आपके लिए मैं आयुर्वेदिक दवाओं का सटीक विश्लेषण लेकर आते रहता हूँ और आज आयुर्वेद के एक ज़बरदस्त दवा आरोग्यवर्धिनी वटी के सम्पूर्ण जानकारी दूंगा और इसके बारे में कुछ ऐसी जानकारी भी दूंगा जिसे आपको जानना बहुत ज़रुरी है.
आरोग्यवर्धिनी वटी एक ऐसी औषधि है जो लगभग सभी बीमारियों को दूर करती है और आपको आरोग्यता प्रदान करती है. कैसे वह सब आगे बताऊंगा.
आज आप जानेंगे कि आरोग्यवर्धिनी वटी क्या है?
आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक या कम्पोजीशन क्या हैं?
इसकी निर्माण विधि क्या है?
इसकी मात्रा और सेवन विधि क्या है?
इसके गुण या प्रॉपर्टीज क्या हैं?
आरोग्यवर्धिनी वटी के क्या क्या फ़ायदे हैं?
क्या आरोग्यवर्धिनी वटी का कुछ साइड इफेक्ट्स भी है ?
तो आईये इन सभी के बारे में पॉइंट तो पॉइंट पूरा डिटेल में जानते हैं-
आरोग्यवर्धिनी वटी क्या है?
आरोग्य और वर्धिनी यह दो शब्दों की संधि है.
आरोग्य का मतलब होता है - स्वास्थ प्रदान करने वाला, हेल्थ देने वाला, सेहत देने वाला और वर्धिनी का मतलब होता है - बढ़ाने वाली
इस तरह से इसका अर्थ होता है स्वास्थ्य बढ़ाने वाली गोली
इसके सेवन से आपके शरीर की जो भी बीमारी हो दूर होकर शरीर स्वस्थ होता है.
इसे ही आरोग्यवर्धिनी वटक और आरोग्यवर्धिनी रस के नाम से भी जाना जाता है.
आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक या कम्पोजीशन क्या हैं? इसकी निर्माण विधि क्या है?
आरोग्यवर्धिनी वटी की मात्रा और सेवन विधि
1 से 2 गोली तक दिन में दो बार सुबह-शाम, पानी, पुनर्नवारिष्ट, पुनर्नवा क्वाथ, कुमार्यासव या त्रिफला हिम के साथ या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार उचित अनुपान से लेना चाहिए
आरोग्यवर्धिनी वटी के गुण या प्रॉपर्टीज
आरोग्यवर्धिनी वटी के गुणों की बात करें तो यह वात-पित्त-कफ़ तीनो दोषों को बैलेंस करने वाली, दीपन-पाचन, हृदय को बल देने वाली, शरीर के स्रोतों का शोधन करने वाली, बेहतरीन एंटी ऑक्सीडेंट, शरीर के विषाक्त तत्वों या टोक्सिंस को बाहर निकालने वाली, हार्ट की कमज़ोरी को दूर करने वाली और भूख बढ़ाने वाली है. यहाँ तासीर में न गर्म है न ठण्डी, बल्कि नार्मल होती है.
आरोग्यवर्धिनी वटी के फ़ायदे
यह लीवर, स्प्लीन, हार्ट, किडनी, लंग्स, पेट, छोटी आंत, बड़ी आंत, गर्भाशय, त्वचा इत्यादि सभी पर असर करती है, जिस से हर तरह की बीमारी दूर होती है. मोटापा, कोलेस्ट्रॉल, थाइरायड, पित्ताशय की सुजन, पित्त की पत्थरी, बुखार इत्यादि रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
लीवर-स्प्लीन हेल्थ के लिए
लीवर की कोई भी समस्या हो, लीवर बढ़ गया हो, फैटी लीवर हो, जौंडिस हो, स्प्लीन बढ़ गया हो तो इसका सेवन करना चाहिए.
पेट, बड़ी आंत और छोटी आंत के लिए
पाचन की समस्या हो, भूख की कमी, अरुचि, अग्निमान्ध, छोटी-बड़ी आंत की ख़राबी हो तो यह सभी समस्या को दूर कर देती है. यह पाचन विकृति और पाचन कमज़ोरी को दूर कर देती है.
सुजन के लिए
शरीर में कहीं भी सुजन हो, किसी भी अंग की सुजन हो तो इसके सेवन से सुजन दूर होता है.
हार्ट हेल्थ के लिए
यह आपके हृदय की कमज़ोरी दूर कर हार्ट को मज़बूत बनाती है.
कब्ज़ के लिए
क़ब्ज़ या Constipation की पुरानी से पुरानी समस्या में इसके सेवन से लाभ हो जाता है. आँतों में चिपका हुआ मल, जो साधारण रेचक औषधियों से नहीं निकलता हो, उसमे भी यह असरदार है. आँतों में जमे-चिपके पुराने सूखे मल का भेदन कर यह निकाल देती है.
त्वचा विकारों या स्किन डिजीज के लिए
स्किन की कोई भी समस्या क्यूँ न हो? फोडा-फुंसी से लेकर, एक्जिमा, सोरायसिस और कुष्ठव्याधि तक में इसका सेवन कराया जाता है. सभी तरह के स्किन डिजीज का मेरा अनुभूत योग 'चर्मरोगान्तक योग' जो स्किन डिजीज के लिए 'ब्रह्मास्त्र' की तरह है, इसमें भी 'आरोग्यवर्धिनी वटी' मिली होती है.
मोटापा के लिए
मोटापा की दवाओं के साथ इसे सहायक औषधि के रूप में लेना चाहिए, यह बॉडी के एक्स्ट्रा फैट को कम करती है.
तो इस तरह से आरोग्यवर्धिनी वटी एक ऐसी दवा है सभी रोगों में यूज़ कर सकते हैं, चाहे रोग किसी भी दोष की विकृति से क्यूँ न हो.
आरोग्यवर्धिनी वटी का पूरा लाभ मिले इसके लिए पुरे विधी-विधान से बेहतरीन क्वालिटी की बनी होनी चाहिए.
मैं जो यूज़ करता हूँ और यूज़ करवाता हूँ उसका दिया गया है. जिसके 60 गोली की क़ीमत सिर्फ 90 रुपया है.
मार्केट में एक कंपनी है जहाँ इस तरह दवा सस्ती मिलती है, और क्वालिटी एकदम घटिया गोबर वाली. उसका नाम मैं नहीं लूँगा.
आरोग्यवर्धिनी वटी के बारे में के राज़ की बात
इसे खरलकर या पीसकर खाने से पूरा लाभ मिलता है, पीस नहीं सकते तो चबाकर खाना चाहिए. यह बात आपको कोई नहीं बताएगा, यह अनुभव की बात है.
क्या आरोग्यवर्धिनी वटी का कुछ साइड इफेक्ट्स भी है ?
नहीं, इसे सही डोज़ में उचित अनुपान के साथ स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार लीजिये, साइड इफ़ेक्ट क्यूँ होगा? यह कोई अंग्रेज़ी दवा थोड़े ही है जो एक तरफ़ फ़ायदा करे और दूसरी तरफ़ नुकसान
इसे कितने समय तक यूज़ कर सकते हैं?
इसे आप लगातार चार से छह महिना तक यूज़ कर सकते हैं.
होमियो, अंग्रेजी दवा और कोई हेल्थ सप्लीमेंट का सेवन करते हुए भी आप इसका यूज़ कर सकते हैं, बस दूसरी दवाओं और इसमें आधा से एक घंटा का गैप रखें.
बसन्त कुसुमाकर मतलब जैसे वसंत का मौसम आने पर कुसुम यानी फूल खिल जाते हैं ठीक उसी तरह इस दवा के इस्तेमाल से शरीर में नयी शक्ति, स्फूर्ति और उर्जा आती है और शरीर खिल उठता है.
इसे कहीं वसन्त कुसुमाकर V या 'व' ले लिखा जाता है
तो कहीं बसन्त कुसुमाकर B या 'ब' से लिखा जाता है. यह सिर्फ़ बोली का फर्क़ है, लिखने का अंतर है. इसके बारे में कभी भी कंफ्यूज़ न हों.
स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस के घटक या कम्पोजीशन
इसके कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसके मुख्य घटक होते हैं -
इसमें अडूसा स्वरस, हल्दी स्वरस, कमल पुष्प स्वरस, मालती पुष्प स्वरस, गाय का दूध, केले के स्तम्भ का रस, चन्दन फांट की प्रत्येक 7-7 भावना दी जाती है.
यह बसन्त कुसुमाकर रस का घटक और प्रोसेस है, इसी प्रोसेस से बना हुआ जेनरली मार्केट में आपको मिलता है.
पर जो स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस है उसमे इन सब के अलावा अलग से शतावर, असगंध, गोक्षुर, कौंच बीज और उटंगन बीज के क्वाथ की एक-एक भावना दी जाती है, इस तरह से यह विशेष प्रभावशाली बन जाता है. और यही है स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस या बसन्त कुसुमाकर रस विशेष
साधारण बसन्त कुसुमाकर रस का 30 गोली का पैक आपको क़रीब 1700 से 1800 में मिलता है, क्यूंकि बड़ी कम्पनी ब्रांडिंग के नाम पर आपके पैसे लूट रही है.
यह वाला स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस 60 गोली का पैक सिर्फ 950 रुपया में मिल रहा है जो ज़्यादा असरदार भी है. इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है.
स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस का डोज़ यानि की मात्रा और सेवन विधि
एक से दो गोली सुबह-शाम रोगानुसार उचित अनुपान से
अब यह भी जान लीजिये कि किस बीमारी में इसे किस अनुपान से लेना चाहिए?
मधुमेह या डायबिटीज में – एक से दो गोली कच्चे दूध में घोलकर सुबह-शाम या फिर जामुन गुठली चूर्ण, शिलाजीत इत्यादि के साथ
काम विकार और यौन रोगों में – एक से दो गोली शहद या मलाई से
वीर्य विकार, नपुँसकता इत्यादि पुरुष यौन रोगों में -
धारोष्ण दूध, शहद, मक्खन या मलाई के साथ
मस्तिष्क या ब्रेन से रिलेटेड रोगों में - आँवला मुरब्बा के साथ
रक्त प्रदर और रक्त पित्त रोग में - वासा के रस और शहद के साथ
खाँसी, अस्थमा, टी.बी. इत्यादि फेफड़े के रोगों में - चौसठ प्रहरी पीपल और शहद के साथ
एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी में - कुष्मांड अवलेह या गुलकन्द के साथ
हृदय रोगों या हार्ट की बीमारियों में - अर्जुन छाल क्वाथ के साथ
प्रमेह रोगों में - गिलोय के रस और शहद से
स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस के गुण या प्रॉपर्टीज
इसके गुणों की बात करूँ तो आयुर्वेदानुसार यह वात और पित्त दोष को बैलेंस करता है. त्रिदोष नाशक गुण भी हैं इसमें.
यह हृद्य है - यानी की हार्ट को ताक़त देता है
बल्य है - बल या शक्ति को बढ़ाता है
उत्तेजक भी है - उत्तेजना बढ़ाता है
वृष्य है - यानी कि आपके अंडकोष, वीर्य, शुक्राणु इत्यादि को पोषण देता है
बाजीकरण और रसायन गुणों से भी भरपूर है.
