दोस्तों, स्वस्थ रहने के लिए उचित आहार-विहार का बड़ा महत्त्व है. एक कहावत भी है - "जैसा खाए अन्न, वैसा रहे मन"
स्वस्थ रहने के लिए आयुर्वेद के अनुसार आपके भोजन में छह 'रस' होने चाहिए, तभी यह संतुलित भोजन कहलाता है. रस का यहाँ मतलब है स्वाद से. आयुर्वेद के अनुसार दुनिया में जितने भी तरह के आहार और औषधि हैं इसी छह रस में सभी आ जाते हैं.
अब आप सोच रहे होंगे कि यह छह रस कौन कौन हैं? यह छह रस हैं-
1) मधुर(मीठा)
2) अम्ल(खट्टा)
3) लवण(नमक या नमकीन)
4) कटु(कड़वा)
5) तिक्त(तीता, तीखा)
6) कषाय(कसैला)
यही छह रस हैं और इनमे से तीन शीतल यानी तासीर में ठण्डे और तीन उष्ण यानी तासीर में गर्म होते हैं.
ठण्डे तासीर वाले - मधुर, तिक्त और कषाय
गर्म तासीर वाले - कटु, अम्ल और लवण
अब आते हैं मुद्दे की बात पर कि किसी तरह के आहार कौन से दोष को बढ़ाते या कम करते हैं?
सबसे पहले जानते हैं 'वात' कम करने और संतुलन या बैलेंस करने वाले आहार के बारे में.
वात संशमन और संतुलन करने वाले अनाज
ज्वार, मक्का, जौ, राई, सरसों, हर तरह की दाल, चना इत्यादि इनका सेवन कम मात्रा में करना चाहिए जबकि गेंहूँ, चावल, मूँग की दाल का अधीक सेवन कर सकते हैं.
वात संशमन और संतुलन करने वाले फल
चीकू, मीठे बेर, लीची, सेब, अन्नानास, तरबूज, अंजीर, अँगूर, पपीता, अमरुद, बादाम, आलूबुखारा इत्यादि अधीक सेवन कर सकते हैं जबकि ड्राई फ्रूट्स, नाशपाती, आम इत्यादि कम मात्रा में सेवन करना चाहिए
वात संशमन और संतुलन करने वाली सब्जियां
लौकी, टिंडा, टमाटर, शलजम, भिन्डी, चुकन्दर, गाजर, खीरा इत्यादि. जबकि फूल गोभी, पत्ता गोभी, आलू, सेम, मटर, अंकुरित अनाज, मिर्च-मसाला और मुली का कम से कम सेवन करना चाहिए
तेल में - तिल तेल, बादाम का तेल, सोयाबीन तेल का सेवन ठीक रहता है.
यह सब हो गया विस्तार से, आईये अब जान लेते हैं 'वात प्रकोप' बढ़ाने वाले आहार जिसे हमेशा याद रखें, विशेषकर वात प्रक्रति वाले लोग -
वात प्रकोपक(असंतुलक) आहार -
भारी भोजन, गरिष्ठ भोजन, फ़ास्ट फ़ूड, जंक फ़ूड, सॉफ्ट ड्रिंक्स, कोल्ड ड्रिंक्स, चटपटा भोजन, हर तरह की मिर्च, रुखा-सुखा भोजन, चना, ज्वर, मूँग, कोदो, पलक, मसूर, चना, तीखा, कषैला, कड़वा और उत्तेजक भोजन इत्यादि.
पित्त का शमन और संतुलन(Balance) करने वाले आहार
ठण्डी तासीर वाले सभी आहार पित्त को कम करते हैं. यहाँ पर ध्यान रखें आहार तासीर में ठण्डा होना चाहिए, फ्रिज का आइटम, कोल्ड ड्रिंक्स या आइस क्रीम ठण्डे तो होते हैं पर मूल रूप से इनकी तासीर ठण्डी नहीं होती.
पित्त कम करने वाले आहार की बात करें तो इसमें देसी गेहूं, पुराना चावल, नारियल, सेब, अंजीर, मीठे अंगूर, किशमिश, तरबूजा, खरबूजा, केला, पपीता, पत्ता गोभी, साग, चुकंदर, परवल, लौकी, तोरई, टिंडा इत्यादि प्रमुख हैं.
तेल में नारियल तेल, जैतून तेल, सूरजमुखी तेल का सेवन करना चाहिए.
ताज़ा, छाछ, मीठा ठण्डा दूध भी पित्त शामक है.
अब जान लीजिये पित्त प्रकोपक या पित्त दोष बढ़ाने वाले प्रमुख आहार -
जिनका पित्त दोष बढ़ा हुआ हो उनको इन चीज़ों से परहेज़ रखना चाहिए जैसे - गर्म और उत्तेजक आहार, अंडा, मछली, नॉन वेज, चाय-काफ़ी, तम्बाकू, शराब, सिगरेट, खट्टा, कड़वा, अधीक नमकीन और तेल वाले भोजन इत्यादि.
कफ का शमन और संतुलन(Balance) करने वाले आहार
कफ दोष बढ़ा होने पर गर्म तासीर वाले भोजन, गर्म पानी, हल्का, रुखा-सुखा आहार लेना चाहिए.
कफ को कम और बैलेंस करने वाले आहार यह सब हैं जैसे - जौ, बाजरा, मकई, चना की रोटी, सरसों, फलों में - सेब, नाशपाती, अनार, सब्जियों में - गाजर, गोभी, लहसुन, प्याज़, पत्तेदार सब्जी, पलक, बथुआ, मेथी इत्यादि.
कफ दोष बढ़ा होने पर दूध और दूध से बने पदार्थ बहुत कम लेना चाहिए. मिठाई का भी सेवन न करें. मसलों में - दालचीनी, मेथी, सोंठ, पीपल, हल्दी, काली मिर्च इत्यादि का सेवन करना चाहिए.
ठण्डा, खट्टा, मीठा, नमकीन और लुआबदार पदार्थ कफ प्रकोप को बढ़ाते हैं.
तो दोस्तों, यह थी जानकारी आहार के बारे में कि कौन से दोष में कौन सा आहार खाना चाहिए या परहेज़ करना चाहिए.
पर एक बात ज़रूर याद रखिये कि आपका डॉक्टर या वैद्य आपकी बीमारी के बारे में बेहतर जनता है, इसलिए वैद्य जी की सलाह के अनुसार परहेज़ अवश्य करें.