All about Aloe Vera | घृतकुमारी के औषधिय प्रयोग

एलो वेरा को आप सभी लोग जानते हैं, इसे कुमारी, घृतकुमारी और ग्वारपाठा जैसे कई नामों से जाना जाता है. तो आईये सबसे पहले जान लेते हैं भाषा भेद से इसका नाम-

हिन्दी में – घी कुवार, घी गुवार, ग्वारपाठा
संस्कृत में – कुमारी, घृतकुमारिका, सहा, गृह कन्या
गुजराती में – कुंवारपाठ
मराठी में – कोरफड़ कोरकाँटा
पंजाबी में- कुवारगंदल
बंगला में – घृतकुमारी
तमिल में – चिरुली
राजस्थानी में – गुंवारपाठो
तेलगु में – पिन्नगोरिष्टकलवन्द
मलयालम में – कुमारी
कन्नड़ में – लोयिसर
अरबी में – सब्बारत
फ़ारसी में – दरख्ते सीव्र
अंग्रेज़ी में – Aloe Vera या Indian Aloe
लैटिन में – एलो वेरा(Aloe Vera), Aloe Barbadensis कहते हैं.

प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. अथर्ववेद, सुश्रुत संहिता, शारंगधरसंहिता और भावप्रकाश जैसे ग्रंथों में घृतकुमारी का वर्णन मिलता है.

कहा जाता है कि 400 ईसा पूर्व से ही यूनानी हकीम लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके बारे में कहानी है कि सिकन्दर आज़म ने प्रख्यात हकीम अरस्तु के कहने पर स्काट्रा टापू को अपने अधिकार में सिर्फ़ इस लिए ले लिया था कि वहां घृतकुमारी की उम्दा क्वालिटी प्रचुर मात्रा में थी.

बहरहाल, जो भी हो इतना तो सच है कि इसे बहुत पहले से ही यूज़ किया जा रहा है इसके बेजोड़ फ़ायदों की वजह से.

वनस्पति शास्त्र के अनुसार घृतकुमारी की लगभग 160 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो दुनियाभर में मिलती हैं. घृतकुमारी को मुख्यतः दो तरह का ही मानकर चलिए- मधुर और तिक्त, जो स्वाद में थोड़ा मीठी हो वह मधुर और कड़वी वाली तिक्त. वैसे तो यह कड़वी ही होती है पर जो कम कड़वी हो उसे मधुर मान सकते हैं.

एलो वेरा से ही एलुआ या मुसब्बर बनता है, जो कि इसके रस का घनसत्व या Concentration है. अनेकों शास्त्रीय औषधियों में घृतकुमारी के रस की भावना दी जाती है जबकि एलुआ या मुसब्बर कई औषधियों का मुख्य घटक होता है.

एलुआ या मुसब्बर को भी कई नामों से जाना जाता है, आईये इसे भी जान लेते हैं –
हिंदी में – एलुआ, मुसब्बर, काला सुहागा
संस्कृत में – कुमारीसार, कन्यासार, कृष्णबोल
मराठी में – एलिया, कालाबोल
गुजराती में- एलियो
बंगला में – एलिया, मुसब्बर
तेलगु में – कोलम
अरबी में – सिब्र
फ़ारसी में – शबयार, बोलस्माह, सिब्र
यूनानी में – फेकरा, मुसब्बर
अंग्रेज़ी में – एलोज़(Aloes)

एलुआ या मुसब्बर कैसे बनाया जाता है?

घृतकुमारी के रस को कड़ाही में डालकर स्लो आंच में हलवा की तरह होने तक सुखाया जाता है, इसके बाद धुप में सुखाकर रख लिया जाता है. यही एलुआ या मुसब्बर है. इस से कई तरह की दवाईयाँ बनाई जाती हैं. आजकल एलो वेरा जूस का ज़्यादा प्रचलन है, कई सारी कंपनियों का यह मार्केट में मिल जाता है जिसमे चीनी, पानी और कई तरह के Preservative मिले होते हैं.

घृतकुमारी के गुण या प्रॉपर्टीज 

आयुर्वेदानुसार घृतकुमारी शीतल या तासीर में ठण्डी, पित्तशामक, कफनाशक, दीपक, पाचक, रक्तप्रसादक या नया खून बनाने वाली, शोथहर या सुजन दूर करने वाली, यकृत-प्लीहा, ग्रंथिदोष नाशक, महिलाओं के मासिकविकार दूर करने वाली जैसे अनेकों गुणों से भरपूर है. लिवर-स्प्लीन और पेट की बीमारियों के लिए इसका कोई जवाब नहीं. यह रक्तशोधक भी है जिस से हर तरह के चर्मरोगों में लाभ होता है.

