आज के समय में उम्र बढ़ने के साथ ही घुटनों के दर्द, जोड़ों के दर्द या आर्थराइटिस की समस्या अक्सर लोगों को हो जाती है. इसकी वजह से उठने-बैठने और चलने फिरने में समस्या होने लगती है. पेन किलर खाने से दर्द में भले ही थोड़ी राहत मिलती है, पर स्थाई लाभ नहीं होता और ऊपर से इसके साइड इफेक्ट्स भी होते हैं.
आज मैं आपको जोड़ों के दर्द को दूर करने वाला मालिश के तेल का नुस्खा बता रहा हूँ जिसे आप ख़ुद से बनाकर इसका फायदा उठा सकते हैं.
इसे बनाने के लिए आपको लेना है सरसों तेल, लहसुन, हल्दी और कपूर
पीले सरसों का ओरिजिनल तेल जो मिल से निकाला गया हो वही आपको लेना है, देसी लहसुन, खड़ी हल्दी और टिकिया वाला कपूर आपको लेना है.
बनाने का तरीका
इस तेल को बनाना बहुत ही आसान है. सबसे पहले एक कप सरसों तेल को किसी स्टील या लोहे के बर्तन में डालकर गर्म कीजिये, अब इसमें तीन-चार लहसुन की कलियाँ कूटकर डाल दीजिये, स्लो आंच पर पकने दीजिये और जब लहसुन जल जाये तो इसे आग से उतार कर इसमें एक टी स्पून पीसी हुयी हल्दी डाल देना है और ठण्डा होने पर छान लेना है, अब लास्ट में एक टिकिया कपूर की पीसकर मिक्स कर तेल को कांच की बोतल में ढक्कन टाइट कर रख लें. बस मालिश का तेल तैयार है.
इस्तेमाल करने का तरीका
इस तेल से सुबह-शाम मालिश करना चाहिए. जोड़ों को दर्द हो, घुटनों का दर्द हो या फिर जकड़न वाली जगह पर मालिश करें.
तेल को हल्का गर्म कर, गुनगुने तेल से ही मालिश करें, और मालिश के बाद घुटनों को सूती कपडे या तौलिये से लपेट कर रखें दस-पंद्रह मिनट तक.
इसकी मालिश करने से सिर्फ़ दो दिनों में ही आपको फ़ायदा दिखने लगेगा और लगातार इस्तेमाल करते रहने से पुराना से पुराना जोड़ों का दर्द को भी आप दूर कर सकते हैं.
तो अब देर किस बात की? घुटनों के दर्द से परेशान हैं तो आज ही इस नुस्खे को बनाइये और इस्तेमाल कीजिये.
मदन कामदेव रस जो है प्राचीन ग्रन्थ सहस्र रस दर्पण - रस हज़ारा में वर्णित योग है. इसी का आज विश्लेषण करूँगा, बिल्कुल आसान भाषा में.
मदन कामदेव रस के घटक या Composition
इसे बनाने के लिए आपको चाहिए होगी सब चीजें जैसे-
स्वर्ण भस्म 1 ग्राम, चाँदी भस्म या रजत भस्म 2 ग्राम, हीरक भस्म 3 ग्राम, ताम्र भस्म 4 ग्राम, शुद्ध पारा 6 ग्राम, लौह भस्म 5 ग्राम और शुद्ध गन्धक 7 ग्राम.
भावना देने के लिए आपको चाहिए होगा
मदार का दूध मतलब वही सफ़ेद आक का दूध, असगंध, तालमखाना, शतावर, कसेरू, कुश और कमल की जड़. इन सब का काढ़ा बनाकर यूज़ कर सकते हैं.
मिलाने के लिए आपको चाहिए होगा
कस्तूरी, सोंठ, मिर्च, पीपल, कपूर, छोटी इलायची, शीतल चीनी, और लौंग सभी सभी 5-5 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लेना है. कस्तूरी नहीं मिले तो इसकी केशर मिला सकते हैं.
साथ ही आपको चाहिए होगा ताज़े एलोवेरा का रस, एक आतशी शीशी, एक मिट्टी की हांडी और दो-तीन किलो मोटा नमक
मदन कामदेव रस की निर्माण विधि
इसे बनाने के तरीका थोड़ा सा जटिल है, इसलिए आज के समय में इस तरह के रसायन विलुप्त हो गए हैं.
सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को मिलाकर खरल में डालकर ख़ूब पीसकर कज्जली बना लेना है. आप चाहें हो बनी-बनाई कज्जली भी यूज़ कर सकते हैं. बनी हुयी कज्जली हमारे स्टोर से मिल जाएगी, लिंक डिस्क्रिप्शन में मिल जायेगा.
कज्जली बनाने के बाद सोना, चाँदी, हीरा, ताम्र और लौह भस्म को मिलाकर इसे एलो वेरा कर मिक्स करते हुए घोटकर आतशी शीशी में भरना होता है और कपड़मिट्टी कर सुखाना होता है.
इसके बाद एक मिटटी के हांडी में आतिशी शीशी को बीच में रखकर मोटा नमक डालकर हांडी नमक से भर देना होता है. इतना ही भरना होता है कि बोतल का उपरी भाग दीखता रहे, बोतल की गर्दन तक ही नमक भरना है हांडी में.
अब आप सोच रहे होंगे कि ये आतिशी शीशी क्या है. आतिशी शीशी काँच के बोतल होती है, कोई साधारण काँच की बोतल नहीं बल्कि. बल्कि यह बहुत हाई टेम्पर काँच की बोतल होती है, जो बहुत ज्यादा तापमान में भी नहीं पिघलती है. इसे ही आयुर्वेदिक दवाएँ बनाने में यूज़ किया जाता है. और यही आतिशी शीशी के नाम से जानी जाती है.
तो अब इस हांडी के ऊपर इसका ढक्कन रख कर बंद कर चूल्हे की आंच पर चढ़ाना है. पुरे एक दिन के लिए मतलब कम से कम 8 घंटा आंच देना है. पहले मंद आँच, फिर तेज़ आंच.
इसके बाद जब पूरी तरह से ठंडा हो जाये तो आतिशी शीशी वाली दवा निकालकर खरल में डालकर इसमें इतना मदार का दूध डालें कि आटे जैसे गिला हो जाये, फिर इसे ख़ूब खरल कर लें.
इसके बाद असगंध, तालमखाना, शतावर, कसेरू, कुश और कमल की जड़ की तीन-तीन भावना दें और सुखा लें और पाउडर जैसा कर लेना है.
और इसके बाद कस्तूरी या केसर, त्रिकटू इत्यादि वाला जो बारीक चूर्ण बनाकर रखा है, उसे इसमें अच्छी तरह से मिक्स कर लें.
अब इस मिक्सचर का वज़न कर लें, इसके कुल वज़न के बराबर पीसी हुयी देसी खांड इसमें मिक्स कर लेना है और कांच के जार में एयर टाइट कर रख लेना है. बस मदन कामदेव रस तैयार है.
तो इतने प्रोसेस के बाद सोना, चाँदी और हीरा से बना हुआ बेशकीमती रसायन तैयार होता है. यह बना हुआ मार्केट में नहीं मिलता है, अगर आप वैद्य हैं तो इसका निर्माण कर सकते हैं.
मदन कामदेव रस की मात्रा और सेवन विधि
एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम एक ग्लास मिश्री मिले दूध से लेना चाहिए. भोजन के एक घंटे के बाद. इस रसायन का सेवन करते हुए प्रयाप्त मात्रा में घी, दूध और फलों का भी सेवन करना चाहिए.
मदन कामदेव रस के फ़ायदे
मूल ग्रन्थ में तो इसके फ़ायदे बड़े संक्षेप में कह दिया गया है. सभी तरह का प्रमेह रोग दूर होते हैं, हर तरह की पेशाब की प्रॉब्लम, धातु की समस्या, वीर्य विकार, पॉवर-स्टैमिना की कमी सब दूर होगी.
शरीर का बल बढ़ाता है, शरीर को पुष्ट करता है और शरीर को निरोग करता है.
नपुंसक भी इसके सेवन से थोड़े ही दिनों में अच्छा हो जाता है. तो यह सब तो हो गयी मूल ग्रन्थ की बात.
अगर आप इसके घटक पर एक नज़र डालें तो
स्वर्ण भस्म - शरीर को निरोगी करता है, शक्ति देता है, उत्तम रसायन है. नर्वस सिस्टम को ताक़त देता है, हार्ट, लीवर, ब्रेन सभी ओर्गंस के लिए टॉनिक की तरह काम करता है. तासीर में ठंडा है.
चाँदी भस्म - वात और कफ़ दोष को बैलेंस करता है. दिल-दीमाग को ताक़त देता है, स्किन ग्लो को बढ़ाता है और धातुओं को पुष्ट करता है.
हीरक भस्म - हीरा तो ख़ुद हीरा है. यह शरीर को वज्र के समान मज़बूत बनाता है. यह बॉडी को स्ट्रोंग बनाने वाली, पौष्टिक, ताक़त देनी वाली, कामोत्तेजना बढ़ाने वाली और नपुँसकता यानि कि नामर्दी को दूर करने में बेजोड़ होती है.
ताम्र भस्म - ताम्र भस्म की बात करूँ तो यह लीवर, गालब्लैडर पर अच्छा असर करता है, नया खून बनाने में सहायक है. पाचन शक्ति को ठीक करता है.
लौह भस्म - यह उत्तम रसायन और बाजीकरण होता है. बॉडी की कमज़ोरी को दूर कर भरपूर ताक़त देता है. नया खून बनाता है, धातुओ को पुष्ट करता है और मर्दाना ताक़त बढ़ाता है.
इसमें असगंध, शतावर, तालमखाना जैसी काष्टऔषधियों का मिश्रण बहुमूल्य भस्मों के गुणों को बढ़ा देता है और इस तरह से यह कामदेव जैसा असर करती है. कस्तूरी या केसर मिला होने से यह तेज़ी से असर दिखाती है.
यह जो पौधा आप देख रहे हैं इसे आक, अकवन, अकौना, मदार जैसे नामों से जाना जाता है. इसका साइंटिफिक नेम है कैलोटरोपिस प्रोसेरा. यह आपको सड़क किनारे, नदी किनारे, रेगिस्तान में और बहुत जगह देखने को मिल जाता है. अगर आप गाँव में रहते हैं तो इसे अच्छी तरह पहचानते होंगे.
आज हम एक ऐसी बेहतरीन चीज़ के बारे में बात करेंगे जो आपके स्किन और बालों के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद हो सकता है वह भी बिल्कुल नेचुरल तरीके से और बिना ज़्यादा पैसा खर्च किये
जी हाँ दोस्तों दोस्तों नारियल तेल और फिटकिरी ये दो ऐसी चीजें हैं जिन्हें अगर साथ में मिलाकर स्किन और बालों में लगाया जाए तो आपको कई ऐसे फायदे मिल सकते हैं जो कि महंगे से महंगे क्रीम और शैम्पू से आपको नहीं मिलेगा. आज के इस विडियो में हम जानेंगे कि नारियल तेल और फिटकरी किस तरह से और कैसे यूज़ करना है जिस से हमें स्किन और बालों के लिए भरपूर फ़ायदा मिले. तो आइये इसके बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
आज हम बात करेंगे एक बहुत ही खास और घरेलु हर्बल टूथ पाउडर यानि की मंजन के बारे में जो कि आपके दांतों को चमकदार बनाएगा इनको स्वस्थ रखेगा, मुंह की बदबू को खत्म करेगा, पीलेपन को साफ करेगा और मुंह के छालों और दाँत और मुंह की जितनी भी प्रॉब्लम होती हैं उनसे लड़ने में आपकी मदद करेगा. इस दंत मंजन को बनाना बहुत ही आसान है और इसमें आपके ज्यादा पैसे भी खर्च नहीं होंगे. इस दंत मंजन में कौन-कौन सी चीजों को इस्तेमाल किया जाता है? इसे कैसे बनाया जाता है और इसको इस्तेमाल कैसे करना है? आईये सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
जैसा कि मैंने शुरू में ही कहा की इसे बनाना बहुत आसान है तो आज के इस दंत मंजन को बनाने के लिए हमें सिर्फ तीन चीजें चाहिए पहली है
फिटकरी यानी कि एलम. फिटकरी नेचुरल एंटीसेप्टिक और एंटीमाइक्रोबियल्स होती है जो कि बैक्टीरिया से लड़कर दांतों में कीड़ा लगने बदबू आने और छाले होने की समस्या को दूर करती है.
