वातकुलान्तक रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो दिमाग और नर्वस सिस्टम के रोगों में इस्तेमाल की जाती है. यह झटके वाले रोग, मिर्गी या एपिलेप्ली, अपस्मार, बेहोशी के दौरे पड़ना, Paralysis और हिस्टीरिया जैसे रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं वातकुलान्तक रस का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल-
वातकुलान्तक रस का कम्पोजीशन -
मृग नाभि या कस्तूरी, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, नागकेशर, शुद्ध मैन्शील, बहेड़ा, जायफल, छोटी इलायची और लौंग सभी बराबर वज़न में लिया जाता है और ब्रह्मी के रस में एक दिन तक खरल कर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनायी जाती हैं.
आजकल कस्तूरी नहीं मिलने से इसकी जगह पर स्वर्ण भस्म, लता कस्तूरी और अम्बर जैसी चीज़ें मिलाकर बनाया जाता है.
वातकुलान्तक रस के गुण-
यह वातनाशक है, नर्व और दिमाग को ताक़त देती है. गंभीर वात रोगों में ही इसे यूज़ किया जाता है.
वातकुलान्तक रस के फ़ायदे -
बेहोशी के दौरे पड़ना, मृगी या Epilepsy, हाथ-पैर या बॉडी में कहीं भी झटके पड़ना, हाथ-पैर का फड़कना, पैरालिसिस, फेसिअल Paralysis जैसे रोगों की यह जानी-मानी दवा है.
नींद नहीं आना, बक-बक करना, अंट-संट बकना जैसे मानसिक रोगों में भी फायदेमंद है.
वातकुलान्तक रस की मात्रा और सेवन विधि-
एक टेबलेट सुबह शाम या रोज़ तीन-चार बार तक शहद या मक्खन मलाई के साथ. इसे एक-दो महिना तक लगातार लिया जा सकता है. इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही यूज़ करना चाहिए, अन्यथा सीरियस नुकसान भी हो सकता है. डाबर, बैद्यनाथ जैसी कंपनियों का यह मिल जाता है.
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