लिव अमृत सिरप पतंजलि का एक पेटेंट ब्रांड है जो लीवर की बीमारियों जैसे लीवर के बढ़ जाने, पीलिया या जौंडिस, स्प्लीन के बढ़ जाने, फैटी लीवर में असरदार है. तो आईये जानते हैं लिव अमृत सिरप का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
पतंजलि आयुर्वेद अपने पेटेंट प्रोडक्ट का नाम मोस्टली आयुर्वेदानुसार रखती है जिसमे हिंदी और संस्कृत का मिश्रण होता है पर इस सिरप के नाम में अंग्रेज़ी और हिंदी मिक्स है वो भी इस लिए की दूसरी लीवर की पॉपुलर दवाओं को टक्कर देने के लिए. खैर जो भी हो.
सबसे पहले जानते हैं इसका घटक या कम्पोजीशन-
इसे जड़ी-बूटियों के मिश्रण से बनाया गया है जिसके नाम कुछ इस तरह से हैं -
भूमि आँवला, पुनर्नवा, भृंगराज, मकोय, अर्जुन, त्रिफला, सर्पुन्खा, गिलोय, मुलेठी, कुटकी, दारू हल्दी, अमलतास और कालमेघ.
और इन सब के अलावा इसमें तरह तरह के केमिकल वाले Preservative भी मिले होते हैं जैसे Sodium benzoate, Sodium methyl paraben, Sodium propyl paraben, Citric Acid और Flavours vagairah.
चूँकि यह सब बहुत कम मात्रा में होते हैं तो कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता. पर इन सब से बेस्ट तो क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन होती है हर तरह के केमिकल से फ्री जैसे कुमार्यासव, रोहितकारिष्ट वगैरह. लीवर स्प्लीन के रोगों की सदियों पुरानी जानी-मानी दवाएं.
लिव अमृत सिरप के फ़ायदे-
कॉम्बिनेशन के हिसाब से तो यह लीवर के लिए असरदार दवा है जो हर तरह के लीवर के रोगों को दूर कर लीवर के फंक्शन को सही कर सकती है.
भूख की कमी, जौंडिस, फैटी लीवर, हेपेटाइटिस जैसे रोगों में इस्तेमाल कर सकते हैं.
यह एक लीवर टॉनिक है जो लीवर को प्रोटेक्ट करती है.
लिव अमृत सिरप की मात्रा और प्रयोग विधि-
एक से दो स्पून सुबह शाम खाना के बाद लेना चाहिए, या फिर डॉक्टर की सलाह से. इसके 200 ML की क़ीमत 75 रुपया है जिसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं.
लिव अमृत सिरप के बारे में मेरी राय -
अगर आप बाबा रामदेव या पतंजलि के भक्त हैं तो इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. पर मेरे ओपिनियन में यह लीवर की बेस्ट दवा नहीं है. लीवर के लिए क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन जैसे कुमार्यासव, रोहितकारिष्ट बेस्ट हैं और पेटेंट ब्रांड में Liv 52 सिरप और हमदर्द जिग्रीन जैसी दवाएँ इस से कही बेहतर हैं.
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शुक्र शक्ति टेबलेट जो है हर्बल दवा कम्पनी मुल्तानी Pharmaceutical का पेटेंट ब्रांड है जो ख़ासकर पुरुष यौन रोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह शुक्राणुओं की कमी, मेल इनफर्टिलिटी, शीघ्रपतन और पॉवर-स्टैमिना की कमी जैसे पुरुष रोगों को दूर करता है. तो आईये जानते हैं शुक्र शक्ति टेबलेट का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
सबसे पहले जानते हैं शुक्र शक्ति टेबलेट का इनग्रीडेंट या कम्पोजीशन-
इसमें पॉवर-स्टैमिना बढ़ाने वाली जानी-मानी जड़ी-बूटियों का मिश्रण है. इसे इलायची, सफ़ेद चन्दन, तालमखाना, सालम पंजा, सफ़ेद मुसली, कौंच बीज, मिश्री और लौह भस्म के मिश्रण से बनाया गया है.
तालमखाना, सालम पंजा, सफ़ेद मुसली और कौंच बीज जैसी चीज़ों को कौन नहीं जानता. शरीर को शक्ति देने, वीर्य विकार दूर करने और शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए इन जड़ी-बूटियों का सदियों से प्रयोग होता आ रहा है.
जड़ी-बूटियों के कॉम्बिनेशन में लौह भस्म का मिश्रण इसे और इफेक्टिव बना देता है. लौह भस्म न सिर्फ खून की कमी को दूर करता है बल्कि ब्लड फ्लो को बढ़ाकर प्रॉपर इरेक्शन में भी मदद करता है.
शुक्र शक्ति टेबलेट के फ़ायदे-
स्पर्म काउंट की कमी को दूर करने, वीर्य विकार दूर करने, वीर्य को गाढ़ा करने और यौनेक्षा को बढ़ाने में असरदार है.
पुरुषों की बहुत ही कॉमन बीमारी शीघ्रपतन और इरेक्टाइल डिसफंक्शन में फ़ायदा करती है, पॉवर स्टैमिना बढ़ाने में मदद करती है.
शुक्र शक्ति टेबलेट का डोज़-
दो टेबलेट रोज़ दो बार दूध से खाना खाने के एक घंटा बाद, इसे एक बार में तीन टेबलेट तक लिया जा सकता है डॉक्टर की सलाह से. इसे दो-तिन महिना या अधीक समय तक भी यूज़ कर सकते हैं. इसके 100 टेबलेट की क़ीमत 330 रुपया है, आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है.
