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15 दिसंबर 2021

Yakuti Rasayan | याकूती रसायन

 

yakuti ras

आज की जानकारी याकूती रसायन के बारे में. इसे याकूती रस के नाम से भी जाना जाता है यह हार्ट प्रोटेक्टिव और Nervine टॉनिक है जो हृदय की निर्बलता, सन्निपात और मस्तिष्क की दुर्बलता जैसे रोगों में प्रयोग की जाती है. तो आईये जानते हैं याकूती रसायन के गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से - 

याकूती रसायन एक स्वर्णयुक्त आयुर्वेदिक औषधि है जो अम्बर, केशर जैसे बहुमूल्य चीज़ों के मिश्रण से बनती है. 

याकूती रसायन के घटक या कम्पोजीशन 

 इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है माणिक्य पिष्टी, पन्ना पिष्टी, प्रवाल पिष्टी, कहरवा पिष्टी, चन्द्रोदय, सोने का वर्क़, अम्बर, कस्तूरी, आबेरेशम कतरा हुआ और केशर प्रत्येक 20-20 ग्राम, बहमन सफ़ेद, बहमन सुर्ख, जायफल, लौंग और सफ़ेद मिर्च का कपड़छन चूर्ण प्रत्येक 10-10 ग्राम और गुलाब जल प्रयाप्त मात्रा में.

याकूती रसायन की निर्माण विधि 

सबसे पहले चन्द्रोदय को खरल करें इसके बाद कस्तूरी और अम्बर को छोड़कर दूसरी सभी चीज़ मिक्स कर लगातार 21 दिनों तक गुलाब जल में खरल करना होता है. अम्बर और कस्तूरी लास्ट दिन में मिक्स कर खरलकर 125mg की गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर रख लिया जाता है. यही याकूती रसायन या याकूती रस है. आज के समय में कस्तूरी नहीं मिलती, जिस से इसका वैसा लाभ नहीं मिलता जैसा पहले के समय में वैद्यगण इसे बनाकर प्रयोग करते थे. 

इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक - 

Baidyanath Yakuti Ras (10Tablet) 

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याकूती रसायन की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली सुबह-शाम शहद, खमीरा गाओज़बाँ या उचित अनुपान से 

याकूती रसायन के गुण 

यह वात और पित्त नाशक है, तासीर में शीतल है. रसायन, हृदय और मस्तिष्क को बल देने वाला और चिंता-तनाव नाशक गुणों से भरपूर होता है. 

याकूती रसायन के फ़ायदे 

  • हृदय की दुर्बलता, हृदय का अनियमित स्पन्द, थोड़ा सा भी चलने पर दम फूलना, घबराहट, पसीना आना जैसे हार्ट की कमज़ोरी से  होने वाले सभी लक्षणों में इसके सेवन से लाभ होता है. 
  • वातज और पित्तज सन्निपात में वैद्यगण इसका प्रयोग करते हैं. 
  • अत्यधिक मानसिक कार्य करने से दिमाग कमज़ोर होना, भूलने की बीमारी, आलस्य, क्रोध, शक्की होना, पाचन ख़राब हो जाने में इसके सेवन से लाभ होता है. 
  • डिप्रेशन, नींद नहीं आना, जीवन से निराश होना इत्यादि मानसिक विकारों में भी लाभकारी है. 
  • अधीक वीर्य-स्राव और शुक्रक्षय से उत्पन्न पुरुष रोगों में भी इसके सेवन से लाभ होता है.
  • हार्ट, ब्रेन और नर्वस सिस्टम पर इसका अच्छा प्रभाव होता है, तो इसी को ध्यान में रखकर इसका उपयोग करना चाहिए. इसे वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करें. 

तो यह थी आज की जानकारी याकूती रसायन के बारे में. इसके बारे में कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये 



10 दिसंबर 2021

Pipalyasava Benefits | पिपल्यासव के फ़ायदे

 

pipalyasavam

इसका नाम आपने शायेद ही सुना होगा, क्यूंकि यह अधीक प्रसिद्ध औषधि नहीं है. इसे साउथ इंडिया में पिपल्यासवम के नाम से जाना जाता है, तो आईये पिपल्यासव के घटक, निर्माण विधि और गुण-उपयोग के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं. 

पिपल्यासव 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि आसव या लिक्विड फॉर्म वाली औषधि है जिसका जिसका मुख्य घटक पिप्पली है. 

पिपल्यासव के गुण 

यह कफ़ और वात नाशक और पित्त वर्द्धक है. यह अग्निवर्द्धक और पाचक है, मतलब पाचन शक्ति तेज़ करने वाला और भूख बढ़ाने वाला है. 

पिपल्यासव के फ़ायदे 

मूल ग्रन्थ के अनुसार इसके सेवन से उदर रोग ग्रहणी, संग्रहणी, गुल्म, पांडू, अर्श, क्षय इत्यादि नष्ट होते हैं. 

जीर्ण ज्वर, मन्दाग्नि और कास-श्वास से इसके सेवन से लाभ होता है. 

खाँसी, ब्रोंकाइटिस, IBS, बवासीर, खून  की कमी, गैस, खाने में रूचि नहीं होना, भूख नहीं लगना, फैटी लिवर, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना और TB, Phthisis जैसे रोगों में सहायक औषधि के रूप में इसका सेवन कर सकते हैं. 

पिपल्यासव की मात्रा और सेवन विधि 

15 से 30 ML तक बराबर मात्रा में पानी मिलाकर सेवन करना चाहिए. यह ऑलमोस्ट सुरक्षित औषधि है, पित्तज प्रकृति वालों और जिनका पित्त दोष बढ़ा हो उनको इसका सेवन नहीं करना चाहिय

पिपल्यासव के घटक और निर्माण विधि 

भैषज्य रत्नावली का यह योग है, आपकी जानकारी के लिए इसके घटक और निर्माण विधि बता दे रहा हूँ- 

इसे बनाने के लिए चाहिए होता है - पीपल, काली मिर्च, हल्दी, चव्य, चित्रकमूल, नागरमोथा, विडंग, सुपारी, जलजमनी, आँवला, एलुआ, खस, सफ़ेद चन्दन, कूठ, लौंग, इलायची, दालचीनी, तेजपात, तगर, जटामांसी, प्रियंगु और नागकेशर प्रत्येक 20-20 ग्राम, धाय के फुल आधा किलो, मुनक्का 3 किलो, गुड़ 15 किलो और पानी 25 लीटर 

निर्माण विधि यह है कि सभी जड़ी-बूटियों को जौकूट कर पानी में गुड़ घोलकर मिला दें, धाय के फुल को नहीं कुटना चाहिए. इसके बाद चीनी मिट्टी के बर्तन में डालकर इसका मुंह बंद कर एक महिना के लिए संधान के लिए रख दिया जाता है. एक महीने के बाद इसे छानकर बोतलों में भर लिया जाता है. यही पिपल्यासव या पिपल्यासवम है. 

यह बना हुआ मार्केट में उपलब्ध है जिसका लिंक दिया गया है. 

