माजून फ़्लास्फ़ा एक क्लासिकल यूनानी मेडिसिन है जिसे यूरिनरी सिस्टम, नर्वस सिस्टम और मर्दों के Reproductive System की बीमारियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. तो आईये जानते हैं माजून फ़्लास्फ़ा क्या है? इसका कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
माजून फ़्लास्फ़ा जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है माजून या हलवे के तरह की दवा होती है जिसे कई तरह की जड़ी-बूटियों को मिलाकर बनाया जाता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें -
मगज़ चिल्गोज़ा - 30 ग्राम
आँवला मुक्क़शिर - 30 ग्राम
बैख़ बाबूना - 30 ग्राम
फ़िल्फिल दराज़ - 30 ग्राम
फ़िल्फिल स्याह - 30 ग्राम
नार्जिल ताज़ा - 30 ग्राम
सालब मिश्री - 30 ग्राम
शित्रज हिंदी - 30 ग्राम
दारचीनी - 30 ग्राम
ज़रवंद मुदहरज - 30 ग्राम
ज़न्जबिल - 30 ग्राम
तुख्म बाबूना - 15 ग्राम
मर्विज़ मुनक्का - 90 ग्राम
शहद असली - 810 ग्राम का मिश्रण होता है. बनाने का तरीका यह है कि सभी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण बनाकर शहद में अच्छी तरह से मिक्स कर रख लें बस माजून फ़्लास्फ़ा तैयार है.
माजून फ़्लास्फ़ा के गुण -
यह तासीर में नार्मल से थोड़ा ख़ुश्क होता है. इसके गुण या प्रॉपर्टीज की बात करें तो यह नर्वस सिस्टम को ताक़त देने वाला(Neuroprotective), दिमागी टॉनिक(Brain Tonic), यूरिनरी सिस्टम को ताक़त देना वाला, बल-वीर्य वर्धक, यौन शक्ति वर्धक और पाचक(Digestive Stimulant) गुणों से भरपूर होता है.
माजून फ़्लास्फ़ा के फ़ायदे -
किडनी का दर्द, किडनी की ख़राबी, पेशाब ज़्यादा होना(Polyuria), नर्वस सिस्टम की कमज़ोरी, मर्दाना कमज़ोरी, पॉवर और स्टैमिना की कमी, वीर्य का पतलापन, स्पर्म काउंट की कमी, सामान्य कमज़ोरी, भूख नहीं लगना, हाजमा कमज़ोर होना जैसी प्रॉब्लम को दूर करता है.
यह दिमाग को ताकत देता है और यूरिनरी सिस्टम के रोगों को दूर करता है.
सलाब मिश्री जैसी चीज़ें मिला होने से मर्दाना ताक़त को बढ़ाता है.
फ़िल्फिल स्याह और फ़िल्फिल दराज़ जैसी चीज़ें मिला होने से Digestion ठीक कर भूख को बढ़ाता है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो यूरिनरी सिस्टम, नर्वस सिस्टम और मर्दों के Reproductive System की बीमारियों के लिए इफेक्टिव दवा है.
माजून फ़्लास्फ़ा डोज़ और इस्तेमाल करने का तरीका -
पांच से दस ग्राम या एक टीस्पून तक दिन में दो बार नाश्ता और खाने के दो घंटे बाद पानी या गर्म दूध से लेना चाहिए. इसे खाने के पहले भी ले सकते हैं. लेने का तरीका डिपेंड करता है रोग और रोगी की कंडीशन पर.
यह बिल्कुल सेफ़ दवा है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. किडनी की प्रॉब्लम और पेशाब ज़्यादा होने पर इसके साथ चन्द्रप्रभा वटी भी लेना चाहिए. या फिर बीमारी के मुताबिक़ साथ में दूसरी दवाएँ लेनी चाहिए. हमदर्द के 150 ग्राम के पैक की क़ीमत क़रीब 70 रुपया है. दूसरी यूनानी कम्पनियाँ भी इसे बनाती है, यूनानी दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं.