फिटकरी आपको अपने आसपास किसी भी किराना शॉप में यानी जो पंसारी की शॉप होती है उसमें आसानी से मिल जाएगी.
दूसरी चीज है सेंधा नमक जिसको हम लोग पिंक हिमालयन सॉल्ट भी कहते हैं. सेंधा नमक में कई ऐसे मिनरल्स होते हैं जो आपके दांतों को नेचुरली साफ करते हैं और डिसइंफेक्शन करते हैं सेंधा नमक आपके दांतों पर जमा जो प्लैक होता है उसको साफ करने में हेल्प करता है विदाउट डैमेजिंग योर इनेमल.
और तीसरी और आखिरी चीज जो आपको चाहिए वह है बेकिंग सोडा जो कि एक नेचुरल क्लींजर है यह आपके दांतों के पीलेपन को साफ करता है.
क्योंकि बेकिंग सोडा अल्कलाइन नेचर का होता है तो यह सभी तरह के माउथ एसिड्स को न्यूट्रलाइज करके टूथ डीके और सांस में आने वाली बदबू की प्रॉब्लम को भी रोकता है.
वैसे तो ये तीनों ही इंग्रेडिएंट्स इस दंतमंजन को बनाने के लिए काफी है लेकिन अगर आप इस दंतमंजन को और भी ज्यादा इफेक्टिव बनाना चाहते हैं तो इसमें आप कुछ ऑप्शनल चीजें भी मिक्स कर सकते हैं जैसे पेपरमिंट
पाउडर लौंग का पाउडर और नीम पाउडर भी ऐड कर सकते हैं इन सबके अपने-अपने बेनिफिट्स होते हैं.
जैसे लौंग का जो पाउडर है यह दांतों और मसूड़ों के दर्द को रोकता है
पेपरमिंट आपको ताजा सांस देता है और नीम एंटी माइक्रोबीयल गुणों से भरपूर होती है.
ये तीनों ही चीजें जो हैं ये ऑप्शनल है आप चाहे तो इनको इस्तेमाल कर सकते हैं बहुत ही बढ़िया है नहीं भी करेंगे तब भी कोई प्रॉब्लम नहीं है.
तो ये हैं बेसिक इंग्रेडिएंट्स जिनसे हम इस पावरफुल दंत मंजन को बनाएंगे.
आईये अब जानते हैं कि इस अमेजिंग डेंटल पाउडर को कैसे बनाया जाता है तो सबसे पहले फिटकरी का एक टुकड़ा आप ले लीजिए और इसे बारीक पीस लीजिए और फिर एक बारीक सूती कपड़े में इसको छान लीजिए वैसे
तो ये जो बारीक पिसा हुआ छना हुआ आपका जो पाउडर है इसको आप ऐसे भी अपने मंजन को बनाने के लिए यूज कर सकते हैं लेकिन अगर हम इस पीसी हुई फिटकिरी को एक तवे के ऊपर डाल के और मीडियम फ्लेम पर गर्म कर लें और तब तक गर्म करें जब तक ये पिघल करर लिक्विड सा ना बन जाए. और फिर सूख कर एक पापड़ जैसा ना बन जाए और फिर इसके बाद इसको हम ठंडा करके बारीक पीस लें तो यह और भी ज्यादा इफेक्टिव बन जाता है और बहुत ही ज्यादा महीन हो जाता है और आपके दांतों पर इससे रगड़ भी नहीं लगती है और एनामेल भी खराब नहीं होता है.
इस प्रोसेस को हम लोग कैल्सीनेशन कहते हैं जिसमें फिटकरी के अंदर जो सारा का सारा मॉइश्चर होता है वो निकल जाता है और इसकी एंटीमाइक्रोब प्रॉपर्टीज और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं. इसे ही फिटकरी का फूला भी कहा जाता है और ऐसे ही प्रोसेस से बनी औषधि को आयुर्वेद में स्फतिक भस्म कहा जाता है.
वैसे अगर आपके पास इतना टाइम नहीं है और आप यह सब कुछ कैल्सीनेशन वाला प्रोसेस नहीं कर सकते हैं तो कोई बात नहीं आप ऐसे ही फिटकरी को बारीक पीस लीजिए फिर कपड़छन कर लीजिये ताकि इसके अन्दर कोई मोटा दाना न रह जाये और आपके दांतों पर इससे रगड़ ना लगे
इसके बाद जितना भी आपने यह पीसी हुई फिटकरी को लिया है पाउडर को लिया है उतनी ही मात्रा में इसमें आप बारीक पिसा हुआ सेंधा नमक और उतना ही बेकिंग सोडा इसमें ऐड कर लीजिए और इन सभी को आपस में अच्छी तरीके से मिक्स कर लीजिए, यानी की तीनों चीज़ बराबर वज़न में लेना है.
और जैसा कि मैंने आपको बताया था कि अगर आप एक्स्ट्रा बेनिफिट्स चाहते हैं तो इस मिक्सचर में आप लौंग, पीपरमिंट और नीम की छाल का पाउडर भी मिला सकते हैं. नीम पाउडर फिटकरी के वज़न के बराबर, लौंग और पीपरमिंट एक-एक स्पून.
लेकिन यह ऑप्शनल है यह जरूरी नहीं है मिलाना. आप चाहे तो मिला सकते हैं नहीं तो नहीं भी मिलाइए अच्छी तरह से इन सभी चीजों को आप मिक्स कर लीजिए और बस आपका घरेलु हर्बल डेंटर पाउडर तैयार है, दन्त मंजन तैयार है. इस पाउडर को आप एक एयर टाइट कंटेनर में स्टोर करके रख लीजिए और हफ्ते में दो से तीन बार आपको इसको अपने नॉर्मल टूथपेस्ट को करने के बाद रात को सोते टाइम इस्तेमाल करना है यूज करने के लिए थोड़ासा ये पाउडर आप हाथ पे लीजिए और फिर अपने टूथब्रश को गीला करके इस पाउडर के अंदर लगाइए ताकि जो पाउडर है इस पे चिपक जाए और फिर जेंटल हाथ से अपने दांतों के ऊपर 2 मिनट तक इससे आप ब्रश कीजिए और फिर कुल्ला कर लीजिए. इस मंजन को आपको रोज़ यूज नहीं करना है सिर्फ हफ्ते में दो से तीन बार ही इसको यूज करना आपके लिए काफी होता है.
अगर आपके दांतों में सेंसिटिविटी रहती है ठंडा गरम पानी लगता है तो इस मंजन को आपको बहुत ही ध्यान से इस्तेमाल करना है और ध्यान
रखना है कि कहीं इससे आपकी सेंसिटिविटी बढ़ तो नहीं रही है अगर सेंसिटिविटी बढ़े या कोई और प्रॉब्लम आए तो इसको यूज नहीं करिए और अपने डेंटल जो डॉक्टर हैं जो डेंटिस्ट हैं उनसे कंसल्ट कीजिए.
आयुर्वेद में जितनी अच्छी रसायन और बाजीकरण औषधियाँ हैं उतनी अच्छी औषधि किसी और पैथी में नहीं है. आज हम बात करेंगे एक दुर्लभ गुप्त आयुर्वेदिक रसायन औषधि के बारे में जो बहुत ही पुष्टिकारक है, बल-वीर्य और ओज बढ़ा देती है, PE, ED और नपुंसकता जैसे पुरुष रोगों को दूर कर देती है.
जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि जो औषधि जर और जरा यानी की बीमारी और बुढ़ापे को दूर करती है वही रसायन औषधि कहलाती है.
आज की भागदौड़ भरी लाइफ़-स्टाइल, चिन्ता स्ट्रेस और केमिकल वाले खान-पान से आज के अधिकतर युवा मर्दाना कमजोरी, PE, ED, नपुंसकता जैसे यौन रोगों से ग्रस्त हैं.
पर आपको अब फ़िक्र करने की ज़रुरत नहीं है, इन सभी प्रोब्लेम्स को दूर करने वाली औषधि की जानकारी मैं आपके लिए लेकर आया हूँ.
आज की रसायन औषधि का नाम है मदनमोद रस
आई ऍम श्योर आज से पहले इसका नाम आपने नहीं सुना होगा. यह आयुर्वेदिक योग सहस्र रस दर्पण रस हज़ारा नाम की ग्रन्थ के 'रसायनाधिकार चिकित्सा' अध्याय के पृष्ठ संख्या 363 पर अंकित है.
इस रसायन की विशेषता यह है कि न तो इसमें बहुत सारे घटक पड़े हैं और न ही इसकी निर्माण विधि जटिल है. दवाई बनाने का थोड़ा भी अनुभव रखने वाले वैद्यगण आसानी से इसका निर्माण कर सकते हैं.
तो सबसे पहले जानते हैं इसके घटक या कम्पोजीशन
इसे बनाने के लिए चाहिए होगा शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक प्रत्येक दस-दस ग्राम और सफ़ेद मुसली का रस
आप पारा-गन्धक की कज्जली भी बनी हुयी ले सकते हैं 20 ग्राम, सफ़ेद मुसली का रस न मिले तो सुखी सफ़ेद मुस्ली का का काढ़ा बनाकर भी यूज़ कर सकते हैं. वैसे शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक के समान भाग मिश्रण से बनी हुयी कज्जली आपको हमारे यहाँ से मिल जाएगी.
मदनमोद रस निर्माण विधि
मदनमोद रस बनाने का तरीका यह है सबसे पहले पारा-गंधक को खरल कर कज्जली बना लें. या फिर आलरेडी बनी हुयी कज्जली ली है तो इसे खरल में डालकर सफ़ेद मुसली का रस या काढ़ा डालते हुए के दिन खरल करन है और जब बिलकुल सॉलिड हो जाये तो इसकी दो-दो रत्ती या 250 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस यही है मदनमोद रस
आपको यह कहीं से बना बनाया नहीं मिलेगा, खुद बनायें फिर स्थानीय वैद्य जी से बनवाकर यूज़ कर सकते हैं.
मदनमोद रस की मात्रा और सेवन विधि
एक से दो गोली तक सुबह-शाम एक स्पून शहद और एक कप के साथ. एक कप गुनगुने दूध में आपको एक स्पून शहद मिक्स कर लेना है. मदनमोद रस की एक से दो गोली निगल कर ऊपर से शहद मिला दूध पी लेना है. इसे खाना खाने के एक घंटे के बाद ही लें, और कुछ ही दिनों में इसका चमत्कार देखें.
मदनमोद रस के फ़ायदे
सफ़ेद मुसली की भावना देने से इसमें सफ़ेद मुसली के नैनो पार्टिकल्स मिल जाते हैं, जिस से सफ़ेद मुसली का भरपूर फ़ायदा आपके बॉडी को मिलता है. कज्जली योगवाही होने से इसके फ़ायदे को कई गुना बढ़ा देती है.