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05 दिसंबर 2021

Hiranyagarbh Pottli Ras | हिरण्यगर्भ पोट्टली रस

 

Hiranyagarbh Pottli Ras

यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जिसका वर्णन 'भैषज्य रत्नावली' नामक आयुर्वेदिक ग्रन्थ में मिलता है. यह स्वर्णयुक्त रसायन औषधि है, तो आईये इसके गुण-धर्म, घटक, निर्माण विधि और उपयोग के बारे सबकुछ विस्तार से जानते हैं - 

हिरण्यगर्भ पोट्टली रस 

इसके घटक या इनग्रीडेंट की बात करें तो इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध पारा 10 ग्राम, स्वर्ण भस्म 20 ग्राम, शुद्ध गंधक और कपर्दक भस्म प्रत्येक 30 ग्राम, मोती भस्म 40 ग्राम, शँख भस्म 40 ग्राम और टंकण भस्म 2.5 ग्राम 

हिरण्यगर्भ पोट्टली रस निर्माण विधि 

आपकी जानकारी के लिए निर्माण विधि बता रहा हूँ, सबके लिए इसका निर्माण करना संभव नहीं-

सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को खरलकर कज्जली बनाकर दुसरे भस्मों को मिक्स कर निम्बू के रस में घुटाई किया जाता है. इसके बाद इसकी टिकिया बनाकर सुखाकर सम्पुट में कपड़मिट्टी कर 'गजपुट' की अग्नि दी जाती है. बाद में इसे खरलकर रख लिया जाता है. यही हिरण्यगर्भ पोट्टली रस रस कहलाता है. 

हिरण्यगर्भ पोट्टली रस की मात्रा और सेवन विधि 

125 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम तक काली मिर्च और विषम मात्रा में घी और शहद के साथ. या वैद्य जी की सलाह से रोगानुसार उचित अनुपान के साथ ही इसका सेवन करना चाहिए.

हिरण्यगर्भ पोट्टली रस के गुण 

यह विशेष रूप से वात-कफ़ नाशक है. उचित अनुपान से सभी रोगों में इसका प्रयोग कर सकते हैं. मूल ग्रन्थ के अनुसार यह रसायन अग्निमान्ध, संग्रहणी, श्वास, कास, अर्श, पीनस, अतिसार, पांडू, शोथ, उदररोग, विषम ज्वर, यकृत-प्लीहा रोग नाशक है. सन्निपातिक रोगों में अमृत के सामान गुणकारी कहा गया  है. 

हिरण्यगर्भ पोट्टली रस के फ़ायदे 

शरीर में वात और कफ़ की वृद्धि होने या विकृति होने पर इसका सफल प्रयोग कर सकते हैं. 

जैसे कफ़ की वृद्धि होने पर भूख न लगना, पाचन की कमजोरी, आलस्य, कब्ज़, उल्टी जैसा लगना, खाने में रूचि नहीं होना जैसे लक्षण होने पर इसके सेवन से लाभ होता है. 

अतिसार या दस्त और संग्रहणी में इसके सेवन से विशेष लाभ होता है. आँतों पर इसका अच्छा प्रभाव होता है, आँतों को मज़बूत बनाता है. 

टी. बी., शारीरिक शक्ति की कमज़ोरी में भी इसका प्रयोग कर सकते हैं. 

चूँकि यह स्वर्णयुक्त रसायन औषधि है तो यह शरीर के रोगों को दूर करने में समर्थ है, बस रोग और रोगी की दशा के अनुसार उचित अनुपान और औषधियों के साथ वैद्यगण इसका प्रयोग कराते हैं. 

इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से और उनकी देख-रेख में ही सेवन करें. 



02 दिसंबर 2021

Bilwasava | बिल्वासव के फ़ायदे

 

bilwasava benefits

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है बिल्व यानी बेल से बनी हुयी आसव-अरिष्ट केटेगरी वाली तरल रूप वाली औषधि. इसका नाम ही बताता है कि बेल इसका मुख्य घटक या मेन इन्ग्रीडेंट है. 

बिल्वासव के घटक या कम्पोजीशन 

इसके कम्पोजीशन की बात करें तो यह कुछ इस तरह से है - कच्चे बेल का गूदा 10 किलो, गुड़ 7.5 किलो, धाय के फुल 1 किलो, नागकेशर 400 ग्राम, काली मिर्च 200 ग्राम, लौंग 200 ग्राम और कपूर 50 ग्राम, क्वाथ बनाने के लिए पानी 80 लीटर 

बिल्वासव निर्माण विधि 

इसे बनाकर यूज़ करना सबके लिए संभव नहीं, बस आपकी जानकारी के लिए बता दे रहा हूँ. बेल के गूदे को पानी में डालकर 20 लीटर पानी बचने तक उबालें. इसके बाद ठण्डा होने पर छानकर दूसरी सभी चीजें मिक्स कर चीनी मिट्टी के घड़े में डालकर अच्छी तरह से सील कर रख दिया जाता है. एक महिना के बाद संधान होने पर कपड़े से छानकर काँच की बोतलों में भरकर रख लिया जाता है. यही बिल्वासव

है. 

बिल्वासव की मात्रा और सेवन विधि 

15 से 30 ml तक रोज़ दो से तीन बार तक भोजन के बाद. या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही सेवन करना चाहिए 

बिल्वासव के गुण 

पाचक, संग्राही, अग्निवर्द्धक और आमपाचक जैसे गुणों से भरपूर होता है

बिल्वासव के फ़ायदे 

अपच, अतिसार, संग्रहणी में ही इसका प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है.

बार-बार दस्त होना, लूज़ मोशन होना और आँतों की कमज़ोरी में इसका प्रयोग किया जाता है.

आँव आना, संग्रहणी, IBS में इसके सेवन से लाभ होता है

पाचन शक्ति को ठीक करता है, भूख बढ़ाता है

IBS में इसे दूसरी औषधियों के साथ सहायक औषधि के रूप में ले सकते हैं. जिनको आसव-अरिष्ट वाली औषधि सूट नहीं करती है उनको इसकी जगह पर 'बिल्वादि चूर्ण' या 'कुटज बिल्वादिघन वटी' जैसी औषधि लेनी चाहिए. 

बिल्वासव ऑलमोस्ट सुरक्षित औषधि है, इसके सेवन से किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है. 

बिल्वासव आप घर बैठे प्राप्त कर सकते हैं, ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक  दिया गया है.  

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28 नवंबर 2021

Navayas Mandur | नवायस मण्डूर के गुण उपयोग और निर्माण विधि

 

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आयुर्वेद की यह प्रसिद्ध औषधि है जिसे नवायस मण्डूर और नवायस लौह के नाम से भी जाना जाता है. इन दोनों में बस कम्पोजीशन का थोड़ा फ़र्क होता है, तो आईये इसके बारे में सबकुछ जानते हैं - 

नवायस मण्डूर के घटक या कम्पोजीशन 

सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, वायविडंग और चित्रकमूल छाल यह सभी नौ जड़ी-बूटियाँ समान भाग लेकर बारीक कपड़छन चूर्ण बना लिया जाता है. इसके बाद इस चूर्ण के कुल वज़न के बराबर उत्तम क्वालिटी का मण्डूर भस्म मिक्स कर तीन दिनों तक खरल करने से औषधि तैयार हो जाती है. 

