सोमराजी तेल एक क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जिसे चर्मरोगों के लिए बाहरी प्रयोग किया जाता है, तो आईये जानते हैं इसका कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
सोमराजी तेल आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्यरत्नावली का योग है जिसका मेन इनग्रीडेंट सोमराजी है. सोमराजी को 'बाकुची' और बावची जैसे नामों से भी जाना जाता है.
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें - बाकुची, हल्दी, दारूहल्दी, पीला सरसों, कूठ, करंज बीज, चक्रमर्द, अमलतास के पत्ते और सरसों तेल का मिश्रण होता है.
इसे बनाने का तरीका यह है कि सभी जड़ी-बूटियों को 25-25 ग्राम लेकर मोटा कूट लें और फिर क़रीब डेढ़ लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनायें. जब 400 ML पानी बचे तो छान लें और इसमें 800 ग्राम पीले सरसों का तेल मिलाकर लोहे की कड़ाही में डालकर मन्द आँच पर तेल पकाना है. जब काढ़ा या पानी का अंश पूरा उड़ जाये, सिर्फ़ तेल बचे तो इसे ठण्डा होने पर छान कर रख लें. यही सोमराजी तेल है.
सोमराजी तेल के गुण -
यह तेल कंडूनाशक या Anti-itching, Anti-fungal, Anti-बैक्टीरियल और हीलिंग जैसे गुणों से भरपूर होता है.
सोमराजी तेल के फ़ायदे -
खुजली चाहे सुखी हो गीली, इसकी मालिश करने से दूर होती है.
एक्जिमा, दाद-दिनाय, सोरायसिस, फोड़े-फुंसी, हर तरह के ज़ख्म जैसे रोगों में बाहरी प्रयोग के लिए अच्छी दवा है.
सोमराजी तेल सफ़ेद दाग में भी इफेक्टिव है, सफ़ेद दाग में सोमराजी के बीजों को पानी में घिसकर भी लगाया जाता है.
छोटे-मोटे चर्मरोगों से लेकर कुष्ठव्याधि तक में इसे प्रयोग किया जाता है.
सोमराजी तेल प्रयोग कैसे करना है?
खाज-खुजली और स्किन डिजीज में इसे पीड़ित स्थान पर रोज़ दो-तिन बार लगाना चाहिए. यह सिर्फ़ बाहरी प्रयोग या एक्सटर्नल यूज़ की दवा है, लॉन्ग टाइम तक यूज़ करने से भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है. एक्जिमा, सोरायसिस जैसे रोगों में इसके साथ में खाने वाली दवा भी लेनी चाहिए जैसे खदिरारिष्ट, मंजिष्ठारिष्ट, कैशोर गुग्गुल, निम्बादी चूर्ण, गंधक रसायन, रस माणिक्य वगैरह.
डाबर, बैद्यनाथ, पतंजलि जैसी कई तरह की आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है, इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं.
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