सफ़ेद मुसली बॉडी के सभी ओरगंस जैसे हार्ट, लीवर, ब्रेन, किडनी, लंग्स को पोषण देती है और हमारे ओवर आल हेल्थ को सुधारती है. यह मेल हार्मोन Testosterone को करती है, जिस से पुरुषों की यौनेक्षा जागती है, नपुँसकता जैसी समस्या दूर होती है.
वीर्य विकार, मर्दाना कमजोरी, पॉवर-स्टैमिना की कमी, थकान, चिंता, स्ट्रेस सब दूर होता है इस रसायन के सेवन से.
मदनमोद रस आपके शरीर की हर तरह की कमज़ोरी को दूर कर शरीर को उर्जावान बनाती है.
यह आपकी पाचन सकती को मजबूत करती है. पाचक अग्नि यानी की digestive फायर को तेज़ करती है जिस से खाए हुए भोजन का पाचन सही से होता है और खाया-पिया शरीर को लगता है.
यह हर तरह की प्रकृति वाले यूज़ कर सकते हैं, सभी को सूट करती है. ठंडी या गर्म तासीर नहीं है, बल्कि नार्मल है.
इसे लगातार 40 दिन तक यूज़ कर सकते हैं, इसका इस्तेमाल करते हुए, खट्टी चीज़, आचार, तेल में छने भोजन, मैदा प्रोडक्ट और मिर्च मसाला से परहेज़ रखना चाहिए.
हम में से सभी लोग चाहते हैं कि हर तरह की छोटी-बड़ी बीमारियों से बचे रहें. घर का कोई भी सदस्य बीमार न पड़े, पर ऐसा हो नहीं पाता है. बीमारियाँ होने के कई कारण हो सकते हैं पर उनमे से न्यूट्रीशन या पोषण की कमी और इम्युनिटी कमज़ोर होना मेन फैक्टर होता है. अगर आपके बॉडी को सही न्यूट्रीशन मिलता रहे और आपकी इम्युनिटी भी स्ट्रोंग रहे तो आप शायेद ही बीमारी पड़ेंगे.
आज हम ऐसी ही चीज़ के बारे में जानेंगे जो हमारे बॉडी को भरपूर न्यूट्रीशन देती है और इम्युनिटी पॉवर भी बढ़ा देती है, इसके इस्तेमाल से आप ज़िन्दगीभर बीमारियों से बच सकते हैं. इसी लिए इसे सुपर फ़ूड भी कहा जाता है. और अगर आप गाँव देहात में रहते हैं तो यह आपको बिल्कुल फ्री में मिल जाएगी. तो आईये बिना देर किये इस सुपरफ़ूड के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
दोस्तों, मैं जिस बूटी या वनस्पति की बात कर रहा हूँ उसका नाम है मोरिंगा. इसे सहजन भी कहा जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम Moringa Oliefera है. ड्रमस्टिक के नाम से भी इसे जाना जाता है, इसी फल की सब्जी भी बनती है. सांभर नाम की साउथ इंडियन सब्जी इसके बिना नहीं बनती है. इसका फल, फूल, पत्ती, जड़, छाल सभी का यूज़ आयुर्वेद में बताया गया है, इनके अनगिनत फ़ायदे हैं. पर यहाँ आज मैं आपको इसके पत्तों के बेनेफिट्स बताऊंगा.
सहजन के पत्तों में पोषण का भण्डार होता है, इसके पत्ते न्यूट्रीशन का खज़ाना हैं. ज़रूरी पोषक तत्वों से यह भरपूर होता है. इसी वजह से इसको एक सुपर फूड कहा जाता है. सहजन के पत्तों में प्रोटीन आयरन विटामिन सी
विटामिन बी सिक्स मैग्नीशियम विटामिन ए और विटामिन बी टू काफी ज्यादा क्वांटिटी में होता है. और ये सभी वो न्यूट्रिएंट्स हैं जो की हमारी सेहत को मेंटेन रखने के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी होते हैं.
इसलिए अगर आप रेगुलर तोर पर सहजन के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं तो इससे आपकी बॉडी में इन न्यूट्रिएंट्स की कभी भी कमी नहीं हो पाएगी और ना ही आपको कोई सिंथेटिक मल्टीविटामिन कैप्सूल या सिरप वगैरा लेना पड़ेगा.
दूसरा फायदा जो सहजन के पत्तों को खाने से मिलता है वो ये की ये आपकी बॉडी में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम कर देता है.
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस क्या होती है?
देखिए हमारी बॉडी में जितने भी प्रोसेस होते हैं इन प्रोसेस के अंदर कुछ केमिकल रिएक्शंस होने की वजह से कुछ ऐसे फ्री रेडिकल्स यानी कुछ
ऐसी चीज निकलते हैं जो की हमारी अपनी ही बॉडी की सेल्स को डैमेज करने लगती है, नुकसान पहचाने लगती हैं.
बहुत सारी बीमारियां जैसे गठिया, जोड़ों का दर्द,डायबिटीज और दिल की बीमारियां इस तरह की ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस की वजह से ही पैदा होती हैं.
मोरिंगा यानी सहजन के पत्तों में जबरदस्ती एंटीऑक्सीडेंट होते हैं यानी वो चीज होती हैं जो की इन फ्री रेडिकल्स को न्यूट्रलाइज करती हैं जिससे हमारी बॉडी में बहुत सारी बड़ी बीमारियों का ख़तरा कम हो जाता है.
एन्टी एजिंग गुण होने से यह बुढ़ापे के लक्षणों को रोकता है जिस से आप हमेशा जवान दिख सकते हैं.
सहजन की पत्तियाँ ब्लड शुगर को कण्ट्रोल में रखने में भी बहुत असरदार है.
अगर डायबिटिक हैं, प्री-डायबिटिक हों या आपकी फॅमिली में शुगर की हिस्ट्री हो तो भी आप इनका यूज़ कर फ़ायदा उठा सकते हैं.
ब्रेन हेल्थ के लिए
यह ब्रेन हेल्थ के लिए काफ़ी बेनेफिसिअल है, दिमाग को ज़रूरी पोषण देता है और अल्जाइमर जैसे रोगों से बचाव करता है.
इन्फ्लेमेशन के लिए
यह बॉडी की अंदरूनी इन्फ्लेमेशन को दूर करने में असरदार है. इसके सेवन से नसों की,हड्डियों की, दिल की इन्फ्लेमेशन या बीमारियों से बचाता है.
कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए
सहजन की पत्तियां बॉडी में बड़े हुए कोलेस्ट्रॉल को कम करती हैं, अगर आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है तो मोरिंगा लीव्स लेना शुरू कर दिजिए तो आपका बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल यानि की LDL कमना शुरू हो जायेगा. हार्ट ब्लॉकेज और हार्ट डिजीज के खतरे से भी आप बच जायेंगे.
हड्डियों की कमज़ोरी और जोड़ों के दर्द के लिए
बोन हेल्थ के लिए भी सहजन की पत्तियाँ बहुत ही असरदार हैं, अगर आप की हड्डियाँ कमज़ोर हैं, सुजन है, जोड़ों का दर्द है तो सहजन की पत्तियों के लगातार इस्तेमाल से आपको काफ़ी फ़ायदा मिलता है.
Digestive हेल्थ के लिए
कब्ज़ यानी की Constipation, गैस और Indigestion आज की बहुत ही कॉमन प्रॉब्लम है. सहजन की पत्तियों के इस्तेमाल से आप अपने Digestive हेल्थ को इम्प्रूव कर सकते हैं.
हीलिंग प्रॉपर्टीज से भी यह भरपूर होता है. ज़ख्मों को जल्दी भरता है और ब्लीडिंग वाले रोगों में भी असरदार है.
सहजन की पत्तियाँ हमारी सेहत के लिए बहुत ही ज़्यादा फ़ायदेमंद हैं, इसकी जितनी भी तारीफ़ की जाये, कम है. यह गुणों की खान है. ऐसे ही नहीं इसे सुपरफ़ूड कहा जाता है.
सहजन की पत्तियों को कैसे यूज़ करें ?
अगर आपके आस पास यह ईज़िली अवेलेबल है तो इसकी ताज़ी पत्तीओं को तोड़कर साफकर छाया में सुखा लें और पाउडर बना लें. अब इस पाउडर को आधा स्पून रोज़ एक से दो बार तक गुनगुने पानी से लीजिये. वैसे आप इसे जैसे चाहें वैसे यूज़ कर सकते हैं, छाछ, शहद, सलाद या अपनी सब्ज़ी में मिक्स कर भी यूज़ कर सकते हैं.
कैप्सूल और टेबलेट फॉर्म में भी यह मिलता है, ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है.
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अगर आपके होमगार्डन में आपके घर के पास सहजन का पेड़ है तो इसकी पत्तियों की सब्ज़ी बनाकर भी साग की तरह यूज़ कर सकते हैं. यह आपको टेस्टी भी लगेगा और साथ ही पौष्टिक तो है ही.
दाल बनाते हुए इसे एक मुट्ठी दाल में मिलाकर पकाकर भी खा सकते हैं. सहजन का फल मेरी फ़ेवरेट सब्जिओं में से एक है. इसकी पत्तियों का साग भी मैं अक्सर यूज़ करते रहता हूँ.
साइड इफेक्ट्स
मोरिंगा पाउडर से जेनेरली कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है अगर इसे सही मात्रा में अपनी बॉडी की रिक्वायरमेंट्स के अनुसार यूज़ किया जाये.
ज़्यादा मात्रा में खा लेने से पेट की गड़बड़ी हो सकती है. जिनको खून पतला करने वाली दवा चलती है उनको इसका लगातार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
प्रेगनेंसी में और फीडिंग कराने वाली महिलाओं को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
अगर आप लम्बे समय से किसी बीमारी की दवा लेते हैं, कोई हेल्थ सप्लीमेंट लेते हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह लेकर ही इसका इस्तेमाल करें.
आज मैं एक ऐसे घरेलु उपचार के बारे में बताने वाला हूँ, होम रेमेडी के बारे में बताने वाला हूँ जिसे आपको सख्त ज़रूरत है.
जी हाँ दोस्तों, आज मैं बात करने वाला हूँ गैस, एसिडिटी, Indigestion और क़ब्ज़ यानी कि Constipation की होम रेमेडी के बारे में. आज के समय में यह घर की बहुत ही कॉमन प्रॉब्लम है.
रिसर्च बताती है कि 25% हम Indians को क्रॉनिक एसिडिटी और इनडाइजेशन की प्रॉब्लम रहती है और इसकी वजह है हमारा आज का बिजी लाइफ स्टाइल, अनहेल्दी खान-पान और स्ट्रेस.
लेकिन आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है क्योंकि आज मैं आपको बताऊंगा एक स्पेशल होम रेमेडी के बारे में जो बिल्कुल नेचुरल है जो आपकी इन सभी प्रोब्लेम्स में तुरन्त राहत देती है बल्कि सभी प्रोब्लेम्स को जड़ से उखाड़ देगी. तो आइये इनके बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
गैस, एसिडिटी और Constipation जैसी समस्या आपको आज हर दुसरे तीसरे आदमी में मिलेगी. और इसके लिए लोग कुछ न कुछ ट्राई करते रहते हैं, कोई टीवी के आकर्षक विज्ञापन देख कर कोई चूर्ण ख़रीद लेता है तो कहीं कोई सड़कछाप नीम-हकीम से कुछ चूर्ण खरीद कर खा लेते हैं, फिर भी रिजल्ट जीरो ही रहता है.
हमारे आयुर्वेद में ऐसे बहुत से आसान से नुस्खे हैं जिसे आप आसानी से ख़ुद से घर पर बना कर यूज़ कर, इन सभी प्रोब्लेम्स को दूर कर सकते हैं वह भी बिना किसी साइड इफेक्ट्स के, बिल्कुल नेचुरल तरीके से.