नवायस मण्डूर की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक ग्राम सुबह-शाम घी, शहद, छाछ या फिर रोगानुसार उचित अनुपान के साथ 

नवायस मण्डूर के गुण 

आयुर्वेदानुसार यह पाचक, दीपक, शोथनाशक, रसायन और रक्तवर्द्धक जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

नवायस मण्डूर के फ़ायदे 

  • एनीमिया या खून की कमी, जौंडिस, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना, लिवर-स्प्लीन की ख़राबी से होने वाले बुखार में इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है. 
  • पाचन शक्ति को ठीक करता है, लिवर की कमजोरी दूर कर भूख बढ़ाता है. 
  • खून की कमी से होने वाली सुजन को दूर करता है. 
  • बच्चों के स्प्लीन बढ़ने से होने वाले, बुखार, कमज़ोरी, पेट बाहर निकल जाना और शरीर सूखने जैसे लक्षण में इसके सेवन से लाभ होता है. 
  • मूल ग्रन्थ के अनुसार पांडू रोग, शोथ, उदररोग, क्रीमी, हृदय रोग, अर्श,भगन्दर इत्यादि में भी इसके सेवन से लाभ होता है. 
  • खून की कमी और सुजन दूर करने के लिए वैद्यगण इसका प्रमुखता से प्रयोग करते हैं. 

नवायस मण्डूर और नवायस लौह में क्या अंतर है?

दोनों के घटक और निर्माण विधि सब एक ही हैं, अंतर बस यह है कि नवायस लौह में 

मण्डूर भस्म की जगह लौह भस्म मिलाकर बनाया जाता है. 

नवायस मण्डूर और नवायस लौह में कौन बेस्ट है?

नवायस मण्डूर बेस्ट है क्यूंकि मण्डूर भस्म ज्यादा सौम्य होता है, और सभी को सूट करता है. इसे अधीक मात्रा में भी प्रयोग कर सकते हैं. 

इसके बारे में यदि आपके मन में कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये

ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है. 



20 नवंबर 2021

Neelkanth Ras | नीलकण्ठ रस- क्या हैं इसके उपयोग?

 

neelkanth ras

इस आयुर्वेदिक औषधि को आज का वैद्य समाज भूल गया है तो आईये नीलकण्ठ रस के गुण उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ जानते हैं- 

आज के समय में नीलकण्ठ रस शायेद की किसी फार्मेसी के बना हुआ मिले, पहले वैद्यगण इसका निर्माण कर अपने क्लिनिक में इसकी एक शीशी अवश्य रखते थे. सिद्धहस्त वैद्यगण इसका निर्माण कर परिक्षण कर सकते हैं. 

नीलकण्ठ रस के घटक और निर्माण विधि 

शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शंख भस्म और शुद्ध नीला थोथा सभी समान भाग लेकर सबसे पहले पारा-गंधक को खरलकर कज्जली बना लें, इसके बाद दूसरी सभी चीज़ मिलाकर देवदाली के रस की 21 भावना देकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही नीलकण्ठ रस है. 

नीलकण्ठ रस की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली अर्क पुदीना के साथ आवश्यकतानुसार 

नीलकण्ठ रस के फ़ायदे 

इसकी एक गोली खाते ही हर तरह की उल्टी रुक  जाती है, बिल्कुल अंग्रेज़ी दवा की तरह तेज़ी से असर करने वाली औषधि है. 

वमन या उल्टी रोकने के लिए बेहद प्रभावशाली है.

कफ़-पित्त दूषित होने के कारन उत्पन्न वमन या उलटी में आशु लाभकारी औषधि है, वैद्यगण इसका निर्माण कर परीक्षा करें. 




13 नवंबर 2021

जीरकाद्यरिष्ट | Jirakadyarishta

 

jirakadyarishta

जीरकाद्यरिष्ट क्या है? 

यह आयुर्वेद के आसव-अरिष्ट केटेगरी की औषधि है जो तरल या लिक्विड रूप में होती है, जिसमे दुसरे रिष्ट की तरह कुछ मात्रा में सेल्फ़ जनरेटेड अल्कोहल भी होता है. 

जीरकाद्यरिष्ट के घटक या कम्पोजीशन 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक जीरा होता है. मूल ग्रन्थ के अनुसार इसके घटक और निर्माण विधि कुछ इस प्रकार से हैं - 

10 सेर सफ़ेद जीरा लेकर इसे 2 मन 22 सेर 32 तोला पानी में क्वाथ करें, जब साढ़े 25 सेर 8 तोला पानी बच जाये तो इसमें गुड़ 15 सेर, धायफूल 15 तोला, सोंठ का चूर्ण 8 तोला, लौंग, बड़ी इलायची, दालचीनी, तेजपात, नागकेशर, जायफल, मोथा और अजवायन प्रत्येक चार-चार तोला लेकर मोटा-मोटा कूटकर काढ़े में मिलाकर मिट्टी के चिकने पात्र या चीनी मिटटी के घड़े में भरकर एक माह के लिए संधान के लिए छोड़ दें, एक माह बाद कपड़े से छानकर काँच के बोतलों में भरकर रख लें. 

निर्माण विधि कुछ समझ में आई? सभी को समझ नहीं आयेगी, जाने दिजिए. यह बना हुआ मार्केट में मिल जाता है. 

जीरकाद्यरिष्ट की मात्रा और सेवन विधि 

15 से 30 ML तक सुबह-शाम भोजन के बाद 

जीरकाद्यरिष्ट के फ़ायदे 

यह पेट की बीमारियों के लिए फ़ायदेमंद है. 

मूल ग्रन्थ के अनुसार यह रुचिकारक, अग्निप्रदीपक, मधुर, शीतल और विष-दोष शामक है. 

यह पाचन शक्ति को ठीक करता है, भूख बढ़ाता है और अफारा को दूर करता है. 

मन्दाग्नि, संग्रहणी और अतिसार में लाभकारी है. 

गर्भाशय की शुद्धि करता है, सुतिकारोग में भी लाभकारी  है. 

इसे आप आयुर्वेदिक दवा दुकान से ख़रीद सकते हैं, ऑनलाइन खरीदने का लिंक दिया गया है. 




05 नवंबर 2021

Medohar Vidangadi Lauh | मेदोहर विडंगादि लौह

 

medohar vidangadi lauh

यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो मेदरोग के अलावा कई दुसरे रोगों को दूर करती है, तो आईये मेदोहर विडंगादि लौह के बारे में सब कुछ जानते हैं - 

मेदोहर विडंगादि लौह 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है मेद का हरण करने वाली विडंग इत्यादि द्रव्यों से बनी लौह युक्त औषधि. यहाँ पर मेद का मतलब फैट या मोटापा से है. 

जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि यह एक शास्त्रीय औषधि है जो आयुर्वेदिक शास्त्र 'भैषज्य रत्नावली' में वर्णित है. 