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सोमराजी तेल एक क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जिसे चर्मरोगों के लिए बाहरी प्रयोग किया जाता है, तो आईये जानते हैं इसका कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
सोमराजी तेल आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्यरत्नावली का योग है जिसका मेन इनग्रीडेंट सोमराजी है. सोमराजी को 'बाकुची' और बावची जैसे नामों से भी जाना जाता है.
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें - बाकुची, हल्दी, दारूहल्दी, पीला सरसों, कूठ, करंज बीज, चक्रमर्द, अमलतास के पत्ते और सरसों तेल का मिश्रण होता है.
इसे बनाने का तरीका यह है कि सभी जड़ी-बूटियों को 25-25 ग्राम लेकर मोटा कूट लें और फिर क़रीब डेढ़ लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनायें. जब 400 ML पानी बचे तो छान लें और इसमें 800 ग्राम पीले सरसों का तेल मिलाकर लोहे की कड़ाही में डालकर मन्द आँच पर तेल पकाना है. जब काढ़ा या पानी का अंश पूरा उड़ जाये, सिर्फ़ तेल बचे तो इसे ठण्डा होने पर छान कर रख लें. यही सोमराजी तेल है.
सोमराजी तेल के गुण -
यह तेल कंडूनाशक या Anti-itching, Anti-fungal, Anti-बैक्टीरियल और हीलिंग जैसे गुणों से भरपूर होता है.
सोमराजी तेल के फ़ायदे -
खुजली चाहे सुखी हो गीली, इसकी मालिश करने से दूर होती है.
एक्जिमा, दाद-दिनाय, सोरायसिस, फोड़े-फुंसी, हर तरह के ज़ख्म जैसे रोगों में बाहरी प्रयोग के लिए अच्छी दवा है.
सोमराजी तेल सफ़ेद दाग में भी इफेक्टिव है, सफ़ेद दाग में सोमराजी के बीजों को पानी में घिसकर भी लगाया जाता है.
छोटे-मोटे चर्मरोगों से लेकर कुष्ठव्याधि तक में इसे प्रयोग किया जाता है.
सोमराजी तेल प्रयोग कैसे करना है?
खाज-खुजली और स्किन डिजीज में इसे पीड़ित स्थान पर रोज़ दो-तिन बार लगाना चाहिए. यह सिर्फ़ बाहरी प्रयोग या एक्सटर्नल यूज़ की दवा है, लॉन्ग टाइम तक यूज़ करने से भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है. एक्जिमा, सोरायसिस जैसे रोगों में इसके साथ में खाने वाली दवा भी लेनी चाहिए जैसे खदिरारिष्ट, मंजिष्ठारिष्ट, कैशोर गुग्गुल, निम्बादी चूर्ण, गंधक रसायन, रस माणिक्य वगैरह.
डाबर, बैद्यनाथ, पतंजलि जैसी कई तरह की आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है, इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं.
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अगस्त्य हरीतकी एक बेजोड़ क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो फेफड़ों को शक्ति देती है और Upper Respiratory Tract के रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं अगस्त्य हरीतकी अवलेह के बारे में पूरी डिटेल -
अगस्त्य हरीतकी अवलेह को हरीतकी अवलेह, अगस्त्य रसायन और अगस्त्य रसायनम जैसे नामों से जाना जाता है. यह आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता का योग है, यह अवलेह है यानि हलवे की तरह की दवा है ठीक वैसा ही जैसा च्यवनप्राश होता है.
इसका मेन इनग्रीडेंट हरीतकी या हर्रे है, इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें कई तरह की जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है जैसे-
हरीतकी- 1200 ग्राम
बिल्व या बेल
अरणी
श्योनका
पटाला
गंभारी
बृहती
कंटकारी
शालपर्णी
प्रिश्नपर्णी
गोक्षुर
कौंच बीज
शंखपुष्पी
कपूर कचरी
बला
गजपीपल
अपामार्ग
पिपरामूल
चित्रकमूल
भारंगी
पुष्करमूल प्रत्येक 96 ग्राम
जौ - 3 किलो 73 ग्राम
पानी - 15.36 लीटर
गाय का घी - 192 ग्राम
तिल तेल - 192 ग्राम
पिप्पली - 192 ग्राम
शहद - 192 ग्राम
गुड़ - 4 किलो 800 ग्राम
इसे आयुर्वेदिक अवलेह पाक निर्माण विधि से अवलेह बनाया जाता है.
