मरिच्यादि वटी आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध योग है जो आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता में वर्णित है. इसे खाँसी, सर्दी, जुकाम, टोंसिल इत्यादि में प्रयोग किया जाता है, तो आईये जानते हैं मरिच्यादि वटी के गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से -
मरिच्यादि वटी का एक घटक मिर्च है, यानी काली मिर्च. इसी से इसका नाम मरिच्यादि वटी रखा गया है.
मरिच्यादि वटी के घटक या कम्पोजीशन
काली मिर्च और पीपल प्रत्येक 10 ग्राम, जावा खार 6 ग्राम, अनार का छिलका 20 ग्राम और गुड़ 80 ग्राम
मरिच्यादि वटी निर्माण विधि
इसे बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले गुड़ के अलावा सभी चीज़ों का बारीक चूर्ण बना लें. इसके बाद गुड़ की चाशनी बनाकर सभी चीजों को मिलाकर अच्छी तरह से कुटाई करने के बाद 3-3 रत्ती या 375 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस मरिच्यादि वटी तैयार है.
मरिच्यादि वटी के गुण या प्रॉपर्टीज
यह वात और कफ़ दोष को संतुलित करती है.
मरिच्यादि वटी की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक गोली दिन में पांच-छह बार तक मुँह में रखकर चुसना चाहिए. या फिर गर्म पानी से.
मरिच्यादि वटी के फ़ायदे
यह सुखी-गीली हर तरह की खाँसी में उपयोगी है.
इसके सेवन से सर्दी, खाँसी, जुकाम, गले की खराबी, गला बैठना और टॉन्सिल्स बढ़ जाने पर होने वाली परेशानी भी दूर होती है. टॉन्सिल्स बढ़ा हो तो इसे गर्म पानी के साथ लेना चाहिए.
यदि टॉन्सिल्स की समस्या अक्सर होती रहती हो तो इस से छुटकारा पाने के लिए मेरा अनुभूत योग 'टॉन्सिल्स क्योर योग' का सेवन कर सकते हैं.
एला का मतलब आयुर्वेद में होता है इलायची, एलादि वटी का एक घटक एला या इलायची है इसलिए इसलिए इसका नाम एलादि वटी है. छोटी इलायची और बड़ी इलायची को आयुर्वेद में लघु एला और दीर्घ एला कहा जाता है.
एलादि वटी के घटक या कम्पोजीशन
इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है छोटी इलायची, तेजपात और दालचीनी प्रत्येक 6-6 ग्राम, पीपल 20 ग्राम, मिश्री, मुलेठी, पिण्ड खजूर बीज निकली हुयी और मुनक्का बीज निकला हुआ प्रत्येक 40 ग्राम
एलादि वटी निर्माण विधि
सुखी हुयी चीजों को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और मुनक्का और खजूर को सिल पर पीसकर सभी को अच्छी तरह मिक्स करते हुए थोड़ी मात्रा में शहद भी मिला लें. इसके बाद छोटे बेर के साइज़ की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस एलादि वटी तैयार है.
एलादि वटी की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक गोली दिन भर में चार-पांच बार मुँह में रखकर चुसना चाहिए. इसे दूध से भी लिया जाता है. या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही इसका प्रयोग करें.
एलादि वटी के गुण
यह पित्त शामक है और कफ़ दोष को भी मिटाती है.
एलादि वटी के फ़ायदे
इसके सेवन से सुखी खांसी, टी. बी. वाली खाँसी, मुँह से खून आना, रक्तपित्त, उल्टी, बुखार, प्यास, जी घबराना, बेहोश, गला बैठना इत्यादि में लाभ होता है.
पित्त और कफ़ दोष के लक्षणों में वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं.
सुखी खाँसी जिसमे कफ़ चिपक जाने से बार-बार खाँसी उठती हो, सांस लेने भी दिक्कत हो तो इस गोली को चूसने से कफ़ ढीला होकर निकल जाता है.
खाँसी में पित्त बढ़ा होने से खाँसने पर खून तक आने लगता है, ऐसी स्थिति में इसका सेवन करना चाहिए.
खून की उल्टी, हिचकी, चक्कर, पेट दर्द, बहुत प्यास लगना जैसी समस्या होने पर इसे चुसना चाहिए.
यह एक ऐसा लड्डू है जिसे खाने से पुरुषों का पॉवर-स्टैमिना बढ़ता है, मरदाना कमज़ोरी दूर होकर शीघ्रपतन और वीर्य विकार जैसे रोग दूर हो जाते हैं. तो आईये जानते हैं कामेश्वर मोदक का फ़ॉर्मूला, बनाने का तरीका और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से -
कामेश्वर मोदक
आयुर्वेद में मोदक का मतलब होता है लड्डू, काम का मतलब सेक्स और ईश्वर का अर्थ आप जानते ही हैं. यौन क्षमता या सेक्स पॉवर बढ़ाने में यह बेजोड़ है.
कामेश्वर मोदक के घटक या कम्पोजीशन
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होगा अभ्रक भस्म, कायफल, कूठ, असगंध, गिलोय, मेथी, मोचरस, विदारीकन्द, सफ़ेद मूसली, गोखरू, तालमखाना, केला-कन्द, शतावर, अजमोद, उड़द, तिल, मुलेठी, नागबला, धनियाँ, कपूर, मैनफल, जायफल, सेंधा नमक, भारंगी, काकड़ासिंघी, भांगरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, जीरा, काला जीरा, चित्रकमूल छाल, दालचीनी, तेजपात, बड़ी इलायची, नागकेशर, सफ़ेद पुनर्नवामूल, गजपीपल, मुनक्का बीज निकला हुआ, सन के बीज, बांसामूल की छाल, सेमल मूसला, हर्रे, आँवला, शुद्ध कौंच बीज प्रत्येक 10-10 ग्राम, शुद्ध भांग बीज 110 ग्राम, गाय का घी 100 ग्राम, शहद 100 ग्राम और चाशनी बनाने के लिए चीनी एक किलो
कामेश्वर मोदक निर्माण विधि
इसे बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले सभी जड़ी-बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें. अभ्रक भस्म को चूर्ण बनाने के बाद में मिक्स करें. चीनी की लच्छेदार चाशनी बनाकर चूर्ण और घी डालकर अच्छे तरह से मिलाने के बाद चूल्हे से उतार कर थोड़ा ठण्डा होने पर शहद मिलाकर अच्छी तरह से घोंटकर छोटे-छोटे लड्डू बना लें. ठीक मोती-चूर के लड्डू के साइज़ के लड्डू बनाना है. बस कामेश्वर मोदक तैयार है.
कामेश्वर मोदक की मात्रा और सेवन विधि
रोज़ एक लड्डू सुबह नाश्ते के बाद दूध से लेना चाहिए.
कामेश्वर मोदक के गुण या प्रॉपर्टीज
यह बाजीकरण, कामाग्निसंदीपन, वीर्य स्तम्भक, वात नाशक और बुद्धिवर्द्धक गुणों से भरपूर होता है.
कामेश्वर मोदक के फ़ायदे
मरदाना कमज़ोरी, सेक्स की इच्छा नहीं होना, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन जैसी पुरुषों की हर तरह की समस्या में इसके सेवन से लाभ होता है.
यह पॉवर-स्टैमिना बढ़ाता है, कमज़ोरी दूर कर शरीर को शक्ति देता है.
फेफड़ों की कमजोरी, खांसी, अस्थमा, टी.बी., अतिसार, अर्श, प्रमेह इत्यादि में भी लाभकारी है.
कुल मिलाकर बस यह समझ लीजिये कि ठण्ड के मौसम में इसे बनाकर यूज़ कर सकते हैं. अगर नहीं बना सकें तो इसी के जैसा फायदा देनी वाली दवा 'बाजीकरण चूर्ण' यूज़ कीजिये.
आज मैं बताने वाला हूँ आयुर्वेदिक औषधि पुंसवन योग के बारे जिसमे सेवन से पुत्र प्राप्ति होती है यानी बेटा होता है. तो आईये पुंसवन योग के मात्रा, सेवन विधि और फायदों के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
पुंसवन योग क्या है?
यह एक अनुभूत आयुर्वेदिक योग है जो आयुर्वेद के पुंसवन कर्म पर आधारित है. दिव्य जड़ी-बूटियों का मिश्रण और साथ शुद्ध स्वर्ण की मात्रा भी इस औषधि अपने आप में बेजोड़ बनाती है.
बेटा की चाह रखने वाले दम्पतियों के लिए यह वरदान के समान है. सैंकड़ों महिलाओं की मनोकामना इसके सेवन पूरी हुयी है. बस समय पूरी श्रध्दा और विश्वास के साथ विधि पूर्वक इसका सेवन करना चाहिए. प्रेगनेंसी कन्फर्म होते ही यथाशीघ्र इसका सेवन करना चाहिए.
पुंसवन योग की मात्रा और सेवन विधि -
पुंसवन योग चूँकि स्वर्णयुक्त औषधि है तो इसमें 40 + 7 कैप्सूल होते हैं, जो टोटल 47 दिन का डोज़ है.
इसे प्रतिदिन सुबह सिर्फ़ एक कैप्सूल ख़ाली पेट दूध के साथ लेना होता है. सबसे पहले 7 कैप्सूल वाले पैक में से एक हफ्ता इसके बाद 40 कैप्सूल वाला पैक.
पुंसवन योग के साथ में पुंसवन कैप्सूल भी सेवन करने से अधीक सफलता मिलती है. जैसा कि आप सभी जानते हैं पुंसवन कैप्सूल के बारे में काफ़ी पहले बताया हूँ. पुंसवन कैप्सूल को बछड़े वाली देसी गाय के दूध में लेने का विधान है. पर यह सभी जगह सभी के लिए सुलभ नहीं होने से पुंसवन योग और पुंसवन कैप्सूल दोनों का सेवन करने की सलाह देता हूँ. इसके लिए किसी भी गाय का दूध चलेगा.
आपको किसी तरह का कनफ्यूज़न न हो इसके लिए पुंसवन योग और पुंसवन कैप्सूल दोनों के कॉम्बो पैक या कम्पलीट कोर्स का लिंक दिया जा रहा है, जहाँ से आप आसानी से आर्डर कर सकते हैं.
पुंसवन योग के बारे में कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये, आपके सवालों का स्वागत है.
इस जानकारी को ज़्यादा से ज्यादा शेयर कर दीजिये ताकि पुत्र प्राप्ति की चाह रखने लोगों को इसका लाभ मिल सके. आपका एक शेयर किसी की ज़िन्दगी में ख़ुशियाँ ला सकता है.
आज की जानकारी है आयुर्वेदिक औषधि प्लिहान्तक गुटिका के बारे में जो बढ़े हुए लिवर-स्प्लीन को ठीक करती है. तो आईये जानते हैं प्लिहान्तक गुटिका की निर्माण विधि और इसके फ़ायदे के बारे में विस्तार से
प्लिहान्तक गुटिका के घटक और निर्माण विधि
स्फटिक भस्म, टंकण भस्म, शंख भस्म और गिलोय सत्व प्रत्येक एक-एक भाग, शुद्ध गंधक और एलुआ प्रत्येक दो-दो भाग.
बनाने का तरीका यह है कि सभी चीज़ों को मिक्स कर घृतकुमारी के रस में घोंटकर 500 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है.
प्लिहान्तक गुटिका की मात्रा और सेवन विधि
दो गोली रोज़ तीन बार गर्म पानी से लेना चाहिए
प्लिहान्तक गुटिका के फायदे
यह वटी प्लीहा और यकृत की वृद्धि यानी लिवर और स्प्लीन का बढ़ जाना दूर कर लिवर-स्प्लीन को नार्मल और हेल्दी कर देती है.
पेट दर्द, जौंडिस, स्प्लीन बढ़ने से होने वाली बुखार और कब्ज़ इत्यादि दूर होता है.
पाचन क्रिया को ठीक कर पाचन तंत्र को स्वस्थ बना देती है. बच्चे-बड़े सभी इसका प्रयोग कर सकते हैं. इसके सेवन काल में गुड़-चीनी और इस से बने भोजन नहीं करना चाहिए.
तो यह थी आज की जानकारी प्लिहान्तक गुटिका के बारे में.
सूरणबटक जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है सूरण कन्द इसका एक घटक होने से इसका नाम सूरणबटक रखा गया है. सूरण को ही ओल और यम जैसे नामों से जाना जाता है.
सूरणबटक के घटक द्रव्य
यह आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता का योग है, इसे बनाने के लिए चाहिए होता है
सूरण कन्द और विधारा बीज प्रत्येक 16 भाग, स्याह मूसली, चित्रकमूल-छाल प्रत्येक 8 भाग, हर्रे, बहेड़ा, आमला, वायविडंग, सोंठ, पीपल, शुद्ध भिलावा, पीपलामूल और तालिशपत्र प्रत्येक 4-4 भाग, काली मिर्च, दालचीनी और छोटी इलायची प्रत्येक 2 भाग, गुड़ सभी जड़ी-बूटियों के वज़न के बराबर.
सूरणबटक निर्माण विधि
सभी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण बनाने के बाद गुड़ की चाशनी बनाकर मिक्स कर अच्छी तरह से कुटाई करने के बाद 500 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही सूरणबटक कहलाता है.
सूरणबटक की मात्रा और सेवन विधि
दो से चार गोली तक सुबह-शाम गर्म दूध या गर्म पानी से लेना चाहिए
सूरणबटक के फ़ायदे
जैसा की शुरू में ही कहा हूँ बवासीर की पॉपुलर मेडिसिन है. यह जठराग्नि को तेज़ कर पाचन को सुधारती है.
बवासीर-भगन्दर इत्यादि को दूर कर शरीर को शक्ति देती है.
मूल ग्रन्थ के अनुसार श्वास, कास, क्षय रोग, हिचकी, प्रमेह, प्लीहा इत्यादि रोगों में भी यह असरदार है.
जैसा कि आप सभी जानते हैं आज के समय लम्पी वायरस के हज़ारों पशुओं की मौत हो रही है. तो आज के विडियो में मैं लम्पी वायरस के लिए सफल आयुर्वेदिक उपचार के बारे में बताने वाला हूँ, तो आईये इसके बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं.
लम्पी वायरस क्या है? और इसके क्या लक्षण हैं?
यह एक स्किन डिजीज है जो केप्रीपॉक्स वायरस के कारन होती है. इसके कारन गाय और भैंस के शरीर पर मोटी-मोटी गाँठ होने लगती है. इस से संक्रमित होने पर मवेशी को हल्का बुखार, शरीर पर मोटे-मोटे दाने होना, गिल्टी होना और फिर इसका ज़ख्म में बदल जाना, नाक बहना, मुंह से लार गिरना और दुधारू मवेशी में दूध की कमी होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.
चूँकि यह एक संक्रामक रोग है तो पीड़ित पशु को अलग सैनीटाइज़ जगह पर रखना चाहिए ताकि दुसरे मवेशियों में इसका संक्रमण न फैले. फिटकरी के पानी और नीम के पानी से धो सकते हैं, बुखार के लक्षण हों तो नहाना नहीं चाहिए और बारिश के पानी से भी बचाना चाहिए, और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए धुनी जलाना चाहिए.
धुनी जलाने के लिए आपको यह चीज़ें चाहिए होंगी -
हल्दी, नीम की पत्ती, सरसों दाना और अजवायन
इसे पुराने जुट के बोरे में जलाकर धुवाँ देना चाहिए, इस से काफ़ी लाभ होता है और संक्रमण भी नहीं फैलता है.
जैसा कि आप सभी जानते हैं इस बीमारी में पशुओं के शरीर पर गिल्टियाँ होकर पक कर फूटने लगती हैं तो इसके लिए लगाने के लिए इस तरह से आयुर्वेदिक मलहम बनायें-
इसे बनाने के लिए आपको चाहिए होगा
सोना गेरू, मेहँदी पाउडर और गाय का घी मिक्स कर ज़ख्म की ड्रेसिंग कर लगाना चाहिए.
