Agnitundi Vati for Stomach Disease & Appendicitis | अग्नितुण्डी वटी अपेंडिसाईटिस और पेट के रोगों की औषधि



अग्नितुण्डी वटी क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो ख़ासकर पेट की बीमारियों के लिए इस्तेमाल की जाती है. इसे पेट की गैस, अजीर्ण, अग्निमांध, विशुचिका, गृहणी और अपेनडीसाईटिस जैसी बीमारियों में किया जाता है. तो आईये जानते हैं अग्नितुण्डी वटी का कम्पोजीशन, बनाने का तरीका इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल – 


अग्नितुण्डी वटी के घटक या कम्पोजीशन – 


अग्नितुण्डी वटी एक रसायन औषधि है जिसमे जड़ी-बूटियों के अलावा पारा गंधक भी मिला होता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध बछनाग, हर्रे, बहेड़ा, आंवला, सज्जीक्षार, यवक्षार, चित्रकमूल, सेंधानमक, जीरा, अजमोद, समुद्र नमक, वायविडंग, काला नमक, सोंठ, कालीमिर्च और पीपल प्रत्येक एक-एक भाग और शुद्ध कुचला अठारह भाग का मिश्रण होता है. 


अग्नितुण्डी वटी निर्माण विधि – 


बनाने का तरीका यह होता है कि सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बना लें और इसके बाद दूसरी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण मिक्स कर शुद्ध कुचला का चूर्ण सबसे लास्ट में मिलायें और फिर निम्बू के रस में एक दिन घोंटकर आधी रत्ती या 60mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस अग्नितुण्डी वटी तैयार है!


अग्नितुण्डी वटी के गुण – 


यह पित्त को बढ़ाती है और वात-कफ़ दोष को बैलेंस करती है. 


अग्नितुण्डी वटी के फ़ायदे – 


अग्निमान्ध और अजीर्ण की यह बेहद असरदार दवा है. यानि भूख की कमी हो, खाने में रूचि न हो और पेट भरा-भरा लगे तो वैसी कंडीशन में भोजन के एक घंटा पहले एक गोली अग्नितुण्डी वटी लेने से बहुत फ़ायदा होता है. 


परिणाम शूल या खाना खाने के बाद पेट दर्द होने पर इसके साथ में शूलवर्जिनि वटी और कपर्दक भस्म लेने से समस्या दूर होती है. 


लिवर की कमज़ोरी होने से जब ग्रहणी रोग हो जाता है तो उसमे भी इसका प्रयोग करना चाहिए. हर तरह के लिवर की बीमारियों में अग्नितुण्डी वटी को दूसरी सहायक औषधियों के साथ लेने से अच्छा लाभ होता है. 


अपेनडीसाईटिस में – 


जब अपेंडिक्स के तेज़ दर्द में भी यह असरदार है. अपेंडिक्स के तेज़ दर्द में अग्नितुण्डी वटी एक गोली + शूलवर्जिनि वटी एक गोली और शंख वटी एक गोली मिलाकर गर्म पानी से लेने से तुरन्त फ़ायदा होने लगता है. अग्नितुण्डी वटी अपेनडीसाईटिस को बिना ऑपरेशन ठीक करने की शक्ति रखती है. 


वात रोगों के लिए- 


कुचला प्रधान औषधि होने से यह वात रोगों में भी असरदार है. जोड़ों का दर्द, गठिया और आमवात जैसे रोगों में इसके इस्तेमाल से फ़ायदा होता है. 


अग्नितुण्डी वटी की मात्रा और सेवनविधि – 


एक-एक गोली सुबह शाम पानी से या फिर रोगानुसार उचित अनुपान से. चूँकि यह कुचला मिली हुयी रसायन औषधि है इसलिए इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए नहीं तो नुकसान भी हो सकता है. आयुर्वेदिक कम्पनियों की यह मिल जाती है, इसे ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं. 

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