गर्भ चिंतामणि रस स्वर्णयुक्त क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो महिला रोगों को दूर करती है. यह ल्यूकोरिया और प्रेगनेंसी में होने वाली कई तरह की बीमारियों में असरदार है. तो आईये जानते हैं गर्भ चिंतामणि रस का कम्पोजीशन, इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
गर्भ चिंतामणि रस के घटक या कम्पोजीशन -
इसे बनाने के लिए चाहिए होता है शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, स्वर्णभस्म, लौह भस्म, रजत भस्म, माक्षिक भस्म, शुद्ध हरताल, वंग भस्म और अभ्रक भस्म. भावना देने के लिए ब्राह्मी, वासा, भृंगराज, पर्पटाका और दशमूल भी चाहिए होता है.
गर्भ चिंतामणि रस निर्माण विधि -
बनाने का तरीका यह होता है सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक की कज्जली बनाकर दुसरे भस्मों को मिक्स कर अच्छी तरह से घुटाई कर ब्राह्मी, वासा और भृंगराज के रस की सात-सात भावना दें और पर्पटाका और दशमूल क्वाथ की भी सात-सात भावना देखर 250mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही गर्भ चिंतामणि रस है. इस गर्भ चिंतामणि रस वृहत के नाम से भी जाना जाता है.
यह वात और पित्त दोष को बैलेंस करती है.
गर्भ चिंतामणि रस के फ़ायदे -
महिला रोगों के लिए यह हाई क्लास की दवा है सोना-चाँदी जैसे कीमती चीज़ों से बनी होने से.
हैवी ब्लीडिंग, लेस ब्लीडिंग, पेशाब की जलन, इन्फेक्शन, ल्यूकोरिया, सूतिका रोग और प्रेगनेंसी में होने वाली Complication में असरदार है.
यह गर्भस्थ शिशु को पोषण देती है जिस से स्वस्थ शिशु का जन्म होता है.
गर्भ चिंतामणि रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक-एक गोली सुबह शाम शहद से. इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए. हैवी मेटल वाली दवा है, ग़लत डोज़ होने या सूट नहीं करने पर सीरियस नुकसान हो सकता है. सही डोज़ में और कम समय तक ही इसका इस्तेमाल किया जाता है.
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