अब बात खाने वाली आयुर्वेदिक दवा की -
जैसे ही आप के मवेशी में लम्पी वायरस के लक्षण दिखें तो उसे सबसे पहले दुसरे मवेशियों से अलग-थलग कर यह उपचार दें -
हल्दी पाउडर 50 ग्राम
पार्ले जी बिस्कुट 100 ग्राम
पेरासिटामोल 2 ग्राम(500mg की चार टेबलेट) लेकर आधा लीटर पानी में घोलकर रोज़ दो से तीन बार तक पिलायें
आईये अब जानते हैं लम्पी वायरस की आयुर्वेदिक औषधि, जिसे एक अनुभवी वैद्य जी द्वारा बताया गया है -
इसके लिए यह सब जड़ी-बूटियाँ चाहिए होंगी -
हल्दी, सोंठ,अजवायन, बबूल छाल, कुटकी, चोपचीनी, शिरिस, धमासा, लोध्र पठानी, अकोल, बकायन, अमलतास, अर्जुन छाल, गूलर की छाल, असगन्ध और मूर्वा प्रत्येक 50-50 ग्राम
वासा, अपामार्ग, खैर, इन्द्रजौ, सरपुंखा, इन्द्रायण, मकोय, कांचनार, नीम छाल, शीशम छाल, गिलोय, काकजंघा, भृंगराज, विधारा, सहजन, एरण्डमूल, पाषाणभेद, रास्ना, चिरायता, त्रिफला और गोक्षुर प्रत्येक 100-100 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें.
मात्रा और सेवन विधि -
व्यस्क मवेशी को 50 ग्राम की मात्रा में रोज़ दो से तीन बार तक गुनगुने पानी में घोलकर पीलाना चाहिय. कम उम्र के मवेशी को आधी मात्रा में दें.
लम्पी वायरस की सभी अवस्थाओं में लाभकारी है. सभी जड़ी-बूटियाँ पंसारी की दुकान से मिल जाएँगी, अपने मवेशी को बचाने के लिए थोड़ी सी मेहनत से इसका निर्माण कर सकते हैं.
मवेशी को खाने के लिए हरा ताज़ा चारा, निर्गुन्डी के पत्ते, मकोय पंचांग, सहजन के पत्ते, पुनर्नवा के पत्ते, परवल के पत्ते, पीपल के पत्ते इत्यादि देना चाहिए. संक्रमित मवेशी का दूध मनुष्य को सेवन नहीं करना ही उत्तम है.
आज की जानकारी है आयुर्वेदिक है फलारिष्ट के बारे में. यह मलेरिया, जौंडिस, पाचन की कमजोरी, बवासीर, हृदय रोग, कब्ज़, ग्रहणी और खून की कमी इत्यादि रोगों में प्रयोग की जाती है.
तो आईये जानते हैं फलारिष्ट का कम्पोजीशन, गुण-उपयोग और फ़ायदों के बारे में सबकुछ विस्तार से -
सबसे पहले जानते हैं फलारिष्ट के घटक या कम्पोजीशन
यह आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'चरक संहिता' का योग है
इसे बनाने के लिए चाहिए होता है बड़ी हर्रे और आँवला प्रत्येक 64 तोला, इन्द्रायण के फल, कैथ का गूदा, पाठा और चित्रकमूल प्रत्येक 8-8 तोला लेकर मोटा-मोटा कूटकर 25 लीटर पानी में क्वाथ बनायें, जब 6 लीटर काढ़ा बचे तो ठण्डा होने पर छानकर उसमे 5 किलो गुड़ और 8 तोला धाय के फूल मिलाकर चिकने बर्तन में 15 दिन के लिए सन्धान क्रिया के लिय रख दिया जाता है. इसके बाद छानकर बोतलों में भर लिया जाता है. यही फलारिष्ट कहलाता है.
फलारिष्ट की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक भोजन के बाद समान भाग जल मिलाकर लेना चाहिए
फलारिष्ट के गुण
यह दीपन-पाचन, बलवर्द्धक और पुष्टिकारक है.
फलारिष्ट के फ़ायदे
मूल ग्रन्थ के अनुसार इसके सेवन से ग्रहणी, अर्श, पांडू, प्लीहा, कामला, विषम ज्वर, वायु तथा मल-मूत्र का अवरोध, अग्निमान्ध, खाँसी, गुल्म और उदावर्त जैसे रोगों को नष्ट करता है और जठराग्नि को प्रदीप्त करता है.
आसान शब्दों में कहा जाये तो इसके सेवन से क़ब्ज़ दूर होती है और बवासीर में लाभ होता है.
इसके सेवन से पेशाब साफ़ होता है, पेशाब खुलकर होता है इसके मूत्रल गुणों के कारन.
पाचन शक्ति को ठीक करता है, भूख लगती है और इसके सेवन से हाजमा दुरुस्त हो जाता है.
स्प्लीन का बढ़ जाना, जौंडिस, पीलिया, कामला इत्यादि में लाभकारी है.
धड़कन, घबराहट, दिल की कमज़ोरी जैसे हार्ट की प्रॉब्लम में भी फ़ायदा होता है.
क्या आपके घर में एल्युमीनियम के बर्तन में खाना पकाया जाता है?
क्या आप एल्युमीनियम या फाइबर के बर्तन में भोजन करते हैं?
यदि हाँ तो आज की जानकारी आप सभी के लिए बहुत ज़रूरी है, क्यूंकि आज मैं बात करने वाला हूँ कि किस चीज़ के बर्तन में भोजन करने या फिर खाना पकाने से क्या-क्या नुकसान और फ़ायदे हैं. तो आइये सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
बर्तनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है, इसके बिना जीवन की कल्पना बड़ी ही मुश्किल है.
धातु की बर्तनों के इस्तेमाल से होने वाले फ़ायदे और नुकसान की बात करूँगा पर उस से पहले प्लास्टिक और फाइबर के बर्तन के बारे में जानते हैं.
प्लास्टिक आज हमारे जीवन में हमारी लाइफ स्टाइल में इस क़दर शामिल हो गया है कि इस से छुटकारा पाना असम्भव तो नहीं पर मुश्किल ज़रूर है.
चाय के कप से लेकर टिफ़िन बॉक्स तक हर जगह प्लास्टिक हमारे जीवन इतना घुसा हुआ है कि अब तो खून में भी प्लास्टिक के पार्टिकल्स पाए जा रहे हैं. मॉडर्न रिसर्च से ब्लड टेस्ट में यह साबित हो चूका है, क्यूंकि जाने-अनजाने में हम प्लास्टिक भी खा रहे हैं.
प्लास्टिक और फाइबर के किसी भी तरह के बर्तन में भोजन करने से कैंसर जैसे मारक रोग होते हैं, यह किसी से छुपा नहीं है.
पहले के समय में हमारे घरों में सिर्फ लोहा, पीतल, ताम्बा के बर्तन ही यूज़ होते थे. मिट्टी के बर्तन तो प्राचीन काल से प्रयोग होते रहे हैं. इनके बाद आया एल्युमीनियम, इसके बाद स्टेनलेस स्टील और अब प्लाटिक फाइबर वाला युग है. आईये जानते हैं कि किस बर्तन में भोजन करने या पकाने से क्या फ़ायदे और क्या नुकसान हैं-
मिट्टी के बर्तन
मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से ज़रूरी पोषक तत्व मिलते हैं जिस से बीमारी दूर रहती है. मॉडर्न साइंस से भी यह साबित हो गया है कि मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने और खाने से कई सारी बीमारियाँ दूर होती है. आयुर्वेद में भी मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करने का निर्देश है क्यूंकि इसमें बने भोजन के पोषक तत्व शत प्रतिशत सुरक्षित रहते हैं और इसमें बने भोजन का स्वाद भी अच्छा होता है. कुल्हड़ की चाय और डिस्पोजेबल प्लास्टिक के कप की चाय के स्वाद का अन्तर तो आप बहुत अच्छे से जानते हैं. मिट्टी के बर्तन में आपको फ़ायदा और स्वाद दोनों मिलेगा. नुकसान जीरो, मतलब कोई भी नुकसान नहीं.
