चित्रक हरीतकी
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है चित्रक मूल और हरीतकी इसका मुख्य घटक होता है. यह अवलेह टाइप की यानी च्यवनप्राश के जैसी दवा होती है.
तो आईये सबसे पहले जानते हैं इसके फ़ायदे
आयुर्वेदानुसार पुराने और बार-बार होने वाले प्रतिश्याय या जुकाम में इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है. खांसी, कृमि रोग, गैस, वायु गोला बनना, अस्थमा, बवासीर और मन्दाग्नि जैसे रोगों में भी लाभकारी है.
विशेष रुप से दमा के रोगी को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है.
फेफड़ों की श्वासनलीयों को विस्फारित कर श्वास लेने की कठिनाई को दूर करता है.
बदलते मौसम के साथ होने वाले वायरल संक्रमण से बचाता है.
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
फेफड़ों में उपस्थित बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है.
अस्थमा के रोगियों के लिए सेवन फायदेमंद होता है.
मौसम के कारण होने वाला जुकाम, ट्यूबरक्लोसिस के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.
पुराने से पुराना नजला जुकाम दूर करता है.
पेट के कीड़े को मारता है.
पाचन तंत्र को मजबूत करता है.
पेट में होने वाली कब्ज गैस की शिकायत को दूर करता है.
आम का पाचन करता है.
अर्श या बवासीर रोग में सेवन करना फायदेमंद है.
चित्रक हरीतकी की मात्रा और सेवन विधि
5 ग्राम या एक स्पून सुबह-शाम गाय के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए. पुराने नज़ला-जुकाम में इसके साथ 'जीर्ण प्रतिश्यायहर वटी' और 'प्रतिश्यायहर योग' का इस्तेमाल करने से तेज़ी से लाभ होता है.
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, बिल्कुल सुरक्षित औषधि है.
आईये अब जान लेते हैं इसके घटक और निर्माण विधि
आयुर्वेदिक ग्रन्थ सिद्ध योग संग्रह के अनुसार इसकी निर्माण विधि कुछ इस तरह से है-
चित्रक मूल क्वाथ 4 लीटर, आँवले के रस या क्वाथ 4 लीटर, गिलोय का रस चार लीटर, दशमूल क्वाथ 5 लीटर, बड़ी हर्रे का चूर्ण 2.5 किलो, गुड़ चार किलो सभी को मिक्स कर इतना पकायें की हलवे की तरह गाढ़ा हो जाये. इसके बाद इसमें सोंठ, काली मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात और छोटी इलायची प्रत्येक 80 ग्राम और जौक्षार 20 गर्म लेकर बारीक चूर्ण बनाकर मिक्स कर रख लें. अब दुसरे दिन इसमें 320 ग्राम शहद और 640 ग्राम शहद मिक्स कर अच्छी तरह से मिलाकर काँच के बर्तन में रख लें. बस यही चित्रक हरीतकी है.