भारत की सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक हिन्दी वेबसाइट लखैपुर डॉट कॉम पर आपका स्वागत है

10 दिसंबर 2018

Ras Sindoor | रस सिन्दूर एक विवेचना


रस सिन्दूर कुपिपक्व रसायन केटेगरी की ऐसी औषधि जो अनुपान भेद से हर तरह के रोगों को दूर करती है. अब आप सोच रहे होंगे कि सिर्फ़ एक दवा और हर तरह की बीमारी को कैसे दूर करेगी?? सब बताऊंगा रस सिन्दूर क्या है? कितने तरह का होता है? कौनसा बेस्ट होता है? क्या-क्या फ़ायदे हैं? कैसे यूज़ करना है? 
रस सिन्दूर क्या है?

आयुर्वेद में रस का मतलब होता है पारा जिसे पारद भी कहते हैं. रस सिन्दूर दो चीज़ें मिलाकर बनाया जाता है शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक. यही दो चीजें इसके घटक होते हैं.

रस सिन्दूर कैसे बनाया जाता है?

आम आदमी के लिए इसे बनाना आसान नहीं है, फिर भी संक्षेप में इसका प्रोसेस समझा देता हूँ.

इसे बनाने के लिए शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक को खरलकर आतशी शीशी में डालकर सात बार कपड़मिट्टी कर सुखाकर मिट्टी के हांडी में डालकर बालू भरा जाता है, जिसे आयुर्वेद में बालुकायंत्र कहा जाता है. 

अब इसे भट्ठी में चढ़ाकर तीन चार घन्टे तक मृदु, मध्यम और तीव्र अग्नि दी जाती है. इसके बाद ठण्डा होने पर लाल रंग की दवा निकालकर रख ली जाती है. इसे बनाते हुवे कई तरह का ध्यान रखा जाता है जो कि औषध निर्माण में अनुभवी वैद्य ही कर सकता है.

रस सिन्दूर बनाने में थोड़ी अलग-अलग विधि अपनाई जाती है और उस तरह से रस सिन्दूर चार प्रकार का होता है जैसे -

रस सिन्दूर अन्तर्धूम 

रस सिन्दूर अर्द्धगन्धकजारित 

रस सिन्दूर द्युगुण गन्धकजारित और 

रस सिन्दूर षडगुण बलिजारित 

इसमें सबसे लास्ट वाला षडगुण बलिजारित रस सिन्दूर सबसे ज़्यादा इफेक्टिव होता है.

रस सिन्दूर के फ़ायदे जानने से पहले इसके गुण या Properties को जान लीजिये -

आयुर्वेदानुसार यह उष्णवीर्य है मतलब तासीर में गर्म. यह योगवाही, रसायन, ब्लड फ्लो बढ़ाने वाला, रक्तदोष नाशक और हृदय को बल देने वाले गुणों से परिपूर्ण होता है. पित्त प्रकृति वालों और पित्त प्रधान रोगों में इसका सेवन नहीं करना चाहिए और सेवन करना ही हो पित्तशामक दवाओं के साथ सही डोज़ में ही लेना चाहिए.

रस सिन्दूर के फ़ायदे-

कफ़ और वात प्रधान रोगों में इसे प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है. पित्त रोगों में इसे गिलोय सत्व, प्रवाल पिष्टी और मोती पिष्टी जैसी औषधियों के साथ लेना चाहिए. अनुपान भेद से यह अनेकों रोगों को दूर करती है.

इन रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है जैसे - 

नयी पुरानी बुखार, टॉन्सिल्स, प्रमेह, श्वेत प्रदर या ल्यूकोरिया, रक्त प्रदर, बवासीर, भगंदर, दौरे पड़ना, पागलपन, न्युमोनिया, खाँसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, टी. बी., जौंडिस, हेपेटाइटिस, पेशाब की जलन, मूत्र रोग, अजीर्ण, पेट दर्द, बेहोशी, उल्टी, सुजन, ज़ख्म, गर्भाशय के रोग, कफ-वात प्रधान सर दर्द, सर काम्पना, चर्मरोग, जोड़ों का दर्द, आमवात, टेटनस, स्वप्नदोष, वीर्य विकार, मर्दाना कमज़ोरी, सामान्य कमज़ोरी इत्यादि. 

कुछ वैद्य लोग सिर्फ़ रस सिन्दूर से ही हर तरह की बीमारी का इलाज करते हैं. रस सिन्दूर है ही एक ब्रॉड स्पेक्ट्रम मेडिसिन.

रस सिन्दूर की मात्रा और सेवन विधि - 

125 mg से 250 mg तक सुबह-शाम शहद या फिर रोगानुसार उचित अनुपान से लेना चाहिए. बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार 15 से 60 mg तक देना चाहिए. 

सावधान- यह तेज़ी से असर करने वाली दवा है! इसे डॉक्टर की सलाह से सही मात्रा में ही लिया जाना चाहिए नहीं तो नुकसान भी हो सकता है. 

कई तरह की बीमारियों के रस सिन्दूर के साथ सेवन करने वाली दवाओं का बेहतरीन योग आपको मेरी किताब में मिल जाएगी. 

इसे भी जानिए - 



हमारे विशेषज्ञ आयुर्वेदिक डॉक्टर्स की टीम की सलाह पाने के लिए यहाँ क्लिक करें
Share This Info इस जानकारी को शेयर कीजिए
loading...

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

 
Blog Widget by LinkWithin