आज एक ऐसी चीज़ और ऐसी दवा के बारे में बताने वाला हूँ जिसे अक्सर लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं पर इसी से बनी यह दवा बेहद असरदार होती है.
जी हाँ दोस्तों, इसका नाम है आयुर्वेद में कुक्कुटाण्डत्वक भस्म जबकि यूनानी में इसे कुश्ता बैज़ा मुर्ग़ के नाम से जाना जाता है जो कि अन्डे के छिल्के से बनायी जाती है. तो आईये इसके बारे में पूरी डिटेल जानते हैं -
कुक्कुटाण्डत्वक भस्म- इसका पूरा नाम चार शब्दों के मिश्रण से बना है
कुक्कुट = मुर्गी, अण्ड = अंडा, त्वक = छिल्का, भस्म = भस्म या राख
मतलब हुवा मुर्गी के अण्डों के छिल्को से बनी भस्म. देसी मुर्गी जिसे आर्गेनिक आहार खिलाया गया हो उसी के अण्डों के छिल्को से बनी भस्म असरदार होती है. फार्म या पोल्ट्री वाले अण्डों की नहीं.
तो इसे बनाने के लिए देसी मुर्गी के अंडे के छिल्के चाहिए, ध्यान रहे अन्डे के कवर के अन्दर भी एक पतली झिल्ली होती है उसे हटाकर ऊपर वाला हार्ड कवर ही लिया जाता है.
कुक्कुटाण्डत्वक भस्म निर्माण विधि -
बताये गए अण्डों के छिलके 100 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूटकर मिट्टी के छोटे बर्तन में रखकर उसमे चान्गेरी का रस इतन डालें की छिल्का पूरा डूब जाये. अब बर्तन का ढक्कन बन्द कर कपड़मिट्टी कर 10 किलो उपलों के बीच में रखकर गजपुट में फूँक दें. पूरी तरह से ठण्डा होने पर निकालकर पीसकर रख लिया जाता. अगर एक बार में सफ़ेद मुलायम भस्म न बने तो दुबारा उसी तरह से चान्गेरी का रस डालकर पुट देना चाहिए. इसकी भस्म हल्की, सफ़ेद और मुलायम बनती है.
कुक्कुटाण्डत्वक भस्म के गुण -
यह कैल्शियम से भरपूर मूत्ररोग नाशक, बाजीकरण और रसायन गुणों से भरपूर होता है.
कुक्कुटाण्डत्वक भस्म के फ़ायदे -
प्रमेह और मूत्र रोगों में यह बेहद असरदार है, महिला-पुरुष दोनों के लिए सामान रूप से लाभकारी है.
पुरुषों के रोग जैसे प्रमेह, स्वप्नदोष, वीर्य विकार और धातुस्राव जैसे रोगों में दूसरी दवाओं के साथ देने से बेजोड़ लाभ मिलता है.
महिलाओं के पीरियड रिलेटेड रोग, ल्यूकोरिया, सोमरोग और डिलीवरी के बाद की कमज़ोरी में दूसरी दवाओं के साथ लेने से फ़ायदा होता है.
कुक्कुटाण्डत्वक भस्म की मात्रा और सेवन विधि -
250mg से 375mg तक सुबह-शाम शहद से देना चाहिए. पुरुष रोगों में वंग भस्म, लौह भस्म और महिलाओं को दशमूल क्वाथ के साथ देना चाहिए.
कुक्कुटाण्डत्वक भस्म अपने तरह की एक बेजोड़ औषधि है जिसे आयुर्वेदिक चिकित्सक कई तरह के रोगों में दूसरी दवाओं के साथ प्रयोग करते हैं. इसे किन रोगों में किस तरह से प्रयोग करना चाहिए इसकी पूरी डिटेल आप मेरी आने वाली पुस्तक में पढ़ सकते हैं. इसे ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से -
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