शुक्र शक्ति टेबलेट के बारे में मेरी राय -
स्पर्म काउंट बढ़ाने के लिए यह एक नार्मल दवा है, जिसे आप मेरे बताये गए 'स्पर्म काउंट बढ़ाने वाले आयुर्वेदिक योग' के साथ भी ले सकते हैं, क्यूंकि मेरा बताया योग सबसे बेस्ट है. शुक्र शक्ति टेबलेट का कॉम्बिनेशन सिंपल है, इसके साथ में दूसरी सहायक औषधियां लेने से ही पूरा लाभ मिलेगा.
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स्वप्नदोष या एह्तेलाम जो है पुरुषों ख़ासकर युवाओं की बहुत ही कॉमन बीमारी है, जिसमे यह योग बहुत ही असरदार है, तो आईये जानते हैं इसकी पूरी डिटेल -
स्वप्नदोष दूर करने का आयुर्वेदिक योग -
वैद्य जी की डायरी में बताया गया नुस्खा, बना बनाया नहीं मिलता है इसे खुद से या फिर स्थानीय वैद्य जी से बनवाकर यूज़ कर सकते हैं, इसके लिए चाहिए होगा-
शीतलचीनी, सफ़ेद चन्दन बुरादा, गोखुरू, इमली के बीजों की गिरी(भुनी हुयी), भीमसैनी कपूर और गिलोय सत्व प्रत्येक 20-20 ग्राम, सोना गेरू 40 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 120 ग्राम और मिश्री 200 ग्राम.
बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले जड़ी-बूटियों का चूर्ण बना लें और उसके बाद गिलोय सत्व, पीसी मिश्री और त्रिफला मिक्स कर लें और सबसे लास्ट में कपूर को पीसकर अच्छी तरह से मिक्स कर एयर टाइट डब्बे में रख लें.
मात्रा और सेवन विधि -
तीन ग्राम इस चूर्ण को सुबह शाम पानी से लेना है खाना के बाद. यह मसाने की हर तरह की गर्मी को दूर कर स्वप्नदोष को दूर करने वाला बेहतरीन योग है. हस्तमैथुन होने वाला स्वप्नदोष भी दूर होता है, इसके इस्तेमाल से पेशाब साफ़ आता है.
इसके साथ में चंद्रप्रभा वटी और अश्वगंधारिष्ट भी ले सकते हैं. बिल्कुल सेफ़ और टेस्टेड फ़ॉर्मूला है, यूज़ कर फ़ायदा उठायें.
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लौंग हमारे किचन का एक बहुत ही कॉमन मसाला है जिसके बारे में हम सभी जानते हैं, पर इसके कुछ खास प्रयोग सभी लोग नहीं जानते, तो आइये जानते हैं इसके कुछ ख़ास प्रयोग-
वैसे तो आयुर्वेद की कई सारी क्लासिकल दवाओं में लौंग मिलाया जाता है जैसे लवंगादि वटी, लवंगादि चूर्ण और लवंग तेल वगैरह. पर यहाँ आप जानेंगे लौंग के कुछ आसान से घरेलु प्रयोग के बारे में-
तेज़ बुख़ार में -
5-7 दाना लौंग को पीसकर ठन्डे पानी में मिक्स कर पिलाने से बुखार कम जाता है.
नज़ला, जुकाम में -
आधे कप पानी में 3-4 लौंग को उबालकर थोड़ा नमक मिलाकर पीना चाहिए.
उल्टी और हिचकी आने पर-
लौंग के ऊपर वाला डोडा बारीक पीसकर शहद के साथ मिलाकर चाटने से हिचकी और उल्टी में तुरन्त फ़ायदा होता है.
मुँह की बदबू में-
लौंग को चबाने से मुँह की बदबू या बैड स्मेल दूर होती है और पाचन क्रिया भी ठीक रहती है.
खाँसी होने पर-
लौंग को हल्का भुनकर मुँह में रखकर चूसें या फिर भुना हुआ लौंग को पीसकर शहद मिक्स कर चाटने से खाँसी में आराम हो जाता है.
कब्ज़ होने पर -
खाना खाने के बाद एक-दो लौंग चूसने से कब्ज़ दूर होता है और पाचन क्रिया ठीक रहती है और पेट की जलन में भी फ़ायदा होता है.
आँख की गुहेरी होने पर-
लौंग को पानी में घिसकर लगाने से लाभ होता है.
हैजा होने पर-
पाँच ग्राम लौंग को तीन लीटर पानी में डालकर उबालें, जब पानी आधा बचे तो ठंडा होने पर रोगी को घूंट-घूंट कर पिलाने से फ़ायदा होता है.
बच्चों की खाँसी में-
लौंग, बहेड़े का छिल्का और काली मिर्च तीनो के पाउडर को बराबर वज़न में लें और तीनों के वज़न के जितना कत्था मिक्स कर थोड़ा पानी मिलाकर चने के बराबर की गोली बना कर सुखा कर रख लें. इस गोली को मुंह में रखकर चूसने से बच्चों की हर तरह की खाँसी दूर होती है.
दांत और मसूड़ों के दर्द में -
लौंग का तेल में रुई भीगाकर रखने से फ़ायदा होता है. लौंग को पीसकर भी दांतों में लगाने से फ़ायदा होता है.
