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26 दिसंबर 2019

Siddh Makardhwaj | सिद्ध मकरध्वज - कमज़ोरी दूर करने वाली बेजोड़ औषधि


मकरध्वज आयुर्वेद की एक ऐसी पॉपुलर दवा है जिसके बारे में सभी लोग कुछ न कुछ जानते ही हैं. इसी के सबसे उच्च गुणवत्ता वाले रूप सिद्ध मकरध्वज के ऐसे ऐसे गुण और प्रयोग के बारे में आज बताने वाला हूँ जो शायेद ही आपने पहले कभी सुना हो. तो आईये इसके बार में विस्तार से जानते हैं -

मकरध्वज अपने आप में एक बेजोड़ औषधि है जिसे बड़े-बड़े डॉक्टर भी मान चुके हैं. सिद्ध मकरध्वज टॉप क्लास का होता है और इसी के बारे में आज विशेष चर्चा करूँगा. मकरध्वज के दुसरे योगों की जानकारी पहले भी दी गयी है, जिसका लिंक दिया जा रहा है.


सिद्ध मकरध्वज पारा गंधक और स्वर्ण का विशेष योग है. सबसे पहले भोले शंकर जी ने इसे बनाकर सिद्धों को इसका सेवन कराया था इसलिए इसे सिद्ध मकरध्वज कहते हैं.

सिद्ध मकरध्वज के सेवन से ताक़त बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है. वैसे तो यह पुरे शरीर के लिए लाभकारी है पर हार्ट, ब्रेन और नर्वस सिस्टम पर इसका सबसे ज्यादा असर होता है. बच्चे, बड़े, बूढ़े, जवान, महिला और पुरुष सभी के लिए यह फ़ायदेमंद है. अनुपान भेद से इसे अनेकों रोगों में प्रयोग किया जाता है. किस बीमारी में इसे किस चीज़ के साथ लेना है, आगे सब बताऊंगा. पर उस से पहले ठण्ड के इस मौसम में इसका प्रयोग जान लिजिए-

चूँकि इंडिया में अभी जाड़े का मौसम आ गया है, कई लोगों को ठण्ड बहुत ज़्यादा महसूस होती है उनके लिए सिद्ध मकरध्वज बड़े काम की चीज़ है.

तो भई, अगर आपको ठण्ड ज़्यादा लगती है और गर्म कपड़ों से दबे रहते हैं तो अभी से सिद्ध मकरध्वज का विधि पूर्वक सेवन शुरू कीजिये और फिर देखिये इसका चमत्कार.
स्कुल के दिनों की एक घटना मुझे याद आती है-

जनवरी का महिना था, कडकडाती ठण्ड थी, गाँव से मुझे शहर जाना था किसी काम से. उन दिनों गाँव में यातायात का कोई साधन नहीं था, पैदल चलकर बस स्टैंड तक जाना पड़ता था और बिच में एक नदी है मोहाने जिसमे उस समय पानी थोड़ी धारा थी, लगभग एक डेढ़ फिट तक ही पानी था. सुबह-सुबह ठण्ड इतना थी कि मैं स्वेटर के ऊपर जैकेट, टोपी, मफ़लर सब पहने जा रहा था. नदी को ऐसे ही पार करना होता था, पानी इतना ठन्डा होता था कि जितना पैर पानी में जाता था लगता था की बस पैर कट गया है.

तो ऐसी ठण्ड में देखता हूँ कि एक साधू जी नदी में नहाकर भीगा गमछा पहने खुले बदन इस ठण्ड में मज़े से चले जा रहे हैं. यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ था. बाद में पता चला कि वह साधू जी ठण्ड के पुरे मौसम में सिद्ध मकरध्वज का सेवन करते थे जिसकी वजह से ठण्ड उनसे कोसों दूर रहती थी.

ठण्ड को दूर करने के लिए मकरध्वज का मैं प्रत्यक्ष अनुभव कर देख चूका हूँ. आप भी एक बार ट्राई ज़रूर कीजिये. सिद्ध मकरध्वज ओरिजिनल होना चाहिय तभी पूरा लाभ मिलेगा. ओरिजिनल सिद्ध मकरध्वज न. 1 का लिंक दिया जा रहा है.


