आज मैं जिस आयुर्वेदिक औषधि की जानकारी देने वाला हूँ उसका नाम है चविकासव
इसका नाम आज से पहले आपने शायेद ही सुना होगा, तो आईये जानते हैं चविकासव क्या है? इसके गुण उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से -
चविकासव के घटक या कम्पोजीशन
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है चव्य इसका मुख्य घटक है, इसे ही चाभ, चव्यक जैसे नामों से भी जाना जाता है.
चविकासव के घटक या कम्पोजीशन की बात करें तो इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है-
क्वाथ द्रव्य
चव्य ढाई किलो, चित्रकमूल सवा किलो, काला जीरा, पोहकरमूल, बच, हाऊबेर, कचूर, पटोलपत्र, हर्रे, बहेड़ा, आमला, अजवायन, कूड़े की छाल, इन्द्रायणमूल, धनियाँ, रास्ना, दन्तीमूल प्रत्येक 500 ग्राम, वायविडंग, नागरमोथा, मंजीठ, देवदारु, सोंठ, काली मिर्च, पीपल प्रत्येक 250 ग्राम
प्रक्षेप के लिए-
धाय के फूल 1 किलो, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपात, नागकेशर प्रत्येक 75 ग्राम, लौंग, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और शीतल चीनी प्रत्येक 50-50 ग्राम
गुड़- 15 किलो और पानी 200 लीटर
चविकासव निर्माण विधि
सबसे पहले क्वाथ द्रव्यों को मोटा-मोटा जौकूट कर 25 लीटर पानी रहने तक क्वाथ किया जाता है. इसके बाद छानकर गुड़ और प्रक्षेप द्रव्यों का जौकुट चूर्ण मिलाकर चिकने पात्र में डालकर एक महिना के लिए संधान के लिए छोड़ दिया जाता है. एक महिना के बाद छानकर बोतलों में भर लिया जाता है. यही चविकासव है.
चविकासव की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक सुबह-शाम भोजन के बाद बराबर मात्रा में जल मिलाकर लेना चाहिए
चविकासव के गुण
दीपक, पाचक, सारक, गुल्म, मेह नाशक और उष्ण वीर्य है
चविकासव के फ़ायदे
इसके सेवन से वातज गुल्म, कफज गुल्म और वात कफज गुल्म नष्ट होते हैं.
लिवर और अग्नाशय की विकृति को दूर कर इक्षुमेह, लालामेह को नष्ट करता है.
सर्दी, खाँसी, बार-बार छींक आना, नाक और गले का दर्द, बदन दर्द, नाक से पानी बहते रहना जैसी समस्याओं को दूर करता है.
लिवर-स्प्लीन की विकृति, पाचन की कमज़ोरी, अजीर्ण इत्यादि को दूर कर सम्पूर्ण पाचन तंत्र को दृढ़ बनता है. यह रक्त वर्धक और पित्त वर्धक भी है.
आसान शब्दों में कहूँ तो गैस, पेट में गोला बनना, लिवर-स्प्लीन की बीमारी और सर्दी-जुकाम के लिए यह असरदार औषधि है.
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