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12 अगस्त 2024

मलाई के साथ इसे खा लो | 100 रोगों की एक दवा | Parad Bhasma ke Fayde | Mercury

para bhasma ke fayde

पारा यानी की मरकरी के बिना आयुर्वेद अधुरा है इसलिए आयुर्वेद में पारे का बड़ा महत्त्व है. 

पारा एक ऐसी पावरफुल चीज़ है जो सर से लेकर पैर तक के सभी रोगों को दूर कर देती है अगर सही तरीके से इसका इस्तेमाल किया जाये. यह शरीर के छोटे-बड़े सभी रोगों को बड़े असरदार तरीके से दूर करती है.

रोगी शरीर को निरोग कर, जवानी लाती है और बुढ़ापा दूर करती है. मर्दाना कमज़ोरी जैसे पुरुष यौन रोगों के लिए तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं. 

दोस्तों, पारे के बारे में हमारे समाज में कुछ ग़लतफहमियाँ भी फैली हुयी हैं. जानकारी के आभाव में ही लोग कुछ उल्टी सीधी बात कह देते हैं और सीधे-साधे आदमी उसे सच मान लेते हैं. 

आयुर्वेद में पारे को पारद भी कहा जाता है. पारा क्या है इसे अछी तरह से समझने के इसका इतिहास समझना होगा, इसकी उत्त्पत्ति कैसे हुयी और यह कहाँ मिलता है इसे समझना होगा. 

पारा एक खनिज है, मिनरल है. दुनियाँ में कई सारे खनिज निकलते हैं उनमे से पारा ही एकमात्र ऐसा खनिज है जो नार्मल Temperature में लिक्विड फॉर्म में होता है. हिंगुल नामक खनिज से इसे एक्सट्रेक्ट किया जाता है. 

पारद की उत्त्पत्ति कैसे हुयी? 

आयुर्वेदिक रसशास्त्रों जैसे रत्नसमुच्चय इत्यादि में पारे की उत्पत्ति का वर्णन पौराणिक ढंग से किया गया है जिसका सारांश आप पढ़ सकते हैं - 

और इसका मूल श्लोक भी आप  देख सकते हैं. 

ग्रंथों से यह चीज़ क्लियर हो जाती है कि बिना संस्कार किया, बिना शोधित किये पारा के इस्तेमाल से आपको फ़ायदा नहीं होगा. 

ऐसे ही कच्चा पारा खा जाने से भयंकर नुकसान होता है, इस से आपको बॉडी ख़राब हो सकती है, कुष्ठव्याधि जैसे भयंकर रोग हो सकते हैं.  

पारद के भेद या प्रकार 

आयुर्वेद में पारद के पांच भेद बताये हैं, यानी कि पारा पांच तरह का होता है. 

1) रस 2) रसेन्द्र 3) सूत 4) पारद और 5) मिश्रक 

ऐसे ही पाँच नाम शिवजी के हैं और इतने ही पारे के भी. 

इसमें से चौथा वाला पारद नाम का पारा ही अब मिलता है दुसरे सब दुर्लभ हैं. 

हिंगुल से निकाला हुआ पारा शुद्ध माना जाता है, इसमें कोई दोष नहीं होता और इसे ही आयुर्वेदिक दवाईयाँ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. 

और एक इम्पोर्टेन्ट बात आपको बता दूँ इसी शुद्ध पारे को बिना भस्म बनाये ही, ऐसे ही मिलाकर ज़्यादातर दवाईयाँ बनाई जाती हैं. शुद्ध पारा के साथ में शुद्ध गंधक मिलाकर खरल करने से यह काले रंग का पाउडर फॉर्म में हो जाता है, जो यूज़ करने के लिए रेडी और पूरी तरह सुरक्षित होता है. इसे ही कज्जली कहा जाता है. 

पारद भस्म कैसे बनता है?

पारे की भस्म बनाने के दो तरीके हैं. इसे बनाना सभी के लिए आसान नहीं है, आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ - 

पहला तरीका 

इसके लिए चाहिए होता है - शुद्ध पारा 25 ग्राम, सेंधा नमक 25 ग्राम, शुद्ध संखिया 12 ग्राम, बच्छनाग 6 ग्राम, हींग, फिटकरी, गेरू और समुद्र लवण प्रत्येक 15-15 ग्राम लेकर सबको मिलाकर कांजी में घोटने के बाद इन्द्रायण की जड़ के रस में घोटने के बाद डमरू यंत्र में रखकर आठ पहर तक आंच दिया जाता है. इसके बाद ठण्डा होने पर ऊपर की हांडी में लगी पारद भस्म को निकाल कर रख लें. 

पारद भस्म बनाने का दूसरा तरीका 

शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक 50-50 ग्राम लेकर खरल कर कज्जली बना लें. अब इसमें बरगद के दूध में फिर एक बार घोटकर मिटटी के चौड़े मूंह वाले मज़बूत बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर मन्द-मंद अग्नि दें. इसे बरगद की ही ताज़ी गीली लकड़ी से धीरे-धीरे चलाते रहें. इसी तरह से पुरे दिन पकाने से काले रंग की सुरमे के जैसे भस्म बन जाती है. 

