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17 जनवरी 2021

Navratna Kalpamrit Ras | नवरत्नकल्पामृत रस के गुण और उपयोग

 

navratna kalapamrit ras benefits

नवरत्नकल्पामृत रस जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है नवरत्नों से बनी अमृत के समान कल्प के रूप में प्रयोग की जाने वाली रसायन औषधि. 

नवरत्नकल्पामृत रस के घटक या कम्पोजीशन - 

इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें नौ प्रकार के रत्न या नवरत्नों के अतिरिक्त स्वर्ण भस्म जैसे दुसरे जैसे कई मूल्यवान भस्मों के संयोग से बनाया जाता है. 

रस तंत्र सार में इसके घटक कुछ इस तरह से हैं - 

पन्ना पिष्टी, पुखराज पिष्टी, नीलम पिष्टी, माणिक्य पिष्टी, वैडूर्य पिष्टी, गोमेदमणि पिष्टी और मुक्ता पिष्टी प्रत्येक एक-एक तोला, रजत भस्म, प्रवाल पिष्टी और रजावर्त पिष्टी प्रत्येक दो-दो तोला, स्वर्ण भस्म, लौह भस्म, यशद भस्म और अभ्रक भस्म प्रत्येक 6-6 माशा, शुद्ध गुग्गुल, शुद्ध शिलाजीत और गुडूचीघन प्रत्येक 11-11 तोला, गाय का घी आवश्यकतानुसार

नवरत्नकल्पामृत रस निर्माण विधि 

सबसे पहले सभी भस्मो और पिष्टी को मिक्स कर खरल कर गुग्गुल, शिलाजीत और गुडूचीघन मिक्स कर थोड़ा-थोड़ा घी मिलाते हुए कूटें, इसके बाद एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही नवरत्नकल्पामृत रस की निर्माण विधि है. वैसे यह बना हुआ उपलब्ध है जिसका लिंक दिया गया है. 

नवरत्नकल्पामृत रस की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो गोली तक सुबह-शाम दूध या रोगानुसार उचित अनुपान से वैद्य जी के निर्देशानुसार सेवन करना चाहिए

नवरत्नकल्पामृत रस के गुण 

यह त्रिदोष नाशक है, पर मेनली वात और पित्त दोष को बैलेंस करता है यानी, वातहर, पित्त नाशक, हेमाटेमिक, दिल और दिमाग को पुष्टि देने वाला, रस, रक्तादि सभी धातुओं को पुष्ट बनाता है.

नवरत्नकल्पामृत रस के फ़ायदे 

वैसे तो यह अनेको रोगों में असरदार है, यहाँ पर इसके कुछ मेन फ़ायदे बता रहा हूँ - 

यह नेचुरल कैल्शियम से भरपूर है तो यह हड्डी की कमज़ोरी और इसकी वजह से होने वाले सभी रोगों में बेहद असरदार है. 

यह शरीर के सभी धातुओं की पुष्टि कर शरीर को निरोग बनाने में सहायता करता है. 

जीर्ण वात रोगों में धैर्यपूर्वक इसका सेवन करने से लाभ होता है.

महिला, पुरुष, बच्चे-बुज़ुर्ग सभी के लिए यह लाभकारी है. 

नस, किडनी, हार्ट, ब्रेन, स्किन, लंग्स इत्यादि सर से लेकर पैर तक यानि पूरी बॉडी के सभी Organs को शक्ति देता है. 

आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार यह अर्श, प्रमेह, क्षय, जीर्ण ज्वर, स्वास-कास, मूत्र रोग, वातरोग, पांडू, कन्ठमाला, अबुर्द या हर तरह का सिस्ट और ट्यूमर, आलस्य, विष, आम विष और गैस इत्यादि रोगों में लाभकारी है.

कल्प के रूप में रोगानुसार उचित अनुपान से एक साल तक सेवन कराया जाता है. 

यह पूरी तरह से सुरक्षित औषधि है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है लॉन्ग टाइम तक यूज़ करने पर भी. 

होम्योपैथिक और एलोपैथीक दवा लेते हुए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं कुछ समय के अंतर से. 

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1 टिप्पणियाँ:

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