इसे भी जानिए-
मुहाँसों को आयुर्वेद में यौवनपीड़िका कहते हैं और आज जो योग बता रहा हूँ उसका नाम है-
यौवनपीड़िकान्तक लेप -
लाल चन्दन, मंजीठ, माल कांगनी, लोध्र, सेमल के काँटे, जायफल और वट की जटा प्रत्येक 50-50 ग्राम, चिरौंजी और पीली सरसों 100-100 ग्राम, सुहागे का फूला या टंकण भस्म 10 ग्राम
सभी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण बनाकर अंत के टंकण भस्म अच्छी तरह से मिक्स कर रख लें.
प्रयोग विधि -
दो चम्मच इस चूर्ण को लेकर कच्चा दूध मिक्स कर पेस्ट बना लें और पिम्पल्स पर लेप की तरह लगा दें और सूखने दें. आधा-एक घंटा बाद दूध से भिगाकर इस लेप को हटा दें और ताज़े पानी से धो लें.
कुछ दिनों तक लगातार इसका इस्तेमाल करते रहने से हर तरह के कील-मुहाँसे दूर हो जाते हैं और चेहरे में निखार भी आता है. बिल्कुल टेस्टेड नुस्खा है, यूज़ कर फ़ायदा उठायें.
वातकुलान्तक रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो दिमाग और नर्वस सिस्टम के रोगों में इस्तेमाल की जाती है. यह झटके वाले रोग, मिर्गी या एपिलेप्ली, अपस्मार, बेहोशी के दौरे पड़ना, Paralysis और हिस्टीरिया जैसे रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं वातकुलान्तक रस का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल-
वातकुलान्तक रस का कम्पोजीशन -
मृग नाभि या कस्तूरी, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, नागकेशर, शुद्ध मैन्शील, बहेड़ा, जायफल, छोटी इलायची और लौंग सभी बराबर वज़न में लिया जाता है और ब्रह्मी के रस में एक दिन तक खरल कर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनायी जाती हैं.
आजकल कस्तूरी नहीं मिलने से इसकी जगह पर स्वर्ण भस्म, लता कस्तूरी और अम्बर जैसी चीज़ें मिलाकर बनाया जाता है.
वातकुलान्तक रस के गुण-
यह वातनाशक है, नर्व और दिमाग को ताक़त देती है. गंभीर वात रोगों में ही इसे यूज़ किया जाता है.
वातकुलान्तक रस के फ़ायदे -
बेहोशी के दौरे पड़ना, मृगी या Epilepsy, हाथ-पैर या बॉडी में कहीं भी झटके पड़ना, हाथ-पैर का फड़कना, पैरालिसिस, फेसिअल Paralysis जैसे रोगों की यह जानी-मानी दवा है.
नींद नहीं आना, बक-बक करना, अंट-संट बकना जैसे मानसिक रोगों में भी फायदेमंद है.
वातकुलान्तक रस की मात्रा और सेवन विधि-
एक टेबलेट सुबह शाम या रोज़ तीन-चार बार तक शहद या मक्खन मलाई के साथ. इसे एक-दो महिना तक लगातार लिया जा सकता है. इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही यूज़ करना चाहिए, अन्यथा सीरियस नुकसान भी हो सकता है. डाबर, बैद्यनाथ जैसी कंपनियों का यह मिल जाता है.
इसे भी जानिए-
वासारिष्ट क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो सर्दी-खाँसी, सिने की जकड़न, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और बुखार जैसी बीमारियों में इस्तेमाल की जाती है. तो आईये जानते हैं वासारिष्ट का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
वासारिष्ट जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक या मेन इनग्रीडेंट वासा या वसाका होता है.
वासारिष्ट का कम्पोजीशन-
वसाका, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपात, नागकेशर, कबाबचीनी, नेत्रबला, सोंठ, मिर्च, पीपल, धातकी और गुड़ का मिश्रण होता है. जिसे आयुर्वेदिक प्रोसेस आसव-अरिष्ट निर्माण विधि से इसका रिष्ट या सिरप बनाया जाता है.
वासारिष्ट के गुण -
आयुर्वेदानुसार यह कफ़ और पित्त दोष नाशक है. एंटी इंफ्लेमेटरी, Antitussive, Expectorant, एंटी एलर्जिक, एंटी फंगल, एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियल जैसे गुणों से भरपूर होता है.
वासारिष्ट के फ़ायदे -
- गले के अन्दर सुजन होने, Laryngitis, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, साँस लेने में तकलीफ़ होन, सीने की जकड़न जैसी प्रॉब्लम को दूर करता है.
- सर्दी-खांसी जिसमे जमा-जमा पिला कफ़ निकले, बुखार हो तो इससे फ़ायदा होता है.
- इन सब के अलावा साइनस और टॉन्सिल्स के बढ़ने पर भी फ़ायदेमंद है.
- वासारिष्ट भूख बढ़ाने और Digestion इम्प्रूव करने में भी मदद करता है.
वासारिष्ट की मात्रा और सेवन विधि -
15 से 30 ML बराबर मात्रा में पानी मिलाकर सुबह शाम भोजन के बाद लेना चाहिए. बच्चों को कम डोज़ में देना चाहिए. पांच साल से बड़े बच्चों को दे सकते हैं. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है.