मेदोहर विडंगादि लौह के घटक या कम्पोजीशन 

इसका कम्पोजीशन बड़ा ही उत्तम है, इसे वायविडंग, हर्रे, बहेड़ा, आंवला, नागरमोथा, सोंठ, पीपल, बेल-गिरी, सफ़ेद चन्दन, सुगंधवाला, पाठा, खस, बला मूल और लौह भस्म के संयोग से बनाया जाता है. 

मेदोहर विडंगादि लौह की निर्माण विधि 

आपकी जानकारी के लिए इसे बनाने की विधि बता दे रहा हूँ. इसे बनाने के लिए बताई गयी सभी जड़ी-बूटियाँ बराबर वज़न में लेकर बारीक चूर्ण बना लिया जाता है. इसके बाद इस चूर्ण के कुल वज़न के बराबर उत्तम लौह भस्म मिलाकर खरलकर पानी मिक्स कर 250 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. कुछ वैद्य लोग इसे गोली न बनाकर ऐसे ही पाउडर फॉर्म ही रखते हैं. 

मेदोहर विडंगादि लौह की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो गोली या 250 से 500 mg तक सुबह-शाम गर्म पानी, शहद या जौ के पानी से. या फिर वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए. 

मेदोहर विडंगादि लौह के फ़ायदे 

शरीर की अतिरिक्त वसा, चर्बी या मोटापा को दूर करता है. 

आलस को दूर कर बल और कान्ति की वृद्धि करता है 

जठराग्नि को तेज़ करता है, शरीर में खून की कमी को दूर करता है 

यह उत्तम बाजीकरण भी है, प्रमेह रोगों में भी लाभकारी है

इन सब के अलावा यह आयुर्वेदिक ग्रन्थ के अनुसार सोमरोग, कृमि रोग, पांडू, कामला में भी प्रभाशाली है. 

मेदोहर विडंगादि लौह Buy Online

फैटकिल कैप्सूल मोटापा दूर करने की औषधि 

फैटकिल चूर्ण 

फैटोनील टेबल

मेदोहर गुग्गुल  




23 अक्टूबर 2021

Pushkarmuladi Guggul | पुष्करमूलादि गुग्गुल

 


पुष्करमूलादि गुग्गुल के घटक और निर्माण विधि 

पुष्करमूल 300 ग्राम, वायविडंग 100 ग्राम और त्रिफला 100 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण बनाकर इसमें 500 ग्राम शोधित गुग्गुल मिलाकर अच्छी तरह से कूटकर 500 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें

पुष्करमूलादि गुग्गुल की मात्रा और सेवन विधि 

दो-दो गोली रोज़ दो से तीन बार तक 

पुष्करमूलादि गुग्गुल के फ़ायदे 

कोलेस्ट्रॉल वृद्धि और मेद वृद्धि नाशक है. कोलेस्ट्रॉल कितना भी क्यूँ न बढ़ा हुआ हो, इसके सेवन से धीरे-धीरे नार्मल हो जाता है.

इसके सेवन से बढ़ा हुआ वज़न भी कम जाता है और मोटापा दूर होता है. 





08 अक्टूबर 2021

हिंगु कर्पुर वटी | Hingu Karpur Vati

 


हिंगु कर्पुर वटी के घटक या कम्पोजीशन 

इसके निर्माण के लिए सिर्फ़ तीन चीज़ चाहिए होती है, शुद्ध हीरा हींग और कपूर समान भाग और असली शहद थोड़ी मात्रा में 

हिंगु कर्पुर वटी निर्माण विधि 

कपूर और हींग को खरल में घोंटकर इतना शहद मिलाएं कि गोली बनाने लायक हो जाये. अच्छी तरह से खरलकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस यही हिंगु कर्पुर वटी है. 

हिंगु कर्पुर वटी की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो गोली तक पानी, शहद या अदरक के रस के साथ 

हिंगु कर्पुर वटी के फ़ायदे 

यह पेट के बीमारियों की बेहतरीन दवा है. आदरणीय वैद्य गोपालशरण जी का यह अनुभूत योग है, उनके अनुसार हिंगु कर्पुर वटी अनेक उदर विकारों की श्रेष्ठ औषधि  है. आध्यमान, उदरशूल, अतिसार की अवस्था में श्रेष्ठ कार्यकर है. यदि इसमें चौथाई भाग शुद्ध अहिफेन मिला दिया जाए तो यह अत्यन्त उपयोगी औषधि हो जाती है. विशुचिका, अपस्मार, योषापस्मार, उन्माद, प्रलाप और अनिद्रा इत्यादि रोगों में भी इसका उपयोग विशेष गुणकारी है. 

चिकित्सकगण इसका उपयोग कर परिणाम से मुझे भी अवगत कराएँ. 


हींग के फ़ायदे 





30 सितंबर 2021

Vaidya Ji Ki Diary | वैद्य जी की डायरी | 'हिंगु वटी'

 

hingu vati

वैद्य जी की डायरी में जो भी बताया जाता है वह बना बनाया कहीं नहीं मिलता, इसे ख़ुद से तैयार करना होता है. इसका नाम है 'हिंगु वटी'

आज का नुस्खा तैयार करने के लिए चाहिए होगा - 

शोधित हीरा हींग 20 ग्राम, कड़वी कूठ, घोड़बच, शुद्ध सुहागा, जावाखार, सोंठ, काली मिर्च और पीपल प्रत्येक 10-10 ग्राम 

हिंगु वटी निर्माण विधि 

सभी को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और इसे खरल में डालकर अदरक के रस, पान के पत्ते के रस और सहजनमूल छाल के रस की एक-एक दिन एक-एक भावना देकर अच्छी तरह से खरल कर 500 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. 

मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो गोली दिन में तीन-चार बार तक गोरखमुण्डी अर्क या गर्म पानी से 

हिंगु वटी के फ़ायदे 

गुल्म या पेट में गोला बनना, पेट दर्द होना, मन्दाग्नि, बहुत डकारें आना, हाथ-पैर की ऐंठन, गैस्ट्रिक, हृदय की धड़कन बढ़ना जैसे रोगों में इसके सेवन से लाभ हो जाता है. वात विकारों में भी इसके सेवन से लाभ होता है. 

वैद्य जी की डायरी में आज इतना ही, आज की दी गयी जानकारी के बारे में कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये. 



07 सितंबर 2021

Cissus Quadrangularis | हड़जोड़ - अस्थि शृंखला

 


सबसे पहले भाषा भेद से इसके नाम जान लेते हैं - 

संस्कृत में - अस्थि शृंखला, अस्थिसंहारी, वज्रवल्ली 

हिन्दी में - हड़जोड़

गुजराती में - हाडसांकल 

मराठी में - कांडवेल

बांग्ला में - हाड़जोड़ा 

तमिल में - पिण्डयि 

तेलुगु में - नल्लेरू 

कन्नड़ में - मंगरोली 

अंग्रेज़ी में - एडिबुल-स्टेम्ड वाइन कहते हैं जबकि 

लैटिन में - सिसस कवैडरेन्गुलारिस( Cissus Quadrangularis, Vitis Quadrangularis) जैसे नामों से जाना जाता है

लम्बी-लम्बी तीन-चार धारी वाली हड्डियों के सांकल के समान दिखने वाली लता होने कारण ही इसे अस्थि श्रृंखला कहा जाता है. तासीर में यह उष्ण या गर्म होती है.