अगस्त्य हरीतकी अवलेह के गुण -
यह कफ़ और वात दोष पर असर करती है, तासीर में थोड़ा गर्म है. यह कफ़-श्वास नाशक(Antitussive, Mucolytic), आम पाचक(Detoxifier), एंटी एलर्जिक, सुजन नाशक(Anti-inflammatory), एंटी बैक्टीरियल, एंटी ऑक्सीडेंट और पाचन शक्ति ठीक करने वाले(Digestive Stimulant) गुणों से भरपूर है.
अगस्त्य हरीतकी अवलेह के फ़ायदे -
फेफड़े और साँस के रोगों के लिए यह बेहद असरदार है. यह एक आयुर्वेदिक रसायन है, शरीर को ताक़त देता है, पाचन ठीक करता है और बल बढ़ाता है. इसके इस्तेमाल से कई तरह के रोग दूर होते हैं जैसे -
सर्दी-खाँसी, अस्थमा, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस, अंदरूनी बुखार, साँस की तकलीफ़
पुराना साइनस(Sinusitis), Allergic Rhinitis, तपेदिक या T.B. के बाद की कमज़ोरी
भूख की कमी, हिचकी, मुंह का स्वाद पता नहीं चलना, IBS, कब्ज़, पाचन शक्ति की कमज़ोरी वगैरह
गाढ़ा, जमा हुवा कफ़ को निकालता है चाहे खाँसी में हो या ब्रोंकाइटिस में.
अगस्त्य हरीतकी अवलेह की मात्रा और सेवन विधि -
दस से बीस ग्राम तक गर्म पानी के साथ सुबह शाम लेना भोजन के बाद लेना चाहिए, यह व्यस्क व्यक्ति का डोज़ है. बच्चे, युवा और बुजुर्गों में उनकी उम्र के अनुसार डोज़ देना चाहिए.
ब्रोंकाइटिस में इसके साथ सितोपलादि चूर्ण, प्रवाल पिष्टी और टंकण भस्म के साथ लेने से पुरानी से पुरानी ब्रोंकाइटिस में लाभ होता है.
इसे एक साल के बच्चे से लेकर साठ साल तक के बुज़ुर्ग में यूज़ कर सकते हैं. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, किसी तरह का नुकसान नहीं होता है. वात और कफ़ दोष में असरदार है, पित्त दोष में इसे सावधानी से लेना चाहिए. जिनका कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ हो वो भी इसे यूज़ कर सकते हैं, इस से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता बल्कि कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है.
अगस्त्य हरीतकी अवलेह का साइड इफ़ेक्ट -
वैसे तो इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है पर इसे लेने से मोशन थोड़ा लूज़ हो सकता है, हरीतकी मिला होने से. पित्त प्रकृति वालों को सिने में जलन हो सकती है.
परहेज़-
अगस्त्य हरीतकी का इस्तेमाल करते हुवे दूध का इस्तेमाल कर सकते हैं पर दही, आइसक्रीम, फ़ास्ट फ़ूड और तेल मसाले वाले भोजन नहीं करना चाहिए.