इसे भी जानिए-
स्वर्णवंग क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो प्रमेह, यौन रोगों, मूत्र रोगों, डायबिटीज, पुरानी खांसी, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी कई तरह की बीमारियों में इस्तेमाल की जाती है. तो आईये जानते हैं स्वर्णवंग का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
स्वर्णवंग जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है स्वर्ण का मतलब सोना या गोल्ड और वंग भी एक तरह का मेटल है. पर इसमें स्वर्ण या सोना नहीं मिला होता, बल्कि सोने की तरह या सुनहला दिखने की वजह से इसे स्वर्णवंग कहा गया है. इसे स्वर्णबंग और स्वर्णराज बंगेश्वर जैसे नामों से भी जाना जाता है.
स्वर्णवंग का कम्पोजीशन -
इसके कम्पोजीशन या Ingredients की बात करें तो इसमें वंग भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, नवसादर और निम्बू का रस मिला होता है जिसे आयुर्वेदिक प्रोसेस कूपीपक्व रसायन निर्माण विधि से अग्नि देकर बनाया जाता है.
स्वर्णवंग के गुण -
त्रिदोष पर इसका असर होता है यानि त्रिदोष नाशक है जो वात, पित्त और कफ़ को बैलेंस करता है.
स्वर्णवंग के फ़ायदे -
पुरानी सर्दी-खाँसी, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, मूत्र रोग और Urinary Tract Infection जैसे रोगों में असरदार है.
डायबिटीज और इसकी वजह से होने वाली परेशानियों में असरदार है.
मर्दाना कमज़ोरी, वीर्य विकार, स्वप्नदोष, स्पर्म काउंट की कमी जैसे पुरुष रोगों में दूसरी सहायक दवाओं के साथ इस्तेमाल किया जाता है.
स्वर्णवंग के इस्तेमाल से Digestive System मज़बूत होता है, भूख बढ़ती है, बॉडी को एनर्जी देता है और पॉवर-स्टैमिना को बढ़ाता है.
स्वर्णवंग की मात्रा और सेवन विधि -
125mg सुबह शाम मक्खन, मलाई या शहद में मिक्स लेना चाहिए. या फिर आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह के अनुसार उचित अनुपान से. इसे डॉक्टर की सलाह से और डॉक्टर की देख रेख में ही यूज़ करें, अन्यथा नुकसान भी हो सकता है. डाबर के 100mg के पैक की क़ीमत 110 रुपया है जिसे ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं निचे दिए गए लिंक से - Swarna Vanga 5 gram
नूरानी तेल इंडियन केमिकल कंपनी का हर्बल पेटेंट ब्रांड है जो दर्द, सुजन, चोट, घाव और जलने कटने पर यूज़ किया जाता है. तो आईये जानते हैं नूरानी तेल का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल-
सबसे पहले जान लेते हैं नूरानी तेल का कम्पोजीशन-
इसके कम्पोजीशन या इनग्रीडेंटस की बात करें तो इसे अम्बा हल्दी, कायफल, मैदालकड़ी, दालचीनी, तेजपात, लोहबान, नरकचूर, गुग्गुल, सोंठ, निर्गुन्डी, कुचला, मेथी, रतनजोत, अजवाइन, मेथी, गंधविरोजा, कपूर के अलावा सिट्रोनेला आयल, पाइन आयल और मिनरल आयल जैसी चीजों को मिलाकर बनाया गया है.
नूरानी तेल के गुण-
इसके गुणों की बात करें तो यह वात-काफ दोष दूर करने वाला, दर्द-सुजन नाशक, एंटी सेप्टिक और हीलिंग जैसे गुणों से भरपूर होता है.
नूरानी तेल के फ़ायदे-
जोड़ों का दर्द, मसल्स का दर्द, कमर दर्द, पीठ दर्द, फ्रोज़ेन शोल्डर, जकड़न जैसी प्रॉब्लम में इसकी मालिश करने से फ़ायदा मिलता है.
इसे हल्का गर्म कर मालिश करने से सुजन दूर होती है.
चोट लगने, जल-कट जाने और ज़ख्म में भी इसे लगाया जाता है. घरेलू इस्तेमाल के लिए यह एक पॉपुलर तेल है.
यह सिर्फ एक्सटर्नल यूज़ के लिए, इसकी मालिश के बाद हाथ को साबुन से धोना चाहिए. इसके 200 ML के बोतल की क़ीमत क़रीब 150 रुपया इसे ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं निचे दिए गए लिंक से-
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नाग भस्म क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है, जो सीसे या लेड से बनाया जाता है. लेड को आयुर्वेद में नाग भी कहते हैं, साँप वाला नाग नहीं. इसे प्रमेह, ख़ासकर मधुमेह या डायबिटीज, बार-बार पेशाब आने, पेशाब कण्ट्रोल नहीं कर पाना, आँखों के रोग, गुल्म, एसिडिटी, लीवर स्प्लीन की बीमारी, ल्यूकोरिया, गण्डमाला, हर्निया और नपुंसकता जैसे रोगों में प्रयोग किया जाता है, तो आईये जानते हैं नाग भस्म के फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
नाग भस्म बनाने के लिए उत्तम क्वालिटी के लेड को कई तरह के प्रोसेस से शुद्ध करने के बाद भस्म बनाया जाता है जो की एक जटिल प्रक्रिया होती है. आम आदमी के लिए इसकी भस्म बनाना आसान नहीं है इसीलिए इसकी चर्चा न कर जानते हैं इसके फ़ायदों के बारे में.