लोहे के बर्तन
लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढ़ती है और शरीर से लोहा या आयरन की कमी नहीं होने पाती है. खून की कमी, जौंडिस, सुजन और शरीर का पीलापन इत्यादि रोग दूर होते हैं.
ध्यान रहे, लोहे के बर्तन में खाना पकाने से यह लाभ होते हैं. लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्यूंकि कहा गया है कि लोहे के बर्तन में खाना खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है.
पीतल के बर्तन
पीतल के बर्तनों में भोजन पकाने या भोजन करने से कृमि रोग, वात और कफ़ दोष की बीमारियाँ नहीं होती हैं. पीतल के बर्तन में बने भोजन के सिर्फ़ 7 प्रतिशत पोषक तत्व ही नष्ट होते हैं.
तांबा के बर्तन
तांबे के बर्तन में रखा पानी स्वास्थ के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में पानी पीने से रक्त शुद्ध होता है, यादाश्त बढ़ती है, लिवर हेल्दी रहता है और शरीर से विषैले तत्व दूर होते हैं, यानी बॉडी से Toxins को दूर करता है. ध्यान रहे, तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए, इस से नुकसान होता है.
काँसा के बर्तन
काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज़ होती है, रक्त शुद्ध होता है, भूख बढती है और रक्तपित्त दूर होता है. काँसे के बर्तन में भोजन पकाने से सिर्फ 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं.
ध्यान रहे, काँसे के बर्तन में खट्टी चीज़ें नहीं परोसनी चाहिए, इस धातु से खट्टी चीजें रिएक्शन कर विषैली हो जाती हैं जिस से नुकसान होता है.
स्टील के बर्तन
स्टेनलेस स्टील के बर्तन जिसे आम बोलचाल में स्टील का बर्तन कहा जाता है. इसमें भोजन पकाने या खाने से किसी भी तरह की कोई क्रिया-प्रतिक्रिया नहीं होती है. इसलिए स्टील के बर्तन में पकाने या खाने से किसी भी तरह का कोई फ़ायदा या कोई नुकसान नहीं होता है.
सोना के बर्तन
सोने के बर्तन में भोजन पकाने या भोजन करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, मज़बूत और ताक़तवर बनते हैं और आँखों की रौशनी बढ़ती है. सोना एक गर्म तासीर वाला धातु है,इसलिए राजा लोग सोने के बर्तन में खाया करते थे.
चाँदी के बर्तन
जैसा कि आप जानते हैं चाँदी एक ठंडी तासीर की धातु है जो शरीर को अन्दर से ठण्डक पहुँचाती है. चाँदी के बर्तन में भोजन पकाने या भोजन करने से दिमाग तेज़ होता है, आँखों की रौशनी बढती है, दिमाग कूल रहता है, पित्त, कफ़ और वात यानी तीनो दोष नियंत्रित रहते हैं.
जैसा कि आप जानते हैं बोक्स़ाइट नामक खनिज से एल्युमीनियम बनता है. एल्युमीनियम के बर्तन में खाना बनाने या खाने से शरीर को सिर्फ और सिर्फ नुकसान होता है. यह शरीर से आयरन और कैल्शियम को सोख लेता है. एल्युमीनियम के बर्तन में खाना पकाने या खाने से हड्डी कमज़ोर होती है, मानसिक रोग होते हैं, नर्वस सिस्टम को नुकसान होता है, लिवर की बीमारी, किडनी फ़ेल होना, टी.बी., अस्थमा, जोड़ों का दर्द, शुगर जैसी अनेकों बीमारी होती है.
एल्युमीनियम के बने प्रेशर कुकर में खाना बनाने से 87 प्रतिशत तक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. तो आप समझ सकते हैं कि एल्युमीनियम के बर्तन हमारे स्वास्थ के लिए कितना ख़तरनाक हैं.
एक पते की बात - प्रेशर कुकर में दाल गलती है, दाल पकती नहीं!
अब आप कहेंगे कि कौन सा बर्तन यूज़ करें?
खाने पीने के लिए आप स्टील का बर्तन यूज़ कीजिये, पकाने में भी, क्यूंकि यह चीप है, सर्वसुलभ भी है. काँच का बर्तन या फिर चीनी मिट्टी के बर्तन भी आप खाने पीने के लिए यूज़ कर सकते हैं.
पकाने के लिए बेस्ट क्या है, वह तो मैं बता ही चूका हूँ. पर अब आपको बताना है कि कौन सा बर्तन आपके घर में यूज़ होता है? कमेंट ज़रूर कीजियेगा.
चक्षुष्य कैप्सूल आँखों की हर तरह की बीमारियों में असरदार है, तो आईये जानते चक्षुष्य कैप्सूल के गुण, उपयोग के बारे में सबकुछ विस्तार से -
चक्षुष्य कैप्सूल के घटक या कम्पोजीशन
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो यह बना होता है त्रिफला घनसत्व, मुलेठी घनसत्व और सप्तामृत लौह के मिश्रण से
इसमें मिली हुयी सभी औषधि उच्च गुणवत्ता वाली होती है. सप्तामृत लौह के बारे में डिटेल्स पढने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये.
त्रिफला और मुलेठी के फ़ायदे कौन नहीं जानता? इनका आनुपातिक मिश्रण इसे अपने आप में बड़ा यूनिक बना देता है.
चक्षुष्य कैप्सूल के फ़ायदे
नज़र कमज़ोर होना या आँखों की रौशनी कम होना, धुन्धला दिखाई देना, रतौंधी इत्यादि आँखों की समस्त समस्याओं में इसका प्रयोग करना चाहिए.
आजकल छोटे-छोटे बच्चों के आँख पर भी मोटे-मोटे चश्मे चढ़े होते हैं, अगर इसका यूज़ किया जाये तो चश्मा लगने से बचा जा सकता है.
चक्षुष्य कैप्सूल की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक कैप्सूल सुबह-शाम पानी से. बच्चों को भी इसे दे सकते हैं, कैप्सूल खोलकर आधी मात्रा में सुबह-शाम.
इसके साथ में लगाने के लिए सुरमा और महा त्रिफला घृत का भी सेवन करने से जल्दी लाभ होता है.
पूरी तरह से सुरक्षित औषधि है, किसी भी उम्र के लोग यूज़ कर सकते हैं. 60 कैप्सूल के एक पैक की क़ीमत है सिर्फ़ 185 रुपया जिसे ऑनलाइन खरीदें का लिंक निचे दिया गया है.
नाड़ी परीक्षा करना या नब्ज़ चेक करने से शरीर में क्या चल रहा है, और क्या बीमारी है इसका सटीक अनुमान लगाया जाता है. या फिर यह कहिये कि अनुभवी नाड़ी वैद्य आपसे बिना कुछ पूछे आपको क्या-क्या बीमारी है बता देते हैं सिर्फ़ नाड़ी परिक्षण से.
यदि आपको इसमें रूचि है और चाहते हैं कि आपको इसकी थोड़ी-बहुत जानकारी हो जाये तो आपको 'आधुनिक नाड़ी परीक्षा - ई बुक' पढनी चाहिए.
इस से आपको नाड़ी परिक्षण की बेसिक जानकारी हो जाएगी और इसका अभ्यास कर इसमें सक्षम भी हो जायेंगे.
इस ई बुक में नाड़ी परीक्षा की सभी बेसिक जानकारी दी गयी है जैसे -
नाड़ी परीक्षा क्या है?
नाड़ी परिक्षण क्यूँ करते हैं?
नाड़ी परीक्षा कब और कहाँ करना चाहिए?
नाड़ी परीक्षा के स्तर या Levels
नाड़ी परीक्षा के नियम
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आज की जानकारी है पीतल भस्म के बारे में. पीतल के बर्तन का इस्तेमाल तो आपने कभी न कभी किया ही होगा. इसी पीतल से आयुर्वेद की यह औषधि भी बनायी जाती है, यह जानकर आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
पीतल क्या है? इसकी भस्म कैसे बनाई जाती है? इसके क्या-क्या फ़ायदे हैं? और इसका उपयोग कैसे किया जाये? आईये इन सबके बारे में विस्तार से जानते हैं -
पीतल क्या है?
