अथार्त- कवि रहीम कहते हैं कि अगर आप बेस्ट नेचर के होंगे तो ग़लत लोगों के साथ से भी आप नहीं बदलेंगे, ठीक उसी तरह जैसे चन्दन के पेड़ में साँप लिपटे रहते हैं पर फिर भी चन्दन ज़हरीला नहीं होता बल्कि अपने मूल गुण में रहता है.
आज के इस जड़ी-बूटी ज्ञान में मैं बताने वाला हूँ चन्दन के बारे में. जी हाँ दोस्तों चन्दन के बारे में तो थोड़ा-बहुत सभी लोग जानते हैं. पर इसके बारे में मैं ऐसी जानकारी देने वाला हूँ और ऐसे-ऐसे प्रयोग बताने वाला हूँ जो शायेद आप नहीं जानते होंगे. श्वेत चन्दन और रक्त चन्दन यानि सफ़ेद चन्दन और लाल चन्दन के बारे में. यह है सफ़ेद चन्दन और यह है लाल चन्दन.- आईये विस्तार से जानते हैं.
सफ़ेद और लाल चन्दन दो तरह का होता है और दोनों ही आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग किया जाता है. Sandal या Sandalwood के नाम से अंग्रेज़ी में इसे जाना जाता है. आईये सबसे पहले जानते हैं सफ़ेद चन्दन के बारे में –
सबसे पहले भाषा भेद से इसका नाम जानते हैं इसे,
संस्कृत में – चन्दन, श्रीखण्ड, गंधसार, मलयज और भद्रश्री कहा जाता है.
हिन्दी में – सफ़ेद चन्दन, गुजराती में – सुखड,
मराठी में – चन्दन, बंगला में – श्वेत चन्दन,
तमिल में – संदनम, तेलुगु में – चन्दनम,
मलयालम में – चन्दनम, कन्नड़ में – श्रीगन्ध,
अरबी में – संदले अव्यज, फारसी में – संदले सफ़ेद,
अंग्रेज़ी में – सैन्डल वुड(Sandal wood) और
लैटिन में – सैंटलम एल्बम(Santalum Album) कहा जाता है.
यह हमारे देश भारत के कर्नाटक, तमिलनाडू और मालाबार जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है.
आयुर्वेदानुसार यह पित्त और कफ़ दोष नाशक होता है. तासीर में ठंढा होता है. बॉडी की गर्मी, जलन, पेशाब की जलन, अम्लपित, रक्तपित्त और सुज़ाक जैसे रोगों में बेहद असरदार है.
सफ़ेद से कई तरह की क्लासिकल आयुर्वेदिक दवाएँ बनाई जाती हैं जैसे चन्दनादि लौह, चन्दनादि वटी, चन्दनादि चूर्ण, चंदनादि तेल और चन्दनासव वगैरह.
आईये सबसे पहले जानते हैं सफ़ेद चन्दन के कुछ एक्सटर्नल प्रयोग के बारे में –
1) खाज-खुजली में – चन्दन के तेल में निम्बू का रस मिलाकर लगाना चाहिए. चन्दन के तेल को चालमोगरा के तेल में मिलाकर लगाने से भी अच्छा फ़ायदा मिलता है.
2) फोले होना – चन्दन का बुरादा और कपूर को गाय के घी में मिक्स कर लगाना चाहिए.
3) शीतपित्त या पित्ती उछलने में – चन्दन बुरादा को गिलोय के रस में मिक्स कर लेप करना चाहिए.
4) बॉडी की जलन और गर्मी में -चन्दन बुरादा, कपूर और सुगन्धबाला को मिक्स कर लेप करना चाहिए.
5) ज़्यादा पसीना आना- चन्दन बुरादा में आँवला का रस मिक्स कर लेप करना चाहिए.
6) ज़ख्म में – चन्दन का बुरादा और तिल मिक्स कर ज़ख्म पर बंधने से ज़ख्म भर जाता है.
7) जल जाने पर हुवे ज़ख्म में – चन्दन बुरादा, महुआ और मंजीठ के पाउडर को घी में मिलाकर लगाना चाहिए.
8) कान दर्द में – चन्दन के तेल को कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है.
9) सर दर्द में – चन्दन बुरादा और धनिया पाउडर को अर्क गुलाब में मिक्स कर ललाट पर लेप करने से सर दर्द दूर होता है.
10) ज़हरीले कीड़े-मकोड़े काटने पर – चन्दन बुरादा, हल्दी, जटामांसी और केसर को तुलसी के रस में पीसकर लगाना चाहिए.