तो आईये जानते हैं कि इस होम रेमेडी को बनाने के लिए आपको क्या क्या चाहिए होगा, इसे कैसे बनाना है और कैसे यूज़ करना है?
इसके लिए पहली चीज़ जो आपको चाहिए होगी वह है अजवाइन
यह आपके किचन में भी मौजूद होगा. यह एसिडिटी, गैस, और इनडाइजेशन को तुरंत कम कर देता है और यह फाइबर रिच भी होता है जिसकी वजह से हमारे डाइजेस्टिव ट्रैक्ट को क्लीन करने का भी काम करता है और कब्ज को भी दूर करता है.
दूसरी चीज़ जो आपको लेना है वह है जीरा
जीरा एक बहुत ही कॉमन चीज है जो लगभग हम सभी के फूड्स में अलग-अलग चीजों के अंदर फ्लेवर बढ़ाने के लिए के लिए डाला जाता है. जीरा आपके डाइजेस्टिव एंजाइम्स को बूस्ट करता है जिससे खाने का जो ब्रेकडाउन होता है और डाइजेशन होता है उसमें आसानी होती है जीरा गैस को एसिडिटी को ब्लोटिंग को और पेट दर्द को भी कम करता है और बॉडी में फैट के बढ़ने को भी रोकता है.
तीसरी चीज़ आपको लेनी है - काला नमक
काला नमक गैस दूर करता है डाइजेशन को सुधारता है और बॉडी के पीएच लेवल को बैलेंस रखता है जिससे कि बॉडी के अंदर अल्कलाइन एनवायरमेंट बनता है और यह अल्कलाइन एनवायरमेंट एसिड रिफ्लक्स और अदर डाइजेस्टिव इश्यूज को टैकल करने में काफी ज्यादा मदद करता है.
चौथी चीज़ जो आपको लेनी है वह है - हींग
हींग के अंदर एंटी स्पास्मो प्रॉपर्टीज होती हैं इसका मतलब यह है कि ये आपके जो डाइजेस्टिव ट्रैक्ट होता है उसको रिलैक्स करती है पेट में ऐंठन को मरोड़ को और दर्द को कम करने का काम करती है और गैस और एसिडिटी में भी आपको काफी ज्यादा फायदा पहुँचाती है.
पाँचवीं और आखरी चीज़ आपको लेना है- निम्बू का रस या लेमन जूस
लेमन जूस डाइजेशन के लिए बहुत ही बढ़िया चीज हैम यह डाइजेशन में हेल्प करता है और नोजिया और वोमिटिंग जैसी प्रॉब्लम जो होती हैं उनको
भी दूर करने का काम करता है और हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम को बेहतर तरीके से काम करने के लिए प्रॉपर एनवायरमेंट भी प्रोवाइड करता है.
तो सिर्फ़ यह पाँच चीज़ आपको लेनी है जो की है - अजवायन, जीरा, काला नमक, हींग और निम्बू का रस
इसे तैयार कैसे करना है? यूज़ कैसे करना है?
इसे रोज़ ताज़ा चाय की तरह ड्रिंक बनाकर यूज़ करना है. इसे बनाने के लिए आपको एक टीस्पून जीरा, एक टीस्पून अजवान, 1/4 टीस्पून काला नमक, एक चुटकी हींग और एक टीस्पून आपको लेमन जूस लेना है.
बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले एक बर्तन में आप दो कप पानी गर्म कीजिए और इसमें जीरा और अजवाइन डालकर पकने के लिए रख दीजिए जब चार-पांच उबाल इसमें आ जाए तो इसको 2 मिनट धीमी आंच पर भी बाद में पकाएं ताकि जो इसके इंग्रेडिएंट्स हैं जीरा और अजवाइन के वो अच्छी तरीके से पानी में आ जाए.
इसके बाद इसे छन्नी से छान लीजिये और थोड़ी देर बाद जब गुनगुना ही रहे इसमें काला, नमक, हींग और लेमन जूस मिक्स कर लीजिये. बस आपकी मैजिकल ड्रिंक तैयार है.
इसे आप खाना खाने के 10 मिनट बाद लीजिये और फिर इसका चमत्कार देखिये कि कैसे आपकी गैस, एसिडिटी और कब्ज़ जैसी प्रॉब्लम दूर होती है.
इसे आप रोज़ एक से दो बार ले सकते हैं अपनी प्रॉब्लम के अनुसार, ज़्यादा प्रॉब्लम है तो दो बार लीजिये, रात में सोने से पहले भी ले सकते हैं.
इसे लगातार दस-पंद्रह दिन यूज़ कीजिये तो समस्या दूर हो जाएगी, अगर फिर भी कोई फ़ायदा न मिले तो स्थानीय वैद्य जी से मिलकर प्रॉपर इलाज कराईये.
पारा यानी की मरकरी के बिना आयुर्वेद अधुरा है इसलिए आयुर्वेद में पारे का बड़ा महत्त्व है.
पारा एक ऐसी पावरफुल चीज़ है जो सर से लेकर पैर तक के सभी रोगों को दूर कर देती है अगर सही तरीके से इसका इस्तेमाल किया जाये. यह शरीर के छोटे-बड़े सभी रोगों को बड़े असरदार तरीके से दूर करती है.
रोगी शरीर को निरोग कर, जवानी लाती है और बुढ़ापा दूर करती है. मर्दाना कमज़ोरी जैसे पुरुष यौन रोगों के लिए तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं.
दोस्तों, पारे के बारे में हमारे समाज में कुछ ग़लतफहमियाँ भी फैली हुयी हैं. जानकारी के आभाव में ही लोग कुछ उल्टी सीधी बात कह देते हैं और सीधे-साधे आदमी उसे सच मान लेते हैं.
आयुर्वेद में पारे को पारद भी कहा जाता है. पारा क्या है इसे अछी तरह से समझने के इसका इतिहास समझना होगा, इसकी उत्त्पत्ति कैसे हुयी और यह कहाँ मिलता है इसे समझना होगा.
पारा एक खनिज है, मिनरल है. दुनियाँ में कई सारे खनिज निकलते हैं उनमे से पारा ही एकमात्र ऐसा खनिज है जो नार्मल Temperature में लिक्विड फॉर्म में होता है. हिंगुल नामक खनिज से इसे एक्सट्रेक्ट किया जाता है.
पारद की उत्त्पत्ति कैसे हुयी?
आयुर्वेदिक रसशास्त्रों जैसे रत्नसमुच्चय इत्यादि में पारे की उत्पत्ति का वर्णन पौराणिक ढंग से किया गया है जिसका सारांश आप पढ़ सकते हैं -
और इसका मूल श्लोक भी आप देख सकते हैं.
ग्रंथों से यह चीज़ क्लियर हो जाती है कि बिना संस्कार किया, बिना शोधित किये पारा के इस्तेमाल से आपको फ़ायदा नहीं होगा.
ऐसे ही कच्चा पारा खा जाने से भयंकर नुकसान होता है, इस से आपको बॉडी ख़राब हो सकती है, कुष्ठव्याधि जैसे भयंकर रोग हो सकते हैं.
पारद के भेद या प्रकार
आयुर्वेद में पारद के पांच भेद बताये हैं, यानी कि पारा पांच तरह का होता है.
1) रस 2) रसेन्द्र 3) सूत 4) पारद और 5) मिश्रक
ऐसे ही पाँच नाम शिवजी के हैं और इतने ही पारे के भी.
इसमें से चौथा वाला पारद नाम का पारा ही अब मिलता है दुसरे सब दुर्लभ हैं.
हिंगुल से निकाला हुआ पारा शुद्ध माना जाता है, इसमें कोई दोष नहीं होता और इसे ही आयुर्वेदिक दवाईयाँ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.
और एक इम्पोर्टेन्ट बात आपको बता दूँ इसी शुद्ध पारे को बिना भस्म बनाये ही, ऐसे ही मिलाकर ज़्यादातर दवाईयाँ बनाई जाती हैं. शुद्ध पारा के साथ में शुद्ध गंधक मिलाकर खरल करने से यह काले रंग का पाउडर फॉर्म में हो जाता है, जो यूज़ करने के लिए रेडी और पूरी तरह सुरक्षित होता है. इसे ही कज्जली कहा जाता है.
पारद भस्म कैसे बनता है?
पारे की भस्म बनाने के दो तरीके हैं. इसे बनाना सभी के लिए आसान नहीं है, आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ -
पहला तरीका
इसके लिए चाहिए होता है - शुद्ध पारा 25 ग्राम, सेंधा नमक 25 ग्राम, शुद्ध संखिया 12 ग्राम, बच्छनाग 6 ग्राम, हींग, फिटकरी, गेरू और समुद्र लवण प्रत्येक 15-15 ग्राम लेकर सबको मिलाकर कांजी में घोटने के बाद इन्द्रायण की जड़ के रस में घोटने के बाद डमरू यंत्र में रखकर आठ पहर तक आंच दिया जाता है. इसके बाद ठण्डा होने पर ऊपर की हांडी में लगी पारद भस्म को निकाल कर रख लें.
पारद भस्म बनाने का दूसरा तरीका
शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक 50-50 ग्राम लेकर खरल कर कज्जली बना लें. अब इसमें बरगद के दूध में फिर एक बार घोटकर मिटटी के चौड़े मूंह वाले मज़बूत बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर मन्द-मंद अग्नि दें. इसे बरगद की ही ताज़ी गीली लकड़ी से धीरे-धीरे चलाते रहें. इसी तरह से पुरे दिन पकाने से काले रंग की सुरमे के जैसे भस्म बन जाती है.
अगर किन्ही को शुद्ध पारा या फिर शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक के मिश्रण से बनी कज्जली चाहिए तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं. या फिर डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक से आर्डर कर सकते हैं.
पारे की भस्म की मात्रा और सेवन विधि यानी की इसका डोज़ और इस्तेमाल करने का तरीका
125 mg से 250 mg तक कैप्सूल में भरकर या मुनक्के के अन्दर डालकर निगल लेना चाहिए. इसे रोगानुसार उचित अनुपान से लेना चाहिए. इसे किस बीमारी में कैसे यूज़ करना है, आगे बताऊंगा.
पारे की भस्म के फ़ायदे
पारे की भस्म संग्रहणी यानि की IBS, दस्त, TB और शोषरोग को नष्ट करती है.
यह पाचकअग्नि की कमज़ोरी दूर करती है, आपकी Digestive फायर को तेज़ करती है.
इसके सेवन से शरीर में बल बढ़ता है, ताक़त बढ़ता है, वीर्य बढ़ता है और मैथुन शक्ति की वृद्धि होती है.
यह आपकी बॉडी को कमज़ोर करने वाले सभी रोगों को दूर करती है.
पारद भस्म आपकी मेमोरी पॉवर को बढ़ाती है, आपको बॉडी स्ट्रेंथ को बढ़ाती है.
एक साल तक विधि पूर्वक सेवन करने से बुढ़ापा नष्ट होता है.
पारे की भस्म को मक्खन या मलाई के साथ सेवन करने से मैथुन शक्ति की अपूर्व वृद्धि होती है. मतलब इसके इस्तेमाल से आपकी मर्दाना ताक़त बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है, इतना ज़्यादा कि जितना पहले कभी नहीं हुयी होगी. तो समझ सकते हैं कि यह पुरुष रोगों के लिए कितना पावरफुल है. अधीक विषय-भोग करने वाले पुरुषों को इसका सेवन करते रहने से वीर्यवृद्धि होकर ताकत-पॉवर-स्टैमिना बना रहा है, कमज़ोरी नहीं आती है.