एन्टी एजिंग, इम्युनिटी बूस्टर, एंटी ऑक्सीडेंट जैसे गुणों से भरपूर है.
आईये अब जानते हैं
स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस के फ़ायदे
इसके फ़ायदों की जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है, क्यूंकि यह आयुर्वेद की ऐसी महान दवाओं में से एक है जो बॉडी के सभी एसेंशियल organs को शक्ति देती है.
यानी की सर से पैर तक आपके लिए फ़ायदेमन्द है. ब्रेन, हार्ट, लंग्स, लीवर, किडनी, बोन्स, प्रजनन तंत्र चाहे महिला का हो या पुरुष का सभी के लिए असरदार है.
डायबिटीज और जितने भी प्रकार का प्रमेह या मेह रोग हो सभी के लिए यह अमृत समान गुणकारी है. यह डायबिटीज के लिए ही सबसे ज़्यादा पॉपुलर है.
पुरुष यौन रोग
मर्दों की बीमारी चाहे जो भी हो, मर्दाना कमज़ोरी, वीर्य विकार, नपुँसकता इत्यादि कुछ भी सभी में असरदार है.
आज का नवयुवक कम उम्र में ही ग़लत आदत का शिकार हो जाता है, क्यूंकि इस उम्र उसे पता ही नहीं होता है कि वह जो कर रहा है आगे चलकर उसका क्या असर होगा. तो ऐसे किशोरों के लिए जो अपनी जवानी बर्बाद कर चुके हों, नसें कमज़ोर कर चुके हों, अपने अंग विशेष को बेजान कर चुके हों, उनके लिए यह स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस वरदान साबित होता है.
महिला रोग
महिलाओं के यौन स्वास्थ या reproductive system की कोई भी समस्या हो, सभी में यह लाभकारी है
ब्रेन के लिए
दिमाग की कमज़ोरी, चक्कर आना, मेमोरी लॉस, नींद नहीं आना जैसी प्रॉब्लम में इसका सेवन करना चाहिए
फेफड़ों या लंग्स हेल्थ के लिए
फेफड़ों की कमज़ोरी, खांसी, अस्थमा, टी. बी. इत्यादि फेफड़े की सभी बीमारीओं में यह असरदार है
पाचन तंत्र की बीमारी
जैसे अम्लपित्त, IBS, खून की कमी, लीवर की प्रॉब्लम और नकसीर इत्यादि में असरदार है.
बुढ़ापे के लिए
कम उम्र में ही बुढ़ापे के लक्षण दीखते हों, या फिर बुढ़ापे में भी आप टनाटन दिखना चाहते हैं तो इसका सेवन करें और फिर चमत्कार देखें.
बसन्त कुसुमाकर रस के साइड इफेक्ट्स
इसका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं, क्यूंकि इसका कम्पोजीशन अपने-आप में बेजोड़ है. इसे लगातार एक से तीन महिना तक यूज़ कर सकते हैं.
अत्यधिक बढ़ी हुयी कमोतेजना में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए.
यदि आप पहले से कोई होम्यो दवा यूज़ कर रहे है तो भी इसे ले सकते हैं.
अंग्रेज़ी दवा लेते हुए भी इसका सेवन कर सकते हैं. बाद दूसरी दवाओं के बीच आधा से एक घंटा का गैप रखें.
कोई विटामिन या हेल्थ सप्लीमेंट लेते हुए भी इसका सेवन कर सकते हैं.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है अतुल शक्तिदाता योग अर्थात अतुलनिय शक्ति देने वाला नुस्खा
अतुल शक्तिदाता योग क्या है?
अतुल शक्तिदाता योग लौह भस्म का एक स्पेशल फॉर्म है. इसे तीक्ष्ण लौह भस्म में कुछ स्पेशल चीज़ों के मिश्रण से एक बहुत ही स्पेशल विधि से इसकी पावरफुल भस्म बनाई जाती है.
आसान भाषा में कहूँ तो अतुल शक्तिदाता योग एक स्पेशल फ़ौलाद भस्म या लौह भस्म है. फ़ौलाद बुरादा, सफ़ेद संखिया, घृतकुमारी, भीमसेनी कपूर, आँवलासार गन्धक और बीर बहूटी इत्यादि के मिश्रण से इसे बनाया जाता है.
अतुल शक्तिदाता योग निर्माण विधि
शुद्ध किया हुआ असली फ़ौलाद बुरादा 200 ग्राम, सफ़ेद संखिया 10 ग्राम, भीमसेनी कपूर डेढ़ ग्राम सबको मिलाकर घृतकुमारी के रस में 12 घन्टे खरलकर छोटी-छोटी टिकिया बनाकर सुखाकर मिटटी के बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर पाँच किलो कंडों की अग्नि में फूक दें. ठण्डी होने के बाद भस्म को निकाल कर इसमें 10 ग्राम हरताल और डेढ़ ग्राम भीमसेनी कपूर मिलाकर फिर से घृतकुमारी के रस में घोटकर छोटी-छोटी टिकिया बनाकर सुखाकर सराब सम्पुट में रखकर गजपुट की अग्नि दें.
इसके बाद फिर से निकालकर तीसरी बार में 10 ग्राम आँवलासार गंधक और डेढ़ ग्राम भीमसेनी कपूर मिलाकर उसी तरह से गजपुट की अग्नि दें.
अब चौथी बार इसमें 10 ग्राम शुद्ध पारा और डेढ़ ग्राम भीमसेनी कपूर मिलाकर घृतकुमारी में घोटकर टिकिया बना सुखाकर गजपुट की अग्नि दें. इसी तरह से उपरोक्त दवाओं के साथ पुनः उपरोक्त क्रम से प्रत्येक की 3-3 पुट अग्नि देने से टोटल 16 पुट हो जायेगा.
इसके बाद इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में डालकर समान मात्रा में बीर बहूटी मिलाकर मन्द आंच में जलाएं, जब बीर बहूटी जल जाये तब लोहे के तवे से ढँक कर तीन घंटे तक खूब तेज़ अग्नि दें. इसके बाद ठंडा होने पर भस्म को निकालकर पीसकर रख लें. बस यही अतुल शक्तिदाता योग है.
इसके 5 ग्राम के पैक की क़ीमत है सिर्फ़ 186 रुपया, इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है.
इसकी मूल मात्रा चार चावल से 1 रत्ती बताई गयी है. यानी कि 30 mg से 125 mg तक. बहुत ही कम मात्रा में इसे लेना होता है. मेडियम डोज़ में लेना है तो इसके एक पैक से 80 ख़ुराक बन जायेगा, 40 दिन का डोज़. इसे किसी चूर्ण में मिलाकर ले सकते हैं. इसे मक्खन या मलाई में मिलाकर ऊपर से मिश्री मिला गर्म दूध पीना चाहिए. इसे लगातार दो से तीन महिना तक यूज़ कर सकते हैं.
अतुल शक्तिदाता योग के फ़ायदे
सामान्य कमज़ोरी से लेकर मर्दाना कमजोरी तक दूर करने में यह बेजोड़ है.
इसके इस्तेमाल से शरीर में नया खून बनता है. 21 दिनों तक खाने से चेहरा लाल सुर्ख हो जाता है बिल्कुल सेब की तरह.
यह अत्यन्त कामोद्दीपक है, यौनेक्षा को बढ़ा देता है, जगा देता है. लगातार चालीस दिनों तक सेवन करने से बेजोड़ लाभ हो जाता है.
खून की कमी, जौंडिस और लीवर बढ़ जाने, या लीवर की बीमारियों में लाभकारी है.
मूत्रमेह, प्रमेह में भी इसके सेवन से लाभ होता है. इसके सेवन से कमज़ोर लोगों का वज़न भी बढ़ जाता है.
अब जान लेते हैं-
अतुल शक्तिदाता योग का सेवन करते हुए क्या खाना चाहिए और क्या परहेज़ करना चाहिए?
इसका सेवन करते हुए अनार,अंगूर, सेब, घी, शक्कर, हलवा, दूध, मक्खन- मलाई, रबड़ी इत्यादि तरावट वाले और पौष्टिक भोजन करते रहना चाहिए.
परहेज़
जहाँ तक परहेज़ की बात है तो लाल मिर्च, तेल, फ्राइड फ़ूड, खटाई या आचार और स्त्री प्रसंग से परहेज़ करना होगा तभी इसका पूरा लाभ मिलेगा.
अतुल शक्तिदाता योग के साइड इफेक्ट्स
वैसे तो इसका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है, कुछ लोगों को आयरन, फोलिक एसिड या लौह भस्म वाली दवा सूट नहीं करती हैं, उन्हें इसे यूज़ नहीं करना चाहिए. याद रखें इसे बहुत कम मात्रा में सेवन करना होता है, इसलिए सही डोज़ में अपने बल के अनुसार या स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही इसका सेवन करें.
यह एक ऐसी रसायन औषधि है जो कामोत्तेजना बढ़ाती है, बल, वीर्य और शक्ति बढ़ाती है और उत्तम बाजीकरण है. धात गिरना, वीर्य-विकार, स्पर्म की कमी से लेकर शीघ्रपतन और नपुंसकता यानि कि Impotency तक में असरदार है. यह महिला-पुरुष दोनों के इनफर्टिलिटी की समस्या को दूर करती है.
सबसे पहले जानते हैं पुष्पधन्वा रस का घटक या कम्पोजीशन
इसमें रस सिन्दूर, नाग भस्म, वंग भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म जैसी दवाओं में धतुरा, विजया, शाल्मली, नागबेल और मुलेठी की भावना देकर बनाया जाता है
कई सारे पावरफुल भस्मों और जड़ी-बूटियों के रस की भावना से यह दवा शक्तिशाली बन जाती है. आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली का यह योग है.
इसमें मिलाई जाने वाली चीजों के गुणों के बारे में संक्षिप्त में अगर बताऊँ तो -
रस सिन्दूर-
बलवर्द्धक, उत्तेजक और योगवाही है
नाग भस्म -
स्तम्भन का काम करता है और प्रमेह नाशक है
अभ्रक भस्म-
धातुओं की पुष्टि करने वाला, योगवाही रसायन है, मानसिक स्वास्थ को सही करता है
बंग भस्म-
बल वर्द्धक, प्रमेह नाशक, वृष्य और स्तंभक है
लौह भस्म-
खून बढ़ाने वाला और बल बढ़ाने वाला होता है
और इसमें जिन जड़ी-बूटियों की भावना दी गयी है उनमे सेमल - वीर्य बढ़ाने वाला, स्तम्भक है. नागबेल- उत्तेजक, बल्य है. मुलेठी रसायन है जबकि धतुरा- दर्दनाशक होता है.
तो इस तरह से सभी के गुणों को जमा कर दिया जाये तो यह वीर्य बढ़ाने वाली, स्पर्म काउंट बढ़ाने वाली, शक्ति बढ़ाने वाली, पॉवर-स्टैमिना, सेक्स पॉवर बढ़ाने वाली एक उत्तम रसायन औषधि है.
पुष्पधन्वा रस की मात्रा और सेवन विधि
एक से दो गोली सुबह-शाम शहद, मक्खन-मिश्री, या उबले हुए गर्म दूध से लेना चाहिए.
ज़्यादा सम्भोग करने से हुयी कमज़ोरी, वीर्य का पतलापन, धात की समस्या हो, स्पर्म काउंट की कमी हो गयी हो इसका सेवन करना चाहिए.
