Pipalyasava Benefits | पिपल्यासव के फ़ायदे

 

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इसका नाम आपने शायेद ही सुना होगा, क्यूंकि यह अधीक प्रसिद्ध औषधि नहीं है. इसे साउथ इंडिया में पिपल्यासवम के नाम से जाना जाता है, तो आईये पिपल्यासव के घटक, निर्माण विधि और गुण-उपयोग के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं. 

पिपल्यासव 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि आसव या लिक्विड फॉर्म वाली औषधि है जिसका जिसका मुख्य घटक पिप्पली है. 

पिपल्यासव के गुण 

यह कफ़ और वात नाशक और पित्त वर्द्धक है. यह अग्निवर्द्धक और पाचक है, मतलब पाचन शक्ति तेज़ करने वाला और भूख बढ़ाने वाला है. 

पिपल्यासव के फ़ायदे 

मूल ग्रन्थ के अनुसार इसके सेवन से उदर रोग ग्रहणी, संग्रहणी, गुल्म, पांडू, अर्श, क्षय इत्यादि नष्ट होते हैं. 

जीर्ण ज्वर, मन्दाग्नि और कास-श्वास से इसके सेवन से लाभ होता है. 

खाँसी, ब्रोंकाइटिस, IBS, बवासीर, खून  की कमी, गैस, खाने में रूचि नहीं होना, भूख नहीं लगना, फैटी लिवर, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना और TB, Phthisis जैसे रोगों में सहायक औषधि के रूप में इसका सेवन कर सकते हैं. 

पिपल्यासव की मात्रा और सेवन विधि 

15 से 30 ML तक बराबर मात्रा में पानी मिलाकर सेवन करना चाहिए. यह ऑलमोस्ट सुरक्षित औषधि है, पित्तज प्रकृति वालों और जिनका पित्त दोष बढ़ा हो उनको इसका सेवन नहीं करना चाहिय

पिपल्यासव के घटक और निर्माण विधि 

भैषज्य रत्नावली का यह योग है, आपकी जानकारी के लिए इसके घटक और निर्माण विधि बता दे रहा हूँ- 

इसे बनाने के लिए चाहिए होता है – पीपल, काली मिर्च, हल्दी, चव्य, चित्रकमूल, नागरमोथा, विडंग, सुपारी, जलजमनी, आँवला, एलुआ, खस, सफ़ेद चन्दन, कूठ, लौंग, इलायची, दालचीनी, तेजपात, तगर, जटामांसी, प्रियंगु और नागकेशर प्रत्येक 20-20 ग्राम, धाय के फुल आधा किलो, मुनक्का 3 किलो, गुड़ 15 किलो और पानी 25 लीटर 

निर्माण विधि यह है कि सभी जड़ी-बूटियों को जौकूट कर पानी में गुड़ घोलकर मिला दें, धाय के फुल को नहीं कुटना चाहिए. इसके बाद चीनी मिट्टी के बर्तन में डालकर इसका मुंह बंद कर एक महिना के लिए संधान के लिए रख दिया जाता है. एक महीने के बाद इसे छानकर बोतलों में भर लिया जाता है. यही पिपल्यासव या पिपल्यासवम है. 

यह बना हुआ मार्केट में उपलब्ध है जिसका लिंक दिया गया है. 

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