वासावलेह क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो खाँसी, अस्थमा, क्षय या टी.बी. और ब्रोंकाइटिस जैसे कफज रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं, वासावलेह का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
वासावलेह का कम्पोजीशन -
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक वासा नाम की बूटी होती है. जिसे अडूसा, वसाका और बाकस जैसे नामों से जाना जाता है. अंग्रेजी में इसे Adhatoda Vasaka कहा जाता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें वासा के पत्तों का रस- 800 ग्राम, मिश्री और शहद प्रत्येक- 400 ग्राम, पिप्पली और घी प्रत्येक 100 ग्राम मिला होता है.
वासावलेह निर्माण विधि -
बनाने का तरीका यह होता है कि वासा के रस को कड़ाही में डालकर मंद आंच में गाढ़ा होने तक पकाते हैं, उसके बाद पीसी हुयी मिश्री और घी मिलाकर हलवे की तरह गाढ़ा होने तक पकाएं. इसके बाद ठंढा होने पर पिप्पली का चूर्ण और शहद अच्छी तरह मिक्स कर रख लें, बस वासावलेह तैयार है!
वासावलेह के गुण -
यह कफ़ दोष को दूर करता है. श्वास-कास नाशक यानि Expectorant, Broncho-dilator और Antimicrobial जैसे गुणों से भरपूर है.
वासावलेह के फ़ायदे-
खाँसी, साँस की तकलीफ़, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और क्षयरोग या टी. बी. वाली खांसी में ही इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग किया जाता है.
दिल का दर्द, पार्शवशूल या पेट के साइड में दर्द होना, रक्तपित्त या ब्लीडिंग वाले रोग जैसे नाक से खून आना, बुखार और अल्सरेटिव कोलाइटिस में भी यह उपयोगी है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है.
वासावलेह की मात्रा और सेवन विधि -
एक से दो स्पून तक सुबह शाम गर्म पानी या मिल्क से लेना चाहिए. बच्चों को कम मात्रा में देना चाहिए. चीनी मिला होने से शुगर रोगी सावधानी से यूज़ करें.
आयुर्वेदिक कम्पनियों का यह मिल जाता है, डाबर के 100 ग्राम की क़ीमत 53 रुपया है. इसे आप आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से-
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