आयुर्वेद में पर्पटी वाली दवाओं में पंचामृत पर्पटी को सबसे बेस्ट माना जाता है वो इसलिए कि यह पाचन तंत्र को ठीक कर पेट की हर तरह की बीमारियों को दूर करने की शक्ति रखती है और अमृत की तरह गुणकारी है. पित्त दोष, लिवर की समस्या, आँतों की समस्या में बेहद असरदार है. इसे कल्प विधि से सेवन कराने से पुरानी से पुरानी संग्रहणी या IBS से मुक्ति मिलती है. कल्प विधि को पर्पटी कल्प कहा जाता है.
पंचामृत पर्पटी की मात्रा और सेवन विधि – 125mg से 375mg तक रोज़ 2-3 बार तक भुने जीरा के चूर्ण और शहद के साथ खाकर ऊपर से छाछ या अनार का जूस पीना चाहिए.
मन्दाग्नि(भूख नहीं लगना), संग्रहणी में – पंचामृत पर्पटी 5 ग्राम + सेंधा नमक का चूर्ण 10 ग्राम + भुनी हींग 2.5 ग्राम + भुना जीरा चूर्ण 20 ग्राम. सभी को अच्छी तरह से मिक्स कर बीस ख़ुराक बना लें. एक-एक ख़ुराक सुबह-दोपहर-शाम शहद से खाकर ऊपर से छाछ पीना चाहिए.
पांडू रोग – पंचामृत पर्पटी 250mg में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण और एक स्पून शहद के साथ खाकर ऊपर से त्रिफला अर्क पीना चाहिए.
अब जानते हैं पर्पटी कल्प के बारे में
पर्पटी कल्प
दस्त, संग्रहणी या IBS जैसी बीमारियों में जब दूसरी दवाओं से फ़ायदा नहीं हो रहा हो तो पर्पटी कल्प कराया जाता है. इसके लिए स्पेशल तरीका अपनाया जाता है जिसमे इसे कम डोज़ में स्टार्ट कर हाई डोज़ तक लिया जाता है फिर धीरे-धीरे डोज़ कम किया जाता है. इसके लिए कम से कम 21 और 41 दिनों का कल्प होता है. कल्प कराते हुवे रोगी को सिर्फ़ दूध या तक्र(छाछ) ही दिया जाता है, कोई अन्न या दूसरा भोजन नहीं दिया जाता. तो आईये जान लेते हैं कि पर्पटी
कल्प कैसे करना चाहिए?
पहले दिन – पंचामृत पर्पटी 250mg + भुने हुवे जीरे का चूर्ण 1 ग्राम और शहद 3 ग्राम मिक्स कर सुबह-शाम दें.
दुसरे दिन – सुबह-शाम पहले दिन जैसा ही देना है.
तीसरे दिन – पंचामृत पर्पटी 375mg भुने जीरे के चूर्ण 1 ग्राम और 3 ग्राम शहद से दें सुबह-दोपहर-शाम.
चौथे दिन – तीसरे दिन की तरह की दें.
पाँचवे दिन – पंचामृत पर्पटी 500mg दिन में चार बार पहले की तरह जीरा और शहद के साथ दें.
छठे दिन – पाँचवें दिन की तरह ही देना है.
सातवें दिन – पंचामृत पर्पटी 625mg दिन में चार बार जीरा और शहद के साथ देना है.
आठवें दिन – सातवें दिन की तरह की देना है.
नवें दिन – पंचामृत पर्पटी 750mg दिन में छह बार यानी दो-दो घंटे पर जीरा और शहद के साथ देना है.
दसवें दिन – नवें दिन की तरह ही देना है.
ग्यारहवें दिन – दिन में छह बार 875mg देना है पहले जैसे अनुपान से.
बारहवें दिन – ग्यारहवें दिन के जैसा ही देना है.
तेरहवें दिन – पंचामृत पर्पटी एक-एक ग्राम छह बार देना है ठीक उसी तरह.
चौदहवें दिन – तेरहवें दिन के जैसा ही देना है.
पन्द्रहवें दिन – दिन में छह बार 1125mg हर डोज़ में जीरा और शहद के साथ देना है.
सोलहवें दिन – पन्द्रहवें दिन के जैसा ही.
सत्रहवें दिन – 1250mg पंचामृत पर्पटी को छह बार देना है पहले जैसे अनुपान से.
अट्ठारहवें दिन – सत्रहवें दिन जैसा ही देना है.
उन्नीसवें दिन – दिन में छह बार 1375mg देना है एक ग्राम भुने जीरे के चूर्ण और तीन ग्राम शहद से.
बीसवें दिन – उन्नीसवें दिन की तरह ही.
इक्कीसवें दिन – 1500mg या डेढ़ ग्राम छह बार देना है जीरा और शहद से ही. इस तरह से 21 दिनों में मल बंध जाता है और दस्त न नहीं होते. अगर फिर भी पतला दस्त हो तो एक हफ्ता तक डेढ़ ग्राम पंचामृत पर्पटी रोज़ छह बार तक देते रहें. ज़रूरी हो तो एक हफ्ता और देने के बाद रोज़ 125mg की मत्रा में कम करते हुवे 250mg तक आना चाहिए.
रोज़ जैसे जैसे पर्पटी का डोज़ बढ़ता है वैसे ही दूध या दही की मात्रा भी बढ़ानी चाहिए. और पाचन ठीक रहे इसका भी ध्यान रखें. पंचामृत पर्पटी का डोज़ करते हुवे दूध या छाछ की मात्रा कम न करें बल्कि जितना डाइजेस्ट हो सके पीते रहना चाहिए क्यूंकि और कुछ दूसरी चीज़ तो खानी है नहीं.
कल्प के समय याद रखने वाली कुछ महत्वपूर्ण बातें – कल्प कराते हुवे रोगी को दूध और छाछ के अलावा न कुछ खाना है और न ही कुछ पीना है, पानी भी नहीं पीना है. प्यास लगे तो छाछ या दूध ही पीना है, तभी सही रिजल्ट मिलेगा. कल्प के दौरान अगर गैस बने तो महाशंख वटी दो-दो गोली दो-तीन बार तक लेना चाहिय.
तक्र या छाछ कैसा प्रयोग करना है?
अच्छी ताज़ी जमाई हुई दही में जब उसका चार गुना पानी मिक्स मथा जाता है तो उसे ही आयुर्वेद में तक्र कहते हैं जिसे जिसे आम बोल-चाल में छाछ कहा जाता है. इसी छाछ को कल्प के दौरान यूज़ करना चाहिए.
कल्प के दौरान स्नान करें या नहीं?
पर्पटी कल्प के दौरान स्नान नहीं करना यानि नहाना नहीं है. भीगे हुवे टॉवल से बॉडी को पोछ लेना चाहिए. अगर पर्पटी कल्प की अवधि में कोई बीमारी हो जाये तो डॉक्टर को उसकी दवा देनी चाहिए.