तेल में भुनकर पीसकर ज़ख्म पर बाँधने से ज़ख्म जल्दी भरते हैं.


आईये अब जानते हैं चक्रमर्द के आभ्यन्तरीय प्रयोग के बारे में, मतलब ओरल यूज़ या खाने वाले प्रयोग के बारे में
1) शीतपित्त या पित्ती उछलने पर
चक्रमर्द की जड़ का बारीक चूर्ण एक टी स्पून घी में मिक्स कर खाना चाहिए
2) शारीरिक सुजन(सर्वांगशोथ) में
इसके पत्तों को पानी में उबालकर मसलकर छानकर इसके काढ़े को एक स्पून सुबह-शाम पीने से कुछ ही दिनों में शरीर की सुजन दूर हो जाती है.
3) सफ़ेद दाग में
चक्रमर्द बीज, त्रिफला और खदिर की छाल के चूर्ण को तुलसी के रस के साथ सेवन करना चाहिए
4) दाद, एक्जिमा में
इसके बीजों को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, एक टी स्पून इस चूर्ण को जम्बिरी निम्बू के रस के साथ सेवन करना चाहिए.
5) कमर दर्द में
इसके बीजों को सेंक कर चूर्ण बनाकर इसमें घी और गुड़ मिलकर सेवन करना चाहिए.
6) खाँसी में
चक्रमर्द बीज के चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करने से खाँसी दूर होती है.
7) खुजली में
भुने हुए बीजों का काढ़ा सेवन करना चाहिए. इसके बीजों के चूर्ण को शक्कर मिलाकर ठन्डे पानी से भी ले सकते हैं.
8) प्रमेह रोग में
इसकी जड़ का क्वाथ पीने से प्रमेह रोग दूर होता है.
9) विबन्ध या क़ब्ज़ में
इसके बीजों के चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करने से पेट का जमा मल निकल जाता है. इसके सेवन से पेट में गोला बनना, बवासीर, पेट के कीड़े इत्यादि रोगों में भी लाभ होता है.


चक्रमर्द के संयोग से कई सारी औषधियाँ भी वैद्यगण बनाकर प्रयोग करते हैं जिनमे चक्रमर्द वटी, चक्रमर्दादि लेप, चक्रमर्द तेल इत्यादि प्रमुख हैं.


आईये अब जानते हैं वैद्य गणों के कुछ अनुभूत प्रयोग के बारे में, यह ऐसे नुस्खे हैं जो गुज़रे ज़माने के अनुभवी वैद्य जी ने खुद से बनाकर मरीज़ों पर सफ़लतापूर्वक प्रयोग किया है और सिद्ध किया है.


अनुभूत प्रयोग
1) खाज-खुजली के लिए
एक किलो इसके बीज लेकर कूटकर बारीक चूर्ण बना लें और पाँच लीटर मट्ठा में अच्छी तरह से घोलकर मिटटी की चिकनी हांडी में डालकर इसका मुंह बंदकर ज़मीन में दबा दें. एक सप्ताह बाद इसे निकालकर बोतलों में भर कर रख लें. इस औषधि को पुरे बॉडी में लगाकर दो- तीन घंटा बाद गर्म पानी से नहा लेना चाहिए. कैसी भी खुजली क्यूँ न हो, सिर्फ तीन दिन में चली जाएगी.


शरीर पर इसे लगाने के बाद ऐसा महसूस होता है कि मानों पहाड़ की सैर कर रहे हों, इसमें ज़हरीली या लगने वाली कोई औषधि नहीं है, इसलिए इसे बच्चे, बूढ़े, युवा, स्त्री-पुरुष सभी यूज़ कर सकते हैं. पुर्णतः परीक्षित प्रयोग है, मतलब बिल्कुल आज़माया हुआ नुस्खा है. एक बार ट्राई करें, बाद में मुझे धन्यवाद् कहना.


2) खुजली नाशक उबटन
चक्रमर्द बीज, जौ का आटा, कपूर, कचूर, सरसों, काली जीरी और सत्यानाशी के बीज बराबर वज़न में लेकर उबटन की तरह सिल पर पानी के साथ पीसकर उबटन लगावें और दो-तीन घंटे के बाद स्नान कर लें. दो-तीन दिनों में ही सुखी खुजली में लाभ हो जाता है.