अगर किन्ही को शुद्ध पारा या फिर शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक के मिश्रण से बनी कज्जली चाहिए तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं. या फिर डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक से आर्डर कर सकते हैं.

पारे की भस्म की मात्रा और सेवन विधि यानी की इसका डोज़ और इस्तेमाल करने का तरीका 

125 mg से 250 mg तक कैप्सूल में भरकर या मुनक्के के अन्दर डालकर निगल लेना चाहिए. इसे रोगानुसार उचित अनुपान से लेना चाहिए. इसे किस बीमारी में कैसे यूज़ करना है, आगे बताऊंगा. 

पारे की भस्म के फ़ायदे 

पारे की भस्म संग्रहणी यानि की IBS, दस्त, TB और शोषरोग को नष्ट करती है. 

यह पाचकअग्नि की कमज़ोरी दूर करती है, आपकी Digestive फायर को तेज़ करती है.

इसके सेवन से शरीर में बल बढ़ता है, ताक़त बढ़ता है, वीर्य बढ़ता है और मैथुन शक्ति की वृद्धि होती है.

यह आपकी बॉडी को कमज़ोर करने वाले सभी रोगों को दूर करती है.

पारद भस्म आपकी मेमोरी पॉवर को बढ़ाती है, आपको बॉडी स्ट्रेंथ को बढ़ाती है.

एक साल तक विधि पूर्वक सेवन करने से बुढ़ापा नष्ट होता है. 

पारे की भस्म को मक्खन या मलाई के साथ सेवन करने से मैथुन शक्ति की अपूर्व वृद्धि होती है. मतलब इसके इस्तेमाल से आपकी मर्दाना ताक़त बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है, इतना ज़्यादा कि जितना पहले कभी नहीं हुयी होगी. तो समझ सकते हैं कि यह पुरुष रोगों के लिए कितना पावरफुल है. अधीक विषय-भोग करने वाले पुरुषों को इसका सेवन करते रहने से वीर्यवृद्धि होकर ताकत-पॉवर-स्टैमिना बना रहा है, कमज़ोरी नहीं आती है.

पारे की भस्म सभी रोगों को दूर करने की क्षमता रखती है अगर अनुपान के साथ इसका विधि पूर्वक सेवन किया जाये. तो आईये जान लेते हैं कि कुछ मेन बीमारियों में इसे किस चीज़ के साथ यूज़ किया जाता है- 

मर्दाना कमज़ोरी, इच्छा की कमी, PE, ED जैसे समस्त पुरुष रोगों में 

पारे की भस्म और कौंच बीज चूर्ण लेकर इसे मक्खन, मलाई और शहद मिक्स कर सेवन करना चाहिए.

बुखार में 

बुखार यानी की फीवर होने पर इसे पित्तपापड़ा, मोथा, तुलसी या पिप्पली क्वाथ के साथ सेवन करने से बुखार दूर होती है.

रक्त पित्त में 

लाक्षा चूर्ण, हरीतकी चूर्ण या वासा चूर्ण के साथ शहद मिलाकर इसका सेवन करने से रक्तपित्त रोग नष्ट होता है. यानी की नाक से खून आना, बदन की गर्मी, खून की गर्मी दूर होती है. 

खांसी में 

खांसी में पिप्पली चूर्ण में पारे की भस्म मिक्स कर शहद मिलाकर चाट ले और ऊपर से छोटी कटेरी का क्वाथ पियें

जौंडिस में 

त्रिफला हिम या त्रिफला और हल्दी कषाय के साथ इसका सेवन करना चाहिए.

दस्त होने पर 

लूज़ मोशन होने पर बेलगिरी के चूर्ण या मोथा के चूर्ण के साथ ले सकते हैं. 

पेचिश में 

आम और जामुन के पत्तों का रस, बेल का चूर्ण, सोंठ और गुड़ को एकसाथ मिलाकर हलवे की तरह गाढ़ा पकाकर पारे की भस्म मिलाकर सेवन करने से पेचिश की बीमारी दूर होती है. 

हैजा में 

हींग और पिप्पली चूर्ण के साथ पारे की भस्म का सेवन करने से हैजा रोग दूर होता है. 

हिक्का रोग यानी हिचकी आने पर 

बीजौरा निम्बू और कालानमक के साथ इसका सेवन करना चाहिए. और ऊपर से चन्द्रशूर का क्वाथ पीना चाहिए.

वमन या उल्टी होने पर 

धान के खील के चूर्ण को पानी में घोलकर उसमे शहद और मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए. 

