भाँग को हम सभी जानते हैं, इसे अक्सर नशे के लिए प्रयोग किया जाता है. वैसे यह एक बहुत ही असरदार आयुर्वेदिक औषधि भी है, पर शर्त यह है कि इसे विधिपूर्वक सही से प्रयोग किया जाये.
भाँग के बारे में आज मैं ऐसी-ऐसी उपयोग जानकारी देने वाला हूँ जिसे आप शायेद ही पहले सुना हो. तो आईये भाँग के गुण-अवगुण और औषधिय प्रयोग के बारे में सबकुछ जानते हैं –
भाँग को कई नामों से जाना जाता है संस्कृत में इसे – भंगा, विजया
हिन्दी में भाँग, अंग्रेजी में – इन्डियन हेम्प कहा जाता है
आयुर्वेद में इसके प्रयोग से अनेको औषधियाँ बनती हैं जैसे – ज्ञानोदय रस, मदनानन्द मोदक, नायिका चूर्ण, बंग भस्म, रसेन्द्रचूड़ामणि रस इत्यादि.
सब से पहले जानते हैं भाँग का नशा और उसके दुष्परिणाम के बारे में –
मादक रूप में भाँग का उपयोग करने से हानि के सिवा को लाभ नहीं होता है. भाँग का नशा करने वालों को मस्तिष्क रोग और स्नायविक विकार उत्पन्न हो जाते हैं. स्वास्थ नष्ट हो जाता है और यहाँ तक की व्यक्ति पागल हो जाता है.
भाँग का नशा उतारने के कुछ उपाय भी जान लिजिए-
1) भाँग के नशे से गले में रूखापन हो तो ज़बान पर घी लगाना चाहिए
2) ठण्डे पानी से सर को धोना चाहिए
3) नीन्द आ रही हो तो रोगी को सोने देना चाहिए
4) निम्बू का रस, इमली, तक्र इत्यादि भी सेवन कराने से भाँग का नशा दूर होता है
5) अमरुद का फल और अमरुद के पत्तों का रस पीने से भी भाँग का नशा दूर होता है
6) सौंफ़ और इमली को पीसकर पीने से भी लाभ होता है.
7) तुलसी के पत्तों की ठण्डाई बनाकर पीलाने से भी भाँग का नशा दूर होता है.
भाँग एक अद्भुत चमत्कारी औषधि भी है, इसे उपयोग में लाने से पहले शोधित करना चाहिए. यह एक प्रकार का उपविष है, अतः औषधिय प्रयोग से पूर्व इसका शोधन बहुत आवश्यक है, आईये भाँग को शुद्ध करने के कुछ तरीक़े जान लेते हैं –
1) भाँग को कपड़े में बाँधकर पानी से तब तक धोते रहें जब तक हरा रँग निकलता रहे. इसके बाद कपड़े से पानी निचोड़कर भाँग को पत्तों को छाया में सुखा लेने से भाँग शुद्ध हो जाती है.
2) गाय के दूध में दोला यंत्र से एक प्रहर तक स्वेद करने के बाद पानी से धोकर सुखाकर घी में हल्का भुन लेने से भी भाँग शुद्ध हो जाती है.
3) सूखे हुए भाँग के पत्तों को पानी में भिगाकर निचोड़ लें, इसके बाद धूप में सुखाकर मन्द अग्नि में गोघृत में भुन लेने से भी भाँग के पत्ते शुद्ध हो जाते हैं.
तो इस तरह से भाँग को शोधित करने के बाद ही प्रयोग में लाया जाता है.
भाँग के गुण
यूनानी हिकमत के अनुसार इसके सेवन से भूख बढ़ती है, उत्तेजना आती है और अधीक दिनों तक इसका सेवन करने से दिमागी परेशानी हो जाती है.
आयुर्वेद के अनुसार यह दर्द दूर करने वाली, नीन्द लाने वाली, बाजीकरण, क्षुधावर्धक, आधा सीसी, उन्माद, श्वास, कष्टरज, लिवर और किडनी के दर्द में उपयोगी है. यह विषहर है वात रोगों में भी असरदार है. विधिपूर्वक इसका सेवन करने से सैंकड़ों रोगों में लाभ होता है.
आईये इसके कुछ बाहरी प्रयोग जानते हैं –
सर दर्द होने पर
भाँग के पत्तों का रस और दूध मिक्स कर ड्रॉपर से पांच-छह बूंद नाक में डालने से सर दर्द दूर होता है.
अंडकोष की सुजन होने पर
इसके पत्तों का भाप लेने या पत्तों को पीसकर पुल्टिस बाँधने से अंडकोष की सुजन दूर होती है.
योनीशैथिल्य में
भाँग के चूर्ण की पोटली तीन घन्टे तक रखने से योनी शिथिलता दूर होती है.
लिंग के टेढ़ापन में
इसके पत्ते को एरण्ड तेल में पीसकर लेप करने से शिश्न में कठोरता आती है और टेढ़ापन दूर होता है.
कान दर्द होने पर
इसके पत्तों के रस को हल्का गर्म कर कान में डालने से कान दर्द दूर होता है और कान में पड़े कीड़े भी मर जाते हैं.
आँखों की लाली, दर्द और भारीपन में
इसके पत्तों को पीसकर आँखों के ऊपर पुल्टिस बाँधने से लाभ होता है.
