नारसिंह रसायन का वर्णन आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'अष्टांग ह्रदय' में मिलता है, जिसके अनुसार इसका सेवन करने वाले को सिंह के समान शक्ति मिलती है, सेक्सुअल पॉवर बढ़ जाता है और अनेकों रोग दूर होते हैं.
जैसा कि संस्कृत श्लोक देख सकते हैं, इसका मतलब आसान भाषा में आपको समझाता हूँ -
इसका सेवन करने वाला का शरीर मज़बूत बन जाता है और बीमारियाँ दूर रहती हैं.
इसका सेवन करने वाले मनुष्य का शरीर जंगली भैंसे की तरह शक्तिशाली हो जाता है.
इसके सेवन से घोड़े की तरह की फुर्ती, शक्ति और स्पीड प्राप्त होती है.
इसके सेवन से यौन क्षमता/सेक्सुअल पॉवर बढ़ जाती है.
बॉडी के मसल्स बनते हैं और बॉडी को पॉवर स्टैमिना मिलता है.
इसका सेवन करने वाले के बाल लम्बे, मज़बूत और चमकदार हो जाते हैं.
इसके सेवन से आवाज़, बुद्धि, यादाश्त इत्यादि बढ़ जाती है.
इस रसायन के सेवन से शरीर आग में तपते सोने के जैसा शुद्ध और चमकदार बन जाता है.
नारसिंह रसायन का त्रिदोष पर असर होता है यानी यह वात, पित्त और कफ तीनो को शान्त करता है.
नारसिंह रसायन के फ़ायदे
नारसिंह रसायन को पंचकर्मा के 'स्नेहन कर्म' के लिए प्रमुखता से यूज़ किया जाता है.
इसके मुख्य फ़ायदों की बात करूँ तो इसे वेट गेन करने, मसल्स को मज़बूत बनाने, बुद्धि बढ़ाने, थकावट दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है.
इसके सेवन से बाल तो बढ़ते ही हैं, पुरुषों की दाढ़ी-मूँछ बढ़ाने में भी लाभकारी है.
जिम करने वालों को इसके सेवन से मसल्स बनाने में सहायता मिलती है.
शीघ्रपतन में भी यह लाभकारी है.
नारसिंह रसायन की मात्रा और सेवन विधि
हाफ से एक टी स्पून तक सुबह-शाम ख़ाली पेट या स्थानीय वैद्य जी सलाह के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए
ऑनलाइन आप इसे ख़रीद सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है.
आपने सुना और देखा होगा कि फलां को पित्ते की पत्थरी या Gallstone हो गयी थी जिसकी वजह से ऑपरेशन करवाना पड़ा. आपको पता होना चाहिए कि Gallstone के लिए ऑपरेशन की एकमात्र उपाय नहीं है बल्कि उचित उपचार से अधिकतर लोगों की पित्त की पत्थरी बिना ऑपरेशन ही निकल जाती है. तो आईये आज जानते हैं पित्त पत्थरी होने के कारन और उपचार के बारे में सबकुछ विस्तार से -
जिनका भी पित्त पत्थरी के लिए ऑपरेशन हो चूका है उनको आज या कल अधिकतर लोगों को जीवनभर के लिए पाचन की समस्या हो सकती है, या फिर यह कहिये की समस्या हो ही जाती है. क्यूंकि ऑपरेशन कर पूरा पित्ताशय या गाल ब्लैडर ही निकाल दिया जाता है, जिसके कारण पाचक पित्त का स्राव नहीं होता है.
पित्त पत्थरी होने के कारन
आजकल पित्त पत्थरी के रोगी बड़ी संख्या में हैं और निरन्तर बढ़ते ही जा रहे हैं तो सवाल यह उठता है कि आख़िर वह कौन सी वजह है जो इस रोग को तेज़ी से बढ़ा रही है. इसके कारणों को दो तरह से देखा जा सकता है.
1) सहायक कारन 2) मुख्य कारन
1) सहायक कारन यह सब होते हैं जैसे -
आयु- 40 साल से ऊपर के लोगों को गालस्टोन की सम्भावना अधीक होती है.