पारे की भस्म सभी रोगों को दूर करने की क्षमता रखती है अगर अनुपान के साथ इसका विधि पूर्वक सेवन किया जाये. तो आईये जान लेते हैं कि कुछ मेन बीमारियों में इसे किस चीज़ के साथ यूज़ किया जाता है-
मर्दाना कमज़ोरी, इच्छा की कमी, PE, ED जैसे समस्त पुरुष रोगों में
पारे की भस्म और कौंच बीज चूर्ण लेकर इसे मक्खन, मलाई और शहद मिक्स कर सेवन करना चाहिए.
बुखार में
बुखार यानी की फीवर होने पर इसे पित्तपापड़ा, मोथा, तुलसी या पिप्पली क्वाथ के साथ सेवन करने से बुखार दूर होती है.
रक्त पित्त में
लाक्षा चूर्ण, हरीतकी चूर्ण या वासा चूर्ण के साथ शहद मिलाकर इसका सेवन करने से रक्तपित्त रोग नष्ट होता है. यानी की नाक से खून आना, बदन की गर्मी, खून की गर्मी दूर होती है.
खांसी में
खांसी में पिप्पली चूर्ण में पारे की भस्म मिक्स कर शहद मिलाकर चाट ले और ऊपर से छोटी कटेरी का क्वाथ पियें
जौंडिस में
त्रिफला हिम या त्रिफला और हल्दी कषाय के साथ इसका सेवन करना चाहिए.
दस्त होने पर
लूज़ मोशन होने पर बेलगिरी के चूर्ण या मोथा के चूर्ण के साथ ले सकते हैं.
पेचिश में
आम और जामुन के पत्तों का रस, बेल का चूर्ण, सोंठ और गुड़ को एकसाथ मिलाकर हलवे की तरह गाढ़ा पकाकर पारे की भस्म मिलाकर सेवन करने से पेचिश की बीमारी दूर होती है.
हैजा में
हींग और पिप्पली चूर्ण के साथ पारे की भस्म का सेवन करने से हैजा रोग दूर होता है.
हिक्का रोग यानी हिचकी आने पर
बीजौरा निम्बू और कालानमक के साथ इसका सेवन करना चाहिए. और ऊपर से चन्द्रशूर का क्वाथ पीना चाहिए.
वमन या उल्टी होने पर
धान के खील के चूर्ण को पानी में घोलकर उसमे शहद और मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए.
क्षय यानि की TB की बीमारी में
बकरी का दूध और पिप्पली कल्क-सिद्ध घृत गन्धक मिलाकर सेवन करना चाहिए
पेट दर्द होने पर
त्रिकटु चूर्ण के साथ पारद भस्म का सेवन करना चाहिए
शोथरोग यानि कि बॉडी में कहीं भी सुजन होने पर
कुटकी, पुनर्नवा और सोंठ के काढ़े के साथ पारद भस्म का सेवन करने से सुजन दूर होती है.
ओबेसिटी या मोटापा में
वज़न कम करने के लिए इसे आप त्रिफला गुग्गुल के साथ यूज़ कर सकते हैं.
वात रोगों में
लहसुन के रस और तिल के तेल के साथ सेवन करना चाहिए. गठिया जोड़ों का दर्द या आर्थराइटिस में गिलोय के रस या गिलोय क्वाथ के साथ सेवन करें.
और अगर साइटिका की बीमारी है तो इसे सोंठ और एरण्ड बीज गिरी के साथ खाकर ऊपर से हारश्रृंगार का क्वाथ पियें और चमत्कार देखें.
सफ़ेद दाग में
बाकुची के चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिए
पेट के कीड़ों के लिए
उदर कृमि या पेट के सभी तरह के कीड़ों को दूर करने के लिए पारे की भस्म के साथ विडंग और पलाश बीज चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिए.
दुबलापन दूर करने के लिए
पारद भस्म को असगंध और शतावर चूर्ण के साथ दूध मिलाकर यूज़ करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है.
प्रमेह रोगों में
शिलाजीत के साथ पारद भस्म का सेवन करने से प्रमेह रोग दूर होता है. त्रिफला चूर्ण या ताज़ी गिलोय के रस के साथ भी सेवन कर सकते हैं.
अर्श रोग या पाइल्स में
नए पुराने हर तरह के पाइल्स में पारद भस्म को भुने हुए सुरणकन्द में तिल तेल और सेंधा नमक मिलाकर सेवन करना चाहिए.
तो दोस्तों आपने यह जाना कि किन रोगों में किस चीज़ के साथ पारे की भस्म को यूज़ किया जाता है. इसे आप सैंकड़ों बीमारीओं में यूज़ कर सकते हैं.
पारे की भस्म का यूज़ करते हुए आपको अपने खान-पान में कुछ चीजों का ख्याल रखना होगा.
अपनी उम्र और प्रॉब्लम के अनुसार सही डोज़ में स्थानीय वैद्य जी की देख-रेख में भी इसका इस्तेमाल करना चाहिए.
पारे की भस्म का इस्तेमाल करते हुए और इसके इस्तेमाल के कुछ दिनों बाद तक आपको नमक, मिर्च, गुड़, तेल और फ्राइड फ़ूड से परहेज़ करना चाहिए. इसके सेवन काल में यानी कि इसका इस्तेमाल करते हुए जौ, या गेहूं की दलिया, रोटी, दूध, घी, मक्खन-मलाई और पौष्टिक चीज़े खाती रहनी चाहिए.
अंग्रेज़ी डॉक्टर जो आपको डराते हैं कि पारे वाली मेडिसिन यूज़ न करो, हेवी मेटल है किडनी ख़राब कर देगी इसमें क्या सच्चाई है?
जैसा कि मैं विडियो में बताया और जैसा कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में लिखा है कि एक साल तक यूज़ करने से बुढ़ापा दूर होता है. अगर इस से किडनी पर कोई ख़राब असर होता तो एक साल यूज़ करने की सलाह आयुर्वेद नहीं देता.
और अगर शुद्ध पारा इतना ही डेंजर होता तो आयुर्वेद की लगभग 99.9% जितनी भी रसायन औषधि में उसमे शुद्ध पारा मिला होता है.
तो आप समझ सकते हैं कि अगर इसके सेवन से कोई खतरा होता तो क्या सभी दवाओं या यह एक घटक होता? इनग्रीडेंट होता?
अंग्रेज़ी डॉक्टर बस आयुर्वेद को बदनाम करने के लिए ऐसी बकवास करते हैं. बल्कि सच तो यह है कि अंग्रेज़ी दवा से ही किडनी पर ज़्यादा असर होता है. एक तरह यह एक बीमारी ठीक करती हैं तो दूसरी तरह आपको चार बीमारी गिफ्ट की तरह देती हैं. और यह भी एक कड़वा सच है कि Allopath में कोई भी एक भी ऐसी दवा नहीं है जिसका साइड इफ़ेक्ट न हो.
मैं किसी भी चिकित्सा पद्धति का विरोधी नहीं हूँ, सभी का सम्मान करता हूँ. अंग्रेजी दवाओं के बारे में आपकी क्या राय है कमेंट कर ज़रूर बताईयेगा.
तो दोस्तों यह थी आज की जानकारी पारे की भस्म के बारे में. उम्मीद करता हूँ कि इस से आपको कुछ नयी जानकारी मिली होगी.
आज मैं आपको एक ऐसी चीज के बारे में बताने वाला हूं जिसका सिर्फ आधा चम्मच रोजाना खाना खाने से पहले अगर आप ले लेते हैं तो इससे आप बड़ी ही आसानी से अपनी ब्लड शुगर को कंट्रोल में रख सकते हैं.
जी हां दोस्तों आज की वीडियो उन सभी लोगों के लिए हैं जो आलरेडी शुगर के मरीज़ हैं और इसे नेचुरल तरीके से कंट्रोल में रखना चाहते हैं. तो आइये बिना देर किये इसके बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
In this video Dr. Lakhaipuri is explaining how you can boost you power stamina and stay healthy by properly using the Ayurved's great product madhu makardhwaj.
पानी कम पीने या दुसरे कई कारणों से जब हमारी किडनी में कचरा जमने लगता है तो यही आगे चलकर धीरे-धीरे पत्थरी का रूप धारण कर लेता है. जिसे हम आम बोलचाल में गुर्दे की पत्थरी या किडनी स्टोन के नाम से जानते हैं.
आयुर्वेद में किडनी स्टोन के लिए बहुत सी बेहतरीन दवाएँ हैं जो पत्थरी को घुलाकर निकाल देती हैं. आज जिस दवा के बारे में मैं बात करूँगा उसका नाम है - त्रिविक्रम रस
जी हाँ दोस्तों, यह एक ऐसी रसायन आयुर्वेदिक औषधि है जो पत्थरी को गलाकर नष्ट कर देती है और गुर्दे का दर्द हमेशा के लिए बन्द हो जाता है.
जब मूत्रनलिका में पत्थरी के कारण रुकावट हो, बहुत तकलीफ़ से बून्द-बून्द पेशाब होता हो तो इसकी पहली ख़ुराक से ही लाभ होता है और पेशाब खुलकर आने लगता है.
गुर्दे का दर्द, किडनी की पत्थरी चाहे जैसे भी हो, छोटी-बड़ी हो, एक हो या मल्टीप्ल स्टोन हो, सभी को गलाकर निकाल देती है.
यह वात और पित्त दोष को बैलेंस करती है. यह सब तो हो गए त्रिविक्रम रस के फ़ायदे.
आईये अब जानते हैं, इसका डोज़ और यूज़ करने का तरीका
एक से दो गोली रोज़ दो बार 500 mg हज्रुल यहूद भस्म और एक स्पून शहद मिक्स कर चाटकर ऊपर बीजौरे निम्बू के जड़ का रस या क्वाथ पीना चाहिए.
इसे यवक्षार या शीतल पर्पटी के साथ लेने से भी पेशाब खुलकर आने लगता है.
और अब अंत में त्रिविक्रम रस का घटक या Composition भी जान लेते हैं.
इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे ताम्र भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और बकरी के दूध से बालुका यंत्र में अग्नि देकर विशेष विधि से बनाया जाता है.
वैसे यह बना हुआ मिल जाता है, ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है.
इसे लगातार एक महिना से ज़्यादा यूज़ न करें, और स्थानीय वैद्य जी सलाह से और उनकी देख रेख में ही इसका यूज़ करना चाहिए, क्यूंकि यह बहुत तेज़ी से असर करने वाली रसायन औषधि है.
प्रेगनेंसी और फीडिंग कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
गोंद कतीरा 'गुलू' नाम के एक तरह के झाड़ीदार पेड़ का गोंद होता है. इसका पेड़ मध्य-पूर्व के देशों में पाया जाता है. जैसे बबूल के पेड़ के तनों से बबूल गोंद निकलता है वैसे ही इसका भी गोंद निकलता है, जो सुख जाने पर क्रिस्टल की तरह दीखता है. अंग्रेज़ी में इसे Tragacanth Gum कहा जाता है.
नार्मल गोंद और गोंद कतीरा लगभग एक जैसा ही दीखता है. असली गोंद कतीरा के टुकड़े को पानी रातभर भिगो देने से यह फूलकर काफ़ी बढ़ जाता है और जेल की तरह दीखता है. जबकि नार्मल गोंद इतना नहीं फूलता.
गोंद कतीरा में क्या है जो इसे इतना खास बनाता है?
गोंद कतीरा कई तरह के ज़रूरी पोषक तत्वों से भरपूर होता है, मॉडर्न रिसर्च से भी यह साबित हो चूका है.
इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों की बात करूँ तो इसमें इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, प्रोटीन, फ़ॉलिक एसिड, विटामिन बी ग्रुप के सभी विटामिन पाए जाते हैं. इनके आलावा इसमें फाइबर भी पाया जाता है.