3) चर्मरोगहर मलहम
इसे बनाने के लिए आपको चाहिए होगा चक्रमर्द बीज, रस कपूर, गंधक और देशी कपूर चारों चीज़ 12-12 ग्राम, वैसलीन या 21 बार धुला हुआ मक्खन 100 ग्राम. सभी चीजों का बारीक कपड़छन चूर्ण बनाकर वैसलीन या मक्खन में अच्छी तरह से मिक्स कर रख लें. इसे लगाने से हर तरह की खाज-खुजली, अपरस, अकौता इत्यादि चर्मरोग नष्ट होते हैं. वैसे अगर इसे न बना सकें तो इसके जैसे असर करने वाला ‘चर्मनौल मलहम’ का लिंक दिया गया है.


4) प्रदर नाशक मिश्रण
इसके लिए आपको चाहिए होगा चक्रमर्द की जड़ 20 ग्राम, अरवा चावल 100 ग्राम और पानी 300 ML. इसे बनाने का तरीका यह है कि चावल को पानी में भिगो दें और एक घंटे के बाद मसलकर छानकर इस पानी को चीनी मिट्टी के बर्तन में रख लें, अब चक्रमर्द की जड़ को चन्दन की तरह घिसकर या सिल पर पीसकर इस पानी में मिला लें और रोगी को पिला दें. यह दवा सूर्योदय से पहले रोगी को पीना चाहिए. इसके सेवन से दो-तीन दिनों में ही फ़ायदा दिखने लगता है, लगातार सेवन करने से हर तरह के प्रदर रोग और उनके कारण होने वाले विकार जैसे कमर दर्द, कमज़ोरी इत्यादि समस्या दूर होती है.

प्रदर (लिकोरिया) की औषधि प्रदरान्तक कैप्सूल


5) दवाए बर्स(स्वित्रहर औषधि), सफ़ेद दाग़ के लिए
यह एक यूनानी नुस्खा है. चक्रमर्द बीज, बाकुची, जंगली अंजीर के वृक्ष की छाल, चाकसू और नीम की अन्तरछाल सभी बराबर वज़न में लेकर चूर्ण बना लें.
इसकी सेवन विधि यह है कि छह ग्राम इस चूर्ण को आधा ग्लास पानी में शाम को भीगा दें और सुबह इसका निथरा हुआ पानी पी जाना है और बची हुयी गाढ़ी सीठी को मसलकर दाग़ पर लेप कर दें. भोजन में नमक का त्याग कर दें और सिर्फ बेसन की रोटी ही खाएं.


6) श्वित्रसंहार वटी सफ़ेद दाग़ को नष्ट करने वाला
इसे बनाने के लिए आपको चाहिए होगा चक्रमर्द बीज, बाकुची, काली ज़िरी, हरीतकी, विभितकी, आमलकी और खैरसार सभी समान भाग. सभी को कूटपीसकर इसमें तुलसी के रस की 21 भावना देकर चार-चार रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखा कर रख लें. एक गोली रोज़ तीन बार शहद से लेना चाहिए.


सफ़ेद दाग़ को नष्ट करने वाली औषधियों का योग ‘श्वित्रहर सेट’


7) अर्श यानि की बवासीर के लिए
चक्रमर्द बीज, सत्यानाशी की जड़ ताज़ी और सेंधा नमक सभी दो-दो गर्म लेकर मट्ठे के साथ पीसकर छानकर लगातार 40 दिन पीने से बवासीर का मस्सा सुखकर गीर जाता है.


8) छाजनहर लेप
चक्रमर्द के बीजों का महीन चूर्ण एक किलो लेकर इसे दो किलो दूध में पकावें, इसमें 200 ग्राम गन्धक चूर्ण भी मिला लें. दूध के जल जाने पर निचे उतार कर रख लें. इसे मलने से दाद, छाजन दूर होता है.


चक्रमर्द बीज या पंवाड़ बीज घर बैठे प्राप्त कर सकते हैं, ऑनलाइन खरीदने का लिंक दिया गया है.

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