जेंडर- हालाँकि गालस्टोन किसी को भी हो सकता है पर महिलायें इस बीमारी की चपेट में ज़्यादा आती हैं
आदत- लेज़ी लाइफ़ स्टाइल और बैठे-बैठे काम करने वालों में इस बीमारी की सम्भावना अधीक होती है. इसके अलावा और भी कुछ स्थितियाँ होती हैं जिसमे यह रोग पनप सकता है जैसे- गर्भावस्था, हार्ट और लंग्स डिजीज, मोटापा, जेनेटिक फैक्टर, स्किन कलर और मौसम का प्रभाव इत्यादि
5 F क्या होता है?
चिकित्सकगण सहायक कारणों को 5F के नाम से याद करते हैं- 1) फैटी, 2) फिमेल, 3) फोर्टी, 4) फर्टायल, 5) फेयर
फेयर से यहाँ यह समझिये कि जिनका रंग साफ़ होता है उनको पित्त पत्थरी की सम्भावना अधीक होती है.
पित्त पत्थरी के मुख्य कारन
पित्ताशय की पत्थरी के मुख्य कारणों की बात करें तो संक्रमण(इन्फेक्शन), पित्त का अवरोध और कोलेस्ट्रॉल का ज़्यादा बढ़ना मुख्य कारन मने जाते हैं.
संक्रमण(इन्फेक्शन) के कारन -
मिक्स या इन्फेक्टेड गालस्टोन पित्ताशय की सुजन की वजह से बनती है, सुजन के कारन पित्त द्योतक एवम पित्त लवण में कोलेस्ट्रॉल का रासायनिक संगठन ढीला पड़ जाता है जिस से वे आसानी से टूट जाते हैं, जब पित्त लवण कोलेस्ट्रॉल को अलग कर देता है तब यह अवक्षेपित हो जाता है. संक्रमित पित्ताशय पित्त लवण को तेज़ी से अवशोषित कर लेता है लेकिन कोलेस्ट्रॉल बहुत धीरे-धीरे अवशोषित होता है. इसी कारन से कोलेस्ट्रॉल की अवक्षेपित होने की प्रवृति हो जाती है और जब कोलेस्ट्रॉल का केन्द्रक बन जाता है तब बिलीरुबिन इसके चारों तरफ जमकर मिश्रित पत्थरी बनाने लगती है.
अवरोध के कारन-
40 साल से अधीक उम्र की महिलायें, मोटी और जिनको कई बार डिलीवरी हुयी हो उनमे अधिकतर अवरोध के कारन ही पित्त पत्थरी बनती है.
पित्त एवम रक्त कोलेस्ट्रॉल की अधीक मात्रा के कारन -
इसमें पित्त के पतन के कारण प्रतिक्रिया स्वरुप पित्त गाढ़ा होने लगता है, कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है और पित्त लवण का संग्रह होने लगता है. जिसके फलस्वरुप पित्ताशय में अलग होने लगता है और पत्थरी बनना शुरू हो जाता है.
यह सब तो हो गए पित्त पत्थरी या गालस्टोन के कारन, आईये अब जानते हैं गालस्टोन के प्रकार पर चर्चा करते हैं.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन के प्रकार
पत्थरी को आयुर्वेद में अश्मरी कहा जाता है और पित्त पत्थरी या पित्ताशय की पत्थरी को पित्ताश्मरी के नाम से जाना जाता है.
पित्त पत्थरी में कोलेस्ट्रॉल, बिलीरूबीन और कैल्शियम यही तीन मुख्य घटक होते हैं और इसी के आधार पर गालस्टोन के तीन प्रकार हैं.
1) कोलेस्ट्रॉल अश्मरी, 2) रंजक अश्मरी और 3) मिश्रित अश्मरी
कोलेस्ट्रॉल अश्मरी
कोलेस्ट्रॉल का चयापचय ठीक तरह से न हो पाने के कारन यह पत्थरी बनती है. यह सफ़ेद रंग की बड़े आकार की अण्डाकार, प्रायः संख्या में एक, हलकी चमकती हुयी होती है. पित्ताशय में अधीक पित्त, कोलेस्ट्रॉल और अवरोध रहने से ही कोलेस्ट्रॉल वाली पत्थरी बनती है. यह शान्त होती है और सामान्यतः इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. परन्तु जब यह पित्ताशय की गर्दन में अटक जाये तब परेशानी पैदा करती है.