सिद्ध मकरध्वज की सेवन विधि -

मकरध्वज को एक विशेष विधि से सेवन करने का विधान है. सही विधि से सेवन करने पर ही इसके सारे गुणों की प्राप्ति होती है.

तो अब सवाल यह उठता है कि इसके सेवन की सही विधि क्या है?

सिद्ध मकरध्वज को शहद के साथ अच्छी तरह से खरल कर सेवन से इसका पूरा लाभ मिलता है. जैसा कि शास्त्रों में भी कहा गया है - 'मर्दनम गुणवर्धनम' 

अथार्त- मर्दन करने से इसके गुणों में वृद्धि हो जाती है. जितना पॉसिबल हो इसे शहद के साथ खरल या पेश्टर में डालकर मर्दन कर ही यूज़ करना चाहिए.

125 mg से 375 mg तक आयु के अनुसार इसकी मात्रा लेकर एक स्पून शहद के साथ दस से 15 मिनट तक खरल कर रोज़ दो से तीन बार तक इसका सेवन करें और फिर चमत्कार देखें. अगर किसी ख़ास बीमारी के लिए इसे लेना है तो उस बीमारी में इस्तेमाल होने वाली दवा के साथ इसे मिक्स कर लेना चाहिए.

सिद्ध मकरध्वज के गुण -

अगर मैं कहूँ कि सिद्ध मकरध्वज गुणों की खान है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. मकरध्वज के जैसी दवा दुनिया की किसी भी पैथी में नहीं है. यह मरणासन्न रोगी को भी  बचा देती है.

आयुर्वेदानुसार यह त्रिदोष नाशक है जिस से यह हर तरह की बीमारी में लाभकारी है.
इसके गुणों की बात करें तो यह ताक़त बढ़ाने वाली बेजोड़ दवा है. यह हार्ट और नर्वस सिस्टम को ताक़त देती है. खून की कमी और कमज़ोरी दूर कर वज़न बढ़ाती है.

शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन,नपुँसकता और वीर्य विकारों के लिए बेजोड़ है. न्युमोनिया, खांसी, दमा, टी. बी., हृदय रोग, हर तरह की बुखार, हर तरह की कमज़ोरी, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ना इत्यादि अनेकों रोगों में इसका प्रयोग करना चाहिए.

यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है. बहुत सारे लोग ठण्ड के मौसम में इसका सेवन कर पुरे साल उर्जावान बने रहते हैं. अभी का मौसम इसके इस्तेमाल के लिए सबसे बेस्ट है.

चूँकि सिद्ध मकरध्वज योगवाही भी है, मतलब जिस किसी भी दवा के साथ मिक्स कर यूज़ करेंगे यह उसके गुणों को बढ़ा देता है. अनुपान भेद से यह अनेकों रोगों में प्रयोग किया जाता है, आईये संक्षेप में कुछ बता देता हूँ जैसे -

सर्दी खाँसी में - पान के रस, अदरक के रस, मुलेठी चूर्ण, पीपल चूर्ण के साथ इसे लेना चाहिए

साधारण बुखार में - पीपल और अदरक के रस के साथ
मलेरिया में - करंज बीज या सुदर्शन चूर्ण के साथ
टाइफाइड में - मोती पिष्टी के साथ
जीर्ण ज्वर या पुरानी बुखार में - पीपल चूर्ण के साथ
कब्ज़ में - त्रिफला चूर्ण या त्रिफला क्वाथ के साथ
एसिडिटी में - आँवला चूर्ण या गिलोय सत्व के साथ
आँव वाले दस्त में - बेलगिरी चूर्ण या आमपाचक चूर्ण के साथ
बवासीर में - सुरण चूर्ण या कंकायण वटी के साथ
संग्रहणी या आई बी एस में - भुने हुवे जीरा के चूर्ण, शहद और छाछ के साथ
हृदय रोगों में - मोती पिष्टी और अर्जुन की छाल के चूर्ण के साथ
पागलपन में - सर्पगंधा चूर्ण के साथ
मृगी में - बच के चूर्ण के साथ
गैस में - भुनी हींग के साथ
पथरी में - गोक्षुर और कुल्थी के क्वाथ के साथ
धात रोग में - गिलोय के रस के साथ
स्वप्नदोष में - कबाब चीनी चूर्ण के साथ
शीघ्रपतन में - कौंच बीज चूर्ण या दिर्घायु चूर्ण के साथ
डायबिटीज में - गुडमार और जामुन गुठली चूर्ण के साथ
एनीमिया या खून की कमी में - लौह भस्म के साथ
ल्यूकोरिया में - तण्डूलोदक के साथ

तो दोस्तों, इस तरह से अनेकों रोगों में इसे उचित अनुपान के साथ प्रयोग किया जाता है. 
बेस्ट क्वालिटी का स्पेशल सिद्ध मकरध्वज न. 1 ऑनलाइन अवेलेबल है, 1 ग्राम का पैक सिर्फ 150 रुपया में जिसका लिंक गया है. 


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14 दिसंबर 2019

Filaria Treatment | फ़ाइलेरिया का महाकाल - श्लिपदहर योग


यह एक ऐसी बीमारी है जिसके कारन रोगी का जीवन कठिन हो जाता है जिस से चलना फिरना और यहाँ तक की उठने बैठने में भी समस्या हो जाती है, तो आईये इसकी चिकित्सा के बारे में विस्तार से जानते हैं - 

फ़ाइलेरिया को श्लिपद और हाथी पाँव के नाम से भी जाना जाता है. रोगी का पैर फूलकर हाथी के पैर की तरह मोटा हो जाता है जिसे लोग हाथी पाँव भी कहते हैं. 

फ़ाइलेरिया रोग का कारण - 

आयुर्वेदानुसार एक तरह की कृमि ही इसका कारन है और इसे मॉडर्न साइंस भी मानता है. 

क्या यह रोग ठीक हो सकता है? 

जी हाँ, आयुर्वेदिक चिकित्सा से यह रोग ठीक हो जाता है इसमें कोई शक नहीं. इसके लिए लम्बे समय तक दवा लेनी होती है. जब तक आपने धैर्य नहीं होगा, इस रोग से मुक्ति नहीं मिलेगी. 

होता क्या है कि अक्सर लोग दो चार महीने दवा खाकर छोड़ देते हैं और मान लेते हैं कि रोग ठीक नहीं होगा. इस से छुटकारा पाने के लिए एक से दो साल तक औषधि का सेवन करना पड़ता है तभी रोग निर्मूल हो जाता है और दुबारा नहीं होता. 
साध्य फ़ाइलेरिया(नया रोग)

दो चार साल तक का पुराना रोग जल्दी ठीक हो जाता है परन्तु जिसमे रोगी की त्वचा कछुआ के पीठ के समान कड़ी हो गयी हो, असाध्य माना जाता है. पर यह भी ठीक हो सकता है औषधि के निरन्तर सेवन से, साथ में अग्निकर्म और जलौकावचारण भी करना चाहिए इसके लिए. 
असाध्य फ़ाइलेरिया(बहुत पुराना रोग)


फ़ाइलेरिया की आयुर्वेदिक चिकित्सा - 

इसकी आयुर्वेदिक चिकित्सा से पहले दो बात का ध्यान रखना होगा. पहली बात यह कि बड़े धैर्य के साथ आपको इसकी औषधि सेवन करनी पड़ेगी 

और दूसरी बात यह कि खाने-पिने में परहेज़ भी करना होगा. यदि आप खान-पान में परहेज़ नहीं करेंगे तो सफलता नहीं मिलेगी. 

परहेज़ क्या-क्या करना है?

फ़ाइलेरिया की इस दवा का इस्तेमाल करते हुए आलू, केला, उरद, गोभी, आम, अरबी, कटहल, शकरकंद, ठण्डा पानी, ठंडा भोजन, फ्रिज की चीज़, गन्ना, गुड़, चीनी, दूध और दूध से बनी चीजों का परहेज़ करना चहिये. 

आईये अब जानते हैं इसकी औषधि के बारे में. चूँकि इसका मूलकारण कृमि है तो कृमिघन औषधियों के मिश्रण से बनाया गया है - श्लिपदहर योग 
शास्त्रों में भी कहा गया है - 

'प्रकृति विघातस्त्वेषां कटुतिक्त कषायक्षारोष्णानां द्रव्याणामुपयोगः,
यच्चान्यदापि किन्चिच्छलेष्म पुरीषप्रत्यानीकभूतं तत् स्यात् ||'

अथार्त - कृमियों की प्रकृति का नाश कटु, कषाय, क्षार और उष्णवीर्य वाले द्रव्यों के उपयोग से होता है और जो भी क्रिया, द्रव्य उपचारादि कफ तथा पुरीष के गुणों के विपरीत होते हैं, उनके सेवन से भी कृमियों का विनाश होता है. 

श्लिपदहर योग इसी तरह की कृमिनाशक और फ़ाइलेरिया में प्रयुक्त होने वाली औषधियों का बेजोड़ मिश्रण है. 

श्लिपदहर योग के घटक या कम्पोजीशन - 

इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे श्लीपदगजकेशरी रस, नित्यानन्द रस, कृमिमुदगर रस, कृमिकुठार रस, नागार्जुनाभ्र रस और कृष्ण भृंगराज घनसत्व का उचित संयोग होता है. इसकी बनी बनाई पुड़िया अब उपलब्ध है. इसके साथ में फ़ाइलेरियल कैप्सूल का भी सेवन करना चाहिए.

औषधि की मात्रा और सेवन विधि - 

श्लीपदहर योग एक पुडिया रोज़ दो से तीन बार तक शहद में मिक्स कर 
फ़ाइलेरियल कैप्सूल एक-एक सुबह-शाम.

संभव हो तो इनके साथ में गोमूत्र अर्क, आसव या क्षार में से कोई एक भी एक सेवन कर सकते हैं. 

यह दोनों औषधि अवेलेबल है ऑनलाइन जिसका लिंक दिया गया है -



 फ़ाइलेरियल कैप्सूल के 120 पैक की क़ीमत है सिर्फ़ 400 रुपया जबकि श्लीपदहर योग के 90 मात्रा की क़ीमत है 999 रुपया. दोनों दवा मिलाकर सिर्फ़ एक हज़ार से 1200 तक एक महीने का खर्च होता है जो कि कोई अफ़ोर्ड कर सकता है, इस महाव्याधि से मुक्ति पाने के लिए. 

तो दोस्तों, अगर किसी को फ़ाइलेरिया से मुक्ति पानी है तो बताई गयी दवा को धैर्यपूर्वक सेवन करना चाहिए. यह कष्टकारक महाव्याधि दूर होगी, यह आयुर्वेद की गारन्टी है!!! 

फ़ाइलेरियल कैप्सूल की जानकारी 

फ़ाइलेरिया का उपचार 

07 दिसंबर 2019

Diabetes Herbal Remedy | मधुमेह की आयुर्वेदिक औषधि


अगर आप डायबिटीज से परेशान हैं और शुगर लेवल बढ़ा हुआ है तो आजकी जानकारी आपके लिए है. जैसा कि आप सभी जानते हैं जिस किसी को डायबिटीज हो जाती है उसे मीठी चीज़ों से परहेज़ करना पड़ता है और साथ ही शुगर लेवल कण्ट्रोल में रखने के लिए दवाईयाँ लेनी पड़ती है. और यदि आप अंग्रेज़ी दवा पर डिपेंड  हैं तो इसका डोज़ धीरे-धीरे बढ़ता ही जाता है और किसी-किसी को तो इन्सुलिन का इंजेक्शन तक लेने की नौबत आ जाती है. तो ऐसी कौन सी दवा ली जाये जिस से न सिर्फ़ शुगर लेवल नार्मल रहे बल्कि इस बीमारी से मुक्ति भी मिले? आईये इसके बार में विस्तार से जानते हैं - 

आप मानें या न माने टाइप वन और टाइप टू या हर तरह की डायबिटीज के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ आयुर्वेदिक दवाएँ ही सबसे बेस्ट हैं. और यदि नियमपूर्वक इनका सेवन किया जाये और रोग नया हो तो आप इस बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं. 
तो अब सवाल यह उठता है कि कौन सी औषधि इसके लिए सेवन करनी चाहिए? 

अपने अनुभव के आधार पर मेरा जवाब यह है इसके लिए काष्ठ औषधियों के योग के साथ रसायन औषधि भी लेना आवश्यक है तभी बेस्ट रिजल्ट मिलता है. 

इसके लिए कम से कम दो तरह की औषधि लेनी चाहिए सुगरोल चूर्ण और स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस 

यह जो सुगरोल चूर्ण है इसका कॉम्बिनेशन बेजोड़ है. इसे मधुमेह के लिए प्रयुक्त होने वाली जड़ी-बूटियों के संतुलित मिश्रण से बनाया गया है. इसके मुख्य घटक हैं - 
जम्बूफल की गुठली, गुडमार, नाय, बेलपत्र, तेजपत्र और मेथीदाना जैसी चीज़ें इसका मुख्य घटक होती हैं. 

इसके निरंतर सेवन से ब्लड शुगर और यूरिन शुगर का लेवल नार्मल हो जाता है. शुगर को कण्ट्रोल करने वाली किसी भी अंग्रेजी दवा से यह सौ गुना बेहतर है. क्यूंकि इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता और डायबिटीज की वजह से होने वाली दूसरी कम्पलीकेशन को भी दूर कर देता है. 

इसके साथ जो दवा लेनी होती है वह है स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस. वैसे तो यह आयुर्वेद की पॉपुलर मेडिसिन है जो मार्केट में कई बड़ी नामी कंपनियों की मिल जाती है पर उनसे इसके जैसा रिजल्ट नहीं मिलता है क्यूंकि यह जो स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस है इसे विशेष भावना देकर बनाया गया है. यह एक बेजोड़ शास्त्रीय योग है जो बीमारी दूर कर शरीर में नवयौवन लाता है और चुस्ती-फुर्ती का संचार करता है. 

शास्त्रों में इसकी प्रशंशा में लिखा गया है- सर्व रोगों वसन्ते !!

अथार्त - जिस तरह से बसन्त का मौसम आने पर फूल खिल जाते हैं ठीक उसी तरह इस औषधि के सेवन से शरीर में नयी शक्ति, स्फूर्ति और ऊर्जा आती है और शरीर खिल उठता है. यह पुरुषों की मर्दाना कमज़ोरी, यौन रोगों और महिलाओं के लिए भी समान रूपसे लाभकारी है. 

बसन्त कुसुमाकर रस के बारे में अधिकतर लोगों में यह धारणा कि बुजुर्गों की दवा और सिर्फ डायबिटीज के लिए है. यह बिल्कुल ग़लत है, अनुपान भेद से यह अनेक रोगों में प्रयोग की जाती है. 

इन दो दवाओं के इस्तेमाल से अनेकों रोगियों को लाभ हुआ है. उदाहरण के लिए एक रोगी की रिपोर्ट बताना चाहूँगा -

51 साल की एक महिला रोगी जिनका ब्लड सुगर लेवल 400 से ऊपर था और इसकी वजह से आँखों की रौशनी भी कम हो गयी थी. 20 अगस्त की इनकी रिपोर्ट देख सकते हैं - 

एक हफ़्ते यही दवा इस्तेमाल करने के बाद जब टेस्ट कराया गया तो रिपोर्ट में शुगर 145 आयी, 28 अगस्त की रिपोर्ट आप देख सकते हैं - 


11 सितम्बर की रिपोर्ट नार्मल आई और उनकी सारी प्रॉब्लम दूर हो गयी, जैसा कि आप रिपोर्ट में देख सकते हैं - 



यह तो Example का तौर पर बता रहा हूँ, ऐसे बहुत सारी रिपोर्ट्स से मेरा व्हाट्सऐप भरा पड़ा है. 

औषधि की मात्रा और सेवन विधि - 

चूर्ण को एक स्पून सुबह-शाम लेना है ताज़े पानी से भोजन के बाद. और स्पेशल बसन्त कुसुमाकर रस की जो गोली है इसे 2-2 गोली सुबह-शाम आधा कप दूध में घोलकर लेना चाहिए. 

चूर्ण की क़ीमत सिर्फ़ 100 रुपया सौ ग्राम के पैक की, जबकि स्पेशल बसन्तकुसुमाकर रस 325 रुपया का है 1 पैक

यह दोनों दवा अवेलेबल है ऑनलाइन जिसका लिंक दिया जा रहा है -



तो दोस्तों, ये थी आज की जानकारी डायबिटीज या मधुमेह से मुक्ति दिलाने वाली औषधि के बारे में.