यह नसों की कमज़ोरी को दूर करता है, उनमे मज़बूती लाता है और धारण शक्ति बढ़ाता है. पॉवर-स्टैमिना, लिबिडो बढ़ाने वाली सुपर मेडिसिन है.
वीर्य नाश की वजह से हुयी नपुँसकता की यह अव्यर्थ औषधि है, ऐसा ग्रन्थ में कहा गया है. यह आपके अंग विशेष में ब्लड फ्लो बढाकर उसको शक्तिशाली कारगर बनाता है.
किसी शोक, दुर्घटना या मानसिक समस्या से जिनकी यौनेक्षा नहीं हो, रूचि नहीं हो उनके लिए भी असरदार है. क्यूंकि यह मेल हार्मोन Testosterones को बढ़ाता है.
महिलाओं के गर्भाशय सम्बन्धी विकारों से होने वाली फीमेल इनफर्टिलिटी में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
नींद नहीं आना, यादाश्त की कमी, कमजोरी, खून की कमी को दूर करने में असरदार है.
पुष्पधन्वा रस के साइड इफेक्ट्स
यह एक सुरक्षित औषधि है, इसका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होता है. सही मात्रा में और सही समय तक इसका यूज़ करना चाहिए अपने नज़दीकी वैद्य जी की सलाह के अनुसार.
अंग्रेज़ी दवा और होमिओ दवा का सेवन करते हुए भी इसका यूज़ कर सकते हैं. बस दूसरी दवाओं में आधा से एक घंटा का गैप रखें.
ठण्ड का मौसम आ गया है और अभी यानी नवम्बर-दिसम्बर से लेकर फरवरी मार्च तक मकरध्वज सेवन करने का सबसे बेस्ट समय है.
जी हाँ दोस्तों, आज मैं मकरध्वज के बारे में कुछ कमाल की जानकारी देने वाला हूँ.
मकरध्वज आयुर्वेद की एक ऐसी पॉपुलर दवा है जिसके बारे में सभी लोग कुछ न कुछ जानते ही हैं.
मकरध्वज अपने आप में एक बेजोड़ औषधि है जिसे बड़े-बड़े डॉक्टर भी मान चुके हैं. सिद्ध मकरध्वज टॉप क्लास का होता है और इसी के बारे में आज विशेष चर्चा करूँगा.
सिद्ध मकरध्वज पारा गंधक और स्वर्ण का विशेष योग है. यह त्रिदोष नाशक होता है, यानी इसके सेवन से सभी तरह के रोग दूर होते हैं. बस शर्त यह है कि रोगानुसार उचित अनुपान के साथ इसका सेवन किया जाये.
सिद्ध मकरध्वज के सेवन से ताक़त बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है. वैसे तो यह पुरे शरीर के लिए लाभकारी है पर हार्ट, ब्रेन और नर्वस सिस्टम पर इसका सबसे ज्यादा असर होता है. बच्चे, बड़े, बूढ़े, जवान, महिला और पुरुष सभी के लिए यह फ़ायदेमंद है.
अनुपान भेद से इसे अनेकों रोगों में प्रयोग किया जाता है. किस बीमारी में इसे किस चीज़ के साथ लेना है, आगे सब बताऊंगा. पर उस से पहले ठण्ड के इस मौसम में इसका प्रयोग जान लिजिए-
चूँकि इंडिया में अभी जाड़े का मौसम आ गया है, कई लोगों को ठण्ड बहुत ज़्यादा महसूस होती है उनके लिए सिद्ध मकरध्वज बड़े काम की चीज़ है.
तो भईया, अगर आपको ठण्ड ज़्यादा लगती है और गर्म कपड़ों से दबे रहते हैं तो अभी से सिद्ध मकरध्वज का विधि पूर्वक सेवन शुरू कीजिये और फिर देखिये इसका चमत्कार.
ठण्ड को दूर करने के लिए मकरध्वज का मैं प्रत्यक्ष अनुभव कर देख चूका हूँ. आप भी एक बार ट्राई ज़रूर कीजिये. सिद्ध मकरध्वज ओरिजिनल होना चाहिय तभी पूरा लाभ मिलेगा.
ओरिजिनल सिद्ध मकरध्वज का लिंक दे रहा हूँ, जहाँ से आप ऑनलाइन आर्डर कर सकते हैं.
मकरध्वज को एक विशेष विधि से सेवन करने का विधान है. सही विधि से सेवन करने पर ही इसके सारे गुणों की प्राप्ति होती है.
तो अब सवाल यह उठता है कि इसके सेवन की सही विधि क्या है?
सिद्ध मकरध्वज को शहद के साथ अच्छी तरह से खरल कर सेवन से इसका पूरा लाभ मिलता है. जैसा कि शास्त्रों में भी कहा गया है - 'मर्दनम गुणवर्धनम'
अथार्त- मर्दन करने से इसके गुणों में वृद्धि हो जाती है. जितना पॉसिबल हो इसे शहद के साथ खरल या पेश्टर में डालकर मर्दन कर ही यूज़ करना चाहिए.
125 mg से 375 mg तक आयु के अनुसार इसकी मात्रा लेकर एक स्पून शहद के साथ दस से 15 मिनट तक खरल कर रोज़ दो से तीन बार तक इसका सेवन करें और फिर चमत्कार देखें. अगर किसी ख़ास बीमारी के लिए इसे लेना है तो उस बीमारी में इस्तेमाल होने वाली दवा के साथ इसे मिक्स कर लेना चाहिए.
सिद्ध मकरध्वज के गुण या प्रॉपर्टीज
अगर मैं कहूँ कि सिद्ध मकरध्वज गुणों की खान है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. मकरध्वज के जैसी दवा दुनिया की किसी भी पैथी में नहीं है. यह मरणासन्न रोगी को भी बचा देती है.
आयुर्वेदानुसार यह त्रिदोष नाशक है जिस से यह हर तरह की बीमारी में लाभकारी है.
सिद्ध मकरध्वज के फ़ायदे
इसके फ़ायदों की बात करें तो यह ताक़त बढ़ाने वाली बेजोड़ दवा है. यह हार्ट और नर्वस सिस्टम को ताक़त देती है. खून की कमी और कमज़ोरी दूर कर वज़न बढ़ाती है.
शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन,नपुँसकता और वीर्य विकारों के लिए बेजोड़ है. न्युमोनिया, खांसी, दमा, टी. बी., हृदय रोग, हर तरह की बुखार, हर तरह की कमज़ोरी, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ना इत्यादि अनेकों रोगों में इसका प्रयोग करना चाहिए.
यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है. बहुत सारे लोग ठण्ड के मौसम में इसका सेवन कर पुरे साल उर्जावान बने रहते हैं. अभी का मौसम इसके इस्तेमाल के लिए सबसे बेस्ट है.
हाल के दिनों में कई लोगों की मौत हो रही है अचानक से हार्ट फ़ेल होने से, जिनमे अधिकतर संख्या कोरोना वैक्सीन लिए हुए लोगों की है,ऐसा लोगों का कहना है. आपने भी ख़बरों में ऐसा सुना होगा. मकरध्वज के सेवन से हार्ट फ़ेल नहीं होता है और हार्ट फ़ेल होने से यह बचाव करती है.
चूँकि सिद्ध मकरध्वज योगवाही भी है, मतलब जिस किसी भी दवा के साथ मिक्स कर यूज़ करेंगे यह उसके गुणों को बढ़ा देता है. अनुपान भेद से यह अनेकों रोगों में प्रयोग किया जाता है.
तो आईये यह भी जान लेते हैं कि किस बीमारी में इसे किस चीज़ के साथ सेवन करना चाहिएय -
सर्दी खाँसी में - पान के रस, अदरक के रस, मुलेठी चूर्ण, पीपल चूर्ण के साथ इसे लेना चाहिए
साधारण बुखार में - पीपल और अदरक के रस के साथ
मलेरिया में - करंज बीज या सुदर्शन चूर्ण के साथ
टाइफाइड में - मोती पिष्टी के साथ
जीर्ण ज्वर या पुरानी बुखार में - पीपल चूर्ण के साथ
कब्ज़ में - त्रिफला चूर्ण या त्रिफला क्वाथ के साथ
एसिडिटी में - आँवला चूर्ण या गिलोय सत्व के साथ
आँव वाले दस्त में - बेलगिरी चूर्ण या आमपाचक चूर्ण के साथ
बवासीर में - सुरण चूर्ण या कंकायण वटी के साथ
संग्रहणी या आई बी एस में - भुने हुवे जीरा के चूर्ण, शहद और छाछ के साथ
हृदय रोगों में - मोती पिष्टी और अर्जुन की छाल के चूर्ण के साथ
पागलपन में - सर्पगंधा चूर्ण के साथ
मृगी में - बच के चूर्ण के साथ
गैस में - भुनी हींग के साथ
पथरी में - गोक्षुर और कुल्थी के क्वाथ के साथ
धात रोग में - गिलोय के रस के साथ
स्वप्नदोष में - कबाब चीनी चूर्ण के साथ
शीघ्रपतन में - कौंच बीज चूर्ण, बाजीकरण चूर्ण या दिर्घायु चूर्ण के साथ
डायबिटीज में - गुडमार और जामुन गुठली चूर्ण के साथ
एनीमिया या खून की कमी में - लौह भस्म के साथ
ल्यूकोरिया में - तण्डूलोदक के साथ
मकरध्वज के साइड इफेक्ट्स
जेनेरली इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. बस किडनी के रोगियों को लम्बे समय तक इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए. और रोगानुसार उचित अनुपान से ही इसका सेवन करना चाहिए. किसी रोग विशेष के लिए लेना है तो स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करना चाहिए.
होम्योपैथिक दवा लेते हुए भी इसका सेवन कर सकते हैं. विटामिन्स और हेल्थ सप्लीमेंट का सेवन करते हुए भी इसका यूज़ कर सकते हैं.
अगर आपकी कोई अंग्रेज़ी दवा चलती है तो इसका सेवन अपने डॉक्टर की सलाह से ही करें.
अविपत्तिकर चूर्ण एसिडिटी और पित्त विकारों के लिए यूज़ किया जाता है, यह आप सभी जानते हैं. कई लोगों को इस से एसिडिटी में फ़ायदा नहीं होता है. फ़ायदा क्यूँ नहीं होता है? यह भी मैं बताऊंगा.
अविपत्तिकर चूर्ण का कम्पोजीशन क्या है?
इसे बनाने का तरीका क्या है?
इसका डोज़?
इसके फ़ायदे क्या हैं? क्या इसके कुछ नुकसान या साइड इफेक्ट्स भी हैं?
और यदि आपने इसका सेवन किया तो लाभ क्यूँ नहीं हुआ? इसका दूसरा विकल्प क्या है?
तो आईये इन सभी चीजों के बारे में विस्तार से जानते हैं -
अविपत्तिकर चूर्ण के घटक या कम्पोजीशन
आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली का योग है. इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है सोंठ, काली मिर्च, पीपल, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, विडनमक, वायविडंग, छोटी इलायची और तेजपात प्रत्येक एक-एक तोला, लौंग 11 तोला, निशोथ 44 तोला और मिश्री 66 तोला.
इन्ही जड़ी-बूटियों को पीसकर बनाया गया पाउडर है अविपत्तिकर चूर्ण. अनेकों ब्राण्ड का मार्केट में यह बना हुआ मिल जाता है, बेस्ट क्वालिटी वाले का लिंक दे रहा हूँ.