जैसा कि हम सभी देखते हैं कि बर्तन और टूल्स में इसका प्रयोग किया जाता है. पीतल दो तरह की चीज़ों के मिश्रण से बनी धातु है. दो भाग ताँबा और एक भाग जस्ता के मिश्रण से बनने वाली धातु पीतल कहलाती है.
ताँबा और जस्ता से भी आयुर्वेदिक दवा बनती है, ताँबा से बनी औषधि को ताम्र भस्म और जस्ता से बनी औषधि को यशद भस्म कहा जाता है जिसके बारे में बहुत पहले बता चूका हूँ.
ताम्र भस्म और यशद भस्म ही अधीक प्रचलित है और अधीक प्रयोग की जाती है, पीतल भस्म ज़्यादा प्रचलित नहीं.
पीतल भस्म निर्माण विधि
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी धातु की भस्म बनाने के लिए सबसे पहले इसे शोधित करना होता है. शास्त्रों में कहा गया है कि जिस पीतल को अग्नि में तपाकर काँजी में बुझाने से ताँबे के जैसा रंग निकले और जो देखने में पीला, वज़न में भारी और चोट सहन करने वाला हो उसी पीतल को भस्म बनाने के लिए प्रयोग में लेना चाहिए.
पीतल शुद्धीकरण
पीतल को शुद्ध करने के लिए इसके पतले-पतले पत्तर बनाकर आग में तपाकर हल्दी चूर्ण मिले हुए निर्गुन्डी के रस में सात बार बुझाने से पीतल शुद्ध हो जाता है.
इसे शोधित करने की दूसरी विधि यह है कि पीतल के बुरादे को आग में गर्म कर निर्गुन्डी के रस या फिर काँजी में बुझाने से भी शुद्ध हो जाता है.
पीतल भस्म निर्माण विधि
आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके भस्म बनाने की दो-तीन विधि बताई गयी है. शुद्ध किये गए पीतल कागज़ के जैसे पतले पत्र बनवा लें. इसके बाद शुद्ध गन्धक और शुद्ध मैनशील इसके वज़न के बराबर लेकर घृतकुमारी के रस में घोंटकर पीतल के पत्रों पर लेपकर सुखा लें. इसके बाद सराब सम्पुट में बन्दकर गजपुट की अग्नि दें. इसी तरह से तीन पुट देने से काले रंग की भस्म तैयार होती है. यह सब औषधि निर्माण की टेक्निकल बाते हैं, इसका निर्माण सबके लिए संभव नहीं. बस प्रोसेस समझने के लिए संक्षेप में बता दिया हूँ.
पीतल भस्म की मात्रा और सेवन विधि
60 मिलीग्राम से 125 मिलीग्राम तक सुबह-शाम शहद, अनार के शर्बत या रोगानुसार उचित अनुपान से
आयुर्वेद में इसे विषनाशक, वीर्यवर्द्धक, कृमि और पलित रोगनाशक कहा गया है. इसकी भस्म स्वाद में तीक्ष्ण और रुक्ष होती है, दिखने में काले रंग की काजल की तरह.
इसकी तासीर के बारे में मज़ेदार बात बताऊँ की यह ठण्डा और गर्म दोनों है. यदि से इसे ठण्डी तासीर की चीज़ के साथ सेवन किया जाये तो तासीर में ठण्डा है और अगर गर्म चीज़ के साथ सेवन करेंगे तो गर्म करेगा.
पीतल भस्म के फ़ायदे
रक्तपित्त, कुष्ठव्याधि, वातरोग, पांडू, कामला, प्रमेह, अर्श, संग्रहणी, श्वास इत्यादि रोग नाशक है.
आसान शब्दों में कहूँ तो इसके सेवन से गर्मी, जौंडिस, खून की कमी, बवासीर, दम, IBS, दर्द वाले रोग, गठिया बात, गर्मी, कोढ़ जैसी बीमारियों में फ़ायदा होता है.
इसे वैद्य जी की सलाह से, वैद्य जी देख रेख में ही सेवन करना चाहिए. और अब अंत में एक बात और जान लीजिये कि जिनको ताम्र भस्म सूट नहीं करती उनको यह सूट करती है.
आज की जानकारी है एक ज़बरदस्त आयुर्वेदिक औषधि व्याधिहरण रसायन के बारे में.
इसे कई जगह व्याधिहरण रस के नाम से भी जाना जाता है. यह तेज़ी से असर करने वाली ऐसी औषधि है जो अनुपान भेद से अनेकों रोगों को दूर करती है.
तो आईये जानते हैं व्याधिहरण रसायन गुण, उपयोग निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे सबकुछ विस्तार से -
व्याधिहरण रसायन जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह व्याधि यानी रोग-बीमारी को दूर करने वाली रसायन औषधि है. यह कूपीपक्व रसायन औषधि है जो तेज़ अग्नि से विशेष विधि से बनाई जाती है.
यह रक्तदोष नाशक, विष नाशक, एन्टी सेप्टिक औषधि है.
व्याधिहरण रसायन के फ़ायदे
यह नए पुराने उपदंश और उसके कारन उत्पन्न लक्षणों को दूर करती है. शास्त्रों में कहा गया है कि उपदंश का विष हड्डी तक पहुँच गया हो तब भी इस से लाभ होता है.
रक्त विकार, गठिया, बात, हर तरह के ज़ख्म, खाज-खुजली, फोड़ा-फुंसी, भगन्दर कुष्ठ तथा चर्म रोगों में जैसे चकत्ते, अण्डवृद्धि, नाखून टेढ़ा होना, शोथ, वृक्कशोथ आदि में गुणकारी है.
अनुभवी वैद्यगण ही इसका प्रयोग करते हैं, वैद्य जी की सलाह के बिना इसे कभी भी न लें.
व्याधिहरण रसायन की मात्रा और सेवन विधि
60 मिलीग्राम से 125 मिलीग्राम तक घी, शहद, अद्रक के रस, पान के रस या रोगानुसार उचित अनुपान से स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही लेना चाहिए.
व्याधिहरण रसायन के घटक या कम्पोजीशन
यह छह चीज़ों के मिश्रण से बनाया जाता है. इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध, पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध संखिया, शुद्ध हरताल, शुद्ध मैनसिल और रस कपूर सभी समान मात्रा में.
व्याधिहरण रसायन निर्माण विधि
इसके निर्माण के लिए सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बनाकर दूसरी चीज़े मिक्स घोटने के बाद आतिशी शीशी में भरकर 'बालुका यंत्र' में रखकर क्रम से मृदु, मध्यम और तीक्ष्ण आँच लगातार तीन दिन तक दी जाती है. इसके बाद ठण्डा होने पर शीशी निकालकर दवा निकाल ली जाती है.
इसे बनाने की प्रक्रिया जटिल है, बस आपकी जानकारी के लिए संक्षेप में बताया हूँ. सिद्धहस्त अनुभवी वैद्य ही इसका निर्माण कर सकते हैं, सब के बस की बात नहीं.
नवजीवन रस वास्तव में मनुष्य को नया जीवन देता है, तो आईये जानते हैं कि नवजीवन रस क्या है? और जानेंगे इसके गुण उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सब कुछ विस्तार से -
नवजीवन रस
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है नया जीवन देने वाली रसायन औषधि
नवजीवन रस के गुण
इसके गुणों की बात करें तो यह दीपक, पाचक है, शरीर में वात और कफ़ दोष को संतुलित करता है.
नवजीवन रस के फ़ायदे
जहाँ तक नवजीवन रस के फ़ायदे की बात है तो वैद्यगण अनुपान भेद से इसे कई रोगों में प्रयोग करते हैं.
कुचला प्रधान औषधि होने से यह नस नाड़ियों को शक्ति देता है और जागृत करता है. ज्ञान वाहिनी नाड़ियों, चेष्टावाहिनी नाड़ियों और शुक्रवाहिनी नाड़ियों इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है.