हड़जोड़ के गुण 

आयुर्वेदानुसार यह कफ़वात शामक, पित्तवर्द्धक, अस्थिसंधानीय, दीपक, पाचक, अनुलोमक, स्तम्भक, रक्त शोधक, रक्त स्तम्भक और क्रीमी नाशक जैसे गुणों से भरपूर होती है. 

हड़जोड़ के उपयोग 

हड्डी टूटने और वात रोगों में अक्सर गाँव के लोग इसके पकौड़े बनाकर खाते हैं. इसके काण्ड के छिलके हटाकर, उड़द की दाल में मिक्स कर तिल के तेल में पकौड़े बनाकर खाने से हर तरह के वात रोगों में चमत्कारी लाभ होता है. यकीन न हो तो आप से आज़मा कर देख लें.

हड्डी टूटने पर इसे इसे पीसकर इसका लेप कर ऊपर से प्लास्टर करने से टूटी हुयी हड्डी बहुत तेज़ी से जुड़ जाती है. 

टूटी हड्डी के रोगी को इसका ताज़ा रस दस से बीस ML तक पीना चाहिए. 

रीढ़ की हड्डी के दर्द में इसके कांडों का बिछौना बनाकर रोगी लिटाया जाता है, यह एक प्राचीन प्रयोग है. 

हड़जोड़ और सोंठ बराबर मात्रा में लेकर कूटपीसकर चूर्ण बनाकर सेवन करने से अग्निमान्ध और अजीर्ण दूर होकर पाचन शक्ति ठीक होती है और भूख बराबर लगने लगती है. 

मसूड़ों की सुजन में इसके रस को मूंह में रखने से लाभ होता है. 

ध्यान रहे - इसे स्किन पर ऐसे ही लगाने या फिर खाने से थोड़ी चुन-चुनाहट होती है. 

अस्थिसंहारकादि चूर्ण - 

भैषज्य रत्नावली में वर्णित यह एक बड़ा ही विशिष्ट योग है जिसे आज का वैद्य समाज भूल गया है. 

इसका निर्माण बड़ा ही सरल है, इसके लिए हड़जोड़ के कांड और पत्ते, पीपल की लाख, गेहूँ दाना और अर्जुन छाल सभी समान भाग लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें. एक चम्मच इस चूर्ण को सुबह-शाम एक टी स्पून घी और एक ग्लास दूध के साथ लेने से टूटी हुयी हड्डी, टुटा हुआ जोड़ और हर तरह के फ्रैक्चर में बेजोड़ लाभ होता है. 

तिल तेल में सिद्ध कर इसका तेल भी बनाया जाता है जो चोट-मोच, वात व्याधि और फ्रैक्चर में लाभकारी होता है. 

आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि 'लक्षादि गुग्गुल' का भी यह एक घटक है. 

यह थी आज की जानकारी, हड़जोड़ के बारे में. 

हिमालया हड़जोड़ कैप्सूल 





03 सितंबर 2021

Pashupat Ras | पाशुपत रस

 


यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो बहुत कम प्रचलित है. इस योग से आप अनभिज्ञ न रहें इसके लिए आज मैं पाशुपत रस के गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में बताऊंगा, तो आईये जानते हैं इसके बारे में सबकुछ विस्तार से  - 

पाशुपत रस के घटक और निर्माण विधि -

शुद्ध पारा एक भाग, शुद्ध गन्धक 2 भाग, तीक्ष्ण लौह भस्म 3 भाग और शुद्ध बच्छनाग 6 भाग लेकर सब से से पहले पत्थर के खरल में पारा-गन्धक को खरल कर कज्जली बना लें

इसके बाद शुद्ध बच्छनाग का बारीक चूर्ण और तीक्ष्ण लौह भस्म को डालकर 'चित्रकमूल क्वाथ' में एक दिन तक घोटें. 

इसके बाद धतूरे के बीजों की भस्म 32 भाग, सोंठ, मिर्च, पीपल, लौंग और इलायची प्रत्येक 3-3 भाग, जायफल और जावित्री प्रत्येक आधा भाग, पञ्च नमक ढाई भाग, थूहर, आक, एरण्ड मूल, अपामार्ग, पीपल(वृक्ष) क्षार, हर्रे, जवाखार, सज्जी क्षार, शुद्ध हीरा हिंग, जीरा और शुद्ध सुहागा प्रत्येक एक-एक भाग लेकर बारीक चूर्ण बनाकर पहले वाली दवा में मिलाकर एक दिन तक निम्बू के रस में घोंटकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस पाशुपत रस तैयार है. 

पाशुपत रस की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद ताल मूली के रस और पानी से 

पाशुपत रस के गुण 

आयुर्वेदानुसार यह शोधक, दीपक, पाचक, संग्राहक, आमपाचक, वात नाशक, पित्त शामक और कफ़ नाशक भी है. ह्रदय को शक्ति देने वाली और तेज़ी से असर अकरने वाली औषधि है. इसके सेवन से विशुचिका शीघ्र नष्ट होती है. 

पारे और गंधक के रसायन और पाचक गुणों के अतिरिक्त इसमें लौह रक्तवर्धक, जायफल और धतुरा बीज रोधक गुणों से पूर्ण है. क्षार, लवण और थूहर भेदक गुणों का होता है. इस प्रकार से यह औषधि रोधक और भेदक होने से आँतों की क्रिया शिथिलता को दूर करने में सफ़ल है. यह आंत, लिवर और स्प्लीन को एक्टिव करती है और शक्ति देती है. अग्नि को तेज़ कर पाचन ठीक करती है और प्रकुपित वायु को भी नष्ट करती है. 

पाशुपत रस के रोगानुसार अनुपान 

अलग-अलग अनुपान से इसके सेवन से अनेकों रोगों में लाभ होता है जैसे - 

तालमूली के रस के साथ सेवन करने से उदर रोगों या पेट की बीमारियों को नष्ट करती है 

मोचरस के साथ सेवन करने से अतिसार या दस्त की बीमारी दूर होती है 

संग्रहणी में इसे छाछ के साथ सेंधानमक मिलाकर लेना चाहिए 

दर्द वाले रोगों या वात रोगो में इसे पीपल, सोंठ और सौवर्चलवण के साथ लेना चाहिए 

पीपल के चूर्ण के साथ लेने से TB की बीमारी में लाभ होता है 

बवासीर में छाछ के साथ लें 

पित्त रोगों में बुरा और धनिये के साथ लेना चाहिए 

इसी तरह से पीपल और शहद के साथ लेने से  कफ़ रोगों को दूर करती है. 

ध्यान रहे - यह तेज़ी से असर करने वाली रसायन औषधि है तो इसे स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही सेवन करना चाहिए. 