रन्जक अश्मरी
यह संख्या में एक या अनेक, बहुत छोटी, भुरभुरी सी और बिलरूबीन से युक्त रहती है. इसमें कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है. चयापचय में दोष होने से भी इसकी उत्पत्ति होती है.
मिश्रित अश्मरी
यह कोलेस्ट्रॉल, बिलरूबीन और कैल्शियम की बनी होती है. इसमें 80 प्रतिशत तक पित्त रहता है. इस तरह की पत्थरी का रंग पिला और भूरा होता है. एक पत्थरी रहने पर इसका तल चमकीला होता है.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन के लक्षण
पत्थरी के स्थान और परिस्थिति के अनुसार रोग के लक्षणों में भिन्नता मिलती है. जब पत्थरी पित्ताशय में रहती है तो उस समय रोगी को इसका कुछ भी अहसास नहीं होता है कि उसको गालस्टोन है या पित्ताशय में पत्थरी है.
जब तक तेज़ पेट दर्द नहीं होता कुछ पता नहीं चलता है. कई बार लोगों को किसी दुसरे रोग के जाँच के दौरान अल्ट्रासाउंड कराने पर इसका पता चलता है.
जब पत्थरी पित्तकोष नलिका या साधारण पित्त नलिका अटक जाती है तब बहुत तेज़ दर्द होता है. यह दर्द लहर के रूप में बढ़ता हुआ दायीं तरफ़ बगल में कंधे तक पहुँचता है. पित्त की पत्थरी का दर्द निचे की तरह कभी नहीं जाता है. आज के समय में सोनोग्राफी जैसी तकनीक से इसका सटीक निदान होता है.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन का उपचार
अगर किसी को पित्त की पत्थरी का पता चला हो और कोई इमरजेंसी नहीं हो तो इसके लिए सबसे पहले आयुर्वेदिक उपचार लेना चाहिए. दो-तीन महीने में साधारण गालस्टोन निकल जाती है. औषधि से यदि कोई भी लाभ न हो तभी अन्तिम उपाय के रूप में ऑपरेशन करवाना चाहिए.
आयुर्वेदिक औषधि में मैं अपने रोगियों को मेरी अनुभूत औषधि 'पित्ताश्मरी नाशक योग' सेवन करने की सलाह देता हूँ, जिसका लिंक दिया गया है.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह घृत या घी से बनी हुयी औषधि है जिसे मुख्य रूप से स्नेहकर्म के लिए प्रयोग किया जाता है.
इन्दुकान्त घृत के घटक
पूति करंज छाल 100 ग्राम, देवदार 100 ग्राम, दशमूल 100 ग्राम, गाय का दूध 1200 मिली लीटर और गाय का घी 1200 ग्राम, साथ में प्रक्षेप द्रव्य के रूप में पिप्पली, चव्य, चित्रक, सोंठ, पीपरामूल और सेंधा नमक प्रत्येक 200 ग्राम लेना होता है.
इन्दुकान्त घृत निर्माण विधि
घृत पाक निर्माण विधि के अनुसार सभी क्वाथ द्रव्य को मोटा-मोटा कूटकर 20 लीटर पानी में क्वाथ बनाया जाता है, जब 5 लीटर पानी शेष बचता है तो इसे छानकर घी, गाय का दूध और प्रक्षेप द्रव्य का कल्क मिलाकर घृत सिद्ध कर फिर से छानकर रख लिया जाता है. यही इन्दुकान्त घृत और इन्दुकान्त घृतम के नाम से जानी जाती है.
इन्दुकान्त घृत की मात्रा और सेवन विधि
आधा से एक चम्मच भोजन से पहले दो से तीन बार. इसकी सेवन विधि और आवश्यक मात्रा रोगी के अनुसार ही निर्धारित की जाती है पंचकर्मा और स्नेहन कर्म इत्यादि के लिए
इन्दुकान्त घृत के फ़ायदे
यह पेट दर्द, पेप्टिक अलसर, जीर्ण ज्वर, कमज़ोरी, थकान और पेट के रोगों में प्रयोग की जाती है.
पेप्टिक अल्सर में वैद्यगण इसे कल्प विधान से भी प्रयोग कराते हैं.
इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से देख रेख में ही यूज़ करना चाहिए.
इसे आप अमेज़न से ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं, जिसका लिंक निचे दिया गया है -