निशोथ को ही त्रिवृत, विधारा जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसलिए कंफ्यूज न हों, क्यूंकि कोई कम्पनी इसके कम्पोजीशन में निशोथ लिखेगी, कोई विधारा लिखेगी तो कोई त्रिवृत लिखेगी. सभी एक ही चीज़ है.
ग्रन्थ का मूल श्लोक आप पढ़ सकते हैं, जिसमे इसकी निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे में श्लोक में बताया गया है.
अविपत्तिकर चूर्ण का डोज़ यानी की मात्रा और सेवन विधि
तीन से छह ग्राम सुबह-शाम ठन्डे पानी, नारियल पानी या धारोष्ण दूध के साथ.
अविपत्तिकर चूर्ण के गुण या प्रॉपर्टीज
यह पित्त शामक है, पित्त और वात को बैलेंस करता है.
अविपत्तिकर चूर्ण के फ़ायदे
यह पैत्तिक विकारों यानी पित्त की विकृति से उत्पन्न समस्याओं को दूर करता है.
एसिडिटी, पेट दर्द, क़ब्ज़, भूख की कमी इत्यादि में इसके सेवन से लाभ होता है.
प्रमेह रोग में भी इसके सेवन से लाभ होता है. यानी यूरिनरी सिस्टम में भी इसका असर होता है.
काफ़ी मात्रा में निशोथ मिला होने से यह क़ब्ज़ को भी दूर कर देता है.
अविपत्तिकर चूर्ण के साइड इफेक्ट्स
वैसे तो यह सुरक्षित औषधि है पर कई लोगों को यह सूट नहीं करती है. कुछ लोगों को इस से पतले दस्त, पेट दर्द और डायरिया जैसी समस्या भी हो सकती है.
लॉन्ग की काफ़ी मात्रा होने से यह कुछ लोगों को सूट नहीं करती है. बच्चों को और प्रेगनेंसी में इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
शुगर, BP, अल्सरेटिव कोलाइटिस, दस्त, और Sensitive Stomach वाले लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
आपने इसका सेवन किया तो लाभ क्यूँ नहीं हुआ?
अगर आप इस यूज़ कर चुके हैं और फ़ायदा नहीं हुआ तो इसका कारण हो सकता है इसका आपको सूट नहीं करना. यदि एसिडिटी के साथ गैस भी समस्या हो तो इसमें शंख भस्म मिलाकर लेना चाहिए.
साथ में सूतशेखर रस, कपर्दक भस्म जैसी औषधि मिक्स कर उचित अनुपान से लेने से ही लाभ होता है.
इसका दूसरा विकल्प क्या है?
इसका दूसरा विकल्प है 'अम्लपित्तान्तक चूर्ण', विकल्प नहीं बल्कि इस से ज़्यादा असरदार और सभी को सूट भी करता है.
अम्लपित्तान्तक चूर्ण एसिडिटी और हाइपर एसिडिटी के लिए चीप एंड बेस्ट मेडिसिन है.
गोक्षुरादि गुग्गुल के बारे में आज कुछ ऐसी जानकारी देने वाला हूँ जिसे कोई नहीं बताएगा.
इसके गुण या प्रॉपर्टीज क्या हैं?
इसके क्या क्या फ़ायदे हैं? किन बीमारियों को यह दूर करता है?
गोक्षुरादि गुग्गुल का डोज़ क्या है? इसे कैसे यूज़ करें?
और क्या इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी है?
तो आईये इन सभी के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
गोक्षुरादि गुग्गुल
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है गोक्षुर या गोखुरू नाम की बूटी ही इसका मुख्य घटक यानि की मेन इनग्रीडेंट है.
इसके अलावा गुग्गुल और दूसरी जड़ी-बूटियाँ भी इसमें होती हैं.
गोक्षुरादि गुग्गुल के घटक या कम्पोजीशन
इसके कम्पोजीशन की बात करूँ तो आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता के अनुसार इसे गोक्षुर पँचांग, शुद्ध गुग्गुल, त्रिकटु, त्रिफला, नागरमोथा और घी या एरण्ड तेल के मिश्रण से बनाया जाता है.
यह मार्केट में कई सारे ब्राण्ड का मिल जाता है. बेस्ट क्वालिटी का होम मेड गोक्षुरादि गुग्गुल का लिंक डिस्क्रिप्शन में दे रहा हूँ, जहाँ से आप ऑनलाइन खरीद सकते हैं. आज की तारीख में 100 ग्राम का प्राइस है सिर्फ़ 430 रुपया. यदि किन्ही को गोक्षुरादि गुग्गुल किलो के रेट में चाहिए तो भी मिल जायेगा.
आयुर्वेदानुसार यह वात दोष को शांत करता है, इसमें रसायन गुण भी हैं.
गोक्षुरादि गुग्गुल का डोज़
दो गोली रोज़ दो से तीन बार तक पानी से. या गोक्षुर क्वाथ, उशिरासव या रोगानुसार उचित अनुपान से लेना चाहिए
किन बीमारियों को यह दूर करता है?
यूरिनरी सिस्टम के कोई भी रोग, यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, प्रमेह, रुक-रुक कर पेशाब होना, पथरी, पेशाब रुक जाना, महिलाओं का प्रदर रोग, पुरुषों का शुक्र रोग और वीर्य विकार, वातरक्त और मधुमेह जैसे रोगों में लाभकारी है. इस दवा का असर मूत्राशय, मूत्र नली और वीर्यवाहिनी शिराओं पर अधीक होता है.
आईये अब आसान भाषा में इसके फ़ायदे जानते हैं-
पेशाब की जलन हो, पेशाब का पीलापन हो, रुक-रुक कर पेशाब आता हो, खुलकर पेशाब नहीं होता हो, UTI हो, सुज़ाक हो, बून्द-बून्द पेशाब आता हो, पेशाब करने में बहुत तकलीफ़ होती हो,बहुत दर्द होता हो तो इसका यूज़ करना चाहिए.
यानी यह समझ लीजिये कि किसी भी वजह से पेशाब की प्रॉब्लम हो तो इसका प्रयोग करें. यह खुलकर पेशाब लाने वाली जानी-मानी दवा है.
किडनी की पत्थरी हो, ब्लैडर की पत्थरी हो, किडनी का दर्द हो, पेडू का दर्द हो, पेडू फूल जाये तो गोक्षुरादि गुग्गुल यूज़ करने की सलाह दी जाती है.
महिलाओं के प्रदर यानी लिकोरिया की समस्या हो, हैवी पीरियड होता हो तो भी दूसरी दवाओं के साथ इसका प्रयोग किया जाता है.
पुरुषों के प्रमेह रोग, धात गिरना, वीर्य विकार, स्पर्म काउंट की कमी जैसी प्रॉब्लम में भी इसका प्रयोग करने से प्रॉब्लम दूर होकर बॉडी स्ट्रोंग हो जाती है.
जोड़ों का दर्द, गठिया, अर्थराइटिस में भी इसे सहायक औषधि के रूप में प्रयोग कराया जाता है.
गोक्षुरादि गुग्गुल के साइड इफेक्ट्स
यह सुरक्षित दवा है, इसका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होता है. अगर पहले से आप कोई अंग्रेज़ी लेते हैं इसे कम से कम 30 मिनट के गैप के बाद ही यूज़ करें, या फिर अपने डॉक्टर से सलाह लेकर यूज़ करें.
होम्योपैथिक दवा लेते हुए भी इसका सेवन कर सकते हैं, यह किसी तरह का इंटरेक्शन नहीं करती.
योगराज गुग्गुल को आप जानते ही हैं, यह आयुर्वेद की बहुत ही प्रसिद्ध दवाओं में से एक है. आज मैं योगराज गुगुल के बारे में कुछ ऐसे सीक्रेट और ऐसे-ऐसे यूज़ बताने वाला हूँ जिसके अक्सर वैद्यगण छुपाते हैं. तो आईये जानते हैं कि योगराज गुग्गुल क्या है? इसका कम्पोजीशन, इसे बनाने का तरीका और गुण उपयोग के बारे में सबकुछ विस्तार से -
योगराज गुग्गुल
मतलब योगो का राजा, या दुसरे शब्दों में कहूँ तो King of the Ayurvedic Medicine
यह वाकई में किंग है राजा है, बहुत सारी बीमारीओं में आँख मूँद कर यूज़ कर सकते हैं. और लम्बे समय तक भी यूज़ कर सकते हैं, छह महिना से दो-चार साल तक लगातार यूज़ करने से भी कोई प्रॉब्लम नहीं होती बल्कि रोग समूल नष्ट होते हैं.
सबसे जानते हैं योगराज गुग्गुल के घटक या कम्पोजीशन -
इसे टोटल 28 तरह की चीज़ें मिलाकर बनाया जाता है. इसके कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है-
चित्रकमूल, पीपरामूल, अजवायन, काला जीरा, विडंग, अजमोद, सफ़ेद जीरा, देवदार, चव्य, छोटी इलायची, सेंधा नमक, कूठ, रास्ना, गोखरू, धनियाँ, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, खस, यवक्षार, तालीसपत्र और तेजपत्र प्रत्येक एक-एक तोला या 10 ग्राम. त्रिफला और गिलोय क्वाथ से शुद्ध किया हुआ शोधित गुग्गुल 270 ग्राम और थोड़ी मात्रा में देशी गाय का घी.
योगराज गुग्गुल निर्माण विधि-
सभी जड़ी-बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें, इसके बाद शोधित गुग्गुल में चूर्ण मिलाकर इमामदस्ते में डालकर चिपके नहीं इसके लिए थोड़ा-थोड़ा घी मिक्स करते हुए इतना कुटाई करें की गोली बनाने योग्य हो जाये. इसके बाद 500mg की इसकी गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही योगराज गुग्गुल है. पुरे विधि विधान से सही तरीके से शुद्ध किये गए गुग्गुल में प्रोसेस होने से इसकी गोलियां बिल्कुल काले रंग की और सोन्धी खुशबु वाली बनती हैं, जो की असरदार होती हैं. सस्ता बेचने के चक्कर में कुछ कम्पनी सही विधि से नहीं बनाती है और सही रिजल्ट भी नहीं मिलता.
दो से छह गोली रोज़ दो-तीन बार तक आप इसे ले सकते हैं, उचित अनुपान के साथ. बच्चों को कम डोज़ में लेना चाहिए, इसे बच्चे, बड़े,बूढ़े सभी लोग यूज़ कर सकते हैं.
योगराज गुग्गुल के गुण या प्रॉपर्टीज
यह वात नाशक है, वातरोग के लिए इसे सभी लोग जानते हैं. पर असल में यह सभी तरह के रोगों को दूर करता है, क्यूंकि यह त्रिदोष नाशक है. विशेस रूप से वात और आम दोष को नष्ट करता है.
योगवाही है यानी जिस भी दवा के साथ यूज़ करेंगे यह उसकी पॉवर को बढ़ा देता है. रसायन है और धातुओं का पोषण करता है.
योगराज गुग्गुल के फ़ायदे
अगर मैं सीधे तौर पर और आसान भाषा कहूँ तो आपको कोई भी रोग क्यूँ न हो, आप इसका सेवन कर सकते हैं.