28 अगस्त 2021

विजया कल्प

 


भाँग को कल्प के रूप में भी प्रयोग किया जाता है जिसे विजया कल्प कहा जाता है. क्यूंकि भाँग का एक नाम विजया भी है. 

तंत्रशास्त्र में इसका वर्णन मिलता है जो आयुर्वेद सम्मत भी है, और सिमित मात्रा में इसका सेवन करने से हानि नहीं होती. 

विजया कल्प 

कल्प को लम्बे समय तक प्रयोग किया जाता है. साल में बारह महीने होते हैं और इन बारह महीनो में भांग को किस तरह से सेवन किया जाता है यही जानते हैं. 

1) चैत्र माह में पुरे महीने पान के साथ इसका सेवन करने से इसका प्रभाव बुद्धिवर्द्धक होता है. ध्यान रहे शोधित भाँग को ही कल्प के रूप में प्रयोग करना है. 

2) बैशाख के पुरे महीने में इसके सेवन से कोई भी विष प्रभाव नहीं करता है. 

3) जेठ के महीने में तेंदू के साथ सेवन करने से शरीर की कान्ति बढ़ती है. 

4) आषाढ़ मास में चित्रक के साथ सेवन करने से केश कल्प हो जाता है. 

5) सावन में शिवलिंगी के साथ इसका सेवन करने से बल की वृद्धि करता है. 

6) भादो के महीने में रूद्रवन्ती के साथ सेवन करने से तन और मन को शान्ति मिलती है. 

7) कुआर मास में मालकांगनी के साथ इसका प्रयोग करने  से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ ठीक रहता है. 

8) कार्तिक के महीने में बकरी के दूध के साथ भाँग का सेवन करने से काम शक्ति की वृद्धि हो जाती है. 

9) अगहन के महीने में गाय के घी के साथ खाने से आँखों की कमज़ोरी दूर होती है. 

10) पूस के महीने में काले तिलों के साथ भाँग का सेवन करने से नज़र तेज़ होती है. 

11) माघ के महीने में नागरमोथा के साथ भाँग का चूर्ण सेवन करने से शरीर बलवान होता है.

12) फाल्गुन के महीने में आँवला के चूर्ण के साथ भाँग का सेवन किया जाये तो पैरों में हिरण के जैसी कुलांचें भरने की शक्ति प्राप्त होती है. दौड़ने, चलने और कूदने में में व्यक्ति विशेष रूप से लाभ का अनुभव करता है. 

इस तरह से भाँग का सेवन करने से आश्चर्यजनक रूप से इसका प्रभाव सुखद होता है. घी, दूध, बादाम, कालीमिर्च, सौंफ़, गुलाब, इलायची इत्यादि के साथ इसका सेवन करने से इसकी मादकता और विषाक्त अंश समाप्त हो जाता है तथा इसका प्रभाव स्मृतिवर्धक, शक्तिदायक और निद्राकारी हो जाता है. 

भाँग के 100 प्रयोग जानिए 




16 मई 2021

ऑक्सीजन लेवल गिरने नहीं देती यह औषधि - 100% गारन्टी

 


आज के समय में अक्सर लोग पूछते रहते हैं कि आयुर्वेद में ऐसी कोई औषधि है जो शरीर में ऑक्सीजन लेवल कम न होने दे? ऑक्सीजन की कमी से हमारे देश में हज़ारों मौतें हो रही हैं और लोग ऑक्सीजन सिलिंडर पाने के लिए कितना परेशान हो रहे हैं यह सब किसी से छुपा नहीं है. 

आयुर्वेदिक ग्रंथों में ऐसे अनेकों योग भरे पड़े हैं जो बड़ी से बड़ी बीमारी में तेज़ी से रिजल्ट देते हैं. ऐसा ही एक योग है 'गोरोचनादि गुलिका' 

गोरोचनादि गुलिका के घटक या कम्पोजीशन - 

यह एक स्वर्ण घटिक औषधि है जो अनेकों जड़ी-बूटियों और भस्मों के संयोग से बनायी जाती है, इसका मुख्य घटक गोरोचन है जिसके कारण ही इसे गोरोचनादि गुलिका का नाम दिया गया है. गुलिका, गुटिका, वटी जैसे नाम आयुर्वेद में गोली या टेबलेट के ही होते हैं. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे यह सब मिले होते हैं - 

गोरोचन, मृगश्रृंग भस्म, रुद्राक्ष, चन्दन, बच, उशीर, कमल, गोश्रृंग,महिषा श्रृंग, नाग भस्म, स्वर्ण भस्म, प्रवाल भस्म, टंकण भस्म, रसौत, कपूर, अम्बर, जीरा, काला जीरा, द्रोणपुष्पि, किरातिक्त, कर्पसा, अपामार्ग, लहसुन, चीराबिल्व, सोंठ, मिर्च, पीपल, अग्निमन्था, ईश्वरी, पाठा, शँखपुष्पि, नीलिनी, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, जायफल, सौंफ़ और मोथा प्रत्येक समान भाग लेना होता है. 

निर्माण विधि यह है कि सभी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण कर भस्मों को मिलाकर अदरक के रस में घोटकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. 

मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो-गोली तक सुबह-दोपहर-शाम यानि डेली तीन बार गर्म पानी से, या फिर वैद्य जी के निर्देशानुसार

गोरोचनादि गुलिका के गुण 

आयुर्वेदानुसार यह वात और कफ़ दोष को बैलेंस करता है और पित्त को जागृत करता है.

गोरोचनादि गुलिका के फ़ायदे 

इसके सेवन से पहले दिन से ही ऑक्सीजन लेवल गिरने नहीं देता और कोरोना जैसे तमाम लक्षणों को दूर करने में असरदार है. आज के समय में देश के कई अनुभवी वैद्य इसका प्रयोग कर लोगों की जान बचा रहे हैं. 

बुखार, न्युमोनिया, खांसी, सर्दी, साँस की तकलीफ, अस्थमा, गले का इन्फेक्शन, टोन्सीलाइटिस, कम सुनाई देना, आँखों की रौशनी की कमी, हार्ट की कमजोरी, पाचन शक्ति की कमज़ोरी जैसे रोगों को दूर करने में बेहद असरदार है. 

चूँकि यह अधीक प्रचलित योग नहीं है इसलिए इक्का दुक्का आयुर्वेदिक कम्पनियां ही इसका निर्माण करती हैं, जिसे आप सर्च कर सकते हैं या स्थानीय वैद्य जी से पता कर सकते हैं. 