क्षय यानि की TB की बीमारी में 

बकरी का दूध और पिप्पली कल्क-सिद्ध घृत गन्धक मिलाकर सेवन करना चाहिए 

पेट दर्द होने पर 

त्रिकटु चूर्ण के साथ पारद भस्म का सेवन करना चाहिए

शोथरोग यानि कि बॉडी में कहीं भी सुजन होने पर 

कुटकी, पुनर्नवा और सोंठ के काढ़े के साथ पारद भस्म का सेवन करने से सुजन दूर होती है. 

ओबेसिटी या मोटापा में 

वज़न कम करने के लिए इसे आप त्रिफला गुग्गुल के साथ यूज़ कर सकते हैं.

वात रोगों में 

लहसुन के रस और तिल के तेल के साथ सेवन करना चाहिए. गठिया जोड़ों का दर्द या आर्थराइटिस में गिलोय के रस या गिलोय क्वाथ के साथ सेवन करें.

और अगर साइटिका की बीमारी है तो इसे सोंठ और एरण्ड बीज गिरी के साथ खाकर ऊपर से हारश्रृंगार का क्वाथ पियें और चमत्कार देखें. 

सफ़ेद दाग में 

बाकुची के चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिए 

पेट के कीड़ों के लिए 

उदर कृमि या पेट के सभी तरह के कीड़ों को दूर करने के लिए पारे की भस्म के साथ विडंग और पलाश बीज चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिए.

दुबलापन दूर करने के लिए 

पारद भस्म को असगंध और शतावर चूर्ण के साथ दूध मिलाकर यूज़ करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है. 

प्रमेह रोगों में 

शिलाजीत के साथ पारद भस्म का सेवन करने से प्रमेह रोग दूर होता है. त्रिफला चूर्ण या ताज़ी गिलोय के रस के साथ भी सेवन कर सकते हैं. 

अर्श रोग या पाइल्स में 

नए पुराने हर तरह के पाइल्स में पारद भस्म को भुने हुए सुरणकन्द में तिल तेल और सेंधा नमक मिलाकर सेवन करना चाहिए. 

तो दोस्तों आपने यह जाना कि किन रोगों में किस चीज़ के साथ पारे की भस्म को यूज़ किया जाता है. इसे आप सैंकड़ों बीमारीओं में यूज़ कर सकते हैं. 

पारे की भस्म का यूज़ करते हुए आपको अपने खान-पान में कुछ चीजों का ख्याल रखना होगा. 

अपनी उम्र और प्रॉब्लम के अनुसार सही डोज़ में स्थानीय वैद्य जी की देख-रेख में भी इसका इस्तेमाल करना चाहिए.

पारे की भस्म का इस्तेमाल करते हुए और इसके इस्तेमाल के कुछ दिनों बाद तक आपको नमक, मिर्च, गुड़, तेल और फ्राइड फ़ूड से परहेज़ करना चाहिए. इसके सेवन काल में यानी कि इसका इस्तेमाल करते हुए जौ, या गेहूं की दलिया, रोटी, दूध, घी, मक्खन-मलाई और पौष्टिक चीज़े खाती रहनी चाहिए. 

अंग्रेज़ी डॉक्टर जो आपको डराते हैं कि पारे वाली मेडिसिन यूज़ न करो, हेवी मेटल है किडनी ख़राब कर देगी इसमें क्या सच्चाई है?

जैसा कि मैं विडियो में बताया और जैसा कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में लिखा है कि एक साल तक यूज़ करने से बुढ़ापा दूर होता है. अगर इस से किडनी पर कोई ख़राब असर होता तो एक साल यूज़ करने की सलाह आयुर्वेद नहीं देता. 

और अगर शुद्ध पारा इतना ही डेंजर होता तो आयुर्वेद की लगभग 99.9% जितनी भी रसायन औषधि में उसमे शुद्ध पारा मिला होता है. 

तो आप समझ सकते हैं कि अगर इसके सेवन से कोई खतरा होता तो क्या सभी दवाओं या यह एक घटक होता? इनग्रीडेंट होता? 

अंग्रेज़ी डॉक्टर बस आयुर्वेद को बदनाम करने के लिए ऐसी बकवास करते हैं. बल्कि सच तो यह है कि अंग्रेज़ी दवा से ही किडनी पर ज़्यादा असर होता है. एक तरह यह एक बीमारी ठीक करती हैं तो दूसरी तरह आपको चार बीमारी गिफ्ट की तरह देती हैं. और यह भी एक कड़वा सच है कि Allopath में कोई भी एक भी ऐसी दवा नहीं है जिसका साइड इफ़ेक्ट न हो. 

मैं किसी भी चिकित्सा पद्धति का विरोधी नहीं हूँ, सभी का सम्मान करता हूँ. अंग्रेजी दवाओं के बारे में आपकी क्या राय है कमेंट कर ज़रूर बताईयेगा.

 तो दोस्तों यह थी आज की जानकारी पारे की भस्म के बारे में. उम्मीद करता हूँ कि इस से आपको कुछ नयी जानकारी मिली होगी. 



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