यूनानी मतानुसार या हकीमी में इसे दुसरे दर्जे का गर्म और ख़ुश्क मानते हैं. तो कुछ की राय में यह तीसरे दर्जे का गरम और तर है. कुछ हकीम इसे बवासीर की बेस्ट दवा मानते हैं.

घृतकुमारी का आयुर्वेद से चोली-दामन जैसा रिश्ता है. यह न सिर्फ़ द्रव्य शोधन में प्रयोग होती है बल्कि अनेकों शास्त्रीय औषधियाँ इसके बिना बन ही नहीं सकती हैं. स्वर्ण भस्म से लेकर कई सारे दुसरे भस्म और रस रसायनों में इसका प्रयोग किया जाता है.

रस रसायनों में घृतकुमारी के प्रयोग की बात करें तो कई सारे रसायन आएंगे जैसे –

चंद्रोदय रस, मकरध्वज, पूर्ण चन्द्र रस, आंत्रशोशंतक रस, माणिक्य मिहिरोदय रसायन, मुक्त पंचामृत, उन्मादगजान्कुश रस, तरुणज्वरारि रस, मल्ल सिन्दूर, शिला सिन्दूर, समीरपन्नग रस, स्वर्ण सिन्दूर, कुमारकल्याण रस, चिन्तामणि चतुर्मुख रस और प्रदरान्तक रस इत्यादि.

तो इतनी सारी औषधियों में घृतकुमारी का किसी न किसी रूप में प्रयोग होता है, इसी बात से आप समझ सकते हैं कि आयुर्वेद में इसका क्या महत्त्व है. कई सारी अंग्रेज़ी दवाओं में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.

आईये अब जानते हैं कि घृतकुमारी के बारे में बड़े-बड़े डॉक्टरों ने क्या कहा है? 

डॉ. देसाई कहते हैं “पाचन नली पर इसका मेन इफ़ेक्ट होता है. यह पाचन क्रिया और लिवर के फंक्शन को सुधारती है. अधिक मात्रा में सेवन करने से पतले दस्त होते हैं, पेशाब साफ़ आता है, पेट के कीड़े दूर होते हैं और पीरियड्स लाता है. गर्भाशय, बीजकोष और बीजवाहक नलियों पर दाहक प्रभाव देकर मासिक या पीरियड लाता है”

डॉ. नाडकर्णी के अनुसार घृतकुमारी का गूदा ज़ख्म भरने के लिए सबसे उपयुक्त औषधि है. रेडिएशन से होने वाले ज़ख्म को भरने में इसका चमत्कारी प्रभाव है.

इसी तरह डॉ. दस्तूर का भी कहना है कि घृतकुमारी का पुल्टिस बाँधने से ट्यूमर, सुजन, जलन और अधपके ज़ख्मों में बेजोड़ लाभ होता है.

आईये अब जानते हैं घृतकुमारी के कुछ सामान्य बाहरी प्रयोग या एक्सटर्नल यूज़ के बारे में- 

1) जौंडिस होने पर – घृतकुमारी के ताज़े रस का नस्य लेना चाहिए यानी नाक में दो-तीन बून्द डालने से लाभ होता है.
2) ग्रन्थि या ग्लैंड होने पर – घृतकुमारी का गूदा, रसौत और हल्दी तीनों को पीसकर गर्म कर बाँधने से ग्लैंड या गिल्टी बैठ जाती है.
3) कान दर्द होने पर – इसके रस को गर्म कर जिस कान में दर्द हो उसमे न डालकर कर दुसरे कान में डालना चाहिए.
4) कुत्ता काटने पर – इसके गूदे में सेंधा नमक मिलाकर कटी हुयी जगह पर पाँच दिनों तक लगाकर पट्टी बांधने से कुत्ते का विष दूर होता है.
5) ज़ख़्म होने पर – इसके पत्ते को छिलकर उसमे हल्दी चूर्ण डालकर गर्म कर ज़ख्म पर बांधना चाहिए.
6) आग से जल जाने पर – इसके रस में घी या मक्खन मिक्स कर लगाना चाहिए. जल जाने पर इसके ताज़े गुदे को तुरंत जले स्थान पर लगाकर बाँधने से राहत मिलती है और इन्फेक्शन नहीं होता.
7) चर्मकील होने पर – इसके पत्ते को एक साइड से छीलकर तेल लगाकर बांधना चाहिए.
8) सर दर्द होने पर– इसके गूदे में थोड़ा सा हल्दी चूर्ण मिलाकर गर्म कर दर्द वाली जगह पर बांधने से वातज और कफज सर दर्द दूर होता है.
9) स्तन में सुजन होने पर – इसकी जड़ को पीसकर हल्दी मिलाकर गर्म कर लेप करना चाहिए
10) अपरस होने पर– इसके गूदे में थोड़ा सा फिटकरी का चूर्ण मिलाकर मलना चाहिए. ऐसा करने से एक महीने में अपरस दूर हो जाता है.
11) हड्डी टूटने पर – एलुआ, गुग्गुल, मैदा-लकड़ी और अम्बाहल्दी को पीसकर गर्म कर लेप कर पट्टी बांधनी चाहिए.