09 मई 2021

Drink daily and boost your Immunity | अपनी इम्युनिटी बढ़ाएं इस काढ़े से

 


पिछले विडियो में मैंने एक काढ़े का ज़िक्र किया था जिसके सेवन से मुझे कोरोना जैसे लक्षणों में काफ़ी लाभ हुआ था. तो आईये जानते हैं इस काढ़े के फ़ायदे और इसमें मिलायी जाने वाली चीजों के गुण के बारे में विस्तार से जानते हैं- 

सबसे पहले एक बार फिर से काढ़ा का Ingredients एक बार फिर से जान लेते हैं -

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काढ़ा बनाने के लिए चाहिए होता है 

लौंग 4 दाना 

इलायची 4 दाना 

दालचीनी - छोटा टुकड़ा 

काली मिर्च 5 दाना 

तेजपात 3 पीस 

तुलसी के पत्ते 7 पीस 

कलोंजी(मंग्रेला) 1/2 स्पून 

अदरक- छोटा टुकड़ा 

हल्दी 1 स्पून 

गुड़ 2 स्पून 

इन सभी को 1 लीटर पानी में उबालकर चाय की तरह पीना है. चाहें तो इसमें आप आधा स्पून चाय पत्ती भी मिला सकते हैं 

इस काढ़ा के फ़ायदे- 

इसे पीने से सर्दी-खाँसी, जुकाम, बुखार, मुँह का स्वाद जाना, स्मेल नहीं आना जैसे लक्षणों में फ़ायदा मिलता है और यह इम्युनिटी पॉवर या रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. इसे पीने से वायरल रोगों से बचाव होता है. 

आईये अब जान लेते हैं इसमें मिलायी गयी चीजों के बारे में आयुर्वेद क्या कहता है, थोड़ा संक्षेप में जान लेते हैं - 

लौंग -

अंग्रेज़ी में इसे क्लोव कहते हैं जबकि आयुर्वेद में इसे लवंग कहा गया है. लौंग के गुणों की बात करें तो यह एंटी वायरल, एंटी सेप्टिक, एंटी-माइक्रोबियल जैसे गुणों से भरपूर होता है. सर्दी-जुकाम, साइनस, दांत दर्द को दूर करता है और पाचन ठीक करने में मदद करता है. 

इलायची -

छोटी इलायची एक बेजोड़ आयुर्वेदिक औषधि है. न सिर्फ इसका सुगन्ध और स्वाद बढ़िया होता है बल्कि गुणों में भी बेजोड़ है. खाँसी, सर्दी-जुकाम, गले की ख़राश, गले की सुजन, गैस, एसिडिटी और साँस की तकलीफ़ में यह असरदार है. यह एन्टी ऑक्सीडेंट और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होती है.

दालचीनी - 

दालचीनी ब्लड प्रेशर को नार्मल करती है. सर्दी-जुकाम और एलर्जी को दूर करती है और बचाव भी करती है. आयुर्वेद का प्रसिद्ध योग 'त्रिजात' का यह अभिन्न अंग है. जो लगभग सभी रसायन औषधियों में प्रयोग होती है. 

काली मिर्च-

अंग्रेजी में ब्लैक पीपर, पीपर और लोकल भाषा में गोलकी के नाम से भी जाना जाता है. यह भी आयुर्वेदिक औषधियों की अभिन्न अंग है. सर्दी-खाँसी, जुकाम, सर दर्द दूर करती है. दांत दर्द, पाचन कमजोरी, कोलेस्ट्रॉल, शुगर इत्यादि अनेकों रोगों में इसका सेवन लाभकारी है. इसके गुणों की जितना प्रशंशा की जाये कम है. 

तेजपात -

इसे पत्ता और तीस पत्ता भी कहा जाता है. भारतीय किचन में यह प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है. यह हार्ट को शक्ति देता है. सर्दी, जुकाम, कफ़ को दूर करता है 

तुलसी - 

तुलसी को कौन नहीं जानता? तुलसी की पत्तियां बुखार, सर्दी-जुकाम, ठण्ड लग्न, बलगम आना, खांसी, सर दर्द, साँस की तकलीफ़ जैसी अनेक समस्याओं के लिए बेहद असरदार है. इम्युनिटी बढ़ाने और निरोग रखने में मदद करती है. 

कलौंजी -

कलौंजी को मंग्रेला के नाम से जाना जाता है. यह त्रिदोष नाशक है. काले रंग के यह छोटे-छोटे बीज बड़े-बड़े गुणों से भरपूर होते हैं. यह सर से लेकर पैर तक के सभी रोगों में फ़ायदेमंद है. हदीस में है कि काले रंग के यह छोटे बीज मौत के सिवा हर मर्ज़ को दूर करता है. 

अदरक - 

वात-कफ़ रोगों के लिए अदरक बेजोड़ औषधि है. इसके बिना आयुर्वेद की कोई भी रसायन औषधि नहीं बनती है. सर्दी-जुकाम, कफ़ को दूर करने में बेजोड़ है. कब्ज़, गैस, कोलेस्ट्रॉल, गठिया, वातरोग जैसे अनेकों रोगों में असरदार है. 

हल्दी - 

पीले रंग की यह जड़ी गुणों का भण्डार है. यह नेचुरल एन्टी बायोटिक की तरह काम करती है वह भी बिना साइड इफ़ेक्ट के. स्किन से लेकर लिवर, सर्दी-जुकाम से लेकर कैंसर जैसी बीमारी में भी असरदार है. एंटी ऑक्सीडेंट है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है. 

गुड़ - 

स्वाद में मीठापन लिए हुआ यह पदार्थ हमारे हेल्थ के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद है. जुकाम और खाँसी को दूर करता है. कब्ज़, गैस, पाचन शक्ति की कमज़ोरी, खून की कमी जैसे अनेकों रोगों में इसके सेवन से लाभ होता है. 

तो दोस्तों, अब आप समझ सकते हैं कि इतनी सारी चीज़ों को मिलाकर बनाने के बाद यह काढ़ा कितना असरदार हो जाता है. यह एक ऐसा कॉम्बिनेशन है जिसका मुकाबला दूसरा कोई भी काढ़ा नहीं कर सकता. 

आज के समय के लिए यह सबसे उपयुक्त है. सभी लोगों को इसका सेवन कर लाभ उठाना चाहिए. 

पित्तज प्रकृति के लोग या जिनको एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी जैसी समस्या हो तो कम मात्रा में ही इसका सेवन करें. 

और बहुत ज़्यादा भी इसका यूज़ न करें कि पेट गर्म हो जाये. हर चीज़ को अपनी बॉडी के अनुसार ही लेना चाहिए. कोई भी चीज़ कितनी भी अच्छी क्यों न हो, बहुत ज़्यादा यूज़ करना ठीक नहीं होता.

कहा भी गया है - अति सर्वर्त्र वर्जयेत




06 मई 2021

My Personal Experience | तेज़ बुखार, खाँसी, सर्दी, मुँह का स्वाद जाना, स्मेल नहीं आना से मुक्ति

 इस विडियो में मैं आपको बताने वाला हूँ कि मुझे कोरोना जैसे लक्षण होने पर कौन सी औषधि सेवन करने से मुक्ति मिली है - 


जय हिन्द, जय आयुर्वेद !


01 फ़रवरी 2021

Berberis Aristata | दारुहल्दी क्या है रसौत क्या है?

 

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दारूहल्दी के बारे में आपने सुना होगा, बहुत सारी आयुर्वेदिक औषधियों के कम्पोजीशन में इसका ज़िक्र होता है. दारुहल्दी दारू या शराब है या हल्दी? कई लोग ग़लतफहमी में इसे कुछ और समझ बैठते हैं, तो आईये इसके बारे में सारी चीज़ें क्लियर कर देता हूँ - 

दारुहल्दी नाम की जो औषधि है वह न तो दारु है और न ही हल्दी. कई जगह शराब को भी दारु कहा जाता है. 