अब जानते हैं सफ़ेद चन्दन के आन्तरिक प्रयोग या इंटरनल यूज़ के बारे में –
1) सुज़ाक के लिए – चन्दन का तेल और बिरोजे का तेल 10-10 बून्द बताशे में डालकर खाना चाहिए. चन्दन के तेल को बंशलोचन और इलायची के चूर्ण के साथ खाने से भी पुयमेह या सुज़ाक में फ़ायदा होता है.
2) रक्तपित्त या नाक-मुँह या कहीं से भी ब्लीडिंग होने में – चन्दन, गेरू और नीलकमल के चूर्ण को मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिय. चन्दन बुरादा, नीलकमल, मुलेठी और फालसे का काढ़ा या हिम बनाकर पीना चाहिए
3) ज़्यादा प्यास लगने में – चन्दन बुरादा को चावल के धोवन में मसलकर छानकर शहद और मिश्री मिलाकर पीना चाहिए. इसे नारियल के पानी के साथ मिक्स कर पिने से भी फ़ायदा होता है. चन्दन बुरादा और उशीर को पानी में भिगाकर छान कर मिश्री मिलाकर पिने से ज़्यादा प्यास लगना दूर होती है.
4) खुनी दस्त में – चन्दन बुरादा, शहद और मिश्री को चावल के धोवन के साथ लेना चाहिए.
5) मूत्राघात में – चन्दन बुरादा और मिश्री को चावल के धोवन में घोलकर पिने से फ़ायदा होता है.
6) प्रमेह में – चन्दन का काढ़ा प्रमेह रोग में फायदेमंद है ख़ासकर पित्तज प्रमेह में.
7) पागलपन में – चन्दन बुरादा, धनिया पाउडर, बंशलोचन पाउडर और जहरमोहरा खताई पिष्टी प्रत्येक 10-10 ग्राम और पीसी हुयी मिश्री 40 ग्राम. सभी को मिलाकर रख लें. अब इस चूर्ण को 5 से 10 ग्राम तक सुबह-शाम अर्क गाओज़बान से देना चाहिए.
8) लू लगने में – गर्मी के दिनों में अगर लू लग गयी हो तो चन्दन बुरादा को पानी में भिगाकर छान ले और इस पानी को आँवला के रस के साथ पीना चाहिए.
9) जौंडिस में – चन्दन बुरादा को गुलाब जल और शहद के साथ मिक्स कर सात दिनों तक खाने से जौंडिस दूर होती है.
10) दाह, जलन या बॉडी की गर्मी में – चन्दन, कमलगट्टा और खस को पीसकर दूध से खाना चाहिए.
11) शीतपित्त या पित्ती उछलने पर – चन्दन बुरादा को गिलोय के रस के साथ खाना चाहिए.
12) रक्तमेह, पेशाब से खून जाने पर – चन्दन बुरादा, द्राक्षा, महुआ के फूल को दूध में उबाल कर छानकर दूध पीना चाहिए.
13) रक्त प्रदर में – चन्दन बुरादा और लोध्र के चूर्ण को वासा के पत्तों के रस और शहद से खाने से लाल पानी की प्रॉब्लम दूर होती है. चन्दन, खस और कमलगट्टा के चूर्ण को चावल के पानी और शहद से लेना चाहिए.
14) पेशाब की जलन में – चन्दन के तेल को बताशे में डालकर खाने से पेशाब की जलन, पेशाब की तकलीफ, पेडू की सुजन और बार-बार पेशाब आना जैसी प्रॉब्लम दूर होती है.
अब जानते हैं रक्त चन्दन या लाल चन्दन के बारे में. सबसे पहले भाषा भेद से इसका भी नाम जान लेते हैं-
संस्कृत में – रक्त चन्दन, अरुण चन्दन, रक्तसार, अर्कचन्दन,
हिंदी में- लाल चन्दन,
गुजराती में – लाल चन्दन, रतान्जली,
मराठी में – रक्तचन्दन, राता निली,
बांग्ला में – रक्तोचेन्दन, राजस्थानी में – रातो चन्दन,
तमिल में – शिवप्पू चंदनम, तेलुगु में – पेर्रा चन्दनमु,
मलयालम में- तिलपर्णी, कन्नड़ में- होन्ने,
फ़ारसी में – संदल सुर्ख, अरबी में – सन्दल अहमर,
अंग्रेजी में – रेड सैंडर्स(Red Sanders) और
लैटिन में – टेरोकार्पस सैंटेलिनस(Pterocarpus Santalinus) कहा जाता है.