डाबर, बैद्यनाथ जैसी कई तरह की कंपनियों का यह मिल जाता है. इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर निचे दिए लिंक से ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं-
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जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह जिगर या लीवर को प्रोटेक्ट करने वाली दवा है. यह हार्मफुल Chemicals और Toxins से लीवर को बचाती है. पीलिया, जौंडिस, लीवर सिरोसिस, लीवर का बढ़ जाना, Digestion की प्रॉब्लम जैसे रोगों में इसका इस्तेमाल किया जाता है, तो आईये जानते हैं हमदर्द जिग्रीन का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
जिग्रीन जो है यूनानी फ़ॉर्मूले पर बना हमदर्द का ब्रांड है इसमें बेहतरीन जड़ी-बूटियों और कुश्ता या भस्म का मिश्रण है. हमदर्द जिग्रीन सिरप फॉर्म में है जबकि इसके कैप्सूल का नाम जिग्रीना है. सबसे पहले जान लेते हैं हमदर्द जिग्रीन सिरप का नुस्खा -
इसे तुख्म कासनी, बर्ग झाऊ, मकोह ख़ुश्क, रेवंद चीनी, बर्ग कसौंदी, बर्ग सँभालू, बादियान, तुख्म कसूस, बीसखपरा, बर्ग बर्तंग, गुल सुर्ख, कटेरी ख़ुर्द, फ़िल्फिल स्याह, नौशादर और कुश्ता जस्त के मिश्रण से बनाया गया है.
हमदर्द जिग्रीना कैप्सूल का कम्पोजीशन भी ऑलमोस्ट सेम है, इसमें जड़ी-बूटियों का एक्सट्रेक्ट मिलाया जाता है.
हमदर्द जिग्रीन के फ़ायदे-
लीवर को हेल्दी रखने, लीवर को बीमारियों से बचाने और लीवर की प्रॉब्लम दूर करने के लिए यह एक बेहतरीन यूनानी दवा है.
यह हानिकारक Chemicals और Toxins से लीवर को बचाती है और लीवर के फंक्शन को सही करती है.
जौंडिस, लिवर सिरोसिस, फैटी लीवर और अल्कोहल की वजह से होने वाले लीवर के रोगों में इसे यूज़ कर सकते हैं.
यह भूख नहीं लगना, खाना हज़म नहीं होना जैसी प्रॉब्लम को दूर करती है, इसके इस्तेमाल से खाने में रूचि बढ़ती है और पाचन शक्ति ठीक हो जाती है.
लीवर प्रोटेक्ट करने के लिए बिना बीमारी के भी इसे यूज़ कर सकते हैं. हमारे रोज़ के खान-पान में जो भी खाते पीते हैं उन सब आज के टाइम कुछ न कुछ हार्मफुल केमिकल, रसायनिक खाद मिले होते हैं जो लीवर को नुकसान पहुंचाते हैं. हम जो रोज़ पानी पीते हैं उसमे भी कुछ न कुछ केमिकल जैसे क्लोरीन मिला होता है तो इन सब से लीवर को बचाने के लिए आप जिग्रीन का इस्तेमाल कर सकते हैं. जिग्रीन ही नहीं बल्कि कोई भी लीवर को प्रोटेक्ट करने वाली हर्बल दवा यूज़ कर सकते हैं.
हमदर्द जिग्रीन के बारे में मेरी पर्सनल राय यह कि इसे लीवर प्रोटेक्ट करने के लिए और हेल्थ सप्लीमेंट के रूप रोज़ यूज़ कर सकते हैं. इसी तरह की दूसरी हर्बल दवाएँ हैं हिमालया Liv 52, पतंजलि लिव डी 38 वगैरह.
हमदर्द जिग्रीन का डोज़-
1 स्पून रोज़ दो बार खाना खाने के बाद. इसका कैप्सूल यानि जिग्रीना एक-एक सुबह शाम लेना चाहिए. यह बिल्कुल सेफ दवा है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. इसे यूनानी दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है.
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कपर्दक भस्म क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जिस से एसिडिटी, हाइपरएसिडिटी, पेट दर्द, IBS, Duodenal Ulcer, भूख की कमी, संग्रहणी लीवर और पेट के रोग दूर होते हैं. तो आईये जानते हैं कपर्दक भस्म क्या है? कैसे बनाया जाता है? इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल-
कपर्दक भस्म को वराटिका भस्म भी कहा जाता है. कपर्दक को आम बोल चाल में कौड़ी भी कहा जाता है, वही कौड़ी जिसे लोग माला बनाकर भी पहनते हैं और सजावट के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. यह एक तरह के समुद्री जीव का कवर या खोल होता है. इसे अंग्रेज़ी में Cowry Shell कहते हैं.
