अगर आपकी हड्डियों में दर्द रहता है तो यह पता करना बहुत ज़रूरी है कि यह किस कारण से है. क्यूंकि हड्डियों में दर्द कई कारणों से हो सकता है, जिसमें अर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसे कारण शामिल हैं लेकिन आज भी बहुत कम लोग एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) के बारे में जानते हैं.
क्या है एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular-Necrosis)?
एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) हड्डियों में होने वाली ही एक समस्या है जिसमें बोन टिशू यानी हड्डियों के ऊतक मरने लगते हैं. सीधी भाषा में कहा जाए तो हड्डियां गलने लगती हैं। यह बीमारी होने का कारण रक्त प्रवाह में बाधा होने के कारण टिशू तक पर्याप्त मात्रा में खून का नहीं पहुंच पाना है। और यदि किसी भी ऊतक को खून उचित मात्रा में नहीं मिलेगा तो वहाँ पोषण की कमी होगी जिसके चलते ये ऊतक मरने लगते हैं। इस बीमारी को ऑस्टियोनेक्रोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सबसे अधिक यह समस्या कूल्हे की हड्डी में होती है जिसके कारण फेमर का गोल हिस्सा जो कूल्हे का जोड़ बनता है वो गलने लगता है। वैसे तो ये समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन मुख्य तौर पर 30 से 60 वर्ष के बीच के आयु वर्ग वाले लोग इससे ज्यादा पीड़ित होते है।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के कारण
शराब व तम्बाकू का बहुत अधिक सेवन एवीएन के पीछे के सबसे बड़े कारण के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए सबसे जरुरी है की आप इन चीज़ों के सेवन से दुरी बनाये रखें। क्योंकि शराब व तम्बाकू से शरीर में बहुत सी वसा की छोटी छोटी बूंदें इधर से उधर बहती रहती हैं और समय के साथ ये छोटी रक्त वाहिनियों में जमा हो कर रक्त के प्रवाह को बंद कर देती हैं। और पोषण ना मिलने से आपकी हड्डियां या जोड़ गलने लगते हैं।
इसके अलावा एवीएन का दुसरा बड़ा कारण है स्टेरॉइड्स का अनियंत्रित व गलत इस्तेमाल। वजन बढ़ने, कम करने के लिए या फिर कद बढ़ने के लिए आज कल बहुत से उत्पादों में बहुत अधिक मात्रा में बिना बताये स्टेरॉइड्स मिला दिए जाते हैं। स्टेरॉइड्स के इसी गलत इस्तेमाल से हड्डियों पर गलत प्रभाव पड़ता है और हड्डियां गलने लगती हैं।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लक्षण या Symptoms
अगर इस समस्या के लक्षणों की बात की जाए तो ये जरूरी नहीं कि व्यक्ति के अंदर शुरुआती दौर में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें। ज़्यादातर स्थिति अधिक खराब होने पर इसके लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि हड्डी एक साथ गलने की बजाय धीरे धीरे गलती है। एक सीमा तक तो शरीर दर्द व अन्य लक्षणों को सहन करता है। लेकिन जब हड्डी एक सीमा से अधिक खराब हो जाती है तो अचानक सभी लक्षण एक साथ आने लगते हैं।
अगर ये समस्या आपके कूल्हे से जुड़ी हुई है तो उस स्थिति में आपके जांघ और कूल्हे की हड्डियों में भयंकर दर्द होता है। चलने में लचक होने लगती है, सोते जागते लगातार दर्द बना रहता है। कूल्हे के अलावा ये बीमारी आपके कंधे, घुटने, हाथ और पैरों को भी प्रभावित कर सकती है। इनमें से किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देने और जोड़ों में लगातार दर्द रहने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
एवैस्कुलर नेक्रोसिस का आयुर्वेदिक उपचार
यदि आप AVN की समस्या से जूझ रहें हैं और जोड़ बदलवाने की समस्या का कोई विकल्प ढूंढ रहे हैं तो आयुर्वेद आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, क्यूंकि आयुर्वेद के उपचार द्वारा हड्डी को जाने वाली ब्लड सप्लाई को सुनिश्चित किया जा सकता है इसलिए न केवल हड्डी का गलना रुक जाता है बल्कि जो नए और आरंभिक केस होते हैं वहाँ पर व्याधि के रुकने के साथ साथ हड्डी के उत्तक दुबारा भी बनने लगते हैं। यानी की एवीएन के ग्रेड में भी सुधार होता है।
संक्षेपतः क्रिया योगो
निदान परिवर्जनम।।
का ध्यान रखते हुए सबसे पहले रोग के कारणों का त्याग करना होगा, परहेज़ करना होगा.
AVN की आयुर्वेदिक औषधि व्यवस्था
यहाँ मैं एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लिए कुछ आयुर्वेदिक योग बता रहा हूँ जिसे वैद्यगण अपने रोगीयों पर प्रयोग कर यश अर्जित कर सकते हैं -
व्यवस्था पत्र -1
1) वृहत वातचिन्तामणि रस 1 ग्राम + नवरत्न कल्पामृत रस 3 ग्राम + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 10 ग्राम + गिलोय सत्व 10 ग्राम. सभी को खरल कर 60 पुड़िया बना लें. एक-एक पुडिया रोज़ तीन बार शहद से लेना है.
2) चन्द्रप्रभा वटी 2 गोली+ योगराज गुग्गुल 2 गोली + शिलाजित्वादि वटी 2 गोली मिलाकर रोज़ तीन बार गुनगुने पानी से
3) अश्वगन्धारिष्ट 2 स्पून + दशमूलारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद रोज़ दो बार
व्यवस्था पत्र -2
1) योगेन्द्र रस 125 mg + शिलाजित्वादि लौह 125 mg + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 250 mg + गिलोय सत्व 250 mg + असगंध चूर्ण 1 ग्राम = 1 मात्रा, यह एक डोज़ है, ऐसी एक-एक डोज़ डेली 3 बार शहद से.
2) योगराज गुग्गुल 2-2 गोली रोज़ दो बार गुनगुने पानी से
3) दशमूलारिष्ट 2 स्पून + अश्वगंधारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद
इन सब के साथ में जीवन्त्यादि घृत, स्वर्ण बसन्त मालती, रुदन्ति कैप्सूल जैसी औषधि भी रोग और रोगी की दशा के अनुसार ऐड करना चाहिए.
तो इस तरह से औषधि सेवन से इस रोग में लाभ हो जाता है, समस्या बढ़ी हुयी हो तो पंचकर्मा भी आवश्यक होता है.
अपने प्रिय पाठकों को बताना चाहूँगा कि यह सब दवा खुद से यूज़ न करें, स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही सेवन करें. ख़ुद से यूज़ करने के लिए आप मेरा अनुभूत योग बाजीकरण चूर्ण और वातरोगहर वटी गोल्ड का सेवन कर सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है.
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