हमारे देश में यह आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में पाया जाता है.
लाल चन्दन के गुण कर्म – आयुर्वेदानुसार यह भी पित्त-कफ़ नाशक है. तासीर में ठण्डा है. गुण- गुरु, रुक्ष और स्वाद में तिक्त और मधुर होता है.
अब जानते हैं रक्त चन्दन या लाल चन्दन के बाहरी प्रयोग या एक्सटर्नल यूज़ के बार में –
1) सफ़ेद दाग में – लाल चन्दन और अनारदाना के चूर्ण को सहदेवी के रस में मिलाकर दाग़ पर लगाने से फ़ायदा होता है.
2) कील मुहांसों के लिए – लाल चन्दन और हल्दी को भैंस के दूध में पीसकर लेप करना चाहिए. लाल चन्दन, लोध्र पठानी, कुठ, तगर, चमेली के पत्ते और बरगद के नए पत्तों को पीसकर दूध में मिक्स कर लेप करने से पिम्पल्स दूर हो जाते हैं.
3) झाई दूर करने और चेहरा ग्लो करने के लिए – लाल चन्दन, मंजीठ, कुठ, लोध्र पठानी, फूल प्रियंगु, बरगद के अंकुर, और मसूर दाल. सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर रख लें. अब इसमें पानी मिक्स कर लेप करने से झाई, दाग-धब्बे दूर होते हैं और रूप निखरता है.
4) आग से जलने पर हुवे ज़ख्म में – लाल चन्दन, बंशलोचन और गिलोय के बारीक पाउडर में घी मिक्स कर लगाना चाहिए.
अब जानते हैं लाल चन्दन के आन्तरिक प्रयोग या इंटरनल यूज़ के बारे में –
1) रक्तपित्त या ब्लीडिंग वाले रोग में – लाल चन्दन और कपूर को पानी में मिलाकर पीना चाहिए. लाल चन्दन, लोध्र और खस के काढ़ा को पिने से भी लाभ होता है.
2) बुखार में – लाल चन्दन, सोंठ, गिलोय और चिरायता का क्वाथ पिने से पारी देकर आने वाली मलेरिया बुखार दूर होती है. लाल चन्दन, नागरमोथा, गिलोय, धनिया और सोंठ का क्वाथ पिने से जनरल फीवर दूर होती है.
3) उल्टी, खुनी उल्टी में – लाल चन्दन और मुलहटी को दूध में पिस लें और फिर इसमें दूध मिक्स कर पिने से फ़ायदा होता है.
4) हिचकी में – लाल चन्दन को स्त्री के दूध में पीसकर कर नस्य लेने या नाक में डालने से फ़ायदा होता है.
5) दाह या जलन वाले रोगों में – लाल चन्दन को चावल के धोवन में पीसकर पिने से जलन और बॉडी की गर्मी दूर होती है.
6) चेचक में – लाल चन्दन, अडूसा, नागरमोथा, गिलोय और मुनक्का को मोटा-मोटा कूटकर आठ घंटे तक ठण्डे पानी में भीगाकर रखें और फिर छानकर रोज़ दो-तीन बार पीलाने से फ़ायदा होता है.
7) टाइफाइड में – लाल चन्दन, ख़स, धनिया, पित्तपापड़ा, नागरमोथा और सोंठ का क्वाथ पिने से टाइफाइड में फ़ायदा होता है.
8) प्रमेह में – लाल चन्दन पाउडर, गिलोय सत्व और बबूल गोंद का पाउडर मिक्स कर खाने से प्रमेह और इस से रिलेटेड प्रॉब्लम में बेहतरीन फ़ायदा होता है.
इन सब के अलावा आयुर्वेद में चन्दन के कई सारे योग भरे पड़े हैं, जिनका बखान किया जाये तो घंटो लग सकते हैं. उनमे से कुछ का नाम लिए देता हूँ जैसे – चन्दनादि कषाय, चन्दनादि हिम, चन्दनादि वटी, चन्दनादि लौह, चन्दन पाक, चन्दनादि घृत, चन्दनादि तेल, चन्दनावलेह, चन्दनादि चूर्ण, चन्दनादि अर्क, चन्दनादि अंजन, चन्दनादि लेप, चन्दन का शरबत वगैरह.
तो दोस्तों, ये थी आज की जानकारी चन्दन के बारे में, उम्मीद है यह पसंद आयेगी तो एक लाइक और शेयर कर दीजिये.