‘वात रोग नाशक योग’ – साइटिका, लकवा, पक्षाघात, जोड़ों का दर्द जैसे रोगों की बेजोड़ औषधि – Vaidya Ji Ki Diary



वैद्य जी की डायरी में आज बताने वाला हूँ ‘वात रोग नाशक योग’ के बारे में. जी हाँ दोस्तों, यह एक ऐसा नुस्खा है जो हर तरह के छोटे-बड़े वातरोगों को दूर कर देता है. इसके इस्तेमाल से साइटिका, लकवा, पक्षाघात, Spondylosis, जोड़ों का दर्द, गठिया, अर्थराइटिस, कमरदर्द जैसे हर तरह के वात रोग दूर होते हैं. इस योग को हमारे यहाँ 40 साल से भी ज़्यादा टाइम से सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है. तो आईये इस योग के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं- 


‘वात रोग नाशक योग’ जैसा कि इसका नाम रखा है समस्त वात रोगों को यह नष्ट कर देता है. इसे रस भस्मों, जड़ी-बूटियों और सोना-चाँदी जैसी बहुमूल्य औषधियों के मिश्रण से बनाया गया है. 


‘वात रोग नाशक योग’ के घटक –


इसके नुस्खे या कम्पोजीशन की बात करें तो इसे – 


स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, मोती पिष्टी, प्रवाल भस्म, रौप्य भस्म, वंग भस्म, रस सिन्दूर, स्वर्णमाक्षिक भस्म, कज्जली, शुद्ध टंकण, शुद्ध हरताल, शुद्ध कुचला 
असगंध, लौंग, जावित्री, जायफल, काकोली, काकड़ासिंघी, हर्रे, बहेड़ा, आंवला, शुद्ध बच्छनाग, अरणी की जड़, त्रिकटु, अजवायन, चित्रकमूल छाल, वायविडंग, सफ़ेद जीरा भुना हुआ, सज्जी क्षार, सेंधा नमक, सौवर्च नमक, समुद्र लवण,
भावना- गोरखमुंडी, संभालू, ग्वारपाठा और जम्बिरी निम्बू की एक-एक भावना देकर बनाया जाता है.


शुद्ध कुचला भी मिला होने से इसे ऐसे खाने से मुंह का स्वाद ख़राब हो जाता है इसलिए इसे कैप्सूल में भरकर देता हूँ. 


यह एक स्वर्णयुक्त योग है जिसे सोना-चाँदी, मोती जैसी कीमती दवाओं के अलावा बेहतरीन जड़ी-बूटियों का मिश्रण है.


‘वात रोग नाशक योग’ के फ़ायदे –


साइटिका की बीमारी नयी हो या पुरानी, तरह-तरह की दवाओं को खाने से भी फ़ायदा न हुआ हो तो इस योग के सेवन से बीमारी दूर हो जाती है. 


जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, आमवात, संधिवात, अर्थराइटिस, रुमाटायड अर्थराइटिस, लकवा, फेसिअल पैरालिसिस, पक्षाघात, एकांगवात, अर्धांगवात, स्लिप डिस्क, हर तरह की Spondylosis, मसल्स का दर्द, Frozen Shoulder, Stiffneck, नर्व पेन, हाथ-पैर काम्पना, सर हिलना जैसे हर तरह के वातरोगों में यह बेहद असरदार है.


आम का पाचन करता है, गैस दूर करता है और पाचन शक्ति को ठीक करता है. 
बस यह समझ लीजिये कि कैसा भी वातरोग हो, छोटा-बड़ा, नया-पुराना सभी में इसका प्रयोग कर लाभ ले सकते हैं. 


इस योग को हमारे यहाँ 40 सालों से भी अधीक समय से प्रयोग कर हजारों रोगियों को ठीक किया जा चूका है. आयुर्वेदाचार्य मेरे पिताश्री से यह योग मुझे विरासत में मिली है. 


तो दोस्तों, इस तरह की किसी भी बीमारी से आप या कोई और लोग पीड़ित हैं तो इसका सेवन ज़रूर करें.


‘वात रोग नाशक योग’ की मात्रा और सेवन विधि –


एक से दो कैप्सूल सुबह-शाम भोजन के बाद 4 स्पून महारास्नादि क्वाथ के साथ लेना चाहिए. अगर समस्या अधीक न हो तो एक-एक कैप्सूल दूध से भी ले सकते हैं. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, इसे लगातार तीन से छह महिना तक भी ले सकते हैं सही डोज़ में. 


सावधानी – वैसे इस से कोई नुकसान नहीं होता परन्तु इसमें शुद्ध कुचला की थोड़ी मात्रा होती है, जिसके कारन पित्त प्रकृति वाले रोगी या जिनका पित्त दोष बहुत बढ़ा हो तो कम डोज़ में सेवन में सेवन करें और दूध का प्रयोग किया करें.


पुरे कॉन्फिडेंस, श्रधा और विश्वास के साथ यूज़ करें. 100% आयुर्वेदिक मेरा अनुभूत योग है निश्चित रूप से लाभ होता है.


अब सवाल उठता है कि यह मिलेगा कैसे ?


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