चिन्तामणि रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो हर तरह के ह्रदय रोग या हार्ट डिजीज, वात वाहिनी नाड़ियों की कमज़ोरी और हिस्टीरिया जैसी बीमारियों में बेहद असरदार है, तो आइये जानते हैं चिन्तामणि रस के बारे में पूरी डिटेल -
चिन्तामणि रस के घटक और निर्माण विधि -
इसे बनाने के लिए चाहिए होता है शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, लौह भस्म, वंग भस्म, शुद्ध शिलाजीत और अम्बर प्रत्येक 10-10 ग्राम, स्वर्ण भस्म- 2.5 ग्राम, मोती पिष्टी और चाँदी भस्म 5-5 ग्राम.
बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले पारा-गंधक को खरल करें उसके बाद दूसरी चीज़ें मिलाकर चित्रकमूल क्वाथ और भृंगराज के रस में एक-एक दिन तक घुटाई करें. अब इसके बाद अर्जुन के छाल के काढ़े में सात दिनों तक खरल करने के बाद एक-एक रत्ती या 125mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें, यही चिन्तामणि रस है.
चिन्तामणि रस के फ़ायदे -
हर तरह की हार्ट की बीमारियों में यह बेहद असरदार है. हार्ट की कमजोरी, हार्ट का दर्द, दिल की धड़कन बढ़ा होना जैसी प्रॉब्लम में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
ब्लड प्रेशर बढ़ा होने, हार्ट की बीमारी के साथ लिवर बढ़ने और पेट की प्रॉब्लम में असरदार है.
वात वाहिनी नाड़ियों की कमज़ोरी दूर करता है, जिस से हिस्टीरिया और दौरे पड़ने वाले रोगों में भी अच्छा फ़ायदा होता है.
चिन्तामणि रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक-एक गोली सुबह शाम शहद से या फिर रोगानुसार अनुपान से देना चाहिए. जैसे- दिल की बीमारीओं में खमीरा गाओज़बान, आँवला मुरब्बा के साथ. हाई ब्लड प्रेशर में मोती पिष्टी के साथ, वात रोगों में बलामूल क्वाथ के साथ.
चूँकि यह रसायन औषधि है इसलिए इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से सही डोज़ में ही लेना चाहिए. डाबर, बैद्यनाथ जैसी आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है. इसे ऑनलाइन भी ख़रीदा जा सकता है. इसके मिलते जुलते नाम वाली एक दूसरी औषधि है चिन्तामणि चतुर्मुख रस जिसकी जानकारी जल्द ही दी जाएगी.
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