त्रैलोक्य चिंतामणि रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो सोना, चाँदी, हीरे-मोती जैसी कीमती चीजों से बनी होती है. इसके इस्तेमाल से हर तरह के वात रोग, बल-वीर्य की कमी, पुरुष रोग, मानसिक रोग, पेट के रोग, फेफड़ों के रोग, चर्मरोग और पाइल्स भगंदर जैसी कई तरह की भयंकर बीमारियाँ दूर होती हैं. तो आईये जानते हैं त्रैलोक्य चिंतामणि रस का घटक या कम्पोजीशन, निर्माण विधि, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
त्रैलोक्य चिंतामणि रस घटक या कम्पोजीशन -
शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, हीरक भस्म(अभाव में वैक्रांत भस्म), स्वर्ण भस्म, चाँदी भस्म, ताम्र भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, मोती भस्म, शंख भस्म, प्रवाल भस्म, शुद्ध हरताल और शुद्ध मैनशील सभी बराबर वज़न में लेना होता है.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस निर्माण विधि -
बनाने का तरीका यह होता है कि सबसे पहले पारा-गंधक को खरल कर कज्जली बना लें और उसके बाद दुसरे सरे भस्म मिलाकर सात दिनों तक चित्रक के जड़ के क्वाथ में और तीन-तीन दिन तक आक के दूध, संभालू के रस, सूरण के रस और सेहुंड के दूध में घोटकर सुखा ले और पीसकर पीली कौड़ी में भर दें.
अब थोड़ा सुहागा लेकर आक के दूध में पेस्ट बना ले और कौड़ियों के मुँह को बंद कर मिट्टी के बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर गजपुट की अग्नि दें. पूरी तरह से ठंडा होने पर कौड़ी सहित सभी को पीसकर रख लें.
इसके बाद दवा का जितना वज़न है उसके बराबर रस सिन्दूर और दवा के वज़न का चौथाई भाग वैक्रांत भस्म मिलाकर सहजन मूल के छाल के क्वाथ की सात भावना और चित्रकमूल क्वाथ की दो भावना देकर अच्छी तरह से घोंटकर एक-एक रत्ती या 125mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही त्रैलोक्य चिंतामणि रस है. इसकी निर्माण विधि थोड़ा जटिल है जिसे अनुभवी वैध ही बना सकते हैं.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक एक गोली सुबह शाम रोगानुसार उचित अनुपान के साथ लेना चाहिए. वात रोगों जैसे गठिया, लकवा, पैरालिसिस में रास्नादि क्वाथ या दशमूल क्वाथ के साथ मधु मिलाकर लेना चाहिए. कफ़ दोष में अदरक के रस और शहद से, पित्त विकारों में मिश्री और घी के साथ.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस के गुण -
सोना-चाँदी, हिरा-मोती और दुसरे भस्मो के मिला होने से यह त्रिदोष नाशक, बल-वीर्य वर्धक, ओज वर्धक, पौष्टिक और रसायन है. यह ह्रदय को बल देने वाला, बल ओज और शक्तिवर्धक, वीर्य वर्धक, धातुओं की विषमता दूर करने वाला, पाचन क्रिया को सुधारने वाला रसायन है. यह उष्णवीर्य या तासीर में गर्म होता है.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस के फ़ायदे और उपयोग -
यह शरीर में बहुत जल्दी बल वृद्धि करता है. हार्ट, लंग्स, रक्तवाहिनी और वातवाहिनी नाड़ियों पर इसका सबसे ज्यादा असर होता है.
न्युमोनिया, इन्फ्लुएंजा, बुखार, खाँसी-सर्दी, टी.बी. और फेफड़ों की बीमारियों में यह तेज़ी से असर करता है.
गठिया, लकवा और पैरालिसिस में उचित अनुपान से लेने से अच्छा लाभ होता है.
लिवर, पैंक्रियास और आंतों पर अच्छा असर होने से पाचन शक्ति को ठीक कर देता है.
यह हार्ट को शक्ति देता है, हार्ट बीट कम होना, नब्ज़ कमज़ोर होना, मानसिक कमज़ोरी और मानसिक रोगों को दूर करता है.
पॉवर-स्टैमिना की कमी को दूर करने और बल-वीर्य बढ़ाने के लिए भी इसका प्रयोग करना चाहिए.
डायबिटीज, जलोदर, पत्थरी, चर्मरोग, पाइल्स और फिश्चूला में भी असरदार है.
कुल मिलाकर बस समझ लीजिये कि त्रिदोष नाशक होने से यह हर तरह की बीमारियों को दूर करने की शक्ति रखने वाली दवा है जिसे रोगानुसार उचित अनुपान से उपयोग कर लाभ ले सकते हैं.