इसे हर घर में होना चाहिए, घरेलु दवा के तरह आप इसे यूज़ कर सकते हैं. कहाँ, कब और कैसे इसे यूज़ कर सकते हैं यही सब आगे बताने वाला हूँ -
जोड़ों का दर्द, गठिया, आमवात, कमर दर्द जैसे रोगों के लिए इसे सभी लोग यूज़ करते हैं.
आपको अगर बदन दर्द हो जाये, मसल्स में दर्द हो जाये, थकावट हो जाये तो भी इसे गर्म पानी से ले सकते हैं.
कहीं पर इन्फ्लामेशन हो जाये, सुजन हो जाये तो योगराज गुग्गुल को गर्म पानी से लिजिए.
सर्दी-जुकाम, हो जाये, गला ख़राब हो जाये, ठण्ड लग जाये तो भी योगराज गुग्गुल का सेवन कर सकते हैं.
पेट में गैस बनती हो, गोला बनता हो तो योगराज गुग्गुल का इस्तेमाल किजिए
खाँसी हो तो भी इसे यूज़ करना चाहिए, यह अंग्रेज़ी एन्टी बायोटिक की तरह काम करती है वह भी बिना साइड इफ़ेक्ट के.
महिला पुरुष के Reproductive सिस्टम की कोई भी प्रॉब्लम हो तो इसे यूज़ कर सकते हैं. महिलाओं के पीरियड की प्रॉब्लम, पुरुषों के स्पर्म काउंट की प्रॉब्लम सभी में इसे यूज़ कर सकते हैं. किसी भी कारन से महिलाओं को बाँझपन हो तो उसमे भी यह असरदार है.
क़ब्ज़ या Constipation की समस्या हो तो यूज़ कर सकते हैं.
बवासीर, भगंदर में भी इसे यूज़ करना चाहिए.
पेट के कीड़ों को भी योगराज गुग्गुल दूर करता है.
यह बॉडी से टोक्सिंस या विषैले तत्वों को दूर करता है और शरीर को उचित पोषण भी देता है.
योगराज गुग्गुल बॉडी के एक्स्ट्रा फैट को दूर करता है, मोटापा में इसे अवश्य यूज़ करना चाहिए.
यह आपके मेटाबोलिज्म को सही करता है, इम्युनिटी को बढ़ाता है.
अगर आपके एरिया में वायरल फ्लू, वायरल बुखार चल रहा है तो इस से बचने के लिए भी योगराज गुग्गुल को गुनगुने पानी से यूज़ कर सकते हैं.
ब्रेन के लिए भी अच्छा है, यह ब्रेन के टिशुज़ को ताक़त देता है, नर्व को ताक़त देता है, मेमोरी पॉवर भी दुरुस्त करता है. इसे एक अच्छा Nervine टॉनिक भी कह सकते हैं.
दमा या अस्थमा के रोगियों को भी योगराज गुग्गुल का सेवन करना चाहिए.
बहुमूत्र या बार-बार पेशाब आने की समस्या में भी असरदार है.
यह रस-रक्तादि सभी धातुओं को पुष्टि करता है और शरीर में जमे हुए सभी दोषों को दूर कर देता है.
अब आप समझ गए होंगे कि यह कितने काम की दवा है, ऐसे ही नहीं इसे योगराज यानी योगों का राजा कहा गया है.
किसी भी रोग में, कोई भी बीमारी क्यूँ न हो आप इसे यूज़ कर सकते हैं उचित अनुपान से.
उचित अनुपान क्या है?
उचित अनुपान वह औषधि है जो उस रोग को दूर करने में सहायता करती है. जैसे पित्त विकारों में गिलोय, धनियाँ का काढ़ा, एलो वेरा जूस के साथ. कफ के रोगों में अदरक का रस, तुलसी क्वाथ के साथ. इसी तरह से वात रोगों में लेना है तो दशमूल क्वाथ, रास्ना क्वाथ के साथ.
योगराज गुग्गुल के साइड इफ़ेक्ट
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, मैंने एक साल तक रेगुलर लोगों को खिलाकर देखा है, कोई प्रॉब्लम नहीं होती है. इसे दो चार साल तक भी यूज़ कर सकते हैं. पित्त प्रकृति और बहुत गर्म तासीर के लोगों को इसे गिलोय के रस, धनियाँ क्वाथ, एलो वेरा जूस, दूध या अमृतारिष्ट इत्यादि के साथ लेना चाहिए.
बिना नमक वाला भोजन करना असंभव तो नहीं बार मुश्किल ज़रूर है. बचपन से ही हमारी ऐसी आदत डाली गयी है, इसके बिना खाना में स्वाद ही नहीं आता, टेस्ट नहीं आता है. आज लगभग 99 प्रतिशत घरों में सफ़ेद नमक ही यूज़ किया जाता है. यह सफ़ेद नमक नहीं बल्कि नमकीन ज़हर है, धीमा ज़हर.
धीमा ज़हर मैं इस लिए कह रहा हूँ यह आपको डायरेक्टली नहीं मारता है, बल्कि चुपके से बहुत-बहुत धीरे मारक बीमारी को जन्म देने में हेल्प करता है और इसे समझ नहीं पाते हैं.
यदि आप चाहते हैं कि इसकी वजह से होने वाली बीमारियों से आप बचे रहें और परिवार सुरक्षित रहे तो आज से और अभी से ही इस सफ़ेद नमक को यूज़ करना बंद कर दीजिये और सेंधा नमक कोई यूज़ कीजिये.
फ्री फ्लोइंग नमक, वाइट नमक, आयोडीन नमक सब बकवास है.
आपको जान कर हैरानी होगी कि हमारे शरीर रोज़ जितने नमक की ज़रूरत होती है वह अलग से बिना नमक खाए ही हमारे भोजन से, यानी रोटी, चावल, सब्ज़ी, फल इत्यादि से पूरी हो जाती है.
आसान शब्दों में कहूँ तो हमारे शरीर को अलग से नमक की कोई ज़रूरत नहीं होती है, और हम हैं कि भर-भर कर अलग बहुत सारी चीज़ों में नमक मिलाकर खाते रहते हैं. जिसके विपरीत प्रभाव से शरीर को नुकसान होता है और बीमारियों का जन्म होता है.
कुछ लोग सोचते हैं कि अरे भईया नमक नहीं खाऊंगा को शरीर को ताक़त नहीं मिलेगी. यह सोच बिल्कुल ग़लत है.
ग़लत कैसे है? आईये मैं आपको एक उदाहरण से समझाता हूँ -
गाय, बैल, सभी जानवर और सभी पक्षी कभी नमक खाते हैं क्या? नहीं ना
किसी जानवर या पक्षी जो जीवनभर नमक नहीं खाता है, उसे नमक नहीं खाने से कमज़ोर होते हुए देखा है क्या? अगर आपने देखा हो तो कमेंट कर ज़रूर बताईयेगा.
अब आप बोलियेगा कि मैंने शुरू में बताया कि सेंधा नमक खाओ, चूँकि आपको शुरू से नमकीन की आदत है तो अचानक से इसे बंद नहीं कर सकते हैं. और नमक बिना स्वाद नहीं आता, इस लिए स्वाद के लिए सेंधा नमक यूज़ कीजिये.
सेंधा नमक का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, इसमें कई सारे ज़रूरी मिनरल्स होते है जिस से शरीर को फ़ायदा होता है.
अब बात यह कि सफ़ेद नमक से क्या क्या नुकसान होता है?
मैं आपको फिर से कहता हूँ कि हमारे बॉडी कोई सफ़ेद नमक की कोई ज़रूरत नहीं है. जब कोई ज़रूरत ही नहीं होती और बॉडी में नमक डालते रहेंगे तो बॉडी रियेक्ट करेगी ही और इसके परिणाम स्वरुप आपको हाई ब्लड प्रेशर, स्किन डिजीज, किडनी फेलियर जैसे गंभीर रोग जन्म लेते हैं.
नमक के बारे में आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में कहा गया है -
आपातभद्रं प्रयोग समसादगुण्यात, दोषसंचयानुबन्धम||
इसका अर्थ यह है कि अल्पमात्रा में बहुत थोड़ी मात्रा में नमक प्रयोग करने से तत्काल लाभप्रद है, और अधीक मात्रा में और अधीक समय तक प्रयोग करने से यह दोषों का संचय करता है|
आज की मॉडर्न साइंस क्या कहेगी- हमारे ऋषियों में हजारों साल पहले यह बता दिया था. दोषों का संचय का सीधा मतलब है कि दोष जमा होंगे और दोष जमा होंगे तो बीमारी पैदा होगी.
आज के समय में हाई BP और किडनी डिजीज लिए इस सफ़ेद नमक का ज़्यादा इस्तेमाल इसके कारणों में से एक है.
अगर आपको हाई BP की प्रॉब्लम है, किडनी की कोई समस्या है, स्किन की कोई प्रॉब्लम है तो आज से ही सादा नमक को गुड बाय कहिये और सेंधा नमक यूज़ करना शुरू कीजिये, धीरे धीरे ही सही आपको फ़ायदा दिखेगा. कोई हेल्थ इशू नहीं भी है तो वाइट साल्ट को रिप्लेस कीजिये, स्वस्थ रहने के लिए.
आप की जानकारी के लिए मैं आपको बता देना चाहूँगा कि दुबई में रहते हुए भी मैं खाना बनाने से लेकर किसी चीज़ में ऊपर से नमक ऐड करना हो तो उसके लिए भी सेंध नमक ही यूज़ करता हूँ.
इंडिया में आपको पंसारी की दुकान से सेंधा नमक नाम से पत्थर जैसे टुकड़े मिल जायेंगे, जिसे पीसकर यूज़ कर सकते हैं.
वैसे पिंक साल्ट के नाम से पाउडर और दानेदार फॉर्म में भी मिल जाता है, जिसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है.
और अंत में यह भी बता दूँ कि आयुर्वेदिक दवाओं में सेंधा नमक ही प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है. टोटल पांच तरह के नमक आयुर्वेद में बताये गए हैं, अगर इनके बारे में भी जानकारी चाहते हैं तो कमेंट कर ज़रूर बताईयेगा.
आज मैं जिस आयुर्वेदिक औषधि की जानकारी देने वाला हूँ उसका नाम है- वातेभ केशरी रस
जी हाँ दोस्तों इसका नाम आपने शायेद ही पहले सुना हो. इसलिए मैं आपके लिए आयुर्वेद की गुप्त औषधियों की जानकारी लेकर आते रहता हूँ.
आपका ज़्यादा समय न लेते हुए आईये जानते हैं वातेभ केशरी रस गुण-उपयोग, फ़ायदे, इसका कम्पोजीशन और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से -
वातेभ केशरी रस का घटक या कम्पोजीशन
इसे बनाने के आपको चाहिए होगा शुद्ध बच्छनाग, शुद्ध सोमल, काली मिर्च, लौंग, जायफल, छुहारे की गुठली और करीर की कोंपलें प्रत्येक 10-10 ग्राम, अहिफेन और मिश्री प्रत्येक 20-20 ग्राम.
वातेभ केशरी रस निर्माण विधि
बनाने का तरीका यह है कि सभी चीज़ों का बारीक कपड़छन कर बरगद के दूध में मर्दन कर सरसों के बराबर की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस यही वातेभ केशरी रस है. यह एक गुप्त-सिद्ध योग है, कहीं भी किसी कंपनी का बना हुआ नहीं मिलता है. पुराने वैद्यगण इसका निर्माण कर यश अर्जित करते थे.
