आज की की जानकारी है एक बेहद असरदार औषधि कहरवा पिष्टी के बारे में जो आयुर्वेद के साथ-साथ यूनानी में भी इस्तेमाल की जाती है. इस विडियो में आप जानेंगे कहरवा के गुण, निर्माण और प्रयोग विधि के बारे में विस्तार से -
कहरवा एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है विधुत या बिजली. आयुर्वेद में इसे 'तृणकान्तमणि' कहते हैं पर यह कहरवा के नाम से ही प्रचलित है. यह गोंद की तरह का एक पदार्थ है जो बर्मा और दूसरी जगहों की खानों से निकलता है. यह सोने के जैसा पीले रंग का दीखता है.
कहरवा पिष्टी निर्माण विधि -
इसके छोटे-छोटे टुकड़े कर चूर्ण बनाकर खरल में डालकर गुलाब जल मिला-मिलाकर दस-पंद्रह दिनों तक खरल कर सुखाकर रख लेना चाहिए. इसका भस्म भी बनाया जाता है पर इसकी पिष्टी ही ज़्यादा गुणकारी होती है.
कहरवा पिष्टी के गुण -
इसके गुणों की बात करें तो यह शीतल यानि तासीर में ठंडा, पित्त नाशक, दाह नाशक यानि शरीर की गर्मी और जलन को दूर करने वाला, दिल को ताक़त देने वाला, रक्तनिरोधक यानि ब्लीडिंग रोकने वाला चाहे ब्लीडिंग शरीर के अन्दर से हो या बाहर शरीर में कहीं से भी हो और व्रण नाशक जैसे कई तरह के गुणों से भरपूर होता है.
कहरवा पिष्टी के फ़ायदे -
पित्तज विकारों जैसे रक्तपित्त, अम्लपित्त, उलटी, शरीर की गर्मी, जलन, ज़्यादा प्यास लगना, ज़्यादा पसीना आना, ख़ूनी दस्त, नाक-मुँह या शरीर में कहीं से भी ब्लीडिंग होना, रक्त प्रदर, ख़ूनी बवासीर इत्यादि में इसका प्रयोग किया जाता है.
दिल की कमज़ोरी, लिवर, पेट, किडनी की कमज़ोरी इत्यादि में भी दूसरी दवाओं के साथ इसे देना चाहिए.
व्रण नाशक गुण होने से यह हर तरह के ज़ख्म के लिए भी असरदार है. ज़ख्म से मवाद आता हो, बदबू आती हो और यहाँ तक की कीड़े भी पड़ गए हों तो ड्रेसिंग कर इसे पाउडर की तरह छिड़कना चाहिए.
अधिकतर लोग समझते हैं कि आयुर्वेद में ज़ख्म के लिए कोई पाउडर नहीं होता, तो समझ लीजिये की कहरवा पिष्टी ज़ख्म के लिए भी बेहतरीन पाउडर है. एंटीबायोटिक वाले अंग्रेज़ी पाउडर से कहीं बेहतर.
यह एक ऐसी दवा है जिसे खाने के साथ-साथ लगाने में भी प्रयोग कर सकते हैं. उच्च गुणवत्ता वाला विधि पूर्वक बनाया हुआ कहरवा पिष्टी अब अवेलेबल है हमारे स्टोर पर जिसका लिंक दिया गया है-
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