कीमती चीजों से बनी होने से यह दवा महँगी तो है पर इफेक्टिव भी है. डाबर/बैद्यनाथ जैसी कंपनियों की यह मिल जाती है. इसे आप ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं. बैद्यनाथ के 10 टेबलेट की क़ीमत करीब 490 रुपया है.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस घटक या कम्पोजीशन -
शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, हीरक भस्म(अभाव में वैक्रांत भस्म), स्वर्ण भस्म, चाँदी भस्म, ताम्र भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, मोती भस्म, शंख भस्म, प्रवाल भस्म, शुद्ध हरताल और शुद्ध मैनशील सभी बराबर वज़न में लेना होता है.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस निर्माण विधि -
बनाने का तरीका यह होता है कि सबसे पहले पारा-गंधक को खरल कर कज्जली बना लें और उसके बाद दुसरे सरे भस्म मिलाकर सात दिनों तक चित्रक के जड़ के क्वाथ में और तीन-तीन दिन तक आक के दूध, संभालू के रस, सूरण के रस और सेहुंड के दूध में घोटकर सुखा ले और पीसकर पीली कौड़ी में भर दें.
अब थोड़ा सुहागा लेकर आक के दूध में पेस्ट बना ले और कौड़ियों के मुँह को बंद कर मिट्टी के बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर गजपुट की अग्नि दें. पूरी तरह से ठंडा होने पर कौड़ी सहित सभी को पीसकर रख लें.
इसके बाद दवा का जितना वज़न है उसके बराबर रस सिन्दूर और दवा के वज़न का चौथाई भाग वैक्रांत भस्म मिलाकर सहजन मूल के छाल के क्वाथ की सात भावना और चित्रकमूल क्वाथ की दो भावना देकर अच्छी तरह से घोंटकर एक-एक रत्ती या 125mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही त्रैलोक्य चिंतामणि रस है. इसकी निर्माण विधि थोड़ा जटिल है जिसे अनुभवी वैध ही बना सकते हैं.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक एक गोली सुबह शाम रोगानुसार उचित अनुपान के साथ लेना चाहिए. वात रोगों जैसे गठिया, लकवा, पैरालिसिस में रास्नादि क्वाथ या दशमूल क्वाथ के साथ मधु मिलाकर लेना चाहिए. कफ़ दोष में अदरक के रस और शहद से, पित्त विकारों में मिश्री और घी के साथ.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस के गुण -
सोना-चाँदी, हिरा-मोती और दुसरे भस्मो के मिला होने से यह त्रिदोष नाशक, बल-वीर्य वर्धक, ओज वर्धक, पौष्टिक और रसायन है. यह ह्रदय को बल देने वाला, बल ओज और शक्तिवर्धक, वीर्य वर्धक, धातुओं की विषमता दूर करने वाला, पाचन क्रिया को सुधारने वाला रसायन है. यह उष्णवीर्य या तासीर में गर्म होता है.
त्रैलोक्य चिंतामणि रस के फ़ायदे और उपयोग -
यह शरीर में बहुत जल्दी बल वृद्धि करता है. हार्ट, लंग्स, रक्तवाहिनी और वातवाहिनी नाड़ियों पर इसका सबसे ज्यादा असर होता है.
न्युमोनिया, इन्फ्लुएंजा, बुखार, खाँसी-सर्दी, टी.बी. और फेफड़ों की बीमारियों में यह तेज़ी से असर करता है.
गठिया, लकवा और पैरालिसिस में उचित अनुपान से लेने से अच्छा लाभ होता है.
लिवर, पैंक्रियास और आंतों पर अच्छा असर होने से पाचन शक्ति को ठीक कर देता है.
यह हार्ट को शक्ति देता है, हार्ट बीट कम होना, नब्ज़ कमज़ोर होना, मानसिक कमज़ोरी और मानसिक रोगों को दूर करता है.
पॉवर-स्टैमिना की कमी को दूर करने और बल-वीर्य बढ़ाने के लिए भी इसका प्रयोग करना चाहिए.
डायबिटीज, जलोदर, पत्थरी, चर्मरोग, पाइल्स और फिश्चूला में भी असरदार है.
कुल मिलाकर बस समझ लीजिये कि त्रिदोष नाशक होने से यह हर तरह की बीमारियों को दूर करने की शक्ति रखने वाली दवा है जिसे रोगानुसार उचित अनुपान से उपयोग कर लाभ ले सकते हैं.
कीमती चीजों से बनी होने से यह दवा महँगी तो है पर इफेक्टिव भी है. डाबर/बैद्यनाथ जैसी कंपनियों की यह मिल जाती है. इसे आप ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं. बैद्यनाथ के 10 टेबलेट की क़ीमत करीब 490 रुपया है.
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