कालमेघासव आयुर्वेदिक औषधि है जो हर तरह के मलेरिया बुखार में प्रयोग की जाती है, यह लिवर और स्प्लीन बढ़ने में भी असरदार है तो आईये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं -
कालमेघासव जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कालमेघ से बना हुवा आसव या एक तरह का सिरप. इसमें सिर्फ़ कालमेघ नहीं होता, बल्कि कालमेघ इसका मुख्य घटक है और इसमें कई तरह की दूसरी जड़ी-बूटियाँ भी होती हैं, तो सबसे पहले जानते हैं-
कालमेघासव के घटक या कम्पोजीशन -
इसे कालमेघ, गिलोय, सप्तपर्ण, कुटकी, करंज पञ्चांग, कुटज छाल, गुड़, धाय के फूल, लौह चूर्ण, रक्तरोहिड़ा त्वक, त्रिकटु, त्रिजात, एलुआ, हर्रे, बहेड़ा और बबूल की छाल के मिश्रण से आसव निर्माण विधि से सन्धान या Fermentation होने के बाद इसे बनाया जाता है.
कालमेघासव के गुण -
इसके गुणों की बात करें तो यह विषम ज्वर नाशक, Anti Malarial, Liver protective, Digestive, रक्त प्रसादक या Heamatemic जैसे कई तरह के गुणों से भरपूर होता है.
कालमेघासव के फ़ायदे -
- इसके इस्तेमाल से हर तरह की मलेरिया बुखार और ठण्ड लगकर आने वाली बुखार दूर होती है.
- मलेरिया पुराना होने पर लिवर-स्प्लीन बढ़ जाती है, अंग्रेज़ी दवाओं के साइड इफ़ेक्ट से खून की कमी, जौंडिस और भूख की कमी जैसी प्रॉब्लम भी हो जाती है, वैसी अवस्था में इसके सेवन से लाभ होता है.
- इसके सेवन से भूख बढ़ती है, खून की कमी दूर होती है. रस-रक्तादि धातुओं का शोधन कर यह बुखार हमेशा के लिए दूर कर देता है.
कालमेघासव की मात्रा और सेवन विधि -
15 से 30 ML तक रोज़ दो से तीन बार तक भोजन के बाद बराबर मात्रा में पानी मिक्स कर लेना चाहिए. इसके साथ दुसरे ज्वरनाशक योग लेने से अच्छा लाभ मिलता है.
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