भारत की सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक हिन्दी वेबसाइट लखैपुर डॉट कॉम पर आपका स्वागत है

03 सितंबर 2021

Pashupat Ras | पाशुपत रस

 


यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो बहुत कम प्रचलित है. इस योग से आप अनभिज्ञ न रहें इसके लिए आज मैं पाशुपत रस के गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में बताऊंगा, तो आईये जानते हैं इसके बारे में सबकुछ विस्तार से  - 

पाशुपत रस के घटक और निर्माण विधि -

शुद्ध पारा एक भाग, शुद्ध गन्धक 2 भाग, तीक्ष्ण लौह भस्म 3 भाग और शुद्ध बच्छनाग 6 भाग लेकर सब से से पहले पत्थर के खरल में पारा-गन्धक को खरल कर कज्जली बना लें

इसके बाद शुद्ध बच्छनाग का बारीक चूर्ण और तीक्ष्ण लौह भस्म को डालकर 'चित्रकमूल क्वाथ' में एक दिन तक घोटें. 

इसके बाद धतूरे के बीजों की भस्म 32 भाग, सोंठ, मिर्च, पीपल, लौंग और इलायची प्रत्येक 3-3 भाग, जायफल और जावित्री प्रत्येक आधा भाग, पञ्च नमक ढाई भाग, थूहर, आक, एरण्ड मूल, अपामार्ग, पीपल(वृक्ष) क्षार, हर्रे, जवाखार, सज्जी क्षार, शुद्ध हीरा हिंग, जीरा और शुद्ध सुहागा प्रत्येक एक-एक भाग लेकर बारीक चूर्ण बनाकर पहले वाली दवा में मिलाकर एक दिन तक निम्बू के रस में घोंटकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस पाशुपत रस तैयार है. 

पाशुपत रस की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद ताल मूली के रस और पानी से 

पाशुपत रस के गुण 

आयुर्वेदानुसार यह शोधक, दीपक, पाचक, संग्राहक, आमपाचक, वात नाशक, पित्त शामक और कफ़ नाशक भी है. ह्रदय को शक्ति देने वाली और तेज़ी से असर अकरने वाली औषधि है. इसके सेवन से विशुचिका शीघ्र नष्ट होती है. 

पारे और गंधक के रसायन और पाचक गुणों के अतिरिक्त इसमें लौह रक्तवर्धक, जायफल और धतुरा बीज रोधक गुणों से पूर्ण है. क्षार, लवण और थूहर भेदक गुणों का होता है. इस प्रकार से यह औषधि रोधक और भेदक होने से आँतों की क्रिया शिथिलता को दूर करने में सफ़ल है. यह आंत, लिवर और स्प्लीन को एक्टिव करती है और शक्ति देती है. अग्नि को तेज़ कर पाचन ठीक करती है और प्रकुपित वायु को भी नष्ट करती है. 

पाशुपत रस के रोगानुसार अनुपान 

अलग-अलग अनुपान से इसके सेवन से अनेकों रोगों में लाभ होता है जैसे - 

तालमूली के रस के साथ सेवन करने से उदर रोगों या पेट की बीमारियों को नष्ट करती है 

मोचरस के साथ सेवन करने से अतिसार या दस्त की बीमारी दूर होती है 

संग्रहणी में इसे छाछ के साथ सेंधानमक मिलाकर लेना चाहिए 

दर्द वाले रोगों या वात रोगो में इसे पीपल, सोंठ और सौवर्चलवण के साथ लेना चाहिए 

पीपल के चूर्ण के साथ लेने से TB की बीमारी में लाभ होता है 

बवासीर में छाछ के साथ लें 

पित्त रोगों में बुरा और धनिये के साथ लेना चाहिए 

इसी तरह से पीपल और शहद के साथ लेने से  कफ़ रोगों को दूर करती है. 

ध्यान रहे - यह तेज़ी से असर करने वाली रसायन औषधि है तो इसे स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही सेवन करना चाहिए. 



हमारे विशेषज्ञ आयुर्वेदिक डॉक्टर्स की टीम की सलाह पाने के लिए यहाँ क्लिक करें
Share This Info इस जानकारी को शेयर कीजिए
loading...

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

 
Blog Widget by LinkWithin