सर में जूं होने पर
इसके पत्तों को पीसकर या इसका रस सर पर मलने से जुएँ नष्ट हो जाती हैं.
बवासीर में
दस ग्राम भंग के पत्ते और 30 ग्राम अलसी को पीसकर बवासीर के मस्सों पर रखकर बाँधने से बहुत लाभ होता है.
नीन्द नहीं आने पर
इसके पत्तों को बकरी के दूध के साथ पीसकर तलवों पर लेप करने से बहुत जल्दी नींद आती है, यह प्रयोग उन्माद रोग में विशेषरुपे से लाभकारी है.
ज़ख्म और चोट लगने पर
इसके पत्तों का पाउडर बनाकर भरने से दर्द दूर होता है, ज़ख्म ठीक होता है और टिटनस नहीं होने देता.
यह सब थे भाँग के कुछ External Use या बाहरी प्रयोग, आईये अब जानते हैं भाँग के कुछ आन्तरिक प्रयोग –
पेट दर्द होने पर
भाँग और काली मिर्च के चूर्ण को गुड़ में मिलाकर खाने से अपच के कारन होने वाला पेट दर्द दूर होता है.
शुद्ध भाँग को शक्कर के साथ लेने से भी पेट दर्द दूर होता है.
दस्त, लूज़ मोशन होने पर
शुद्ध भाँग के चूर्ण को शहद या सौंफ़ अर्क के साथ लेना चाहिए
डायरिया में
भाँग और पोस्तुदाना को पीसकर पीने से लाभ होता है.
शीघ्रपतन में
शुद्ध भाँग और बीजबन्द 100-100 ग्राम, पोस्तु दाना 50 ग्राम और कालीमिर्च 25 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर रख लें. तीन ग्राम इस चूर्ण को मिश्री मिले एक गिलास दूध से सुबह-शाम लेने से लाभ होता है.
सुज़ाक में
भाँग के पत्ते की ठंडाई पीने से लाभ होता है
खाँसी में
भाँग के पत्तों के चूर्ण में शहद मिक्स कर चाटना चाहिए
प्रमेह में
भाँग चूर्ण को गिलोय के रस और बंग भस्म के साथ लेना चाहिए
हिस्टीरिया में
भाँग के चूर्ण में घी और हिंग मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है.
इसके पत्ते मसल कर कान में दो दो बूंद रस डालने से दर्द गायब हो जाता है।
– सिरदर्द में इसके पत्ते पीस कर सूंघे या इसका दो दो बूंद रस नाक में डाले।
– इसके चुटकी भर चूर्ण में पीपर, काली मिर्च व सौंठ डाल कर लेने से खांसी में लाभ होता है।
– नपुंसकता और शारीरिक क्षीणता के लिए भांग के बीजों को भूनकर चूर्ण बना कर एक चम्मच नित्य सेवन करे।
– अफगानी पठान इसके बीज फांकते है तभी लंबे चौड़े होते है। भारतीय दिन पर दिन लंबाई में घट रहे है।
– संधिवात में भी इसके भूने बीजों का चूर्ण लाभकारी है।
– यह वायु मंडल को शुद्ध करता है।
– इससे पेपर, कपड़ा आदि बनता है।
– इसका कपड़ा एंटी कैंसर होता है।
– यह टीबी, कुष्ठ, एड्स, कैंसर, दमा, मिर्गी, मानसिक रोग जैसे 100 रोगों का इलाज करता है।
– सिद्ध आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व है। यह सूक्ष्म शरीर पर पहले कार्य करता है।
– तपस्वी, ऋषि मुनि इसका सेवन साधना में लाभ के लिए करते है।
– इसके सेवन से भूख प्यास , डिप्रेशन नहीं होता।
– शरीर के विजातीय तत्वों या टॉक्सिंस को यह दूर करता है।
– इसके बीजों का चूर्ण , ककड़ी के बीजों के साथ शर्बत की तरह पीने से सभी मूत्र रोग दूर होते है।
– यह ग्लूकोमा में आंख की नस से दबाव हटाता है।
– अलझेइमर में भांग का तेल लाभकारी है।
– भांग का तेल कैंसर के ट्यूमर के कोशिकाओं की वृद्धि रोक देता है।
– इसके प्रयोग से कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट दूर हो जाते है।
– डायबिटीज से होने वाले नर्वस के नुकसान से भांग बचाता है।
– भांग हेपेटाइटिस सी के इलाज में सफल है।
– डायरिया और डिसेंट्री के लिए प्रयोग में आने वाले बिल्वादी चूर्ण में भांग भी होता है।
– इसके पत्तियों के चूर्ण को सूंघने मात्र से अच्छी नींद आती है।
– संग्रहनी या कोलाइटिस में इसका चूर्ण सौंफ और बेल की गिरी के साथ लिया जाता है।
– हाइड्रोसिल में इसके पत्ते पीस कर बांधने से लाभ होता है।
– भांग के बीजों को सरसो के तेल में पका कर छान ले। यह तेल दर्द निवारक होता है।
– इसके पत्ते डाल कर उबाले पानी से घाव धोने से इंफेक्शन नहीं होता और घाव जल्दी भर जाता है।