गोंद कतीरा के फ़ायदे
बॉडी को कूल रखने के लिए
गर्मी के मौसम में अक्सर लोग इसका इस्तेमाल करते हैं, शरीर को कूल रखने और हीट स्ट्रोक से बचने के लिए.
शरीर को कूल डाउन करने, पेशाब की गर्मी, पेशाब की जलन को दूर करने में यह बहुत ही असरदार है. पेशाब का पीलापन और पेशाब की इन्फेक्शन में भी फ़ायदा मिलता है गोंद कतीरा के इस्तेमाल से.
दर्द के लिए
जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, मसल्स का दर्द, बदन दर्द, गर्मी की वजह से होने वाला सर दर्द में इसके सेवन से लाभ होता है. इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व जॉइंट पेन को कम करने में असरदार है.
ब्लड प्रेशर के लिए
ब्लड प्रेशर को भी कण्ट्रोल करने में यह काफी मददगार होता है. अगर आपको हाई BP की प्रॉब्लम है तो गोंद कतीरा का इस्तेमाल कीजिये, चन्द दिनों में ही आपको इसका फ़ायदा दिखेगा.
बोन हेल्थ के लिए
गोंद कतीरा हमारे शरीर की हड्डियों को उचित पोषण देता है, जॉइंट्स में ग्रीसिंग देता है और बोन्स को स्ट्रोंग बनाता है, क्यूंकि इसमें नेचुरल कैल्शियम भी पाया जाता है जो कि बोन हेल्थ के लिए बहुत ज़रूरी होता है. यह बच्चे, बड़े, महिला-पुरुष सभी की हड्डियों को मज़बूत बनाता है.
इम्युनिटी पॉवर के लिए
यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाता है, जिस से आप जल्दी बीमारी होने से बच सकते हैं.
पेट सम्बन्धी रोगों और पाचन तंत्र के लिए
Digestive सिस्टम के लिए यह काफी फ़ायदेमंद है. यह आपकी पाचन शक्ति को सही करने में मदद करता है. पेट की गर्मी को कम करता है. एसिडिटी, कब्ज़, बवासीर इत्यादि में असरदार है. अपच, बदहज़मी से बचने के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
स्किन हेल्थ के लिए
यह आपकी स्किन के लिए भी असरदार है. खासकर गर्मी के मौसम में अपनी स्किन को हेल्दी रखना चाहते हैं, गर्मी के प्रभाव से अपनी स्किन को बचाना चाहते हैं तो गोंद कतीरा का इस्तेमाल करना चाहिए.
मेल हेल्थ या पुरुष रोगों के लिए
सभी पुरुष रोगों में यह काफी असरदार है. मर्दाना कमज़ोरी हो या किसी भी तरह की कोई यौन समस्या हो तो आप इसे हलवे में मिलाकर या लड्डू बनाकर यूज़ कीजिये, सभी प्रोब्लेम्स दूर कर आपको असली मर्द बना देगा.
किडनी/ब्लैडर हेल्थ के लिए
बार-बार पेशाब होना, पेशाब ज़्यादा होना, पेशाब रोक नहीं पाना, ऐसे ही पेशाब निकल जाना जैसी प्रॉब्लम में भी इस से फ़ायदा होता है. महिला और सभी को.
वज़न कम करने के लिए
वेट लॉस में यह सहायक है. फाइबर रिच और लो कैलोरी होने से यह मोटापा के शिकार लोगों को वज़न करने में हेल्प करता है. यह भूख पर कण्ट्रोल करता है.
गोंद कतीरा इस्तेमाल करने का सही तरीका
जब तक आप इसे सही तरीके इस्तेमाल नहीं करेंगे इसका पूरा फ़ायदा नहीं मिलेगा.
सही तरीके से यूज़ न करने से फ़ायदा तो दूर की बात भयंकर नुकसान हो सकता है. ब्लॉकेज, पेट फूलना और कब्ज़ जैसी प्रॉब्लम भी हो सकती है.
आपने देखा होगा कि पानी में डालने से यह पानी सोख लेता है और काफ़ी ज़्यादा फूलकर बढ़ जाता है. इसलिए इसे रात भर पानी में भीगाने के बाद या कम से कम दो घंटे भिगाने के बाद ही यूज़ करें.
इसका पाउडर बनाकर यूज़ करना अच्छा रहता है. इसका पूरा फ़ायदा लेने के लिए इसका पाउडर बनाने से पहले तवे पर के मोटा सा कागज़ रखकर गोंद कतीरा को भुन लेना चाहिए. इसे भुने बिना खाने से पूरा असर नहीं करता है.
तो इसका पाउडर बनाने से पहले हल्का सा भुन लीजिये, और फिर देखिये इसका फ़ायदा.
अक्सर लोग इसे पानी में भिगाकर या घोलकर पीने की सलाह देते हैं. सिर्फ़ पानी में घोलकर पीने से अच्छा है कि इसमें थोड़ा सा दूध मिला लें या अपनी पसन्द का कोई फ्रेश जूस, शर्बत, शहद, लस्सी-दूध मिलाकर पीने से बॉडी से जल्दी Absorb होता है और पूरा लाभ मिलता है, तुरन्त फ़ायदा मिलता है.
इस तरह से यूज़ करने से 30 मिनट के अन्दर ही असर करता है, बॉडी को रिचार्ज करता है और थकावट दूर करता है.
इसीलिए आयुर्वेद में किसी भी औषधि को सही अनुपान के साथ लेने की सलाह दी जाती है.
लड्डू बनाकर या फिर हलवे में इसे मिलाकर भी यूज़ किया जाता है.
डेली कितना यूज़ करना चाहिए ?
एक से दो टी स्पून रोज़ एक से दो बार तक या फिर आयु और अपने बल के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए. जितना डाइजेस्ट हो सके, उतना ही यूज़ करें.
गोंद कतीरा के साइड इफेक्ट्स
बहुत Rarely पेट दर्द और ब्लोटिंग जैसी समस्या हो सकती है अगर आप बहुत ज़्यादा मात्रा में इसका इस्तेमाल करते हैं.
अगर पहले से आपकी कोई अंग्रेज़ी दवा लम्बे समय से चल रही है तो गोंद कतीरा को लगातार इस्तेमाल न करें, या फिर अपने डॉक्टर से सलाह लेकर ही यूज़ करें.
कैशोर गुग्गुल आयुर्वेद की महान दवाओं में से एक है जो तो गोली या टेबलेट फॉर्म में होती है, यह आयुर्वेद की गुग्गुल केटेगरी की औषधि है.
विधि विधान से बनी हो तो यह अक्सर गहरे काले रंग की होती है.
कैशोर गुग्गुल को किशोर गुग्गुल, कैशोर गुग्गुलु, कैशोरा गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुल वटिका जैसे नामों से भी जाना जाता है.
कैशोर गुग्गुल के गुण या प्रॉपर्टीज
मूल रूप से इसे रक्तशोधक, रक्त विकार नाशक या ब्लड प्योरीफ़ायर माना जाता है. पर यह सिर्फ रक्तशोधक ही नहीं बल्कि दुसरे कई गुणों से भरपूर होता है जैसे -
Adaptogenic- यानी तनाव थकान को दूर करने वाला
Analgesic- दर्द-पीड़ा को दूर करने वाला
Anti-bacterial- बैक्टीरिया नाशक
Anti-diabetic- यानि मधुमेह में उपयोगी
Anti-inflammatory- सुजन दूर करने वाला
Anti-arthritis- गठिया रोग में लाभकारी
Anti flatulent- पाचन शक्ति ठीक करने वाला
Antioxidant, Anti-microbial, Mild Laxative यानी कब्ज़ दूर करने वाला और
Detox- शरीर के विषाक्त तत्वों को बहार निकालने वाले गुण भी इसमें पाए जाते हैं.
कैशोर गुग्गुल के फ़ायदे
शरीर में वात-पित्त का संतुलन कर खून को साफ़ करने वाली यह एक बेहतरीन दवा है
त्वचा विकार और हर तरह के चर्म रोगों में असरदार है, किल, मुहांसे, एक्जिमा जैसे रोगों को दूर करती है, फंगल इन्फेक्शन में भी फायदेमंद है
इसके फ़ायदों की बात करूँ तो आयुर्वेदानुसार इसके सेवन से वातरक्त, कुष्ठ रोग, घाव, उदर रोग, गुल्म, शोथ, पांडू, प्रमेह, अग्निमान्ध, प्रमेह पीड़ीका जैसे रोग नष्ट होते हैं.
आसान भाषा में अगर कहा जाये तो स्किन की सभी प्रॉब्लम जैसे खुजली, एक्जिमा, सोरायसिस, कुष्ठरोग, ज़ख्म, फोड़े, कारबंकल में असरदार है.
गठिया, जोड़ों का दर्द, जकड़न, सुजन, इसकी वजह से होने वाली बुखार, खाँसी, पाचन शक्ति की कमज़ोरी, भूख की कमी और क़ब्ज़ इत्यादि को यह नष्ट करता है.
तो इतने सारे रोगों को दूर करता है यह कैशोर गुग्गुल
आपके डॉक्टर या वैद्य जी ने कैशोर गुग्गुल सेवन करने की सलाह दी है तो बताई गयी बीमारियों में कोई न कोई प्रॉब्लम आपको होगी ही.
आप इसका यूज़ कर रहे हैं पर फ़ायदा नहीं हुआ, फ़ायदा क्यूँ नहीं हुआ?
इसे लगातार लम्बे समय तक यूज़ करने से ही पूरा लाभ मिलता है. पूरा लाभ पाने के लिए सही डोज़ में उचित अनुपान के साथ लेना चाहिए, तभी मनचाहा रिजल्ट मिलेगा.
इसका दूसरा विकल्प क्या है?
इसके जैसा दूसरी कोई औषधि नहीं, परन्तु इसके विकल्प के रूप में पञ्चतिक्तघृत गुग्गुल ले सकते हैं या फिर मेरा एक अनुभूत योग है - चर्मरोगान्तक योग जो हर तरह के चर्मरोग के लिए रामबाण है.
कैशोर गुग्गुल सेवन करने का सही तरीका क्या है? सही डोज़ क्या है?
एक बार में दो से चार गोली तक रोज़ तीन से चार बार तक इसे लिया जा सकता है. इसे गर्म पानी से, दूध से या फिर महामंजिष्ठादि क्वाथ जैसे किसी रक्तशोधक क्वाथ के साथ लेने से जल्दी लाभ मिलता है. रोज़ चार ग्राम या आठ गोली से ज़्यादा इसका डोज़ नहीं होना चाहिए.
कितने समय तक इसका सेवन कर सकते हैं?
गठिया और कठीन चर्मरोगों में इसे छह महिना से एक साथ या लम्बे समय तक प्रयोग करना चाहिए. इसे आप हर मौसम में यूज़ कर सकते हैं.
परहेज़ क्या करें?
इसका यूज़ करते हुए ज्यादा परहेज़ करने की ज़रुरत नहीं होती. पर रोग बढ़ाने वाले खान-पान से परहेज़ करना हमेशा बेस्ट रहता है. नॉन वेज, मिर्च-मसाला, सफ़ेद नमक, फ़ास्ट फ़ूड, जंक फ़ूड, सॉफ्ट ड्रिंक, शराब वगैरह से परहेज़ करने से आपको जल्दी फ़ायदा मिलेगा.
किन लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए?
जिनको गैस्ट्रिक अल्सर हो, पेप्टिक अल्सर हो, हाइपर एसिडिटी की समस्या हो, दस्त, संग्रहणी इत्यादि में इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
पाँच साल से कम उम्र के बच्चों को भी इसका यूज़ नहीं करना चाहिए
प्रेगनेंसी में भी इसका यूज़ नहीं करना चाहिए. और ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलायें भी इसका सेवन न करें.
