वातगजेन्द्रसिंह रस के बारे में जो एक दिव्य औषधि है. यह 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग और 20 प्रकार के कफ रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं वातगजेन्द्रसिंह रस का कम्पोजीशन, गुण-धर्म, निर्माण विधि और इसके उपयोग के बारे में विस्तार से -
वातगजेन्द्रसिंह रस भैषज्य रत्नावली का योग है जो सिद्धहस्त वैद्यों द्वारा निर्माण कर प्रयोग किया जाता है. आज के समय में इक्का-दुक्का कंपनियां ही इसका निर्माण करती हैं.
वातगजेन्द्रसिंह रस के घटक या कम्पोजीशन-
इसे बनाने के लिए चाहिए होता है अभ्रक भसम, लौह भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, ताम्र भस्म, नाग भस्म, टंकण भस्म, शोधित बच्छनाग, सेन्धा नमक, लौंग, शोधित हींग और जायफल प्रत्येक 10-10 ग्राम
छोटी इलायची के बीज, तेजपात, दालचीनी, हर्रे, बहेड़ा और आँवला प्रत्येक 5-5 ग्राम
वातगजेन्द्रसिंह रस निर्माण विधि -
सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को मिक्स कर खरलकर कज्जली बना लें और भस्मो को मिला लें, इसके बाद दूसरी औषधियों का बारीक चूर्ण मिक्स कर घृतकुमारी के रस में घोटकर दो-दो रत्ती या 250 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही वातगजेन्द्रसिंह रस है.
वातगजेन्द्रसिंह रस के गुण - यह एक रसायन औषधि तो है ही, इसके गुणों की बात करें तो यह त्रिदोष नाशक है यानी वात, पित्त और कफ तीनों तरह के दोषों को नष्ट करता है. यह शोधक, दीपक, रक्त वर्द्धक, बल-वीर्य वर्द्धक, मांसवर्द्धक और इन्द्रियों को शक्ति देता है. वात नाड़ियों की विकृति से होने वाले अनेकों रोगों को नष्ट करता है.
वातगजेन्द्रसिंह रस के फ़ायदे-
जैसा कि शुरु में बताया 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग और 20 प्रकार के कफ रोगों को दूर करने में सक्षम है.
जोड़ों का दर्द, लकवा, पक्षाघात, साइटिका, आमवात जैसे हर तरह के वातरोगों में असरदार है.
वीर्य नाश या अधीक मैथुन के कारण इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो गयी हो तो इसके सेवन से लाभ होता है.
यह आमदोष का दूर करता है और पाचन तंत्र को बल देता है. यह विषनाशक है और सुजन को भी दूर करता है.
इसके सेवन से स्वस्थ मनुष्य अधिक स्वास्थ लाभ करते हैं और रोगी मनुष्य रोगमुक्त हो जाते हैं, यह रोगनाशक उत्तम रसायन है.
वातगजेन्द्रसिंह रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक- एक गोली सुबह-शाम दूध से लेना चाहिए.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें