Filaria Treatment | फ़ाइलेरिया का महाकाल – श्लिपदहर योग



यह एक ऐसी बीमारी है जिसके कारन रोगी का जीवन कठिन हो जाता है जिस से चलना फिरना और यहाँ तक की उठने बैठने में भी समस्या हो जाती है, तो आईये इसकी चिकित्सा के बारे में विस्तार से जानते हैं – 


फ़ाइलेरिया को श्लिपद और हाथी पाँव के नाम से भी जाना जाता है. रोगी का पैर फूलकर हाथी के पैर की तरह मोटा हो जाता है जिसे लोग हाथी पाँव भी कहते हैं. 


फ़ाइलेरिया रोग का कारण – 


आयुर्वेदानुसार एक तरह की कृमि ही इसका कारन है और इसे मॉडर्न साइंस भी मानता है. 


क्या यह रोग ठीक हो सकता है? 


जी हाँ, आयुर्वेदिक चिकित्सा से यह रोग ठीक हो जाता है इसमें कोई शक नहीं. इसके लिए लम्बे समय तक दवा लेनी होती है. जब तक आपने धैर्य नहीं होगा, इस रोग से मुक्ति नहीं मिलेगी. 


होता क्या है कि अक्सर लोग दो चार महीने दवा खाकर छोड़ देते हैं और मान लेते हैं कि रोग ठीक नहीं होगा. इस से छुटकारा पाने के लिए एक से दो साल तक औषधि का सेवन करना पड़ता है तभी रोग निर्मूल हो जाता है और दुबारा नहीं होता. 

साध्य फ़ाइलेरिया(नया रोग)



दो चार साल तक का पुराना रोग जल्दी ठीक हो जाता है परन्तु जिसमे रोगी की त्वचा कछुआ के पीठ के समान कड़ी हो गयी हो, असाध्य माना जाता है. पर यह भी ठीक हो सकता है औषधि के निरन्तर सेवन से, साथ में अग्निकर्म और जलौकावचारण भी करना चाहिए इसके लिए. 

असाध्य फ़ाइलेरिया(बहुत पुराना रोग)





फ़ाइलेरिया की आयुर्वेदिक चिकित्सा – 


इसकी आयुर्वेदिक चिकित्सा से पहले दो बात का ध्यान रखना होगा. पहली बात यह कि बड़े धैर्य के साथ आपको इसकी औषधि सेवन करनी पड़ेगी 


और दूसरी बात यह कि खाने-पिने में परहेज़ भी करना होगा. यदि आप खान-पान में परहेज़ नहीं करेंगे तो सफलता नहीं मिलेगी. 


परहेज़ क्या-क्या करना है?


फ़ाइलेरिया की इस दवा का इस्तेमाल करते हुए आलू, केला, उरद, गोभी, आम, अरबी, कटहल, शकरकंद, ठण्डा पानी, ठंडा भोजन, फ्रिज की चीज़, गन्ना, गुड़, चीनी, दूध और दूध से बनी चीजों का परहेज़ करना चहिये. 


आईये अब जानते हैं इसकी औषधि के बारे में. चूँकि इसका मूलकारण कृमि है तो कृमिघन औषधियों के मिश्रण से बनाया गया है – श्लिपदहर योग 
शास्त्रों में भी कहा गया है – 


‘प्रकृति विघातस्त्वेषां कटुतिक्त कषायक्षारोष्णानां द्रव्याणामुपयोगः,
यच्चान्यदापि किन्चिच्छलेष्म पुरीषप्रत्यानीकभूतं तत् स्यात् ||’

अथार्त – कृमियों की प्रकृति का नाश कटु, कषाय, क्षार और उष्णवीर्य वाले द्रव्यों के उपयोग से होता है और जो भी क्रिया, द्रव्य उपचारादि कफ तथा पुरीष के गुणों के विपरीत होते हैं, उनके सेवन से भी कृमियों का विनाश होता है. 


श्लिपदहर योग इसी तरह की कृमिनाशक और फ़ाइलेरिया में प्रयुक्त होने वाली औषधियों का बेजोड़ मिश्रण है. 


श्लिपदहर योग के घटक या कम्पोजीशन – 


इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे श्लीपदगजकेशरी रस, नित्यानन्द रस, कृमिमुदगर रस, कृमिकुठार रस, नागार्जुनाभ्र रस और कृष्ण भृंगराज घनसत्व का उचित संयोग होता है. इसकी बनी बनाई पुड़िया अब उपलब्ध है. इसके साथ में फ़ाइलेरियल कैप्सूल का भी सेवन करना चाहिए.


औषधि की मात्रा और सेवन विधि – 


श्लीपदहर योग एक पुडिया रोज़ दो से तीन बार तक शहद में मिक्स कर 
फ़ाइलेरियल कैप्सूल एक-एक सुबह-शाम.


संभव हो तो इनके साथ में गोमूत्र अर्क, आसव या क्षार में से कोई एक भी एक सेवन कर सकते हैं. 


यह दोनों औषधि अवेलेबल है ऑनलाइन जिसका लिंक दिया गया है –




 फ़ाइलेरियल कैप्सूल के 120 पैक की क़ीमत है सिर्फ़ 400 रुपया जबकि श्लीपदहर योग के 90 मात्रा की क़ीमत है 999 रुपया. दोनों दवा मिलाकर सिर्फ़ एक हज़ार से 1200 तक एक महीने का खर्च होता है जो कि कोई अफ़ोर्ड कर सकता है, इस महाव्याधि से मुक्ति पाने के लिए. 


तो दोस्तों, अगर किसी को फ़ाइलेरिया से मुक्ति पानी है तो बताई गयी दवा को धैर्यपूर्वक सेवन करना चाहिए. यह कष्टकारक महाव्याधि दूर होगी, यह आयुर्वेद की गारन्टी है!!! 


फ़ाइलेरियल कैप्सूल की जानकारी 

फ़ाइलेरिया का उपचार 

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