आसान शब्दों में कहूँ तो भूलने की बीमारी, यादाश्त की कमज़ोरी, नसों की कमज़ोरी, मर्दाना कमज़ोरी और माईग्रेन जैसी प्रॉब्लम में भी इस से फ़ायदा होता है.
शरीर की कमज़ोरी, खून की कमी, थकावट को दूर करता है
इसके सेवन से पाचक प्रचुर मात्रा में उत्त्पन्न होने और आमरस को पचाने से दस्त की पुरानी बीमारी, पेट दर्द, आँतों का दर्द जैसी परेशानी भी दूर होती है.
नवजीवन रस की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक गोली या 125 mg की मात्रा में सुबह-शाम अदरक के रस के साथ शहद मिक्स कर या फिर रोगानुसार उचित अनुपान के साथ सेवन करना चाहिए.
इसे स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही लें
वीर्य विकारों में बंग भस्म, प्रवाल भस्म इत्यादि के साथ मक्खन से, माईग्रेन और दीमाग को ताक़त देने के लिए अभ्रक भस्म के साथ घी या उचित अनुपान से अनुभवी वैद्यगण इसका प्रयोग कराते हैं. कहने का मतलब है कि वैद्य की सलाह के बिना इसका सेवन नहीं करें.
आयुर्वेदिक कंपनीयों का यह मार्किट में मिल जाता है. जानकारी के लिए इसकी निर्माण विधि भी बता रहा हूँ -
नवजीवन रस निर्माण विधि
इसके निर्माण के लिय चाहिए होता है शोधित कुचला, लौह भस्म, रस सिन्दूर और त्रिकटु का बारीक कपड़छन चूर्ण सभी समान भाग
निर्माण विधि यह है कि सबसे पहले रस सिन्दूर को खरल कर दूसरी चीजें मिलाकर देसी अदरक के रस में एक दिन तक घोंटकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. बस यही नवजीवन रस कहलाता है.
तो दोस्तों, यह थी आज की जानकारी नवजीवन रस के बारे में,कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये, आपके सवालों का स्वागत है.
जैसा कि आप सभी जानते हैं पुरुष रोगों में मैं अक्सर एम- आयल सजेस्ट करता हूँ जो पुरुषों के अंग विशेष के ढीलापन, टेढ़ापन, पतलापन और छोटापन जैसी समस्याओं में असरदार है.
तो आईये आज इसका कम्पोजीशन और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं-
एम- आयल
एम का यहाँ पर दो अर्थ है - मेल और मसाज, पूरा मतलब है पुरुषों के लिए मसाज का तेल
सबसे पहले एक नज़र इसके कम्पोजीशन पर
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे असगंध, शतावर, मैनसिल, हरताल, त्रिकटु, अकरकरा, कनेर, सेंधा नमक, पंचकोल, दशमूल, त्रिजात, जुन्द, केसर, लघु पंचकमूल, वृहत पंचकमूल, अष्टवर्ग और चतुर्जात जैसी जड़ी-बूटियों के द्वारा त्रिगुण तेल में तेल-पाक विधि से सिद्ध कर बनाया जाता है.
एम- आयल के फ़ायदे
यह लिंग का ढीलापन, छोटापन, तनाव की कमी, लूज़ रहना, नसें दिखना, बेजान रहना जैसी पुरुषों की सभी समस्या को दूर करता है.
नपुँसकता को दूर करता है और साइज़ को इम्प्रूव करने में भी मदद करता है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो पुरुषों हर तरह की समस्या के लिए इसे बेफिक्र हो कर इस्तेमाल कर सकते हैं. यह पूरी तरह से सुरक्षित है, इसके प्रयोग से छाले-फुन्सी या किसी भी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है.
सुबह-शाम इसकी मालिश करनी चाहिए
30 ML की क़ीमत है 300 रूपये, जिसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है.
यह एक शास्त्रीय रसायन औषधि है जो अतिसार में प्रयोग की जाती है. तो आईये जानते हैं गंगाधर रस के घटक, निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे में विस्तार से -
गंगाधर रस के घटक या कम्पोजीशन
इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, कुटज छाल, अतीस, लोध्र पठानी, बेल गिरी और धाय के फूल प्रत्येक बराबर वज़न में.
निर्माण विधि यह है कि सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बना लें, इसके बाद दूसरी सभी चीजों का बारीक कपड़छन चूर्ण मिक्स कर पोस्त डोडा के क्वाथ में तीन दिनों तक खरल करने के बाद दो-दो रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही गंगाधर रस कहलाता है.
गंगाधर की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक गोली रोज़ दो-तीन बार तक छाछ के साथ या फिर रोगानुसार उचित अनुपान से, वैद्य जी की देख रेख में ही लें.
गंगाधर रस के गुण
यह स्तंभक, संग्राही, आमपाचक जैसे गुणों से भरपूर होता है.
गंगाधर रस के फ़ायदे
यह हर तरह के अतिसार यानी दस्त या लूज़ मोशन रोकने वाली औषधि है.
मूल ग्रन्थ के अनुसार यह रक्तातिसार और आमातिसार में बहुत लाभ करती है.
यह मन्दाग्नि को दूर करती है और भूख बढ़ाती है.
आसान शब्दों में कहूँ तो यह पतले दस्त, डायरिया, ख़ूनी दस्त और आँव वाले दस्त की असरदार दवा है.
आज की जानकारी है सर्पगन्धारिष्ट के बारे में. आज से पहले आपने इसका नाम शायेद ही सुना होगा. मैं अक्सर आयुर्वेद की वैसी औषधियों की जानकारी लेकर आता हूँ जो कहीं और नहीं मिलती.
तो आईये जानते हैं कि सर्पगन्धारिष्ट क्या है? इसकी निर्माण विधि, गुण-धर्म और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से-
यह आसव-अरिष्ट केटेगरी की औषधि है जो सिरप या लिक्विड फॉर्म में होती है.
सर्पगन्धारिष्ट के फ़ायदे
यह औषधि हाई ब्लड प्रेशर और इस से सम्बंधित विकारों में बहुत अच्छा लाभ करती है.
इस के सेवन से वायु विकार नष्ट होकर शान्ति मिलती है.
उर्ध्वगामी वायु के कारण होने वाले उपद्रवों का इससे शमन होकर ह्रदय और मस्तिष्क को शान्ति मिलती है.
अनिद्रा या नीन्द नहीं आना और हिस्टीरिया में भी इसका अच्छा प्रभाव होता है.
शामक तथा जीवनीय औषधियों का मिश्रण होने से सर्पगन्धा का कार्यक्षेत्र और भी बढ़ जाता है.
किडनी पर भी इसका अच्छा असर होता है, इस से पेशाब साफ़ आता है और खून की गर्मी दूर होती है.
सर्पगन्धारिष्ट की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक सुबह-शाम बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद लेना चाहिए.
सर्पगन्धारिष्ट मार्किट में नहीं मिलती है, सिद्धहस्त वैद्यगण इसका निर्माण ख़ुद करते हैं. इसके जैसा ही काम करने वाली औषधि 'सर्पगन्धा वटी' मिल जाएगी जिसका लिंक दिया गया है.
इसे बनाने के लिए चाहिए होता है सर्पगन्धा 5 किलो, बला, असगंध, जटामांसी प्रत्येक 500 ग्राम, शालपर्णी, प्रिश्नपर्णी, नागबला, गम्भारी, गोखरू, जीवक, ऋषभक, मेदा, महा मेदा, ऋद्धि, वृद्धि, काकोली, क्षीरकाकोली, पीपल की छाल, वट की छाल, पलाश की छाल, गूलर की छाल, खस, गन्ध तृष्ण, कुश की जड़, काश की जड़, सरकंडा की जड़, रास्ना, कचूर, बड़ी हर्रे, कूठ और मुलेठी प्रत्येक 120 ग्राम
सभी चीज़ों को जौकूट कर 60 लीटर पानी में पकाया जाता है. जब 20 लीटर पानी शेष बचे तो इसे चूल्हे से उतार कर छानकर, 5 किलो चीनी, 4 किलो शहद, धाय के फूल डेढ़ किलो अच्छी तरह से मिलाने के बाद
नागकेशर, प्रियंगु, तालीसपत्र, तेज पात, दालचीनी और शीतल चीनी प्रत्येक 60 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर प्रक्षेप द्रव्य के रूप में मिलाकर संधिबंद कर सन्धान के लिए एक महीने के लिए रख दिया जाता है. एक महिना बाद छानकर बोतल में भरकर रख लें. यही सर्पगन्धारिष्ट है.