दारुहल्दी को संस्कृत में दारूहरिद्रा कहा जाता है. यहाँ दारु का अर्थ है 'लकड़ी' और हरिद्रा मतलब हल्दी 

तो इस तरह से दारूहल्दी का अर्थ निकलता है हल्दी के जैसी पीले रँग की लकड़ी. यह बिलकुल पीले रंग की होती है, देखते पर ऐसा लगता है कि पीले रंग से रंगा गया हो. 

आईये अब भाषा भेद से इसका नाम जानते हैं - 

संस्कृत में - दारूहरिद्रा, दार्वी, कंटकटेरी और पंचपचा भी कहा जाता है

हिंदी में - दारुहल्दी 

गुजराती में - दारुहलदर 

मराठी में - दारूहलद 

बंगाली में - दारूहरिद्रा 

पंजाबी में - दारहल्दी 

तमिल में - मरमंजल 

तेलगु में - कस्तूरीपुष्प 

फ़ारसी में- दारचोबा 

अंग्रेजी  में - इण्डियन बर्बेरी(Indian Barberry)

लैटिन में - बर्बेरिस एरिस्टेटा(Berberis Aristata) कहते हैं.

होम्योपैथिक दवा बर्बेरिस इसी से बनायी जाती है. 

आयुर्वेद में मूल रूप से इसकी लकड़ी का ही प्रयोग किया जाता है. 



आयुर्वेदानुसार यह कफपित्त शामक है यानी कफ़ दोष और पित्त दोष का शमन करती है. कामला, यकृत के रोग यानी लिवर की सभी बीमारियाँ, प्रमेह, व्रण या ज़ख्म और रक्तदोष से होने वाले रोग और नेत्र रोगों में यह लाभकारी है. 

रसौत क्या है? 

यह दारूहल्दी से बनाया जाता है. इसे रसौत, रसवत, रसांजन जैसे नामों से भी जाना जाता है. यह असल दारूहल्दी का ही कंसंट्रेशन है. 



रसौत कैसे बनाया जाता है?

रसौत या रसांजन बनाने के लिए दारूहल्दी के छोटे छोटे बारीक टुकड़े कर इसके वज़न का 16 गुना पानी मिलाकर क्वाथ बनाया जाता है. जब एक चौथाई पानी शेष रहे तो छानकर दुबारा हलवे की तरह गाढ़ा होने तक उबाला जाता है,इसके बाद धुप में सुखा लिया जाता है. यही रसौत या रसांजन है.

इसे अनेकों औषधियों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है. यूनानी में भी रसौत का बहुत प्रयोग होता है. 


17 जनवरी 2021

Navratna Kalpamrit Ras | नवरत्नकल्पामृत रस के गुण और उपयोग

 

navratna kalapamrit ras benefits

नवरत्नकल्पामृत रस जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है नवरत्नों से बनी अमृत के समान कल्प के रूप में प्रयोग की जाने वाली रसायन औषधि. 

नवरत्नकल्पामृत रस के घटक या कम्पोजीशन - 

इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें नौ प्रकार के रत्न या नवरत्नों के अतिरिक्त स्वर्ण भस्म जैसे दुसरे जैसे कई मूल्यवान भस्मों के संयोग से बनाया जाता है. 

रस तंत्र सार में इसके घटक कुछ इस तरह से हैं - 

पन्ना पिष्टी, पुखराज पिष्टी, नीलम पिष्टी, माणिक्य पिष्टी, वैडूर्य पिष्टी, गोमेदमणि पिष्टी और मुक्ता पिष्टी प्रत्येक एक-एक तोला, रजत भस्म, प्रवाल पिष्टी और रजावर्त पिष्टी प्रत्येक दो-दो तोला, स्वर्ण भस्म, लौह भस्म, यशद भस्म और अभ्रक भस्म प्रत्येक 6-6 माशा, शुद्ध गुग्गुल, शुद्ध शिलाजीत और गुडूचीघन प्रत्येक 11-11 तोला, गाय का घी आवश्यकतानुसार

नवरत्नकल्पामृत रस निर्माण विधि 

सबसे पहले सभी भस्मो और पिष्टी को मिक्स कर खरल कर गुग्गुल, शिलाजीत और गुडूचीघन मिक्स कर थोड़ा-थोड़ा घी मिलाते हुए कूटें, इसके बाद एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही नवरत्नकल्पामृत रस की निर्माण विधि है. वैसे यह बना हुआ उपलब्ध है जिसका लिंक दिया गया है. 

नवरत्नकल्पामृत रस की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो गोली तक सुबह-शाम दूध या रोगानुसार उचित अनुपान से वैद्य जी के निर्देशानुसार सेवन करना चाहिए

नवरत्नकल्पामृत रस के गुण 

यह त्रिदोष नाशक है, पर मेनली वात और पित्त दोष को बैलेंस करता है यानी, वातहर, पित्त नाशक, हेमाटेमिक, दिल और दिमाग को पुष्टि देने वाला, रस, रक्तादि सभी धातुओं को पुष्ट बनाता है.

नवरत्नकल्पामृत रस के फ़ायदे 

वैसे तो यह अनेको रोगों में असरदार है, यहाँ पर इसके कुछ मेन फ़ायदे बता रहा हूँ - 

यह नेचुरल कैल्शियम से भरपूर है तो यह हड्डी की कमज़ोरी और इसकी वजह से होने वाले सभी रोगों में बेहद असरदार है. 

यह शरीर के सभी धातुओं की पुष्टि कर शरीर को निरोग बनाने में सहायता करता है. 

जीर्ण वात रोगों में धैर्यपूर्वक इसका सेवन करने से लाभ होता है.

महिला, पुरुष, बच्चे-बुज़ुर्ग सभी के लिए यह लाभकारी है. 

नस, किडनी, हार्ट, ब्रेन, स्किन, लंग्स इत्यादि सर से लेकर पैर तक यानि पूरी बॉडी के सभी Organs को शक्ति देता है. 

आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार यह अर्श, प्रमेह, क्षय, जीर्ण ज्वर, स्वास-कास, मूत्र रोग, वातरोग, पांडू, कन्ठमाला, अबुर्द या हर तरह का सिस्ट और ट्यूमर, आलस्य, विष, आम विष और गैस इत्यादि रोगों में लाभकारी है.

कल्प के रूप में रोगानुसार उचित अनुपान से एक साल तक सेवन कराया जाता है. 

यह पूरी तरह से सुरक्षित औषधि है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है लॉन्ग टाइम तक यूज़ करने पर भी. 

होम्योपैथिक और एलोपैथीक दवा लेते हुए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं कुछ समय के अंतर से. 

उंझा के 60 गोली की क़ीमत है 522 रुपया जिसे आप ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं www.lakhaipur.in से, लिंक दिया गया है-  Buy Now