आईये अब जानते हैं एलोवेरा के कुछ सामान्य आन्तरिक प्रयोग या इंटरनल यूज़ के बारे में, यहाँ आप घृतकुमारी के कुछ आसान से प्रयोग जानेंगे-

1) लिवर सिरोसिस में –  एलो वेरा या घृतकुमारी का रस दो चम्मच, सेंधा नमक एक चुटकी और समुद्र एक चुटकी मिलाकर खाना चाहिए. या फिर इसे निम्बू के रस और शहद के साथ भी ले सकते हैं.
2) प्लीहा या स्प्लीन बढ़ने पर– इसके गूदे पर टंकण भस्म छिड़ककर खाना चाहिए. इसके जूस में हल्दी मिलाकर भी पी सकते हैं.
3) हिचकी आने पर – इसके आधा कप रस में तीन ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए.
4) पुयमेह या सुज़ाक में – घृतकुमारी के रस में मिश्री मिलाकर पीना चाहिए.
5) जौंडिस में – इसके रस में सेंधा नमक और हल्दी मिलाकर पीना चाहिए
6) नपुंसकता में – इसके गूदे को छाया शुष्क कर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम इस चूर्ण को दूध के साथ लेना चाहिए.
7) मधुमेह में – इसके रस में गिलोय सत्व मिलाकर लेना चाहिए.
8) कब्ज़ में – घृतकुमारी के रस में सौंफ़ का चूर्ण मिलाकर खाना चाहिए.
9) पेट दर्द होने पर – इसके गूदे में चीनी मिलाकर खाना चाहिए.
10) ल्यूकोरिया में – इसके रस में राल का चूर्ण मिक्स सेवन करना चाहिए.
11) मलेरिया में – इसके रस को गर्म पानी में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है.
12) बच्चों के सर्दी-खाँसी और जुकाम में – घृतकुमारी के रस में शहद मिक्स कर चटाना चाहिए.
13) कमर दर्द में – 25 ग्राम इसके गूदे में एक टी स्पून सोंठ और सेंधा नमक मिक्स कर सेवन करना चाहिए.
14) अपरस होने पर – इसके गूदे में सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से  लाभ होता है.


अब जानते हैं एलुआ या मुसब्बर के कुछ इंटरनल यूज़ के बारे में – 

1) कब्ज़ में – मुसब्बर और हरीतकी का चूर्ण दोनों बराबर मात्रा में मिक्स कर लेना चाहिए
2) जौंडिस में – एलुआ, सोंठ, सेंधा नमक, हल्दी, नौसादर और कपूरकचरी सभी बराबर वज़न में लेकर मिक्स कर एक टी स्पून सुबह शाम लेना चाहिए.
3) आमवात और जोड़ों के दर्द में – एलुआ, सुरंजान शीरीं और हर्रे को बराबर मात्रा में लेकर अर्क सौंफ़ में पीसकर गोली बनाकर सेवन करना चाहिए.
4) साइटिका में – एलुआ, शुद्ध कुचला और काली मिर्च का चूर्ण बराबर मात्रा में मिक्स कर रास्नादि क्वाथ से लेना चाहिए.
5) लिवर-स्प्लीन बढ़ने पर – एलुआ, हींग, सुहागा, नौसादर और सज्जीक्षार को घृतकुमारी का रस मिला पीसकर चने बराबर गोलियाँ बनाकर सेवन करना चाहिए.
6) खांसी में – एलुआ, काली मिर्च और भुना सुहागा मिलाकर गोली बनाकर सेवन करना चाहिए.
7) ख़ूनी बवासीर में – एलुआ, सफ़ेद कत्था और रसौत बराबर वज़न में लेकर एक-एक ग्राम की गोली बनाकर सेवन करना चाहिए.
8) पीरियड नहीं होने पर – एलुआ 10 ग्राम, हीरा कसीस 5 ग्राम और केसर 5 ग्राम को पीसकर 15 गोली बना लें. इसे एक दिन में 3 बार खाएं, इसी तरह से 4-5 दिन तक  खाने से खुलकर पीरियड आने लगता है. अगर गर्मी दिखाए तो छाछ का सेवन करें.
9) अंडवृद्धि या अंडकोष बढ़ने पर – एलुआ, शुद्ध गुग्गुल, काला नमक और हींग बराबर मात्रा में लेकर घृतकुमारी के रस में घोटकर 250 मिलीग्राम की गोलियां बनाकर दो-दो गोली सुबह-शाम लेना चाहिए.