आज की आयुर्वेदिक औषधि का नाम है 'शिवताण्डव रस' तो आईये जानते हैं कि शिवताण्डव रस क्या है? इसकी निर्माण विधि और उपयोग के बारे में सबकुछ विस्तार से -
शिवताण्डव रस
इसका यह नाम कैसे पड़ा यह तो मुझे नहीं पता पर इसका वर्णन 'रस तरंग्नी' में है. इसके घटक और निर्माण विधि कुछ इस प्रकार से है -
शिवताण्डव रस निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध बच्छनाग, रस सिन्दूर, शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक और शुद्ध हरताल प्रत्येक 10-10 ग्राम और काली मिर्च का बारीक कपड़छन चूर्ण 40 ग्राम.
निर्माण विधि यह है कि सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बनाकर दूसरी सभी चीज़ें मिक्स कर अदरक के रस में घोटकर एक-एक रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही शिवताण्डव रस कहलाता है.
इसे सन्निपात रोग की उत्तम औषधि कहा गया है. रोगानुसार मात्रा और अनुपान देना चाहिए.
आज मैं जिस आयुर्वेदिक औषधि की जानकारी देने वाला हूँ इसका नाम है क्षुधासागर रस
यह एक रसायन औषधि है जो अग्नि को बढ़ाकर कड़ाके की भूख लगाती है तो आईये इसके घटक, निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
क्षुधासागर रस के घटक और निर्माण विधि
भैसज्य रत्नावली का यह योग है इसे बनाने के लिए चाहिए होता है शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, जवाखार, सज्जीखार, टंकण भस्म, काला नमक, सेंधा नमक, समुद्र लवण, विड लवण, साम्भर लवण प्रत्येक एक-एक भाग और शुद्ध बच्छनाग दो भाग.
निर्माण विधि कुछ इस तरह से है कि सबसे पहले पारा-गंधक को पत्थर के खरल में डालकर कज्जली बना लें इसके बाद दूसरी सभी चीजों का बारीक कपड़छन चूर्ण बनाकर मिलाकर तीन दिन तक पानी के साथ खरल कर एक-एक रत्ती या 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही क्षुधासागर रस कहलाता है.
क्षुधासागर रस की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक गोली सुबह-शाम लौंग का चूर्ण मिलाकर गर्म पानी के साथ, या रोगानुसार उचित अनुपान से
क्षुधासागर रस के फ़ायदे
यह न सिर्फ़ भूख बढ़ाता है बल्कि पेट की बीमारियों जैसे पेट दर्द, गोला बनना, गैस चढ़ना, पेट फूलना, अपच, दस्त, पेट गुड़-गुड़ करना इत्यादि को दूर करता है.
वात और कफ जनित विकारों में इसका सेवन करना चाहिए. बढ़े हुए पित्त दोष और अल्सर में इसका सेवन न करें.
चूँकि यह रसायन औषधि है तो इसे स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही लें. मार्किट में यह शायेद ही मिले, सिद्धहस्त वैद्यगण इसका निर्माण कर प्रयोग कराते हैं.
इसी के जैसा काम करने वाली भूख बढ़ाने वाली औषधि 'अग्निवर्द्धक क्षार' आप ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं जिसका लिंक दिया गया है.
शहद और इसके फ़ायदे के बारे में कौन नहीं जानता. छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़े सभी लोग इसे पसन्द करते हैं. और आयुर्वेद की अधिकतर औषधियों को शहद के साथ सेवन किया जाता है.
पर क्या आप जानते हैं कि जिस मीठी चीज़ को अमृत समझ कर आप सेवन कर रहे हैं वह मीठा ज़हर भी हो सकता है? पर कैसे? यही सब आज बताने वाला हूँ, आईये सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
मधु, हनी या शहद आप जो भी नाम लें इसका, सबसे ज़्यादा मिलावट की जाने वाली दुनिया की चीजों में से यह एक है.
असली शहद अमृत तुल्य माना जाता है जिसे हर उम्र के लोग हर तरह की बीमारी इसका सेवन कर लाभ उठाते हैं.
शहद के फ़ायदे
इसके फ़ायदे तो आप जानते ही होंगे, संक्षिप्त में बता दूँ कि यह इम्युनिटी बूस्टर, एन्टी, ऑक्सीडेंट, एंटी सेप्टिक, एन्टी बैक्टीरियल जैसे गुणों से भरपूर होता है. यह सब फ़ायदे आपको तभी मिलेंगे जब शहद असली हो.
विज्ञान ने आज इतना तरक्की कर ली है कि बिल्कुल शहद जैसी चीज़ प्रयोगशाला में बनने लगी है जो की बहुत सस्ती होती है कौड़ी के भाव की.
आपको यकीन नहीं होगा भारत में बिक रहे शहद के जितने भी पॉपुलर ब्रांड हैं उनमे से अधिकतर नक़ली शहद है. रिपोर्ट में आया है कि 13 में से 10 ब्रांड के शहद बिल्कुल बनावटी हैं, मिलावटी हैं. इनमे छोटे-बड़े ब्रांड से लेकर नयी-पुरानी बहुत सी कंपनियाँ हैं जिसमे डाबर, बैद्यनाथ, पतंजलि, झंडू जैसी कम्पनियां.
इनके बड़े-बड़े ऐड/विज्ञापन आप सुबह से शाम तक टीवी पर देख सकते हैं, जो असली शहद के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाते हैं.
आज के समय में शहद का जितना खपत होता है उसका 25% तक भी मधुमखियों से या प्राकृतिक तौर पर उत्पादन नहीं होता है. पर जहाँ भी मार्केट में देखें शहद की कभी क़िल्लत नहीं होती है, आप जितना चाहें मिल जायेगा.
इसी से आप समझ सकते हैं कि इतना शहद आता कहाँ से है. सस्ती वस्तुओं का वैश्विक निर्माता चाइना बनावटी शहद दुनिया के अधिकतर देशों को सप्लाई कर रहा है. यह ऐसा बनावटी शहद बनाता है कि हमारे देश भारत की किसी भी लेबोरेटरी में आप टेस्ट करा लो, पकड़ में नहीं आयेगा. यह लोग खुले तौर पर बताते हैं कि हमारा शहद लो आपके देश के फलां-फलां टेस्ट में यह पकड़ में नहीं आयेगा. यह नक़ली शहद जो है वह शुगर सिरप का मॉडिफाइड वर्ज़न है.
मिलावट का यह बाज़ार कोई नया नहीं है, कभी-कभार न्यूज़ में इस तरह की सच्चाई आती है पर यह लोग इतने बड़े मार्केट लीडर और माफ़िया हैं कि कोई इनके सामने टिक नहीं पायेगा. आप चाहें तो गूगल पर सर्च कर लें इस से रिलेटेड ख़बर मिल जाएगी.
अब सवाल यह उठता है कि असली शहद कहाँ से मिलेगा?
असली शहद के लिए अगर आपके आस-पास मधुमक्खी का छत्ता है तो वहां से निकलवाएँ, या फिर हनी फार्म जाकर अपने सामने शहद निकलवाएँ.
मेरे चिकित्सालय में औषधिय प्रयोग के लिए असली शहद निकलवाता हूँ. झारखण्ड/बिहार के बॉर्डर के जंगल से बिल्कुल प्राकृतिक आर्गेनिक हनी. स्थानीय आदिवासी समुदाय के व्यक्ति जंगली पेड़ों से ढूंडकर शहद निकालते हैं हमारे गाइड की देख रेख में. यह अलग-अलग सीजन में अलग टेस्ट और थोड़ा अलग रंग का होता है. यह सिमित मात्रा में ही मिलता है, जिस से हमारे क्लिनिक की ज़रुरत पूरी हो जाती है.