नाग भस्म के औषधिय गुण -
कफ़, पित्त और वात तीनों दोषों पर इसका असर होता है. यह पाचक, बल-वीर्य बढ़ाने वाली, शक्तिवर्धक, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी डायबिटिक जैसे कई तरह के गुणों से भरपूर होती है.
नाग भस्म में दोनों तरह के चमत्कारी गुण होते हैं जैसे बढे हुवे धातुओं को घटाना और घटे हुवे धातुओं को बढ़ाना.
नाग भस्म के फ़ायदे-
पेट के रोग, भूख की कमी एसिडिटी में -
यह जठराग्नि को तेज़ कर भूख को बढ़ाती है. एसिडिटी में जब पेट में गर्मी और जलन हो, प्यास ज्यादा लगती हो, बार-बार उल्टी करने की इच्छा हो तो ऐसी कंडीशन में नाग भस्म बेहद असरदार है.
मधुमेह या डायबिटीज में -
डायबिटीज और इस से रिलेटेड प्रॉब्लम में नाग भस्म बेहद असरदार है. इसे शिलाजीत के साथ लेने से तेज़ी से फ़ायदा होता है, कमज़ोरी दूर कर शारीरिक शक्ति को भी बढ़ाती है.
डायबिटीज वाले मोटे-थुलथुले व्यक्तियों के लिए यह बेहद असरदार है. पर डायबिटीज के दुबले-पतले रोगीयों को इसके साथ में यशद भस्म लेना चाहिए.
हड्डी के रोगों में -
बोन मैरो कमज़ोर होने से जब हड्डी टेढ़ी होने लगती है और जोड़ों में दर्द होता हो तो नाग भस्म के इस्तेमाल से फ़ायदा होता है.
बवासीर में -
बादी बवासीर में नाग भस्म को दूसरी सहायक औषधियों के साथ लेने से फ़ायदा होता है.
मसल्स की कमज़ोरी में -
नाग भस्म मसल्स के लिए भी इफेक्टिव है. अगर बहुत-खाने पिने पर भी सेहत नहीं लगती और मसल्स कमज़ोर हों तो इसके इस्तेमाल से मसल्स में ब्लड फ्लो बढ़ता है और मसल्स मज़बूत होते हैं.
नपुंसकता या Impotency में -
नसों की कमजोरी, नर्व के बेजान होने से होने वाली नामर्दी या फिर अंडकोष की ग्रंथियों की कमज़ोरी से होने वाली नामर्दी इस से दूर होती है. इसके लिए नाग भस्म 125mg, शुद्ध शिलाजीत 125mg और स्वर्ण भस्म 30mg मिक्स कर शहद से लेना चाहिए.
पुरुष यौन रोग और वीर्य विकारों में -
अधीक वीर्यस्राव होने से जब दिमाग कमज़ोर हो, कोई भी काम करने का मन नहीं करे और माइंड में तरह-तरह के विचार आते हों तो इसे से चमत्कारी लाभ मिलता है. ऐसी कंडीशन में नाग भस्म 125mg, शुद्ध शिलाजीत 125mg और प्रवाल पिष्टी 60mg मिक्स कर सुबह शाम लेना चाहिए शहद से.
आँखों की बीमारीयों के लिए-
आँख की हर तरह की प्रॉब्लम में नाग भस्म को त्रिफला घृत के साथ लेने से फ़ायदा होता है.
गण्डमाला में -
गण्डमाला और ग्लैंड में भी नाग भस्म लेने से फ़ायदा होता है. इसके साथ में कांचनार गुग्गुल भी लेना चाहिए.
सुखी खांसी और फेफड़ों के रोग में -
सुखी खाँसी में नाग भस्म लेने से फ़ायदा होता है. 125mg नाग भस्म को सितोपलादि चूर्ण में मिक्स शहद के साथ लें और वासारिष्ट पीना चाहिए. तपेदिक या ट्यूबरक्लोसिस होने पर नाग भस्म असरदार है. टी.बी. में इसे मुक्त पिष्टी और च्यवनप्राश के साथ लेना चाहिए.
जोड़ों का दर्द और आमवात में -
आमवात और जोड़ों के दर्द में इसे सोंठ के चूर्ण के साथ लेने से फ़ायदा होता है.
नाग भस्म की मात्रा और सेवन विधि-
125mg सुबह शाम शहद या फिर रोगानुसार उचित अनुपान के साथ लेना चाहिए. इसे डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए. गलत डोज़ होने पर नुकसान भी हो सकता है.
डाबर बैद्यनाथ जैसी आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है, इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं.
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निर्गुन्डी को संस्कृत में निर्गुन्डी, हिंदी में - सम्भालु, मराठी में- निगड़, गुजराती में - नगड़ और नगोड़, बंगाली में- निशिन्दा और लैटिन में इसे वाईटेक्स निगंडो के नाम से जाना जाता है.
यह दो तरह की होती है नीले फूल वाली और सफ़ेद फूल वाली.
निर्गुन्डी के गुण-
यह तासीर में गर्म, कफ़ और वात दोष को दूर करने वाली, Analgesic, एंटी इंफ्लेमेटरी, हीलिंग और सुजन दूर करने वाले गुणों से भरपूर है.