कैशोर गुग्गुल के नुकसान या साइड इफेक्ट्स
वैद्य जी की सलाह से सही डोज़ में इसका सेवन करने से किसी भी कोई भी नुकसान या साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है.
ज़्यादा डोज़ में लेने से एसिडिटी, गैस बनना और लूज़ मोशन जैसी समस्या हो सकती है.
आईये अब अंत में जान लेते हैं कैशोर गुग्गुल के घटक यानि की कम्पोजीशन और निर्माण विधि
कैशोर गुग्गुल का घटक
इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे त्रिफला क्वाथ, शुद्ध गुग्गुल, त्रिफला चूर्ण, गिलोय, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, वायविडंग, जमालगोटा की जड़, निशोथ और घी या एरण्ड तेल के मिश्रण से बनाया जाता है.
शारंगधर संहिता में वर्णित मूल श्लोक
निर्माण विधि यह होती है कि सबसे पहले त्रिफला क्वाथ में शुद्ध गुग्गुल को पकाकर गाढ़ा कर, दूसरी जड़ी-बूटियों का चूर्ण मिलाकर, इमामदस्ते में कूटते हुए हल्का सा घी या एरण्ड तेल मिलाकर गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही कैशोर गुग्गुल होता है.
बेस्ट क्वालिटी का होम मेड कैशोर गुग्गुल का लिंक दिया गया है, ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं. 100 ग्राम की कीमत है सिर्फ 600 रूपये. बेस्ट क्वालिटी रहेगी, यह मेरी गारंटी है. अधीक मात्रा में किलो के भाव चाहिए तो इसके लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं.
यह एक रसायन औषधि है जो वात, पित्त और कफ़ वाले रोगों पर असर करती है.
लक्ष्मीनारायण रस के घटक या कम्पोजीशन
इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है- शुद्ध हिंगुल, शुद्ध गंधक, शुद्ध बच्छनाग, सुहागे की खील, कुटकी, अतीस, पीपल, इन्द्रजौ, अभ्रक भस्म और सेंधा नमक प्रत्येक समान भाग
इसके निर्माण विधि की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए सभी चीज़ों को बारीक चूर्ण कर दन्तीमूल और त्रिफला क्वाथ में अलग-अलग तीन-तीन दिनों तक घोटने के बाद दो-दो रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. बस यही लक्ष्मीनारायण रस कहलाता है.
लक्ष्मीनारायण रस की मात्रा और सेवन विधि
एक से दो गोली सुबह-शाम अदरक का रस और शहद मिक्स कर लेना चाहिए.
वात, पित्त और कफ़ तीनो दोषों पर इसका असर होता है.
लक्ष्मीनारायण रस के फ़ायदे
आयुर्वेदिक ग्रंथानुसार लक्ष्मीनारायण रस के सेवन से वात, पित्त और कफात्मक ज्वर, हैजा, विषम ज्वर, अतिसार, संग्रहणी, रक्तातिसार, आम-शूल और वात व्याधि का नाश होता है.
आईये अब आसान भाषा में इसके फ़ायदे जानते हैं -
यह बच्चों के टेटनस रोग की एक असरदार आयुर्वेदिक औषधि है.
यह हर तरह के बुखार को पसीना लाकर उतार देती है.
महिलाओं की डिलीवरी के बाद होने वाली बुखार और दूसरी समस्याओं में भी प्रयोग की जाती है.
गंधक रसायन चर्मरोगों या स्किन डिजीज को दूर करने वाली क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है. इसके इस्तेमाल से खाज-खुजली, एक्जिमा, फोड़े-फुंसी, चकत्ते, छाजन और सफ़ेद दाग से लेकर कुष्ठव्याधि तक नए-पुराने हर तरह के चर्मरोग दूर हो जाते हैं.
गंधक रसायन का घटक या कम्पोजीशन
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक शुद्ध गंधक होता है. गंधक को अंग्रेज़ी में Sulphur कहा जाता है. इसे बनाने के लिए चाहिए होता है शुद्ध गंधक के अलावा भावना देने के लिए चातुर्जात क्वाथ, त्रिफला क्वाथ, गिलोय का रस और अदरक का रस.
बनाने का तरीका यह होता है कि शुद्ध गंधक को चूर्ण बना लें और फिर इसमें चतुर्जात क्वाथ, त्रिफला क्वाथ, गिलोय का रस और अदरक के रस की कम से कम आठ-आठ भावना देकर सुखाकर पीसकर रख लिया जाता है.
शास्त्रानुसार इसे टोटल चौसठ भावना देकर बनाने का प्रावधान है. पुरे विधि विधान से बना हुआ यह काले रंग का दीखता है.
गंधक रसायन के औषधिय गुण
आयुर्वेदानुसार यह तासीर में गर्म, पित्तशामक, कुष्ठाघ्न यानी हर तरह के चर्म रोगों को दूर करने वाला, विषघ्न या विष को दूर करने वाला, जीवाणु-विषाणु नाशक रसायन है. यह Antibacterial, Antiviral, Antibiotic, Antimicrobial, Anti-inflammatory, Anti Leprosy और Blood Purifier जैसे गुणों से भरपूर होता है.
गंधक रसायन के फ़ायदे
दाद, खाज-खुजली, एक्जिमा, सोरायसिस, कुष्ठ, सफ़ेद दाग़, फोड़े-फुंसी, फंगल इन्फेक्शन, बालों का गिरना, बालों में रुसी या Dandruff होना जैसी प्रॉब्लम में बेहद असरदार है.
स्किन में चकत्ते होना, पित्ती उछलना(Urticaria) और कील-मुहाँसों में भी असरदार है.
रक्तशोधक गुण होने से खून साफ़ करता है और वातरक्त या गठिया रोग में भी फ़ायदेमंद है.
कुल मिलाकर बस समझ लीजिये कि चर्मरोगों और खून साफ़ करने की यह आयुर्वेद की बेस्ट दवाओं में से एक है.
गंधक रसायन की मात्रा और सेवन विधि
बीमारी और रोगी की कंडीशन के अनुसार ही इसका सही डोज़ फिक्स होता है. वैसे 250mg या एक टेबलेट रोज़ दो से तीन बार तक लिया जा सकता है. इसे रोगानुसार उचित अनुपान स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार निश्चित अवधि के लिए ही यूज़ करना चाहिए.
गंधक रसायन के साइड इफेक्ट्स
यह एक सुरक्षित औषधि है, इसे एक से छह महिना तक लगातार यूज़ किया जा सकता है.
क्या दूसरी दवाओं का सेवन करते हुए भी इसका यूज़ कर सकते हैं?
जी हाँ, होमियोपैथिक या दूसरी कोई अंग्रेज़ी दवा आपकी चलती है तो भी इसका यूज़ कर सकते हैं. बस दूसरी दवा और इसके बीच में आधा से एक घंटा का अन्तर रखना चाहिए. पहले अंग्रेज़ी दवा खाएं, उसके आधा से एक घंटा बाद ही इसका सेवन करें, और अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.
यदि आप पहले से कोई विटामिन या सप्लीमेंट यूज़ करते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं.
डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को सावधानीपूर्वक स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए.
यह स्वप्न दोष, प्रमेह, धात गिरना, वीर्य विकार, मर्दाना कमज़ोरी जैसे समस्त मूत्र रोगों और पुरुष यौन रोगों में असरदार है. तो आईये इन सब के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
बंगेश्वर रस
बंग भस्म इसका एक घटक होता है इसलिए ही इसका नाम बंगेश्वर रस रखा गया है. आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली और रसेन्द्र सार संग्रह में इसका वर्णन मिलता है.
वृहत बंगेश्वर रस में स्वर्ण भस्म भी मिला होता है जबकि बंगेश्वर रस में स्वर्ण भस्म नहीं होता और इसका कम्पोजीशन भी थोड़ा अलग होता है. आपकी जानकारी के लिए दोनों के घटक या कम्पोजीशन बता रहा हूँ, सबसे पहले जानते हैं
बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन
बंग भस्म, कान्त लौह भस्म, अभ्रक भस्म और नागकेशर का बारीक चूर्ण सभी बराबर मात्रा में लेकर घृतकुमारी की सात भावना देकर बहुत अच्छे से खरल कर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बना ली जाती हैं. यही बंगेश्वर रस है, इसे बंगेश्वर रस साधारण भी कहा जाता है.
वृहत बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन
जैसा कि इसके नाम में वृहत लगने से ही पता चलता है कि इसका नुस्खा बड़ा है. वृहत बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है बंग भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, चाँदी भस्म और कपूर प्रत्येक एक-एक तोला और स्वर्ण भस्म और मोती भस्म प्रत्येक 3-3 माशा
निर्माण विधि यह होती है कि सबसे पहले पारा-गंधक को खरल कर कज्जली बनाकर दुसरे सभी घटक मिलाकर भाँगरे के रस में खरलकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखा लिया जाता है. यही वृहत बंगेश्वर रस कहलाता है. यह बना हुआ मिलता है, ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक विडियो की डिस्क्रिप्शन में दिया गया है.
वृहत बंगेश्वर रस की मात्रा और सेवन विधि क्या है? किस अनुपान से इसका सेवन करने से पूरा लाभ मिलता है?
इसकी मात्रा या डोज़ की बात करूँ तो एक से दो गोली सुबह-शाम शहद लेना चाहिए.
इसका पूरा फ़ायदा पाने के लिए शहद के साथ इसे चाटकर ऊपर से एक ग्लास गाय का दूध या फिर बकरी का दूध पीना चाहिए.
वृहत बंगेश्वर रस के गुण और उपयोग
यह त्रिदोष पर असर करता है यानी कि वात, पित्त और कफ़ तीनों को बैलेंस करता है. यह रसायन और बाजीकरण होता है. आयु, बल, वीर्यवर्धक, कान्तिवर्धक और दुर्बलतानाशक जैसे गुणों से भरपूर होता है.
वृहत बंगेश्वर रस के फ़ायदे
आयुर्वेदिक ग्रन्थ के अनुसार वृहत बंगेश्वर रस के सेवन से नए पुराने सभी प्रकार के प्रमेह अच्छे होते हैं.
सभी तरह मूत्र रोग और मूत्र संक्रमण जैसे पेशाब की जलन, बहुमूत्र, UTI इत्यादि रोग दूर होते हैं.
पुरुषों के यौन रोग जैसे सोते हुए नींद में वीर्य निकल जाना, वीर्यवाहिनी नाड़ियों की कमज़ोरी, मल-मूत्र त्यागते हुए वीर्य निकल जाना इत्यादि रोग दूर होते हैं.
ग्रन्थ के अनुसार शुक्रक्षय से उत्पन्न मन्दाग्नि, आमदोष, अरुचि, हलिमक, रक्तपित्त, ग्रहणीदोष, मूत्र और वीर्यदोष आदि सभी विकार नष्ट होते हैं.
आसान भाषा में अगर कहा जाये तो यह पुरुष यौन अंग के रोग और मूत्र रोगों की असरदार औषधि है. यह धातुओं को पुष्ट कर शरीर को स्वस्थ और निरोगी बना देती है.
क्या इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं?
यह एक सुरक्षित औषधि है, इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. सही डोज़ में उचित अनुपान के साथ वैद्य जी की सलाह से इसका सेवन करना चाहिए.
क्या दूसरी दवाओं का सेवन करते हुए भी इसका यूज़ कर सकते हैं?
जी हाँ, होमियोपैथिक या दूसरी कोई अंग्रेज़ी दवा आपकी चलती है तो भी इसका यूज़ कर सकते हैं. बस दूसरी दवा और इसके बीच में आधा से एक घंटा का अन्तर रखना चाहिए. पहले अंग्रेज़ी दवा खाएं, उसके आधा से एक घंटा बाद ही इसका सेवन करें, और अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.