तो ये थे घृतकुमारी और मुसब्बर के कुछ साधारण से प्रयोग. घृतकुमारी के इस तरह के सैंकड़ों प्रयोग ग्रंथों में भरे पड़े हैं जैसे – कुमारी वटी, कुमार्यासव, कुमारी पाक, कुमारी मोदक, कुमारी पाचक, कुमारी माक्षिक, कुमारिका अर्क, कुमारी लवण, कुमारी यवानी, कुमारी घृत, कुमारी तेल, कुमारी अचार इत्यादि.

अब जानेंगे घृतकुमारी के सहस्त्रानुभुत सिद्ध प्रयोग, मतलब ऐसे-ऐसे नुस्खे जो वैद्य समाज द्वारा हज़ारों रोगियों पर आज़माए हुए हैं-

1) गठिया आमवात नाशक लिट्टी – 
घृतकुमारी का ताज़ा मोटा गूदे वाला एक पत्ता लेकर छीलकर इसका गूदा निकाल लें और इसमें गेहूं का आटा मिक्स कर आटा गूँथ लें बिना पानी मिलाये. अब इसकी मोटी रोटी या लिट्टी जैसा बनाकर आगपर सेंक लें. अब इसे घी और गुड़ या चीनी के साथ सुबह नाश्ते में भरपेट सेवन करें, सुबह नाश्ते में और कुछ नहीं खाना है. दोपहर का लंच स्किप करें, रात में भोजन कर सकते हैं. इस तरह से लगातार कुछ दिन तक नाश्ता करने से कैसा भी गठिया और आमवात हो हमेशा के लिए दूर हो जाता है. यह मेरा भी आजमाया हुआ है.

2) कब्ज़ दूर करने वाली रेचनी वटी- 
एलुआ 60 ग्राम, देसी अजवायन 40 ग्राम, काली मिर्च 35 ग्राम और भुना सुहागा 10 ग्राम. सभी को अलग-अलग पीसकर घृतकुमारी के रस में घोटकर चने बराबर की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. दो गोली रोज़ सोने से पहले गर्म दूध या गर्म पानी से लेने से कब्ज़ दूर हो जाती है.

3) हर तरह की खाँसी के लिए ‘कासहर भस्म’ – 
घृतकुमारी का गूदा सुखा हुआ 120 ग्राम, कंटकारी पञ्चांग 120 ग्राम. दोनों को अलग-अलग जौकुट कर रख लें. अब एक मिटटी की छोटी से हांडी लेकर घृतकुमारी का जौकुट चूर्ण आधा बिछा दें और इस पर 60 ग्राम सौंचर नमक का चूर्ण फैला कर इसके ऊपर कंटकारी का पूरा जौकुट चूर्ण डाल दें और सबसे ऊपर आधा बचा हुआ घृतकुमारी का जौकुट चूर्ण बिछाकर कपड़मिटटी कर 5 किलो कंडों की अग्नि दें. पूरी तरह से ठंडा होने पर काले रंग की भस्म निकालकर पीसकर रख लें. इस भस्म को 500 मिलीग्राम की मात्रा में मुँह में रखकर दिन में तीन बार चुसना चाहिए. यह हर तरह की खाँसी के लिए नायब नुस्खा है.

इसी तरह से हर तरह की बीमारी के लिए आज़माए हुए हजारों बेजोड़ नुस्खे मेरी आने वाली किताब में आपको मिल जायेंगे.

सावधानी- प्रेगनेंसी में और ब्रैस्टफीडिंग करने वाली महिलाओं को एलो वेरा या घृतकुमारी का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

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