निर्गुन्डी के फ़ायदे -
निर्गुन्डी के बीज और इसकी जड़ की छाल को कई सारी शास्त्रीय आयुर्वेदिक दवाओं में मिलाया जाता है. वातनाशक होने से यह गठिया, जोड़ों का दर्द, साइटिका, आमवात, दिमाग के रोगों के अलावा पेट के रोगों में भी फायदेमंद है. यहाँ मैं आपको इसके कुछ आसान से प्रयोग बता देता हूँ.
हर तरह के दर्द वाले वात रोगों में इसकी जड़ की छाल का काढ़ा या फिर इसके बीजों का चूर्ण इस्तेमाल करने से फ़ायदा होता है. अगर गठिया, साइटिका जैसे रोगों में तरह-तरह की दवा खाने से भी फ़ायदा नहीं होता हो तो भी इसके जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पियें, इस से फायदा मिलेगा और बीमारी दूर होगी.
इसके पत्तों का रस पिने से पेट के कीड़े या कृमि रोग दूर होते हैं.
आईये अब जानते हैं इसके कुछ एक्सटर्नल प्रयोग -
हर तरह के चर्मरोग और फोड़े-फुंसी में -
इसके पत्तों के रस को निकालकर तेल पका लें, इस तेल को लगाने से चर्मरोग मिटते हैं. जल्दी न भरने वाले ज़ख्म को इस तेल से ड्रेसिंग करने से ज़ख्म जल्द भर जाते हैं.
दर्द होने पर पर -
बॉडी में कहीं भी दर्द हो तो इसके पत्तों को हल्का गर्म कर बांधने से फ़ायदा होता है. जोड़ों का सुजन, जोड़ों का दर्द, आमवात जैसे रोगों में इसका इस्तेमाल करना चाहिए. इसके पत्तों के रस को गर्म कर मालिश करने से भी दर्द दूर होता है.
शरीर में जकड़न होने पर -
अगर पुरे बॉडी में जकड़न हो और हाथ पैर काम नहीं करे तो चारपाई पर इसके पत्ते को बिछाकर रोगी को लिटा दें और निचे से अग्नि दें और रोगी के बॉडी पर हल्की चादर रखें. दो दिन दिनों में ही ऐसा करने से बॉडी का दर्द जकड़न दूर हो जाती है.
अंडकोष की सुजन होने पर-
इसके पत्तों को पीसकर दशांग लेप मिक्स कर अंडकोष पर लेप करने से सुजन मिट जाती है.
सूखे पत्तों को घर में जलाने या धुवन करने से हर तरह के वायरस और बैक्टीरिया दूर होते हैं और घर का वातावरण शुद्ध होता है. इसके प्रोडक्ट ऑनलाइन ख़रीदें निचे दिए लिंक से -
इसे भी जानिए -
पतंजलि का दिव्य सर्वकल्प क्वाथ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का कॉम्बिनेशन है जो एक Detoxifier की तरह काम करता है, यह लीवर से Toxins और गन्दगी को बाहर निकालकर लीवर के फंक्शन को सही करता है जिस से लीवर की हर तरह की बीमारी दूर होती है. आईये जानते हैं दिव्य सर्वकल्प क्वाथ का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
क्वाथ का मतलब होता है काढ़ा जिसे पानी के साथ उबाल कर बनाया जाता है. इसमें जड़ी-बूटियों का मोटा पाउडर होता है.
दिव्य सर्वकल्प क्वाथ का कम्पोजीशन(घटक)-
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे पुनर्नवा की जड़(2.5gram), भूमि आँवला(1.25gram) और मकोय(1.25gram) के मिश्रण से बनाया जाता है.
दिव्य सर्वकल्प क्वाथ के फ़ायदे-
यह लीवर के लिए एक बेहतरीन दवा और टॉनिक की तरह काम करता है. लीवर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है, लीवर को हेल्दी और फिट रखता है. पीलिया या जौंडिस होने पर इस से बहुत अच्छा फ़ायदा होता है.
लीवर फंक्शन सही होने से पाचन तंत्र मज़बूत होता है और इसके इस्तेमाल से आप पाचन सम्बन्धी रोगों से बच भी सकते हैं.
हर तरह के स्किन डिजीज या चर्मरोग जैसे एक्जिमा, सोरायसिस और मूत्र रोगों में भी इस से फ़ायदा होता है.
दिव्य सर्वकल्प क्वाथ की मात्रा और सेवन विधि-
चूँकि यह रेडीमेड दवा नहीं है तो इसे हर बार बनाना होता है. पांच से दस ग्राम तक इसके पाउडर को 400 ML पानी में डालकर तब तक उबालें जब तक की 100 ML पानी बचे. इसके बाद ठंडा होने पर छान लें.
इसे सुबह ख़ाली पेट और रात में खाना खाने के एक घंटा पहले पीना चाहिए. इस काढ़े को एक बार में 100ML पीना है, दोनों टाइम का एक बार भी बनाकर रख सकते हैं. उम्र के अनुसार डोज़ कम या ज़्यादा कर सकते हैं, यहाँ बताई गयी मात्रा व्यस्क व्यक्ति की है.
यह बिल्कुल सेफ़ दवा है, कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. ब्रेस्ट फीडिंग में भी यूज़ किया जा सकता है. इसके 100 ग्राम के पैक की क़ीमत 25 रुपया है जिसे पतंजलि स्टोर से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं.