यदि आप पहले से कोई विटामिन या सप्लीमेंट यूज़ करते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं. लगातार एक महिना तक इसका सेवन कर सकते हैं.
वृहत बंगेश्वर रस और बंगेश्वर रस में कौन सा बेस्ट होता है? कौन सा यूज़ करना चाहिए और कहाँ से ख़रीदें?
वृहत बंगेश्वर रस जो स्वर्णयुक्त होती है, इसका ही यूज़ करें क्यूंकि यही बेस्ट है. यह आयुर्वेदिक दवा दुकान में मिल जाती है. अलग-अलग कम्पनी का अलग-अलग प्राइस होता है. ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है.
कांसा नाम की धातु से ही कांस्य भस्म बनाई जाती है. इसे ही अंग्रेज़ी में ब्रोंज़ नाम से जाना जाता है. यह कृमि रोग, चर्मरोग, कुष्ठरोग और आँखों की बीमारियों इत्यादि अनेको रोगों में असरदार है, तो आइये कांस्य भस्म में गुण, उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
कांसा को ही आयुर्वेद में काँस्य कहा जाता है. इसके बर्तन अक्सर हमारे घरों में यूज़ किये जाते थे, इसके अच्छे गुणों के कारन. आज के ज़माने में तो इसका बहुत कम ही प्रयोग किया जाता है. कांसे के बर्तन में खाने या पानी पीने से भी बहुत फ़ायदा होता है, यह आप जानते ही हैं.
इसी काँसे को शोधित कर पुरे विधी विधान से इसके भस्म का निर्माण किया जाता है, काँस्य भस्म निर्माण विधि विडियो के अंत के पुरे विस्तार से बताऊंगा.
किस धातु के बर्तन में खाना बनाने और खाने के क्या फ़ायदे और नुकसान हैं, इसकी पूरी जानकारी के लिए आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
सबसे पहले जानते हैं काँस्य भस्म के गुण
आयुर्वेदानुसार काँस्य भस्म लघु, तिक्त यानी स्वाद में कड़वा, उष्ण यानी की तासीर में गर्म और दीपन-पाचन जैसे गुणों से भरपूर होता है. यह विशेषरूप से वात-पित्त जनित रोगों में लाभकारी है.
काँस्य भस्म की मात्रा और सेवन विधि
एक से दो रत्ती यानी कि 125mg से 250mg तक शहद या गुलकंद मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए.
काँस्य भस्म के फ़ायदे
कृमि रोग यानी पेट के कीड़ों और पेट की बीमारियों के लिए -
कब्ज़ के कारन जब पेट में मल सड़कर पेट में कीड़े हो गए हों, भूख की कमी और पाचन की कमज़ोरी हो गयी हो तो काँस्य भस्म को शहद के साथ सेवन करना चाहिए. साथ में विडंग चूर्ण, विडंगारिष्ट इत्यादि का भी सेवन करना चाहिए.
चर्मरोग या स्किन डिजीज के लिए -
स्किन की हर तरह की प्रॉब्लम में काँस्य भस्म का सेवन कर सकते हैं. स्किन का रूखापन, एक्जिमा और कुष्ठ व्याधि इत्यादि रोगों में कांस्य भस्म को, गंधक रसायन और निम्बादि चूर्ण जैसे योग के साथ सेवन करना चाहिए.
भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया होती है, आपकी जानकारी के लिए इसकी पूरी प्रक्रिया बता रहा हूँ.
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी धातु की भस्म बनाने के लिए सबसे पहले उस धातु का शोधन किया जाता है. शास्त्रों में कांसे के दो भेद बताये गए हैं. पहला - तैलिक कांस्य और दूसरा पुष्प कांस्य. पुष्प कांस्य को ही भस्म बनाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है.
सबसे पहले जानते हैं कांसा की शोधन विधि -
कांसा के छोटे छोटे पत्तर बनाकर इसे आग में तपाकर बारी-बारी से तिल तेल, छाछ, गोमूत्र, कांजी और कुल्थी क्वाथ में सात-सात बार बुझाने से कांसा शुद्ध हो जाता है. इसके बाद नमक मिले इमली पानी में तीन घंटे तक उबाल लेने से विशेष शुद्धी हो जाती है. इसके बाद इसके पत्रों को खराद मशीन की सहायता से बुरादा बनवा लेना चाहिए.
भस्म विधि -
भस्म बनाने के लिए शोधित कांसे का बुरादा 100 ग्राम लेकर इसमें 100 ग्राम सेंधा नमक और उतना ही शुद्ध गंधक मिलाकर निम्बू के रस की एक भावना देकर मिट्टी के सकोरे में बन्दकर कपड़मिटटी कर गजपुट की अग्नि दी जाती है. ठण्डा होने पर इसे निकालकर पीसकर फिर इसके वज़न के बराबर शुद्ध गन्धक मिलाकर निम्बू के रस की भावना देकर गजपुट की अग्नि दें. इसके बाद फिर से इसी प्रोसेस को रिपीट करते हुए एक और अग्नि दी जाती है.
इसके बाद अगला प्रोसेस यह होता है कि इसे ठण्डा होने पर गजपुट से निकालकर पिस लें और एक कड़ाही पर कपड़ा बाँधकर कपड़े पर थोड़ी-थोड़ी भस्म और पानी डालते रहें और हाथ से चलाते रहें. इसी तरह से पानी के साथ भस्म को छान लें. छानने के बाद भस्म को तीन-चार घंटा तक पड़ा रहने दें ताकि भस्म कड़ाही के पेंदे में जम जाये.
इसके बाद ऊपर का पानी निथार कर अलग कर दें. जब तक पानी हरे रंग आता रहे इसी तरह से घुटाई कर पानी से छानते रहें. जब पानी में हरापन आना बन्द हो जाये तब भस्म को फिर से अच्छी तरह से घुटाई करें और इसमें थोड़ा सा तेल डालकर कड़ाही को भट्ठी में चढ़ाकर आँच लगाकर तेल को जला लें, इस दौरान भस्म को चलाते रहें. इसके बाद जब तेल पूरी तरह से जल जाये तो स्वांग शीतल होने पर भस्म को पीसकर कपड़छन कर काँच के बर्तन में भर कर रख लें. यही कांस्य भस्म होता है.
ओबेसिटी यानि की मोटापा आज के वैश्विक समस्या है, कई लोग मोटापे से परेशान हैं और तरह-तरह की दवा खाने के बाद भी उनका वज़न टस से मस नहीं होता. इसी मोटापा को दूर करने वाली शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि मेदोहर गुग्गुल के बारे में आज विस्तार से बताने वाला हूँ.
मेदोहर गुग्गुल
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है मेदोहर, मेद यानि कि फैट या चर्बी का हरण करने वाली गुग्गुल वाली औषधि.
मेदोहर गुग्गुल का घटक या कम्पोजीशन
मेदोहर गुग्गुल का कम्पोजीशन बड़ा ही बेहतरीन है इसमें शुद्ध गुग्गुल, पीपल, सोंठ, काली मिर्च, मोथा, चित्रकमूल, हरीतकी, विभितकी, आमला, वायविडंग और एरण्ड तेल का मिश्रण होता है. इसे गुग्गुल वाली औषधि निर्माण विधि से ही इसकी गोलियाँ बनायी जाती हैं, जो कि बिल्कुल काले रंग की होती है.
मेदोहर गुग्गुल की मात्रा और सेवन विधि
दो-दो गोली सुबह-शाम गुनगुने पानी से. आवश्यकतानुसार रोज़ छह से आठ गोली तक ली जा सकती है.
मेदोहर गुग्गुल के फ़ायदे
वेट लॉस के लिए यह एक बेहतरीन दवा है, इस से बेहतर कोई दवा नहीं हो सकती. यह बॉडी के एक्स्ट्रा फैट को बर्न कर वज़न कम करती है.
वज़न कम करना इसका मेन काम हैऔर इसके साथ साथ इस से रिलेटेड बीमारियों जैसे शुगर, जोड़ों का दर्द, फैटी लीवर, कोलेस्ट्रॉल बढ़ा होना, पेट की चर्बी, उठने-बैठने में तकलीफ़ होना, साँस की तकलीफ़ होना और कफ़ दोष को भी दूर करती है.
शरीर के मेटाबोलिज्म को ठीक करते हुवे वज़न कम करने की यह बेस्ट दवा है, इस से किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है.
मेदोहर गुग्गुल ऐसी दवा है जो तुरन्त आपका वज़न कम नहीं कर देगी, ऐसा बिल्कुल मत सोचें की इसके सेवन से 10-15 दिन में ही आपका दो-चार किलो वज़न कम जायेगा. कई लोगों को इस से धीरे धीरे लाभ होता है, पर निश्चित रूप से वज़न कमता है और स्थायी लाभ रहता है.
मेदोहर गुग्गुल मोटापा के मूल कारण पर असर करती है जिस से मोटापा के रोगियों का कायाकल्प हो जाता है.
मेदोहर गुग्गुल को कैसे यूज़ करें कि इसका पूरा फ़ायदा मिले?
दो गोली सुबह-शाम इसका नार्मल डोज़ है, आपकी ऐज और वज़न के अनुसार इसका डोज़ बढ़ भी सकता है.
मेदोहर गुग्गुल के साथ फैटकिल कैप्सूल, फैटकिल चूर्ण, फैटोनिल टेबलेट या योगराज गुग्गुल के सेवन से जल्दी लाभ मिलता है. इस तरह से प्रयोग करवाकर अनेकों रोगियों को लाभान्वित किया हूँ.
आज एक बहुत ही स्पेशल औषधि थायोकेयर कैप्सूल के बारे में जानकारी देने वाला हूँ जो थायराइड की समस्या के लिए बेहद असरदार है.
कुछ लोग सोचते हैं कि आयुर्वेद में थायराइड का प्रॉपर ईलाज नहीं है, जो की ग़लत है. भईया आयुर्वेद में थायराइड का सफ़ल उपचार है.
सबसे पहले जानते हैं थायोकेयर कैप्सूल के कम्पोजीशन के बारे में
इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो यह शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधियों और जड़ी बूटियों का एक बेहतरीन योग है. इसे कांचनार गुग्गुल, पुनर्नवादि मंडूर, आरोग्यवर्धिनी वटी, त्र्युषनाध लौह, कुटकी घनसत्व और विडंग घनसत्व के मिश्रण से बनाया गया है.
थायोकेयर कैप्सूल का डोज़ यानि कि मात्रा और सेवन विधि
एक से दो कैप्सूल रात में सोने से पहले गर्म पानी से लें. या फिर बढ़ी हुयी अवस्था में दो-दो कैप्सूल सुबह-शाम गर्म पानी से. जब थायराइड का लेवल नार्मल हो जाये उसके बाद भी कुछ महीने तक एक कैप्सूल रोज़ सेवन करना चाहिए. 15 साल से कम उम्र के रोगी को कैप्सूल तोड़कर आधी मात्रा में देना चाहिए.
थायोकेयर कैप्सूल के फ़ायदे
इसके फायदों की बात करूँ तो यह अबनोर्मल थायराइड लेवल को नार्मल करता है और इस कारन से शरीर में उत्पन्न हुयी विकृतियों को दूर करता है.
थायराइड ग्रंथि की विकृति से उत्पन्न सभी समस्याओं की दूर करने में असरदार है.
लॉन्ग टाइम तक इसका सेवन कर सकते हैं, किसी भी तरह का कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है.
इसका सेवन करते हुए सफ़ेद नमक, चावल और चिकनाई वाले आहार से परहेज़ करना चाहिए.