कृमिकुठार रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो हर तरह के पेट के कीड़ों को दूर
करने में बेजोड़ है. बल्कि यह कहें कि सिर्फ़ पेट के कीड़े ही नहीं बल्कि शरीर के हर
तरह के कीड़े या वर्म्स को दूर कर देता है. तो आईये इसके बारे में विस्तार से जानते
हैं –
कृमिकुठार रस जैसा कि इसका नाम है कृमि यानि वर्म्स पर कुठार या कुल्हाड़ी की
तरह वार कर नष्ट कर देने वाली रसायन औषधि.
रसायन औषधि होने से यह तेज़ी से असर करती है, इसमें शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक
का योग होता है.
कृमिकुठार रस के घटक या कम्पोजीशन –
इसे शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, वायविडंग, शुद्ध हींग, इन्द्रजौ, बच, कमीला,
करंजबीज मज्जा, पलाश के बीज, अनार मूल छाल, सुपारी, डिकामली, लहसुन, सोंचर नमक,
अजवायन सत्व जैसी औषधियों के मिश्रण से ग्वारपाठा की तीन भावना देकर गोलियाँ या
टेबलेट बनायी जाती है.
कृमिकुठार रस के फ़ायदे-
आयुर्वेदानुसार यह बीसों प्रकार के कृमि को नष्ट कर देती है. यानी यह हर तरह
के कीड़ों को दूर करने की क्षमता रखती है.
छोटे बच्चों को अक्सर पेट में कीड़े हो जाते हैं. अगर बच्चों में कीड़े के लक्षण
हों जैसे – आलस, मुँह से लार गिरना, पेट दर्द, कब्ज़, मलद्वार में खुजली होना, नीन्द नहीं आना, नीन्द में अचानक
चौंक जाना, नीन्द में दांत पिसना या दांत किटकीट करना तो कृमिकुठार रस का सेवन
कराना चाहिए.
बच्चे-बड़े सभी के लिए पेट के कीड़े होने पर इसका प्रयोग करना चाहिए.
कई बार बच्चों में पेट के कीड़े होने पर दौरे भी पड़ते हैं जिसे लोग आसानी से
मिर्गी की बीमारी समझ लेते हैं, पर या मिर्गी न होकर इसका मूल कारन पेट के कीड़े
होते हैं. तो ऐसी अवस्था में अगर जाँच में पेट के कीड़े निकले तो कृमिकुठार रस का
सेवन कराना चाहिए.
अंग्रेज़ी डॉक्टर पेट के कीड़ों के लिए Mebendazole, Albendazole जैसी दवाईयाँ
देते हैं, पर उनसे स्थायी लाभ नहीं होता है. जहाँ अंग्रेजी दवा फेल हो गयी हो वहां
भी कृमिकुठार रस के उचित सेवन से लाभ हो जाता है.
और एक पते की बात बता दूँ कि पुराने फ़ाइलेरिया में मैं नित्यानन्द रस,
फ़ाइलेरियल कैप्सूल जैसी दवाओं के साथ कृमिकुठार रस का भी प्रयोग कराता हूँ, इससे कृमिजन्य
फ़ाइलेरिया नष्ट होता है.
कृमिकुठार रस की मात्रा और सेवन विधि –
दो से चार गोली तक सुबह-शाम विडंगारिष्ट के साथ देना चाहिए यह व्यस्क व्यक्ति
की मात्रा है. बच्चों को एक-एक गोली सुबह-शाम शहद के साथ देना चाहिए.
अगर कब्ज़ भी हो तो पंचसकार चूर्ण या एरण्ड तेल का भी प्रयोग करते रहना चाहिए
ताकि पेट के कीड़े मरकर आसानी से बाहर निकल सकें.
अगर कब्ज़ नहीं हो और पेट साफ़ होता हो तो 7 से 11 दिनों में ही पेट के कीड़े
नष्ट हो जाते हैं. अन्यथा 21 से 41 दिनों तक विशेष अवस्था में इसका सेवन कराना
चाहिए.
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