इसे भी जानिए-
यष्टिमधु को मुलेठी, मूलहटी और जेठीमध जैसे नामों से भी जाना जाता है. यह हाइपरएसिडिटी, अल्सर, कमज़ोरी, जोड़ों का दर्द और खाँसी जैसी बीमारियों में असरदार है. यौनशक्ति वर्धक दवाओं में भी इसे यूज़ किया जाता है. तो आईये जानते हैं यष्टिमधु के फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
यष्टिमधु एक तरह के लता वाले पौधे की जड़ होती है. इसे आम बोलचाल में 'करजनी' भी कहते हैं. जबकि अंग्रेजी में इसे Liquorice कहते हैं. यह दो तरह की होती है सफ़ेद और लाल. इसके बीज बड़े ही सुन्दर होते हैं. वैसे इनके बीजों का भी कुछ इस्तेमाल है पर आज यहाँ उसकी बात नहीं करेंगे. बल्कि जानेंगे इसके जड़ यानि यष्टिमधु के फ़ायदे के बारे में.
इसकी जड़ ऊपर से मटमैले रंग की होती है और अन्दर हल्का पीले रंग की. इसकी जड़ रेशेदार होती है, जिसे कूटकर पाउडर बनाना उतना आसान नहीं होता है. यह स्वाद में मीठी होती है इसीलिए इसे यष्टिमधु भी कहा जाता है.
यष्टिमधु के गुण -
आयुर्वेदानुसार यह पित्त और वात दोष नाशक है. बॉडी के मेन organs पर इसका असर होता है. इसमें Antacid, एंटी इंफ्लेमेटरी, Anti-tussive, Anti-stress, Anti-asthmatic, Anti-oxidant जैसे कई तरह के गुण पाए जाते हैं. यह यौनशक्ति बढ़ाने में भी मदद करता है.
यष्टिमधु के फ़ायदे-
वैसे तो यष्टिमधु बहुत सारी बीमारियों में फ़ायदेमंद है पर यहाँ हम जानेंगे इसके मेन फ़ायदों के बारे में.
स्वसन तंत्र की बीमारियों के लिए -
खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, टोंसिल, गले की सुजन, गले की ख़राश, सुरसुरी होना जैसी प्रॉब्लम में असरदार है.
हार्ट के लिए -
यष्टिमधु कोलेस्ट्रॉल को कम करती है और हार्ट को हेल्दी रखने में मदद करती है.
पाचन तंत्र के लिए-
पाचन तंत्र या Digestive सिस्टम के रोगों में यह सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है. एसिडिटी, सीने की जलन, अल्सर, पेप्टिक अल्सर, कब्ज़, माउथ अल्सर और हेपेटाइटिस जैसे पेट के कई तरह के रोगों में फ़ायदेमंद है.
दिमाग या ब्रेन के लिए -
यह चिंता, तनाव, डिप्रेशन और यादाश्त की कमज़ोरी को दूर करने में मदद करती है.
त्वचा रोगों या Skin Disease के लिए -
यह एलर्जी, एक्जिमा, सोरायसिस और गंजापन जैसी प्रॉब्लम भी भी फ़ायदा करती है.
बोन और मसल्स हेल्थ के लिए -
यह जोड़ों के दर्द, आर्थराइटिस, मसल्स के दर्द में भी दूसरी दवाओं के साथ फ़ायदा करती है.
यौनशक्तिवर्धक-
आयुर्वेद की अधिकतर यौनशक्तिवर्धक दवाओं में इसका इस्तेमाल किया जाता है ताक़त देकर पॉवर और स्टैमिना बढ़ाने वाले गुणों के कारन. यह कमज़ोरी और थकान को दूर करने में मदद करती है.
यष्टिमधु की मात्रा और सेवन विधि -
इसे अधिकतर दूसरी दवाओं के साथ मिक्स कर ही यूज़ किया जाता है. वैसे अगर इसे अकेला यूज़ करना हो तो एक से तीन ग्राम तक सुबह शाम पानी से ले सकते हैं.
हिमालया यष्टिमधु एक टेबलेट सुबह शाम ले सकते हैं. जो की लेने भी आसान होता है. सर्दी-खाँसी और गले की ख़राश में इसकी जड़ के छोटे टुकड़े को मुँह में रखकर चूस भी सकते हैं. पतंजलि यष्टिमधु पाउडर भी यूज़ कर सकते हैं.
यष्टिमधु के नुकसान -
वैसे तो इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता परन्तु हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, किडनी की बीमारी और प्रेगनेंसी में नहीं लेना चाहिए. खून में पोटैशियम की कमी होने और hypertensive दवाओं को लेते हुवे इसका इस्तेमाल न करें.
यष्टिमधु पंसारी की दुकान से मिल जाती है. हिमालया यष्टिमधु निचे दिए लिंक से ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं-
इसे भी जानिए -
अणु तेल क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जिसे नस्य या Nasal Drops की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसके इस्तेमाल से नाक, कान, आँख जैसी इन्द्रियों को बल मिलता है और साइनस, थायराइड, सर्दी-जुकाम, एलर्जी, बालों का टाइम से पहले सफ़ेद होना, बाल गिरना, सर्द दर्द, माईग्रेन और यादाश्त की कमी जैसे कई तरह के रोगों में फ़ायदा होता है, तो आईये जानते हैं अणु तेल का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
अणु तेल जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह शरीर में सूक्ष्म अणुओं तक पहुँच जाता है इसीलिए इसे अणु तेल कहा गया है. इसे कई तरह की जड़ी-बूटियों के मिश्रण से बनाया गया है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें -
जीवंती, हाउबेर, देवदार, मोथा, दालचीनी, उशीर, श्वेत सारिवा, सफ़ेद चन्दन, दारूहल्दी, यष्टिमधु, मोथा, अगर, शतावर, बिल्व, उत्पल, बृहती, कंटकारी, रास्ना, विडंग, शालपर्णी, प्रिश्नपर्णी, तेजपात, छोटी इलायची, रेणुका बीज, कमल, बकरी का दूध और तिल तेल के मिश्रण से बनाया जाता है.
