इसे कई जगह व्याधिहरण रस के नाम से भी जाना जाता है. यह तेज़ी से असर करने वाली ऐसी औषधि है जो अनुपान भेद से अनेकों रोगों को दूर करती है.
तो आईये जानते हैं व्याधिहरण रसायन गुण, उपयोग निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे सबकुछ विस्तार से -
व्याधिहरण रसायन जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह व्याधि यानी रोग-बीमारी को दूर करने वाली रसायन औषधि है. यह कूपीपक्व रसायन औषधि है जो तेज़ अग्नि से विशेष विधि से बनाई जाती है.
यह रक्तदोष नाशक, विष नाशक, एन्टी सेप्टिक औषधि है.
व्याधिहरण रसायन के फ़ायदे
यह नए पुराने उपदंश और उसके कारन उत्पन्न लक्षणों को दूर करती है. शास्त्रों में कहा गया है कि उपदंश का विष हड्डी तक पहुँच गया हो तब भी इस से लाभ होता है.
रक्त विकार, गठिया, बात, हर तरह के ज़ख्म, खाज-खुजली, फोड़ा-फुंसी, भगन्दर कुष्ठ तथा चर्म रोगों में जैसे चकत्ते, अण्डवृद्धि, नाखून टेढ़ा होना, शोथ, वृक्कशोथ आदि में गुणकारी है.
अनुभवी वैद्यगण ही इसका प्रयोग करते हैं, वैद्य जी की सलाह के बिना इसे कभी भी न लें.
व्याधिहरण रसायन की मात्रा और सेवन विधि
60 मिलीग्राम से 125 मिलीग्राम तक घी, शहद, अद्रक के रस, पान के रस या रोगानुसार उचित अनुपान से स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही लेना चाहिए.
व्याधिहरण रसायन के घटक या कम्पोजीशन
यह छह चीज़ों के मिश्रण से बनाया जाता है. इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध, पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध संखिया, शुद्ध हरताल, शुद्ध मैनसिल और रस कपूर सभी समान मात्रा में.
व्याधिहरण रसायन निर्माण विधि
इसके निर्माण के लिए सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बनाकर दूसरी चीज़े मिक्स घोटने के बाद आतिशी शीशी में भरकर 'बालुका यंत्र' में रखकर क्रम से मृदु, मध्यम और तीक्ष्ण आँच लगातार तीन दिन तक दी जाती है. इसके बाद ठण्डा होने पर शीशी निकालकर दवा निकाल ली जाती है.
इसे बनाने की प्रक्रिया जटिल है, बस आपकी जानकारी के लिए संक्षेप में बताया हूँ. सिद्धहस्त अनुभवी वैद्य ही इसका निर्माण कर सकते हैं, सब के बस की बात नहीं.
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