वातेभ केशरी रस की मात्रा और सेवन विधि
एक से तीन गोली तक रोज़ दो से तीन बार तक रोगानुसार उचित अनुपान के साथ देना चाहिए.
वातेभ केशरी रस फ़ायदे
यह वात और कफ़ दोष से उत्पन्न अनेकों रोगों को दूर करने में बेजोड़ है.
न्युमोनिया में इसे मिश्री के साथ देने से न्युमोनिया दूर होता है.
खाँसी और अस्थमा में इसे शहद के साथ लेना चाहिए.
मरन्नासन रोगी को इसे अकरकरा और सफ़ेद कत्था के साथ देने से रोगी की जान बच जाती है.
हिचकी रोग में मूली के बीज के क्वाथ के साथ देना चाहिए.
दस्त या लूज़ मोशन में जीरा के चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिए.
रक्त प्रदर में शहद या घी के साथ सेवन करने से समस्या दूर होती है.
नपुंसकता और शीघ्रपतन जैसे रोगों में मलाई के साथ सेवन करें.
सुज़ाक में गुलकन्द के साथ और
पॉवर-स्टैमिना बढ़ाने के लिए इसे जायफल के साथ सेवन करना चाहिए.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है चित्रक मूल और हरीतकी इसका मुख्य घटक होता है. यह अवलेह टाइप की यानी च्यवनप्राश के जैसी दवा होती है.
तो आईये सबसे पहले जानते हैं इसके फ़ायदे
आयुर्वेदानुसार पुराने और बार-बार होने वाले प्रतिश्याय या जुकाम में इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है. खांसी, कृमि रोग, गैस, वायु गोला बनना, अस्थमा, बवासीर और मन्दाग्नि जैसे रोगों में भी लाभकारी है.
विशेष रुप से दमा के रोगी को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है.
फेफड़ों की श्वासनलीयों को विस्फारित कर श्वास लेने की कठिनाई को दूर करता है.
बदलते मौसम के साथ होने वाले वायरल संक्रमण से बचाता है.
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
फेफड़ों में उपस्थित बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है.
अस्थमा के रोगियों के लिए सेवन फायदेमंद होता है.
मौसम के कारण होने वाला जुकाम, ट्यूबरक्लोसिस के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.
पुराने से पुराना नजला जुकाम दूर करता है.
पेट के कीड़े को मारता है.
पाचन तंत्र को मजबूत करता है.
पेट में होने वाली कब्ज गैस की शिकायत को दूर करता है.
आम का पाचन करता है.
अर्श या बवासीर रोग में सेवन करना फायदेमंद है.
चित्रक हरीतकी की मात्रा और सेवन विधि
5 ग्राम या एक स्पून सुबह-शाम गाय के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए. पुराने नज़ला-जुकाम में इसके साथ 'जीर्ण प्रतिश्यायहर वटी' और 'प्रतिश्यायहर योग' का इस्तेमाल करने से तेज़ी से लाभ होता है.
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, बिल्कुल सुरक्षित औषधि है.
आईये अब जान लेते हैं इसके घटक और निर्माण विधि
आयुर्वेदिक ग्रन्थ सिद्ध योग संग्रह के अनुसार इसकी निर्माण विधि कुछ इस तरह से है-
चित्रक मूल क्वाथ 4 लीटर, आँवले के रस या क्वाथ 4 लीटर, गिलोय का रस चार लीटर, दशमूल क्वाथ 5 लीटर, बड़ी हर्रे का चूर्ण 2.5 किलो, गुड़ चार किलो सभी को मिक्स कर इतना पकायें की हलवे की तरह गाढ़ा हो जाये. इसके बाद इसमें सोंठ, काली मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात और छोटी इलायची प्रत्येक 80 ग्राम और जौक्षार 20 गर्म लेकर बारीक चूर्ण बनाकर मिक्स कर रख लें. अब दुसरे दिन इसमें 320 ग्राम शहद और 640 ग्राम शहद मिक्स कर अच्छी तरह से मिलाकर काँच के बर्तन में रख लें. बस यही चित्रक हरीतकी है.
आज वैद्यजी की डायरी में बताने वाला हूँ अपेंडिक्स के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जिस से आप बिना ऑपरेशन के इस बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं.
दोस्तों, आपने अक्सर सुना होगा कि फलां आदमी को अपेंडिक्स हो गया और इसका ऑपरेशन कराना पड़ा.
अगर आपको गैस की वजह से भी पेट दर्द है तो कई धूर्त सर्जन लोग पैसा बनाने के चक्कर में मरीज़ को डराकर ऑपरेशन कर देते हैं. जबकि गैस की वजह से होने वाला दर्द ऑपरेशन के बाद भी बना रहता है.
यदि आपने इस तरह की परेशानी झेली है या आपके जानने वाले के साथ ऐसा कुछ हुआ है तो कमेन्ट कर ज़रुर बताईयेगा.
अपेंडिक्स क्या है?
सभी के शरीर में यह होता है जो बड़ी आंत के निचे दाहिनी साइड अँगुली के जैसी लम्बी एक छोटी से पूंछ होती है जो अन्दर से खोखली होती जिसकी लम्बाई दो से चार इंच होती है. इसकी औसत लम्बाई 3.5 इंच होती है.
आंत के साथ पूंछ के जैसा जुड़ा होने से इसे 'आंत्रपुच्छ' कहा जाता है आयुर्वेद में. इसे ही अंगेज़ी में Appendix कहा जाता है.
शरीर में इस अंग का क्या काम है, मेडिकल साइंस अब तक पता नहीं लगा पाया है.
जब किसी वजह से इस अंग में यानी में अपेंडिक्स में सुजन हो जाये तभी इसकी जगह पर पेट में दर्द होता है और तब इसे Appendicitis कहा जाता है. इस स्थिति को आयुर्वेद में आंत्रपुच्छ शोथ, आंत्रपुच्छ प्रदाह, उन्दुकपुच्छशोथ, उपान्त्रशोथ जैसे नामों से जाना जाता है.
तो अब आप समझ गए होंगे कि अपेंडिक्स यानी आंत्रपुच्छ और Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ प्रदाह में क्या अन्तर होता है.
आम बोलचाल में लोग Appendicitis को ही अपेंडिक्स बोल देते हैं.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ के कारण
इसमें सुजन और संक्रमण होना ही मुख्य कारन है, कई लोगों का मानना है कि निम्बू, संतरा के साबुत बीज या भोजन का कोई अंश जब बड़ी बड़ी आंत से इसमें चला जाता है तब सड़कर वहां रोग की उत्त्पत्ति करता है.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ के लक्षण या Symptoms
इसके लक्षणों की बात करुँ तो यह दर्द वाली बीमारी है. पेट में बहुत तेज़, न सहने वाला दर्द होना ही इसका प्रधान लक्षण होता है. पहले पेट के उपरी हिस्से या नाभि के एरिया में दर्द उठता है इसके बाद निचे दाहिने तरफ़ जाकर दर्द स्थिर हो जाता है. तेज़ दर्द के बाद उल्टी और बुखार जैसे लक्षण भी पाये जाते हैं.
सोनोग्राफी से इस रोग का सटीक निदान हो जाता है, वैसे अनुभवी वैद्यगण रोगी का पेट चेक कर भी बता देते हैं.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ का आयुर्वेदिक उपचार
मैं आपको बता देना चाहूँगा कि अगर समस्या बहुत बढ़ी नहीं हो रोग की शुरुआत ही हो तो आयुर्वेदिक उपचार से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है. सिर्फ़ इमरजेंसी में ही इसका ऑपरेशन करवाना चाहिए.
Appendicitis के आयुर्वेदिक उपचार के लिए मैं आपको अनुभवी वैद्यों की सफ़ल चिकित्सा का निचोड़ बता रहा हूँ जो इस बीमारी में शत प्रतिशत सफल है-
Appendicitis के लिए आयुर्वेदिक व्यवस्था
1) शंख वटी दो-दो गोली खाना के बाद गर्म पानी से
2) आंत्रपुच्छ शोथहर योग एक-एक पुड़िया सुबह-शाम शहद से
3) कुमार्यासव 2 स्पून + पुनर्नवारिष्ट 2 + 4 स्पून पानी मिक्स कर सुबह-शाम खाना के बाद
4) उदरशोथारी लेप - दर्द वाली जगह पर रोज़ दो-तीन बार लेप करने के लिए
5) सुगम चूर्ण या पंचसकार चूर्ण रात में सोने से पहले गर्म पानी से
आंत्रपुच्छ शोथहर योग और उदरशोथारी लेप अनुभूत योग है जो बना हुआ आपको मार्केट से नहीं मिलेगा. इन दोना का नुस्खा आपको बता रहा हूँ -
आंत्रपुच्छ शोथहर योग
अग्नितुंडी वटी 20 ग्राम + शुल्वार्जिनी वटी 20 ग्राम + पुनर्नवादि मंडूर 20 ग्राम लेकर पीसकर वरुनादि क्वाथ और घृतकुमारी की एक-एक भावना देकर सुखा कर रख लिया जाता है.
उदरशोथारी लेप
इसे बनाए के लिए चाहिए होता है - दशांग लेप 100 ग्राम + शुद्ध कुचला चूर्ण 10 ग्राम + आमा हल्दी चूर्ण 10 ग्राम. सभी को मिक्स कर रख लें.
इसकी प्रयोग विधि
दो स्पून इस चूर्ण को लेकर स्टील के बर्तन के डालकर इतना पानी मिक्स करें की पेस्ट जैसा हो जाये फिर इसको चूल्हे पर रखकर हलवे के जैसा उबाल कर पका लेना है. इसके बाद सुहाता-सुहाता दर्द वाली जगह पर लेप कर देना है. लेप करने के एक घंटे के बाद जब लेप सुख जाये तो हलके से लेप को छुड़ाकर उस जगह पर कोई तेल क्रीम या विषगर्भ तेल लगा लेना चाहिए.
यह दोनों योग बनाने में यदि किसी कोई समस्या हो तो आप मुझे मेसेज किजिए, मैं उपलब्ध करा दूंगा.
वैद्य जी की डायरी में आज जो प्रयोग मैं बताया हूँ इसे आप वैद्यगण आंत्रपुच्छ शोथ के अलावा बड़ी आंत की सुजन, लिवर-स्प्लीन की सुजन और अग्नाशयशोथ इत्यादि में भी प्रयोग कर सकते हैं.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है शक्ति या ताक़त देने वाली, चंद्रोदय सिद्ध मकरध्वज का ही दूसरा नाम है, वटी का मतलब गोली या टेबलेट
पिछली सदी से इसका काफ़ी यूज़ किया जा रहा है. मेरे आयुर्वेद के गुरु जी जो सौ साल की उम्र तक जिये वह भी इसे यूज़ करते थे और कमज़ोरी वाले सभी मरीज़ों को इसे खुद बनाकर देते थे.
शक्ति चन्द्रोदय वटी क्या है?
शक्ति चन्द्रोदय वटी अपने आप में एक बड़ा ही यूनिक फार्मूलेशन है जिसे पुराने वैद्य लोग बनाकर यूज़ करवाते थे, आज के टाइम में इसे इक्का-दुक्का कंपनी ही बनाती है. मार्केटिंग के इस ज़माने में कम्पनियां ज़्यादा प्रॉफिट वाले प्रोडक्ट ही बनाती है.