अणु तेल त्रिदोष नाशक होता है पर कफ़ और वातदोष में इसका ज़्यादा असर दीखता है.
अणु तेल के फ़ायदे-
नाक, कान, आँख, गला, सर की बीमारियों और वातरोगों में यह असरदार है.
नयी पुरानी साइनस, थाइराइड, नाक की सुजन, सुगंध पता नहीं लगना, सर्दी-खाँसी, गले की सुजन, सर दर्द, एलर्जी, बाल गिरना, समय से पहले बाल सफ़ेद होना, दाढ़ी-मूँछ के बाल सफ़ेद होना जैसी प्रॉब्लम में फ़ायदेमंद है.
फेसिअल पैरालिसिस, गर्दन की जकड़न, कन्धों का दर्द और जकड़न, मसल्स की कमज़ोरी और जकड़न जैसे वात रोगों में इसका नस्य लेने से लाभ होता है.
टोंसिल, गला ख़राब होना, यादाश्त की कमजोरी, नर्व की कमज़ोरी, दांत के रोग, हकलाहट, हार्मोनल Imbalance में भी फ़ायदेमंद है.
अणु तेल नाक, कान, आँख जैसी इन्द्रियों को ताक़त देता है और इनकी बीमारियों को दूर करता है. पंचकर्म के नस्यकर्म में इसे विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है.
अणु तेल का इस्तेमाल आप बताई गई बीमारीओं से बचने के लिए भी कर सकते हैं.
अणु तेल का प्रयोग कैसे करें?
सुबह फ्रेश होने के बाद लेटकर ड्रॉपर से दो-तीन बूंद नाक में डालें और अन्दर तक खींचें. इसे डालने के बाद पांच-दस मिनट तक लेटे रहना चाहिए. अगर कफ़ हो और तेल गला तक आ जाए तो थूक देना चाहिए. एक बार में नाक की एक ही छेद में डालें, थोड़ी देर बाद दुसरे छेद में डालना चाहिए. इसे रोज़ सुबह एक बार या फिर सुबह शाम भी डाल सकते हैं.
अणु तेल को सुबह में भी मोस्टली यूज़ किया जाता है और स्पेशल कंडीशन में शाम में भी. पर कुछ हालत में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जैसे-
भूखे, प्यासे में, बाल धोने के बाद, प्रेगनेंसी में, कहीं चोट लगने पर, बहुत ज़्यादा थकावट होने पर और बारिश के मौसम में जब धुप न हो तो अणु तेल का इस्तेमाल न करें.
श्री श्री के 10 ML के पैक की क़ीमत क़रीब 55 रुपया है. इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से-
इसे भी जानिए-
शिलाप्रवंग टेबलेट यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, पेशाब की जलन, प्रोस्टेट, इरेक्टाइल डिसफंक्शन और मर्दाना कमज़ोरी जैसे पुरुष रोगों में फ़ायदेमंद हैं, तो आईये जानते हैं शिलाप्रवंग का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल-
शिलाप्रवंग टेबलेट आयुर्वेदिक कम्पनी धूतपापेश्वर का ब्रांड है जिसमे शिलाप्रवंग स्पेशल टेबलेट की तरह स्वर्ण भस्म और मकरध्वज जैसी कीमती दवा नहीं मिली होती है, इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसके हर टेबलेट में -
शुद्ध शिलाजीत- 30 mg, प्रवाल पिष्टी- 30 mg, वंग भस्म- 30 mg, मोती पिष्टी- 1 mg, स्वर्णमाक्षिक भस्म, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन प्रत्येक- 20 mg, छोटी इलायची- 10 mg, गिलोय सत्व और गोखरू प्रत्येक 50-50 mg का मिश्रण होता है.
यह वात और कफ़ दोष को बैलेंस करता है.
शिलाप्रवंग टेबलेट के फ़ायदे-
डायबिटीज, पेशाब का इन्फेक्शन या UTI, पेशाब की जलन, पेशाब करने में दर्द होना, प्रोस्टेट ग्लैंड का बढ़ जाना शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, स्पर्म काउंट की कमी, कमज़ोरी, थकावट जैसे रोगों में इसके इस्तेमाल से फ़ायदा होता है.
महँगा होने के कारन जो लोग शिलाप्रवंग स्पेशल का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं वो इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, दोनों के लगभग एक जैसे ही फ़ायदे होते हैं.
शिलाप्रवंग टेबलेट की मात्रा और सेवन विधि-
एक से दो टेबलेट सुबह शाम दूध से खाना के बाद लेना चाहिए, या फिर डॉक्टर की सलाह के अनुसार. इसे लगातार दो महिना तक लिया जा सकता है. इसके 40 टेबलेट के पैक की क़ीमत क़रीब 300 रुपया है.
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