भस्म बनाने के लिए हल्के पीले रंग की कौड़ी जिसका वज़न क़रीब 3 से पाँच ग्राम हो उसे ही लिया जाता है. आयुर्वेदिक प्रोसेस से शोधन-मारण करने के बाद ही गजपुट की अग्नि देकर भस्म बनाया जाता है. कपर्दक भस्म सफ़ेद रंग का फाइन पाउडर होता है. चूँकि भस्म बनाना आम आदमी के लिए आसान काम नहीं है, इसलिए इसकी डिटेल में नहीं जाते हैं.
कपर्दक भस्म के गुण -
कपर्दक भस्म तासीर में गर्म होता है. पित्तशामक, कफनाशक, दीपन, पाचन, ग्राही, Antacid, पेट दर्द नाशक(Antispasmodic), आमपाचक, Antiemetic, Antiflatulent जैसे कई तरह के गुण पाए जाते हैं.
कपर्दक भस्म के फ़ायदे -
कपर्दक भस्म को एसिडिटी, हाइपरएसिडिटी, सिने की जलन, डकार, उल्टी, पेट का भारीपन, अपच, खट्टी डकार आना, IBS, भूख की कमी, ग्रहणी जैसे रोगों में प्रयोग किया जाता है.
कर्ण स्राव या कान बहने(Otorrhoea) में भी यह इफेक्टिव है. कान बहने पर कपर्दक भस्म को कान में डालकर ऊपर से निम्बू का रस डालने से कान बहना बंद हो जाता है.
कपर्दक भस्म की मात्रा और सेवन विधि -
250 mg से 500 mg तक सुबह शाम शहद, घी या मलाई के साथ मिक्स कर लेना चाहिए. ऐसे ही सुखा खाने से ज़बान कट जाती है.
पेट दर्द में इसे घी और मिश्री के साथ मिक्स कर लेना चाहिए. बहुत ज़्यादा एसिडिटी और उसकी वजह से उल्टी होने पर इसके साथ गिलोय सत्व मिक्स कर शहद के साथ लें.
गैस, अपच और पेट की दूसरी प्रॉब्लम में इसके साथ 'आरोग्यवर्धिनी वटी' भी ले सकते हैं.
कपर्दक भस्म को कभी भी अकेला नहीं लें, रोगानुसार उचित अनुपान के साथ ही लेना चाहिए. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, सही डोज़ में लेने से किसी तरह का कोई नुकसान या साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. बहुत सी आयुर्वेदिक कंपनियां इसे बनाती हैं, इसे आयुर्वेदिक मेडिकल से या ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं हमारे स्टोर से - https://www.lakhaipur.in/product/kapardak-bhasma/
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जी हाँ, जैसा कि इसका नाम है यह ब्लड प्योरीफ़ायर या खून साफ़ करने वाली दवा है जिस से पिम्पल्स और एक्ने वगैरह दूर होते हैं और त्वचा में निखार आता है. तो आईये जानते हैं इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
डाबर एक्टिव ब्लड प्योरीफ़ायर जड़ी-बूटियों से बना आयुर्वेदिक सिरप है जिसमे जानी-मानी रक्तशोधक औषधियों का मिश्रण है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमे अनंतमूल, गुडूची, हल्दी, मंजीठ, नीम, खदिर और शहद का मिश्रण होता है, जिसे सिरप बेस पर बनाया गया है.
सिंपल पर इफेक्टिव कॉम्बिनेशन, इसमें मिलायी गयी सारी जड़ी-बूटियाँ अपने गुणों में बेजोड़ हैं.
अनंतमूल - अनंतमूल जिसे शारिवा भी कहा जाता है एक बेहतरीन रक्तशोधक है जो ब्लड से Toxins को बाहर निकालता है. क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन शारिवाध्यारिष्ट का यह मेन इनग्रीडेंट होता है.
गुडूची- गुडूची या गिलोय खून साफ़ करती है और एंटी ऑक्सीडेंट भी है, एंटी एजिंग है स्किन ग्लो करती है.