अगर आप यह असली शहद ट्राई करना चाहते हैं तो इसका लिंक दिया गया है, मंगाकर यूज़ कीजिये और अपने अनुभव कमेंट कर बताईये.
धाय के फूल 1 किलो, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपात, नागकेशर प्रत्येक 75 ग्राम, लौंग, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और शीतल चीनी प्रत्येक 50-50 ग्राम
गुड़- 15 किलो और पानी 200 लीटर
चविकासव निर्माण विधि
सबसे पहले क्वाथ द्रव्यों को मोटा-मोटा जौकूट कर 25 लीटर पानी रहने तक क्वाथ किया जाता है. इसके बाद छानकर गुड़ और प्रक्षेप द्रव्यों का जौकुट चूर्ण मिलाकर चिकने पात्र में डालकर एक महिना के लिए संधान के लिए छोड़ दिया जाता है. एक महिना के बाद छानकर बोतलों में भर लिया जाता है. यही चविकासव है.
चविकासव की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक सुबह-शाम भोजन के बाद बराबर मात्रा में जल मिलाकर लेना चाहिए
चविकासव के गुण
दीपक, पाचक, सारक, गुल्म, मेह नाशक और उष्ण वीर्य है
चविकासव के फ़ायदे
इसके सेवन से वातज गुल्म, कफज गुल्म और वात कफज गुल्म नष्ट होते हैं.
लिवर और अग्नाशय की विकृति को दूर कर इक्षुमेह, लालामेह को नष्ट करता है.
सर्दी, खाँसी, बार-बार छींक आना, नाक और गले का दर्द, बदन दर्द, नाक से पानी बहते रहना जैसी समस्याओं को दूर करता है.
लिवर-स्प्लीन की विकृति, पाचन की कमज़ोरी, अजीर्ण इत्यादि को दूर कर सम्पूर्ण पाचन तंत्र को दृढ़ बनता है. यह रक्त वर्धक और पित्त वर्धक भी है.
आसान शब्दों में कहूँ तो गैस, पेट में गोला बनना, लिवर-स्प्लीन की बीमारी और सर्दी-जुकाम के लिए यह असरदार औषधि है.
आज से पहले इन्टरनेट पर किसी ने भी इसके बारे में नहीं बताया है. तो आईये जानते हैं कि कृष्ण बीजादि चूर्ण क्या है? इसके फ़ायदे, इसका कम्पोजीशन और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं-
कृष्ण बीजादि चूर्ण के घटक या कम्पोजीशन -
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक कृष्ण बीज होता है, जिसे कालादाना भी कहा जाता है.
इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है कृष्ण बीज या काला दाना, सोंठ, सनाय पत्ती, बड़ी हर्रे, सौंफ़, इसबगोल की भूसी और मिश्री प्रत्येक समभाग. सभी को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें, बस कृष्ण बीजादि चूर्ण तैयार है.
कृष्ण बीजादि चूर्ण के फ़ायदे
कब्ज़ या Constipation दूर करने के लिए इसे प्रयोग किया जाता है.
मल शुद्धि के लिए वैद्यगण इसका प्रयोग कराते हैं.
यह आंतों की क्रियाशीलता को बढ़ाता है, गैस दूर करता है और पाचन शक्ति को इम्प्रूव करने में मदद करता है.
यह साधारण सा पर कमाल का नुस्खा है जिसे अधिकतर लोग गुप्त ही रखते हैं.
यह मार्केट में नहीं मिलता, खुद बनाकर प्रयोग करें, अगर नहीं बना सकें तो इसी के जैसा लाभ देने वाली औषधि 'सुगम चूर्ण' आप ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं.
चार तरह की जड़ी-बूटियों के मिश्रण से बनी हुयी औषधि को आयुष क्वाथ का नाम दिया गया है. इसे भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने प्रचलित किया है.
इसके घटक की बात करें तो इसमें तुलसी के पत्ते चार भाग, दालचीनी दो भाग, काली मिर्च एक भाग और सोंठ दो भाग का मिश्रण होता है.
आयुष क्वाथ सेवन विधि
3 ग्राम इस मिश्रण को लेकर 150 ML में पानी में अच्छी तरह से उबालकर या काढ़ा बनाकर इसमें थोड़ा गुड़ मिक्स कर चाय की तरह पीना चाहिए. इसमें निम्बू का रस भी मिला सकते हैं.
आयुष क्वाथ के फ़ायदे
इम्युनिटी बढ़ाने और वायरल रोगों से बचाव करने में यह काफ़ी असरदार है. कोरोना काल में यह काफ़ी प्रचलित हुआ है.
कम से कम रोज़ एक बार इसका सेवन करते रहने से आप मौसम बदलने से होने वाली परेशानी जैसे सर्दी, जुकाम, खाँसी, बुखार इत्यादि से बच सकते हैं.
टाइफाइड, मलेरिया, चिकनगुनिया और डेंगू जैसी बीमारियों से बचाव में भी सहायक है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह बहुत ही सिंपल पर असरदार कॉम्बिनेशन है जिसे हर उम्र के लोग सेवन कर सकते हैं.
आज की जानकारी है धान्यपंचक के बारे में. इसका क्वाथ बनाकर और रिष्ट बनाकर दोनों तरह से प्रयोग किया जाता है तो आइये धान्यपंचक क्वाथ और धान्यपंचकारिष्ट के गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं-
सबसे पहले जानते हैं धान्यपंचक क्वाथ के बारे में
धान्यपंचक क्वाथ के घटक
इसके लिए पांच चीज़ लेनी होती है धनिया, खस, बेल गिरी, नागरमोथा और सोंठ. सभी को बराबर वज़न में लेकर मोटा-मोटा कूटकर रख लें.
10 ग्राम इसके जौकूट चूर्ण को 100 ml पानी उबालना होता है. जब लगभग 40 ml पानी बचे तो ठण्डा होने पर छानकर रोगी को पीना चाहिए.
इसी तरह से रोज़ इसकी दो से तीन मात्रा तक लेनी चाहिए.
धान्यपंचक क्वाथ के फ़ायदे
अतिसार यानी दस्त या लूज़ मोशन होने पर इसका प्रयोग किया जाता है.
रक्त अतिसार जिसमे दस्त में खून आता हो और पित्तज अतिसार में सोंठ की जगह सौंफ मिलाकर क्वाथ बनाकर सेवन करना चाहिए.
यह दीपन-पाचन और ग्राही गुणों से भरपूर होता है.
धान्यपंचकारिष्ट
धान्यपंचकारिष्ट के घटक भी वही हैं बस इसकी निर्माण विधि अलग होती है.
धान्यपंचकारिष्ट निर्माण विधि
बराबर वज़न में मिली हुयी सभी पाँच चीज़(धनिया, खस, बेल गिरी, नागरमोथा और सोंठ) का जौकूट चूर्ण डेढ़ किलो लेकर 64 लीटर पानी में क्वाथ करें, जब 16 लीटर पानी बचे इसमें 6 किलो गुड़ और आधा किलो धाय फुल मिलाकर चिकने पात्र में एक महिना के लिए संधान के लिए छोड़ दिया जाता है. एक महिना बाद इसे छानकर बोतलों में भरकर रख लिया जाता है. यह सिद्ध योग संग्रह का योग है.
धान्यपंचकारिष्ट की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक सुबह-शाम बराबर मात्रा में पानी मिलाकर लेना चाहिए
धान्यपंचकारिष्ट के फ़ायदे
अतिसार, प्रवाहिका और संग्रहणी में इसके सेवन से लाभ होता है.
यह भी दीपन-पाचन और ग्राही है, इसके फ़ायदे भी धान्यपंचक क्वाथ वाले ही हैं बल्कि उस से कहीं बेहतर.
तो दोस्तों, यह थी आज की जानकारी धान्यपंचक क्वाथ और धान्यपंचकारिष्ट के बारे में