Marichyadi Vati | मरिच्यादि वटी/गुटिका

 

marichyadi vati


मरिच्यादि वटी आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध योग है जो आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता में वर्णित है. इसे खाँसी, सर्दी, जुकाम, टोंसिल इत्यादि में प्रयोग किया जाता है, तो आईये जानते हैं मरिच्यादि वटी के गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से – 

मरिच्यादि वटी का एक घटक मिर्च है, यानी काली मिर्च. इसी से इसका नाम मरिच्यादि वटी रखा गया है. 

मरिच्यादि वटी के घटक या कम्पोजीशन 

marichyadi gutika


काली मिर्च और पीपल प्रत्येक 10 ग्राम, जावा खार 6 ग्राम, अनार का छिलका 20 ग्राम और गुड़ 80 ग्राम 

मरिच्यादि वटी निर्माण विधि 

इसे बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले गुड़ के अलावा सभी चीज़ों का बारीक चूर्ण बना लें. इसके बाद गुड़ की चाशनी बनाकर सभी चीजों को मिलाकर अच्छी तरह से कुटाई करने के बाद 3-3 रत्ती या 375 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस मरिच्यादि वटी तैयार है. 

मरिच्यादि वटी के गुण या प्रॉपर्टीज 

यह वात और कफ़ दोष को संतुलित करती है.

मरिच्यादि वटी की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली दिन में पांच-छह बार तक मुँह में रखकर चुसना चाहिए. या फिर गर्म पानी से.

मरिच्यादि वटी के फ़ायदे 

यह सुखी-गीली हर तरह की खाँसी में उपयोगी है. 

इसके सेवन से सर्दी, खाँसी, जुकाम, गले की खराबी, गला बैठना और टॉन्सिल्स बढ़ जाने पर होने वाली परेशानी भी दूर होती है. टॉन्सिल्स बढ़ा हो तो इसे गर्म पानी के साथ लेना चाहिए.

यदि टॉन्सिल्स की समस्या अक्सर होती रहती हो तो इस से छुटकारा पाने के लिए मेरा अनुभूत योग ‘टॉन्सिल्स क्योर योग’ का सेवन कर सकते हैं. 

मरिच्यादि वटी 

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तो दोस्तों, यह थी आज की जानकारी मरिच्यादि वटी के बारे में, कोई सवाल हो तो कमेंट कर बताईये. यहाँ तक विडियो देखा है तो कमेंट कर ज़रूर बताईये.

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