चिन्तामणि चतुर्मुख रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो एक स्वर्णयुक्त औषधि है जिसके इस्तेमाल से मृगी, हिस्टीरिया, पागलपन और पैरालाइसीस जैसे वात रोग भी दूर होते हैं. तो आइये जानते हैं चिन्तामणि चतुर्मुख रस के घटक, निर्माणविधि इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
चिन्तामणि चतुर्मुख रस के घटक और निर्माण विधि -
इसके लिए चाहिए होता है रस सिन्दूर- 40 ग्राम, लौह भस्म, अभ्रक भस्म-प्रत्येक 20-20 ग्राम और स्वर्ण भस्म- 10 ग्राम.
बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले रस सिन्दूर को खरल करें और दुसरे भस्मों को मिक्स कर घृतकुमारी के रस में मर्दन कर गोला बना लें और इस गोले को एरण्ड के पत्तों में लपेटकर धान के ढेर में तीन दिनों तक दबाकर रख दें.
इसके बाद एरण्ड के पत्तों को हटाकर अच्छी तरह से खरलकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस चिन्तामणि चतुर्मुख रस तैयार है.
चिन्तामणि चतुर्मुख रस के गुण -
आयुर्वेदानुसार यह बेहतरीन वात नाशक और योगवाही रसायन है. Anti-epileptic, Anticonvulsant यही आक्षेप या दौरा दूर करने वाला, कार्डियक टॉनिक, ब्रेन टॉनिक, नसों की कमज़ोरी दूर करने वाला और पौष्टिक गुणों से भरपूर होता है.
चिन्तामणि चतुर्मुख रस के फ़ायदे-
स्वर्ण भस्म और दुसरे भस्मों के मिला होने से यह तेज़ी से असर करने वाली रसायन औषधि है. इसके इस्तेमाल से मृगी या एपिलेप्सी, कठिन से कठिन उन्माद, अपस्मार या पागलपन और हिस्टीरिया जैसे रोग दूर होते हैं.
लकवा, पक्षाघात, फेसिअल पैरालिसिस, धनुर्वात या किसी भी तरह का पैरालिसिस हो तो इस से दूर होता है.
यह ह्रदय को शक्ति देता है और हार्ट की बीमारियों को दूर करता है. पौष्टिक गुण होने से बीमारी के बाद होने वाली कमज़ोरी को भी दूर करता है.
चिन्तामणि चतुर्मुख रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक-एक गोली सुबह शाम त्रिफला चूर्ण और शहद के साथ या फिर रोगानुसार उचित अनुपन से आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से लेना चाहिए. मृगी, हिस्टीरिया और पागलपन जैसे रोगों में जटामांसी क्वाथ, महा चैतस घृत, ब्राह्मी घृत या पञ्चगव्य घृत के साथ लेने से अच्छा लाभ होता है. वात रोगों जैसे लकवा, पक्षाघात में महा रस्नादी क्वाथ या रसोन घृत के साथ लेना चाहिए.
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