शक्ति चन्द्रोदय वटी के घटक या कम्पोजीशन
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे सिद्ध मकरध्वज, शुद्ध विषबीज, त्रिफला और शुद्ध विजया के मिश्रण से बनाया जाता है.
इसे कौन-कौन लोग यूज़ कर सकते हैं?
इसे 18 साल से की उम्र से लेकर 100 साल तक की उम्र के सभी लोग यूज़ कर सकते हैं. सिर्फ़ हाइपर एसिडिटी और हाई BP वाले लोगों को वैद्य जी की सलाह से ही इसे लेना चाहिए.
इसे कैसे यूज़ करें?
दो-दो गोली सुबह-शाम दूध या पानी से भोजन के लेना चाहिए
इसके क्या-क्या फायदे हैं?
शक्ति चन्द्रोदय वटी के फ़ायदे की बात करूँ तो इन रोगों में यूज़ करना चाहिए जैसे-
प्रमेह, स्वप्नदोष, धातु स्राव, हस्तमैथुन के कारण होने वाली कमज़ोरी, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, मानसिक नपुंसकता, स्नायुविक दुर्बलता यानी नर्वस Weakness, वृद्धावस्था जन्य दुर्बलता यानी बुढ़ापे की कमज़ोरी, मधुमेह जन्य दुर्बलता यानी डायबिटीज की वजह से होने वाली कमजोरी, लो BP की वजह से होने वाली कमज़ोरी, किसी भी बीमारी के बाद होने वाली कमजोरी, जनरल Weakness, सर दर्द, कमर दर्द, सर्दी-जुकाम और पाचन की कमजोरी इत्यादि.
आसान भाषा में कहूँ तो अगर आपको किसी भी तरह की मर्दाना कमज़ोरी है, धात की प्रॉब्लम है, टाइमिंग की प्रॉब्लम है, मास्टरबेशन की वजह से हुयी कमज़ोरी है तो इसका यूज़ कर सकते हैं.
ज़्यादा उम्र के लोग और शुगर के पेशेन्ट भी इसका इस्तेमाल कर कमज़ोरी दूर कर सकते हैं.
शक्ति चन्द्रोदय वटी का कोई नुकसान भी है?
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. इसकी इसकी तासीर थोड़ी गर्म होती है तो अगर आप पित्त प्रकृति के या गर्म तासीर के हैं, हाई BP है और बदन में गर्मी की ज़्यादा प्रॉब्लम है तो इसे गिलोय सत्व के साथ, किसी ठंडी तासीर की चीज़ के साथ या फिर वैद्य जी की सलाह से ही इसका इस्तेमाल करें.
इसे लगातार तीन महिना या ज़्यादा टाइम तक भी यूज़ कर सकते हैं.
यह एक क्लासिक आयुर्वेदिक मेडिसिन है जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है-
चन्द्रप्रभा वटी
चन्द्र का मतलब है चाँद और प्रभा का मतलब होता है चमक या ग्लो यानी मून ग्लो लाइट और वटी का मतलब होता है गोली या टेबलेट
शारंगधर संहिता और भैषज्य रत्नावली नाम की आयुर्वेदिक ग्रन्थ में इसका वर्णन मिलता है.
सबसे पहले जानते हैं इसके टॉप 10 बेनेफिट्स आसान भषा में और इसके बाद जानेंगे कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके क्या क्या फ़ायदे बताये गए हैं.
1) Urinary tract health
पेशाब की बीमारियों के लिए यह काफी पोपुलर है, यह न सिर्फ यूरिनरी सिस्टम को हेल्दी बनाती है बल्कि बार-बार पेशाब आना, पेशाब की जलन और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन जैसी समस्या को दूर करती है.
2) Kidney Function
किडनी या गुर्दे को हेल्दी रखने में यह असरदार है. शरीर की गन्दगी को बाहर निकालती और किडनी फंक्शन को दुरुस्त रखती है.
3) Bladder Support
यह हर्बल फॉर्मूलेशन मूत्राशय के स्वास्थ्य को बनाए रखने और मूत्राशय से संबंधित समस्याओं को कम करने में सहायता करता है.
4) Reproductive Health
चंद्रप्रभा वटी का उपयोग अक्सर पुरुषों और महिलाओं दोनों में प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है. यह लेडीज के पीरियड साइकिल को सुचारू करती है और पीरियड रिलेटेड प्रोब्लेम्स को दूर करने में मदद करती है. जबकि पुरुषों के वीर्य विकार, नाईट फॉल, धत गिरना जैसी समस्या को दूर करने में सहायक है.
5) Prostate Health
प्रोस्टेट ग्लैंड से जुड़ी सभी समस्याओं के लिए काफी पॉपुलर है, प्रोस्टेट को स्वस्थ रखने में यह असरदार है. बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्लैंड को नार्मल करने के लिए इसका यूज़ करना ही चाहिए.
6) Digestive Support
ऐसा माना जाता है कि यह पाचन में सहायता करती है. चंद्रप्रभा वटी पाचन संबंधी परेशानी को दूर करने और उचित पोषक तत्व अवशोषण में सहायता कर सकती है.
7) Joint Health
इस हर्बल फॉर्मूलेशन का उपयोग अक्सर जॉइंट हेल्थ को सपोर्ट करने और जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने के लिए किया जाता है.
8) Energy And Vitality
माना जाता है कि चंद्रप्रभा वटी ऊर्जा के स्तर को बढ़ाती है और समग्र जीवनी शक्ति को बढ़ावा देती है.
9) Blood Sugar Balance
हेल्दी ब्लड शुगर लेवल बनाये रखने में भी चन्द्रप्रभा वटी सहायक है. इसलिए इसे डायबिटीज के मरीज़ भी यूज़ कर सकते हैं.
10) Detoxification
यह बॉडी से Toxins और अपशिष्ट पदार्थों को निकालती है यानी कि Detoxifying में मदद करती है.
तो यह थे चंद्रप्रभा वटी के टॉप 10 फ़ायदे.
आयुर्वेद में इसके क्या क्या फ़ायदे बताये गए हैं?
यह वात, पित्त और कफ़ तीनों दोषों को बैलेंस करती है तो यह हर तरह की सभी बीमारियों में असरदार है. आयुर्वेद में इसे योगवाही भी कहा गया है. योगवाही का मतलब यह होता है कि इसे किसी भी दवा या चीज़ के साथ मिलाकर खाने से यह उस चीज़ का पॉवर बढ़ा देती है.
शारंगधर संहिता के मूल श्लोक को यदि आप पढ़ें तो यह इन सब बीमारियों को दूर करती है -
प्रमेह यानी मधुमेह या डायबिटीज
पेशाब की तकलीफ, पेशाब का इन्फेक्शन, पेशाब की रुकावट, कब्ज़, गैस-पेट फूलना, पेट दर्द, ट्यूमर, Fibroid, सिस्ट, कैंसर, हर्निया, एनीमिया, जौंडिस, लिवर सिरोसिस, कमर दर्द, दमा या अस्थमा, सर्दी जुकाम, एक्जिमा, बवासीर, खुजली, तिल्ली बढ़ना, फिशर, दांत की बीमारी, आँख की बीमारी, महिलाओं की पीरियड प्रॉब्लम, पुरुषों का वीर्य विकार, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, धात, कमजोरी, प्रोस्टेट, पाचन शक्ति की कमजोरी और अरुचि यानी खाने की इच्छा नहीं होना इत्यादि.
वैद्यगण इसे किडनी स्टोन, किडनी फेलियर, Chronic Kidney Disorder, Proteinurea, GFR और fallopian tube की ब्लॉकेज इत्यादि में भी इसका यूज़ करवाते हैं.
इसे कब और कितना यूज़ करें?
इसे आप रोज़ दो से 6 गोली तक यूज़ कर सकते हैं. आपकी प्रॉब्लम और बॉडी कंडीशन के अनुसार ही इसका डोज़ लेना चाहिए. इसका नार्मल डोज़ दो गोली सुबह-शाम है. इसे लम्बे समय तक भी यूज़ कर सकते हैं. प्रोस्टेट जैसी समस्या में इसे कम से कम 6 महीने तक भी लेना पड़ सकता है.
अंग्रेज़ी दवा ले रहे हैं तो इसका यूज़ कर सकते हैं?
हाँ बिल्कुल इसका यूज़ कर सकते हैं, अंग्रेजी दवा और इसके बीच में कम से कम 30 मिनट का गैप रखें.
क्या होम्योपैथिक दवा लेते हुए इसका यूज़ कर सकते हैं?
हाँ, बिल्कुल यूज़ कर सकते हैं. होमियो दवा के साथ यह किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं करती है.
हमेशा इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए. कम डोज़ लेने से वांछित लाभ नहीं मिलेगा और ज़्यादा डोज़ होने से पेट अपसेट भी हो सकता है.
चन्द्रप्रभा वटी के साइड इफेक्ट्स
यह ऐसी हर्बल दवा है जो सदियों से यूज़ की जा रही है जो पूरी तरह से सुरक्षित है और इसका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है. इसमें गुग्गुल, शिलाजीत, लौह भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म जैसी चीज़ मिली होती है, यदि आपको इनमे से किसी चीज़ एलर्जी है तो इसका ध्यान रखते हुए यूज़ करना चाहिए.
आवश्यक मात्रा से ज़्यादा डोज़ लेने से पेट की गड़बड़ी हो सकती है.
सबसे बेस्ट चन्द्रप्रभा वटी कौन सी है?
चूँकि मुझे यह दवा बनाने का काफ़ी अनुभव रहा है तो मैं कह सकता हूँ कि जो दिखने में पूरी तरह से काली टेबलेट हो तो वह बेस्ट है. बेस्ट वाली चन्द्रप्रभा वटी के 50 ग्राम के पैक की क़ीमत है 275 रुपया आज की तारीख में, जिसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक डिस्क्रिप्शन में दिया गया है.
और अब अंत में जान लेते हैं चन्द्रप्रभा वटी के घटक यानि कम्पोजीशन और निर्माण विधि के बारे में -
निशोथ, दन्तिमूल, तेज़पात, दालचीनी, बड़ी इलायची, और बंशलोचन प्रत्येक 20-20 ग्राम
लौह भस्म 40 ग्राम, मिश्री 80 ग्राम, शुद्ध शिलाजीत और शुद्ध गुगुल प्रत्येक 160 ग्राम.
सभी जड़ी बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें और गुगुल को इमामदस्ते में कूटें जब गुगुल नर्म हो जाये तो शिलाजीत, भस्म और जड़ी-बूटियों का चूर्ण मिला कर गिलोय के रस में तिन दिनों तक खरल में डाल कर मर्दन करना चाहिए. और इसके बाद 500 मिलीग्राम की गोलियां बना कर सुखा कर रख लें.
चन्द्रप्रभा वटी के बारे में कुछ और जानना चाहते हैं तो कमेंट कर पूछ सकते हैं.
अगर आपकी हड्डियों में दर्द रहता है तो यह पता करना बहुत ज़रूरी है कि यह किस कारण से है. क्यूंकि हड्डियों में दर्द कई कारणों से हो सकता है, जिसमें अर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसे कारण शामिल हैं लेकिन आज भी बहुत कम लोग एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) के बारे में जानते हैं.
