दारूहल्दी के बारे में आपने सुना होगा, बहुत सारी आयुर्वेदिक औषधियों के कम्पोजीशन में इसका ज़िक्र होता है. दारुहल्दी दारू या शराब है या हल्दी? कई लोग ग़लतफहमी में इसे कुछ और समझ बैठते हैं, तो आईये इसके बारे में सारी चीज़ें क्लियर कर देता हूँ -
दारुहल्दी नाम की जो औषधि है वह न तो दारु है और न ही हल्दी. कई जगह शराब को भी दारु कहा जाता है.
दारुहल्दी को संस्कृत में दारूहरिद्रा कहा जाता है. यहाँ दारु का अर्थ है 'लकड़ी' और हरिद्रा मतलब हल्दी
तो इस तरह से दारूहल्दी का अर्थ निकलता है हल्दी के जैसी पीले रँग की लकड़ी. यह बिलकुल पीले रंग की होती है, देखते पर ऐसा लगता है कि पीले रंग से रंगा गया हो.
आईये अब भाषा भेद से इसका नाम जानते हैं -
संस्कृत में - दारूहरिद्रा, दार्वी, कंटकटेरी और पंचपचा भी कहा जाता है
हिंदी में - दारुहल्दी
गुजराती में - दारुहलदर
मराठी में - दारूहलद
बंगाली में - दारूहरिद्रा
पंजाबी में - दारहल्दी
तमिल में - मरमंजल
तेलगु में - कस्तूरीपुष्प
फ़ारसी में- दारचोबा
अंग्रेजी में - इण्डियन बर्बेरी(Indian Barberry)
लैटिन में - बर्बेरिस एरिस्टेटा(Berberis Aristata) कहते हैं.
होम्योपैथिक दवा बर्बेरिस इसी से बनायी जाती है.
आयुर्वेद में मूल रूप से इसकी लकड़ी का ही प्रयोग किया जाता है.
आयुर्वेदानुसार यह कफपित्त शामक है यानी कफ़ दोष और पित्त दोष का शमन करती है. कामला, यकृत के रोग यानी लिवर की सभी बीमारियाँ, प्रमेह, व्रण या ज़ख्म और रक्तदोष से होने वाले रोग और नेत्र रोगों में यह लाभकारी है.
रसौत क्या है?
यह दारूहल्दी से बनाया जाता है. इसे रसौत, रसवत, रसांजन जैसे नामों से भी जाना जाता है. यह असल दारूहल्दी का ही कंसंट्रेशन है.
रसौत कैसे बनाया जाता है?
रसौत या रसांजन बनाने के लिए दारूहल्दी के छोटे छोटे बारीक टुकड़े कर इसके वज़न का 16 गुना पानी मिलाकर क्वाथ बनाया जाता है. जब एक चौथाई पानी शेष रहे तो छानकर दुबारा हलवे की तरह गाढ़ा होने तक उबाला जाता है,इसके बाद धुप में सुखा लिया जाता है. यही रसौत या रसांजन है.
इसे अनेकों औषधियों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है. यूनानी में भी रसौत का बहुत प्रयोग होता है.
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