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आज एक दिव्य औषधि रुदन्ती के बारे में बताने वाला हूँ. जी हाँ दोस्तों रुदन्ती एक ऐसी बूटी है जो लंग्स या फेफड़ों की बीमारियों के लिए वरदान है तो आईये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं -
रुदन्ती को रुद्रवंती भी कहा जाता है. रुदन्ती घनसत्व को अनेकों रोगियों पर प्रयोग कर बेहद इफेक्टिव पाया हूँ. यक्ष्मा या टी. बी. के इसका कोई जवाब नहीं.
रुदन्ती चूर्ण या रुदन्ती घनसत्व को इस रोगों में प्रयोग करना चाहिए जैसे - पुरानी खाँसी, टी. बी., फेफड़ों में पानी आ जाना या प्लूरिसी और इसकी वजह से होने वाली बुखार, कफ़ ज़्यादा बनना और फेफड़ों की कमज़ोरी इत्यादि.
यहाँ एक सबसे महत्वपूर्ण बात बता दूं कि टी. बी. के रोगी को दूसरी दवाओं के साथ रुदन्ती घनसत्व का प्रयोग कराने से टी. बी. तो ठीक होती ही बल्कि रोगी का फेफड़ा पहले जैसा बेदाग हो जाता है.
जबकि अंग्रेज़ी दवा से ठीक हुए रोगी के फेफड़े के दाग नहीं मिटते और मेडिकल टेस्ट में कई बार लोग रिजेक्ट हो जाते हैं.
अगर टी. बी. के रोगी को रुदन्ती का सेवन कराया जाये फेफड़े के ज़ख्म ठीक होने के बाद किसी भी तरह कोई दाग या निशान नहीं बचता है. यही इसका सबसे बड़ा एडवांटेज मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया है.
पुरानी खाँसी, कफ़ और फेफड़ों की कमज़ोरी में इसका अवश्य प्रयोग करें और फिर चमत्कार देखें.
रुदन्ती घनसत्व से बना कैप्सूल अब ऑनलाइन अवेलेबल है हमारे स्टोर पर जिसका लिंक दिया जा रहा है.
रुदन्ती कैप्सूल की मात्रा और सेवन विधि - एक-एक कैप्सूल सुबह-शाम दूध से. (वैद्यगण कैप्सूल को खोलकर दुसरे योग के साथ मिक्स कर भी दे सकते हैं)
जिन रोगियों की टी. बी. अंग्रेज़ी से ठीक नहीं हो रही तो उनको स्वर्णबसन्तमालती रस के साथ रुदन्ती घनसत्व कैप्सूल का सेवन करना चाहिए.
तो ये थी आज की जानकारी रुदन्ती घनसत्व कैप्सूल के बारे में. मेरा चैनल देखने वाले चिकित्सक बंधू से निवेदन है कि अगर आपने अब तक रुदन्ती का प्रयोग नहीं किया है तो इसका प्रयोग कर यश अर्जित करें. धन्यवाद्
वैद्य जी की डायरी में आज एक बहुत ही स्पेशल योग बताने वाला हूँ जो पेट की बीमारियों के लिए बेजोड़ है और रामबाण की तरह काम करता है, जिसका नाम है उदर महायोग. तो आईये जानते हैं इस योग के गुण, निर्माण विधि और प्रयोग के बारे में विस्तार से -
पेट के रोगों के लिए आयुर्वेद में कई तरह के योग भरे पड़े हैं जिसे आप सभी जानते हैं. आज जो औषधि बता रहा हूँ इसका कॉम्बिनेशन बड़ा ही बेजोड़ है जो उदर विकारों में बेहतरीन रिजल्ट देता है.
उदर महायोग का के घटक या कम्पोजीशन -
इस योग को बनाने के लिए चाहिए होगा प्रवाल पंचामृत रस मोती युक्त(न.1) 5 ग्राम, वृहत लोकनाथ रस 5 ग्राम और कासीस गोदन्ती भस्म 5 ग्राम
निर्माण विधि - सबसे पहले वृहत लोकनाथ रस को खरल कर लें इसके बाद दूसरी औषधियों को अच्छी तरह मिक्स खरल में डालकर तीन घन्टे तक घुटाई कर लें. मर्दनम गुणवर्धनम के अनुसार जितना ज़्यादा घुटाई होगी, उतनी ज़्यादा प्रभावशाली औषधि होती है.
उदर महायोग की मात्रा और सेवन विधि -
250 mg सुबह-शाम शहद में मिक्स कर चाट लें और ऊपर से 4 स्पून कुमार्यासव आधा कप पानी में मिक्स कर पीना चाहिए भोजन के बाद.
उदर महायोग के फ़ायदे -
इसके फ़ायदों की बात करें तो यह पाचन तंत्र की बीमारियों के लिए बेहद असरदार है जैसे - पाचक पित्त विकृति, पेट की जलन, एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना, लिवर की हर तरह की प्रॉब्लम, गैस, गुल्म या गोला बनना, कब्ज़, दस्त, IBS या संग्रहणी, खून की कमी, कमज़ोरी शारीरिक दुर्बलता इत्यादि.
Digestive system में कहीं की ग्रंथि या सिस्ट होना, फुफ्फुस ग्रंथी और कैंसर तक में इस से लाभ होता है.
कुल मिलाकर बस समझ लीजिये कि पेट की बीमारियों के लिए यह अमृत तुल्य लाभकारी है. इसके इस्तेमाल से पेट की बीमारी तो दूर होती ही है साथ ही कमज़ोरी दूर होकर चेहरा खिल जाता है.
प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सक और वैद्यगण रोगियों पर इसका प्रयोग कराएँ और फिर रिजल्ट देखें. 15 सालों से अधीक समय से सफलतापूर्वक हमारे यहाँ इसका प्रयोग किया जा रहा है.
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आज की जानकारी है क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन श्रृंगाराभ्र रस के बारे में जिसमे आप जानेंगे इसके घटक या कम्पोजीशन, निर्माण विधि और गुण-उपयोग की पूरी जानकारी -
सबसे पहले नज़र डालते हैं इसके कम्पोजीशन या घटक पर- अभ्रक भस्म इसका मुख्य घटक होता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है कृष्णाभ्रक भस्म 80 ग्राम, लौंग, दालचीनी, नागकेशर, तेजपात, कपूर, जावित्री, नेत्रवाला, गजपीपल, जटामांसी, तालिसपत्र, कूठ, धायफुल प्रत्येक 3-3 ग्राम, सोंठ, मिर्च, पीपल, आँवला, बहेड़ा प्रत्येक डेढ़-डेढ़ ग्राम, छोटी इलायची के बीज और जायफल 6-6 ग्राम, शुद्ध गंधक 10 ग्राम और शुद्ध पारा 6 ग्राम
श्रृंगाराभ्र रस निर्माण विधि -
बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को खरलकर कज्जली बना लें और इसके बाद जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण मिक्स कर, अंत में अभ्रक भस्म मिलाकर अच्छी तरह घुटाई कर पानी के संयोग से मटर के आकार की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखाकर रख लिया जाता है. यही श्रृंगाराभ्र रस है.
श्रृंगाराभ्र रस के गुण -
इसके गुणों या प्रॉपर्टीज की बात करें तो यह Anti tussive, Expectorant, Anti biotic, Anti allergic, Anti inflammatory, टॉनिक और रसायन जैसे कई तरह के गुणों से भरपूर है. वात, पित्त और कफ़ तीनों दोषों पर इसका असर होने से यह त्रिदोष नाशक है.
श्रृंगाराभ्र रस के फ़ायदे-
इसके फायदों की बात करें तो इसका सबसे ज़्यादा असर फेफड़े और श्वसन तंत्र पर ही होता है. खाँसी और अस्थमा की यह पॉपुलर दवाओं में से एक है.
खाँसी, बलगम, अस्थमा, कफ़ जमा होना, सफ़ेद चिकना कफ़ निकलना, सीने या पसली में दर्द होना, सर भरी होना, साँस लेने में तकलीफ़ होना, कमज़ोरी इत्यादि में उचित अनुपान से लेने अच्छा लाभ होता है.
श्रृंगाराभ्र रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक-एक गोली सुबह-शाम अदरक के रस और शहद के साथ या फिर रोगानुसार उचित अनुपान के साथ लेना चाहिए. रसायन औषधि है तो डॉक्टर की देख रेख में लेना ही समझदारी है. आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है, ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है.
इसे भी जानिए -
आज की जानकारी है जातिफलादि वटी(स्तंभक) के बारे जो वीर्यस्तम्भन करने वाली औषधि है. तो आईये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से -
आपमें से कई लोग जानते होंगे कि जातिफलादि वटी दो तरह की होती है. एक जातिफलादि वटी ग्राही या संग्रहणी वाली और दूसरी जातिफलादि वटी(स्तंभक) तो आज की जानकारी है जातिफलादि वटी(स्तंभक) के बारे में, सबसे पहले जानते हैं -
जातिफलादि वटी(स्तंभक) के घटक या कम्पोजीशन -
यह अफीम प्रधान औषधि है, इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है जायफल, अकरकरा, सोंठ, शीतल चीनी, केशर, लौंग और सफ़ेद चन्दन प्रत्येक एक-एक भाग और शोधित अफ़ीम चार भाग
बनाने का तरीका यह होता है कि जड़ी-बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण कर लें, केशर को खरल में डालकर पिस लें, इसके बाद शुद्ध अफ़ीम और जड़ी-बूटियों का चूर्ण अच्छी तरह मिक्स कर थोड़ा पानी मिक्स कर अच्छी तरह घुटाई कर दो-दो रत्ती या 250mg की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखाकर रख लें.
जातिफलादि वटी(स्तंभक) के गुण
आयुर्वेदानुसार यह स्तम्भक और संकोचक है, वात वाहिनी और शुक्रवाहिनी नाड़ियों पर इसका सबसे ज़्यादा असर होता है.
जातिफलादि वटी(स्तंभक) के फ़ायदे
स्तम्भन शक्ति बढ़ाने के लिए ही इसका प्रयोग किया जाता है. यह शीघ्रपतन नहीं होने देती.
जल्द डिस्चार्ज नहीं होने और शीघ्रपतन दूर करने के लिए वैद्यगन इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक कराते हैं.
इसके सेवन से पहले वीर्यवर्धक और पौष्टिक औषधियों का सेवन अवश्य करना चाहिए.
जातिफलादि वटी(स्तंभक) की मात्रा और सेवन विधि -
एक गोली सोने से एक घंटा पहले दूध, शहद या घी के साथ लेना चाहिए. यह अफ़ीम वाली दवा है तो इसका ज़्यादा इस्तेमाल नुकसान करता है और लेने के देने भी पड़ सकते हैं.
इसका इस्तेमाल करते हुए और इस्तेमाल के बाद भी दूध, घी, मक्खन-मलाई का ज़्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. इसे हफ्ता में एक से दो बार ही यूज़ करें.
इसके साइड इफ़ेक्ट की बात करें तो शरीर की गर्मी बढ़ जाना, कमज़ोरी, चक्कर आना, किसी काम में मन नहीं लगना, चिडचिडापन जैसी प्रॉब्लम हो सकती है. इसे ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से -
वैद्य जी की डायरी में आज अस्थमा या दमा के लिए बहुत ही सिम्पल और आसान सा योग बताने वाला हूँ जिसका इस्तेमाल हर कोई आसानी से कर सकता है, तो आईये इसके बारे में पूरी डिटेल्स जानते हैं-
लोग कहते हैं कि दमा दम के साथ जाता है, कुछ हद तक यह सही भी है पर यदि सही ट्रीटमेंट मिले तो यह बीमारी ठीक भी हो जाती है. इसके लिए आयुर्वेद में कई तरह की शास्त्रीय औषधियाँ हैं जो बीमारी को दूर करने में सक्षम होती हैं. इसके अलावा कई तरह के अनुभूत योग भी हैं जिसे वैद्य लोग रोगियों पर प्रयोग करते हैं, ऐसा ही एक योग है जिसे मैं बताने वाला हूँ जिसका नाम है श्वास नाशक योग
इसके लिए सिर्फ दो चीज़ें चाहिए - देसी गेहूं और हल्दी दोनों आर्गेनिक हो तो अत्ति उत्तम. गेहूं 200 ग्राम तो हल्दी 100 ग्राम
श्वास नाशक योग निर्माण विधि -
इसे बनाने का तरीका बहुत आसान है, मिट्टी के बर्तन गेहूं को चूल्हे पर रखकर जलाना है, कोयला होने तक. इसी तरह हल्दी को भी जला लें. यहाँ पर ध्यान रखने वाली बात यह है कि इसे जलाकर राख नहीं करना है बल्कि कोयला होने तक ही जलाना है. ठण्डा होने पर कूट-पीसकर बारीक पाउडर बनाकर रख लें, बस श्वास नाशक योग तैयार है.
श्वास नाशक योग की मात्रा और सेवन विधि -
इसे कल्प विधि कुल 51 दिन प्रयोग करना होता है विशेष विधि से. पहले दिन इसे 5 ग्राम सुबह ख़ाली पेट पानी से लेना है रोज़ एक बार. इसी तरह से रोज़ एक ग्राम का डोज़ बढ़ाते हुए पच्चीसवें दिन 30 ग्राम का डोज़ हो जायेगा, इसके बाद रोज़ एक ग्राम डोज़ कम करते हुए जब 5 ग्राम पर डोज़ आने पर बंद कर दें.
यह व्यस्क व्यक्ति की मात्रा है. कल्प विधि से 51 दिनों तक प्रयोग करने से अस्थमा और कफ़ वाली खाँसी से मुक्ति मिल जाती है.
वैद्य जी की डायरी में आज इतना ही, इसके बारे में कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये. जानकारी अच्छी लगी तो लाइक और शेयर ज़रूर कीजिये.