क्या है एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular-Necrosis)?
एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) हड्डियों में होने वाली ही एक समस्या है जिसमें बोन टिशू यानी हड्डियों के ऊतक मरने लगते हैं. सीधी भाषा में कहा जाए तो हड्डियां गलने लगती हैं। यह बीमारी होने का कारण रक्त प्रवाह में बाधा होने के कारण टिशू तक पर्याप्त मात्रा में खून का नहीं पहुंच पाना है। और यदि किसी भी ऊतक को खून उचित मात्रा में नहीं मिलेगा तो वहाँ पोषण की कमी होगी जिसके चलते ये ऊतक मरने लगते हैं। इस बीमारी को ऑस्टियोनेक्रोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सबसे अधिक यह समस्या कूल्हे की हड्डी में होती है जिसके कारण फेमर का गोल हिस्सा जो कूल्हे का जोड़ बनता है वो गलने लगता है। वैसे तो ये समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन मुख्य तौर पर 30 से 60 वर्ष के बीच के आयु वर्ग वाले लोग इससे ज्यादा पीड़ित होते है।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के कारण
शराब व तम्बाकू का बहुत अधिक सेवन एवीएन के पीछे के सबसे बड़े कारण के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए सबसे जरुरी है की आप इन चीज़ों के सेवन से दुरी बनाये रखें। क्योंकि शराब व तम्बाकू से शरीर में बहुत सी वसा की छोटी छोटी बूंदें इधर से उधर बहती रहती हैं और समय के साथ ये छोटी रक्त वाहिनियों में जमा हो कर रक्त के प्रवाह को बंद कर देती हैं। और पोषण ना मिलने से आपकी हड्डियां या जोड़ गलने लगते हैं।
इसके अलावा एवीएन का दुसरा बड़ा कारण है स्टेरॉइड्स का अनियंत्रित व गलत इस्तेमाल। वजन बढ़ने, कम करने के लिए या फिर कद बढ़ने के लिए आज कल बहुत से उत्पादों में बहुत अधिक मात्रा में बिना बताये स्टेरॉइड्स मिला दिए जाते हैं। स्टेरॉइड्स के इसी गलत इस्तेमाल से हड्डियों पर गलत प्रभाव पड़ता है और हड्डियां गलने लगती हैं।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लक्षण या Symptoms
अगर इस समस्या के लक्षणों की बात की जाए तो ये जरूरी नहीं कि व्यक्ति के अंदर शुरुआती दौर में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें। ज़्यादातर स्थिति अधिक खराब होने पर इसके लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि हड्डी एक साथ गलने की बजाय धीरे धीरे गलती है। एक सीमा तक तो शरीर दर्द व अन्य लक्षणों को सहन करता है। लेकिन जब हड्डी एक सीमा से अधिक खराब हो जाती है तो अचानक सभी लक्षण एक साथ आने लगते हैं।
अगर ये समस्या आपके कूल्हे से जुड़ी हुई है तो उस स्थिति में आपके जांघ और कूल्हे की हड्डियों में भयंकर दर्द होता है। चलने में लचक होने लगती है, सोते जागते लगातार दर्द बना रहता है। कूल्हे के अलावा ये बीमारी आपके कंधे, घुटने, हाथ और पैरों को भी प्रभावित कर सकती है। इनमें से किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देने और जोड़ों में लगातार दर्द रहने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
एवैस्कुलर नेक्रोसिस का आयुर्वेदिक उपचार
यदि आप AVN की समस्या से जूझ रहें हैं और जोड़ बदलवाने की समस्या का कोई विकल्प ढूंढ रहे हैं तो आयुर्वेद आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, क्यूंकि आयुर्वेद के उपचार द्वारा हड्डी को जाने वाली ब्लड सप्लाई को सुनिश्चित किया जा सकता है इसलिए न केवल हड्डी का गलना रुक जाता है बल्कि जो नए और आरंभिक केस होते हैं वहाँ पर व्याधि के रुकने के साथ साथ हड्डी के उत्तक दुबारा भी बनने लगते हैं। यानी की एवीएन के ग्रेड में भी सुधार होता है।
संक्षेपतः क्रिया योगो
निदान परिवर्जनम।।
का ध्यान रखते हुए सबसे पहले रोग के कारणों का त्याग करना होगा, परहेज़ करना होगा.
AVN की आयुर्वेदिक औषधि व्यवस्था
यहाँ मैं एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लिए कुछ आयुर्वेदिक योग बता रहा हूँ जिसे वैद्यगण अपने रोगीयों पर प्रयोग कर यश अर्जित कर सकते हैं -
व्यवस्था पत्र -1
1) वृहत वातचिन्तामणि रस 1 ग्राम + नवरत्न कल्पामृत रस 3 ग्राम + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 10 ग्राम + गिलोय सत्व 10 ग्राम. सभी को खरल कर 60 पुड़िया बना लें. एक-एक पुडिया रोज़ तीन बार शहद से लेना है.
2) चन्द्रप्रभा वटी 2 गोली+ योगराज गुग्गुल 2 गोली + शिलाजित्वादि वटी 2 गोली मिलाकर रोज़ तीन बार गुनगुने पानी से
3) अश्वगन्धारिष्ट 2 स्पून + दशमूलारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद रोज़ दो बार
व्यवस्था पत्र -2
1) योगेन्द्र रस 125 mg + शिलाजित्वादि लौह 125 mg + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 250 mg + गिलोय सत्व 250 mg + असगंध चूर्ण 1 ग्राम = 1 मात्रा, यह एक डोज़ है, ऐसी एक-एक डोज़ डेली 3 बार शहद से.
2) योगराज गुग्गुल 2-2 गोली रोज़ दो बार गुनगुने पानी से
3) दशमूलारिष्ट 2 स्पून + अश्वगंधारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद
इन सब के साथ में जीवन्त्यादि घृत, स्वर्ण बसन्त मालती, रुदन्ति कैप्सूल जैसी औषधि भी रोग और रोगी की दशा के अनुसार ऐड करना चाहिए.
तो इस तरह से औषधि सेवन से इस रोग में लाभ हो जाता है, समस्या बढ़ी हुयी हो तो पंचकर्मा भी आवश्यक होता है.
अपने प्रिय पाठकों को बताना चाहूँगा कि यह सब दवा खुद से यूज़ न करें, स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही सेवन करें. ख़ुद से यूज़ करने के लिए आप मेरा अनुभूत योग बाजीकरण चूर्ण और वातरोगहर वटी गोल्ड का सेवन कर सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है.
हरताल तेज़ी से असर करने वाली औषधि है जिसे हरिताल भी कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे Arsenic Tri Oxide के नाम से जाना जाता है.
हरताल तो तरह का होता है. पिण्ड हरताल और तबकिया हरताल
तबकिया हरताल को पत्र हरताल और वर्कि हरताल जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसे कहीं-कहीं हड़ताल भी कहा जाता है.
इससे मिलते जुलते नाम वाली दवा गोदन्ती हरताल या हरताल गोदन्ती अलग चीज़ है. हरताल गोदन्ती सफ़ेद रंग की होती है जबकि यह वाली हरताल या तबकिया हरताल पिली सुनहरे रंग की होती है.
हरताल भस्म जो है गठिया, कुष्ठ, सिफलिस, हर्प्स, चर्मरोग जैसे अनेकों रोगों को दूर करती है.
हरताल भस्म निर्माण विधि
इसकी भस्म बनाकर ही प्रयोग किया जाता है, ऐसे यह ज़हरीली होती है. भस्म बनाने के लिए सोने के जैसी पिली, भरी, चमकदार और छोटे-छोटे साइज़ वाली वर्कि हरताल ही बेस्ट होती है. भस्म बनाने से पहले इसका शोधन करना होता है.
हरताल शोधन विधि
हरताल को शोधित करने के लिए सबसे पहले इसे चने के साइज़ के छोटे-छोटे टुकड़े कर मोटे सूती कपड़े में बांधकर मिट्टी की हांडी में पेठे का रस डालने के बाद इसे उसमे लटकाकर मतलब डुबाये हुए छह घंटा तक पकाया जाता है. ऐसे अरेंजमेंट को ही आयुर्वेद में 'दोला यंत्र' कहा जाता है. इसके बाद इसे निकालकर काँच के बर्तन में रखकर, इसमें इतना निम्बू कर रस डाला जाता है की यह डूब जाये. इसी तरह से रोज़ निम्बू का रस बदला जाता है सात दिनों तक. इसके बाद हरताल के टुकड़ों को पानी से धोकर सुखा लिया जाता है. तो इस तरह से हरताल शुद्ध हो जाता है. यह शोधन विधि 'सिद्ध योग संग्रह' में बतायी गयी है.
हरताल भस्म निर्माण विधि
जैसा कि आप सभी जानते हैं भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया है. हरताल की भस्म बनाने से पहले शोधित हरताल को पलाश के जड़ के क्वाथ की तीन भावना देनी होती है. इसके लिए पलाश के जड़ का क्वाथ शहद के इतना गाढ़ा बनाना होता है.
पलाश के जड़ की तीन भावना देने के बाद इसकी टिकिया या गोला बनाकर मिट्टी के छोटे बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर सुखाकर गोबर के कन्डो की अग्नि दी जाती है. इसी तरह से 12 पुट अग्नि देने यानि बारह बार अग्नि देने से हरताल भस्म तैयार हो जाती है.
वैसे यह बना बनाया मार्किट में मिल जाता है, इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है.
30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम तक शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान से. इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करें नहीं तो सीरियस नुकसान हो सकता है.
हरताल भस्म के गुण
यह तासीर में बहुत गर्म होती है. यह कटु एवम अग्नि-दीपक होती है. कफ़ और पित्त दोष को बैलेंस करती है.
हरताल भस्म के फ़ायदे
यह वातरक्त, वातरोग, कुष्ठ व्याधि, उपदंश यानि गर्मी की बीमारी, चर्म रोग, मलेरिया, उर्ध्वश्वास, मृगी, सन्निपात, भगंदर जैसे रोगों का नाश करती है.
आईये अब आसान भाषा में जानते हैं कि किन-किन बीमारीओं में इसका सेवन करना चाहिए -
वातरक्त और वात रोगों में
जब रोगी शरीर हिला भी न सके, शरीर जकड गया हो, हाथ-पैर की ऊँगली टेढ़ी हो गयी हो, हड्डियाँ मूड़ गयी हों, हड्डी में दर्द, नसों में खिंचाव हो, जोड़-जोड़ जकड़ गया हो, शून्यता आ गयी हो, यानी की छूने पर सेन्स नहीं होता हो, स्किन फटी-फटी हो, सुजन हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इसके सेवन से लाभ होता है.
ऐसे रोगी को घी के साथ इसका सेवन करना चाहिए और ऊपर से ताज़ी गिलोय का रस पीना चाहिए.
सिफलिस के नए पुराने सभी स्टेज में इसके सेवन से लाभ होता है.
कुष्ठ रोग में भी विधि पूर्वक इसका सेवन कराया जाता है.
अपस्मार यानि मृगी के रोग में वैद्यगण इसे ब्रह्मी के साथ सेवन करवाते हैं.
एक बार मैं फिर से आपको बता दूँ कि इस कभी भी खुद से यूज़ न करें, वैद्य जी देख रेख में उनकी सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए.