तो आईये जानते हैं कि सर्पगन्धारिष्ट क्या है? इसकी निर्माण विधि, गुण-धर्म और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से-
यह आसव-अरिष्ट केटेगरी की औषधि है जो सिरप या लिक्विड फॉर्म में होती है.
सर्पगन्धारिष्ट के फ़ायदे
यह औषधि हाई ब्लड प्रेशर और इस से सम्बंधित विकारों में बहुत अच्छा लाभ करती है.
इस के सेवन से वायु विकार नष्ट होकर शान्ति मिलती है.
उर्ध्वगामी वायु के कारण होने वाले उपद्रवों का इससे शमन होकर ह्रदय और मस्तिष्क को शान्ति मिलती है.
अनिद्रा या नीन्द नहीं आना और हिस्टीरिया में भी इसका अच्छा प्रभाव होता है.
शामक तथा जीवनीय औषधियों का मिश्रण होने से सर्पगन्धा का कार्यक्षेत्र और भी बढ़ जाता है.
किडनी पर भी इसका अच्छा असर होता है, इस से पेशाब साफ़ आता है और खून की गर्मी दूर होती है.
सर्पगन्धारिष्ट की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक सुबह-शाम बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद लेना चाहिए.
सर्पगन्धारिष्ट मार्किट में नहीं मिलती है, सिद्धहस्त वैद्यगण इसका निर्माण ख़ुद करते हैं. इसके जैसा ही काम करने वाली औषधि 'सर्पगन्धा वटी' मिल जाएगी जिसका लिंक दिया गया है.
सर्पगन्धारिष्ट के घटक या कम्पोजीशन
इसे बनाने के लिए चाहिए होता है सर्पगन्धा 5 किलो, बला, असगंध, जटामांसी प्रत्येक 500 ग्राम, शालपर्णी, प्रिश्नपर्णी, नागबला, गम्भारी, गोखरू, जीवक, ऋषभक, मेदा, महा मेदा, ऋद्धि, वृद्धि, काकोली, क्षीरकाकोली, पीपल की छाल, वट की छाल, पलाश की छाल, गूलर की छाल, खस, गन्ध तृष्ण, कुश की जड़, काश की जड़, सरकंडा की जड़, रास्ना, कचूर, बड़ी हर्रे, कूठ और मुलेठी प्रत्येक 120 ग्राम
सभी चीज़ों को जौकूट कर 60 लीटर पानी में पकाया जाता है. जब 20 लीटर पानी शेष बचे तो इसे चूल्हे से उतार कर छानकर, 5 किलो चीनी, 4 किलो शहद, धाय के फूल डेढ़ किलो अच्छी तरह से मिलाने के बाद
नागकेशर, प्रियंगु, तालीसपत्र, तेज पात, दालचीनी और शीतल चीनी प्रत्येक 60 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर प्रक्षेप द्रव्य के रूप में मिलाकर संधिबंद कर सन्धान के लिए एक महीने के लिए रख दिया जाता है. एक महिना बाद छानकर बोतल में भरकर रख लें. यही सर्पगन्धारिष्ट है.
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