Sangjarahat Bhasma | संगजराहत भस्म, गुण उपयोग, निर्माण और प्रयोग विधि

यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो रक्तपित्त, बॉडी में कहीं से भी ब्लीडिंग होना, ल्यूकोरिया, धात रोग, सुजाक और पायरिया जैसे अनेकों रोगों में प्रयोग की जाती है, तो आईये जानते हैं संगजराहत भस्म क्या है? इसके गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में विस्तर से –

संगजराहत भस्म क्या है?

संग का मतलब होता है पत्थर यह एक तरह का खनिज होता है. यह सफ़ेद रंग का चिकना और बड़ा ही मुलायम पत्थर होता है. इसे घीया पाठा भी कहा जाता है. यूनानी में इसे संगजराहत ही कहते हैं जबकि संस्कृत में इसे दुग्ध पाषाण के नाम से जाना जाता है. दुग्ध का मतलब दूध और पाषाण का मतलब पत्थर, दूध की तरह सफ़ेद रंग का होने से इसे संस्कृत में दुग्ध पाषाण कहा गया है.

अंग्रेज़ी में इसे Talc और Soft Stone नाम से जाना जाता है. दन्त मंजन और Talcum Powder में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.


संगजराहत भस्म निर्माण विधि – 

सबसे पहले इसके टुकड़ों को आग में गर्म कर गावज़बाँ के काढ़े में बुझाना चाहिए इसके बाद मिट्टी का एक बर्तन लेकर उसमे पहले घृतकुमारी का गूदा डाला जाता है उसके बाद संगजराहत और फिर ऊपर से घृतकुमारी का गूदा डालकर बर्तन का मूंह बंदकर सम्पुट की अग्नि दी जाती है. ठण्डा होने पर बारीक पीसकर रख लिया जाता है. कुछ वैद्य लोग इसे डायरेक्ट घृतकुमारी के गूदे के साथ भस्म बनाते हैं तो कुछ लोग घृत कुमारी की जगह नीम के पत्तों के साथ इसकी भस्म बनाते हैं. एक आलसी वैद्य जी को बिना भस्म बनाये इसका इस्तेमाल करते हुवे देखा, जो कि बिल्कुल ग़लत है. ऐसे ही लोग आयुर्वेद को बदनाम करते हैं. एक्सटर्नल यूज़ के लिए चलेगा पर इंटरनल यूज़ के लिए विधि पूर्वक भस्म बनाना बहुत ज़रूरी है.

संगजराहत भस्म के गुण या Properties 

इसके गुणों की बात करें तो आयुर्वेद और यूनानी मतानुसार यह तासीर में ठण्डी और पित्तशामक है. यह खून बहना रोकने में बेहद असरदार है. यह रक्त पित्त, ख़ूनी दस्त, ख़ूनी उल्टी, श्वेत प्रदर, रक्तप्रदर, स्वप्नदोष, सुजाक और पायरिया जैसी दांत की बीमारियों में भी असरदार है.

संगजराहत भस्म की मात्रा और सेवन विधि – 500mg से एक ग्राम तक सुबह-शाम शहद, मक्खन, मलाई या रोगानुसार अनुपान से.


आईये अब जानते हैं रोगानुसार संगजराहत भस्म के प्रयोग –

रक्त पित्त(कहीं से भी ब्लीडिंग होने)में – संगजराहत भस्म 5 ग्राम + कामदुधा रस मोती युक्त 1 ग्राम + वल्लभ रसायन 2.5 ग्राम. सभी को मिलाकर 10 ख़ुराक बना लेना है. एक-एक मात्रा सुबह-शाम दूब घास के रस के साथ देना चाहिए. साथ में उशिरासव भी पीना चाहिय.

स्वप्नदोष(स्वप्न प्रमेह, नाईटफॉल) में- संगजराहत भस्म 10 ग्राम + प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम + स्फटिक भस्म 5 ग्राम + आमलकी रसायन 20 ग्राम. सभी को मिलाकर 40 डोज़ बना लें. एक-एक डोज़ सुबह-शाम गिलोय के रस से देना चाहिए.

पूयमेह(सुज़ाक) में – संगजराहत भस्म 500mg शहद से सुबह-शाम देना चाहिए और ऊपर से चन्दनासव पीना चाहिए.

दन्तरोग(मसूड़ों से खून आना, दांत हिलना) में – संगजराहत भस्म में स्फटिक भस्म और माजूफल का चूर्ण मिक्स कर मंजन करना चाहिए. हमारे स्टोर पर मिलने वाला दन्त रक्षक पाउडर में संगजराहत मुख्य घटक है और यह दन्त मंजन दाँतों की समस्या के लिए बेजोड़ है. यह सारी जानकारी मेरी पुस्तक ‘आधुनिक आयुर्वेदिक चिकित्सा‘ में भी दी गयी है.

कट छिल जाने या किसी तरह की इंजुरी होने पर- किसी धारदार चीज़ से कट छिल जाने पर संगजराहत भस्म को पाउडर की तरह डालकर पट्टी कर देने से न सिर्फ़ ब्लीडिंग बन्द हो जाती है बल्कि इन्फेक्शन होने का भी ख़तरा नहीं रहता है. तो इस तरह से संगजराहत भस्म हर घर में रखने लायक घरेलु औषधि भी है.

संगजराहत भस्म मार्केट बहुत मुश्किल से मिलता है, पर यह अवेलेबल है ऑनलाइन जिसका लिंक  दिया गया है. 50 ग्राम की क़ीमत सिर्फ़ 60 रुपया है.

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