हल्दी - हल्दी एक जानी-मानी खून साफ़ करने वाली दवा है और नेचुरल एंटी बायोटिक भी जो पिम्पल्स को दूर कर त्वचा में निखार लाती है.
मंजीठ- मंजीठ जिसे मंजिष्ठा भी कहा जाता है खून साफ़ करने और स्किन डिजीज करने की इफेक्टिव औषधि है. अनल्जेसिक और एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है. मंजिष्ठादि चूर्ण और महा मंजिष्ठारिष्ट जैसी क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन का मुख्य घटक होता है.
नीम - नीम के बारे में कौन नहीं जानता? नीम को पूरी दुनिया में ब्लड प्योरीफ़ायर के रूप में जाना जाता है.
खदिर- खदिर या खदिर काष्ठ खून साफ़ करने और स्किन डिजीज दूर करने की दवा है. शरीर से बीमारियों को दूर करता है. खदिरारिष्ट नाम की क्लासिकल आयुर्वेदिक दवा का मेन इनग्रीडेंट होता है.
शहद - इन सारी-जड़ी बूटियों के साथ शहद का मिश्रण इन सब के पॉवर को बढ़ा देता है. शहद स्किन के लिए भी एक बेहतरीन चीज़ है. यह इसके टेस्ट को भी बढ़ा देता है और Digestion भी ठीक कर देता है.
डाबर एक्टिव ब्लड प्योरीफ़ायर के फ़ायदे -
डाबर एक्टिव ब्लड प्योरीफ़ायर रियल में एक एक्टिव रक्तशोधक है. चेहरे पर होने वाले दाने, कील-मुहाँसे, पिम्पल्स और दाग धब्बों को दूर करता है.
सिर्फ़ दो हफ़्तों में भी असर दिखाने लगता है और कुछ हफ़्तों के इस्तेमाल से फर्क देख सकते हैं.
यह पिम्पल्स को दुबारा होने से रोकता है और स्किन ग्लो कर त्वचा में निखार लाता है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो मेरी राय में यह पिम्पल्स, एक्ने और स्किन प्रॉब्लम के लिए एक अच्छी दवा है जिसे लगातार कुछ महीने यूज़ कर पूरा लाभ ले सकते हैं.
इसी तरह की दूसरी दवाएँ हैं हमदर्द की साफ़ी, बैद्यनाथ सुरक्ता, अनन्त सालसा वगैरह.
डाबर एक्टिव ब्लड प्योरीफ़ायर का डोज़-
2 स्पून या 15-20 ML तक रोज़ दो बार खाना के बाद, इसे ख़ाली पेट भी ले सकते हैं. यह बिल्कुल सेफ़ दवा है किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. कम से कम तीन महिना या लॉन्ग टाइम तक भी यूज़ कर सकते हैं.
इसके साथ में कैशोर गुग्गुल, निम्बादी चूर्ण, हिमालया Talekt जैसी दवा भी ले सकते हैं. डाबर एक्टिव ब्लड प्योरीफ़ायर 100 ML और 200 ML का मिलता है, जिसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से -
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जिनसेंग का नाम आपने सुना होगा इसे ख़ासकर शीघ्रपतन और इरेक्टाइल डिसफंक्शन दूर करने और यौन शक्तिवर्धक दवा के रूप में जाना जाता है. यह न सिर्फ पुरुषों का स्टैमिना और पॉवर को बढ़ाती है बल्कि इसके कई सारे दुसरे फ़ायदे भी हैं. माइंड को रिलैक्स करना, चिंता-तनाव दूर करना, फेफड़ों को शक्ति देना, साँस की तकलीफ़ दूर करना, महिलाओं की पीरियड रिलेटेड प्रॉब्लम, कमज़ोरी, बुखार, थकान, Bronchitis जैसे कई सारे रोग दूर होते हैं. तो आईये आज के इस विडियो में जानते हैं कि जिनसेंग क्या है? इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
इसके पौधे की जड़ को ही दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यह पेनेक्स(Panax) प्रजाति का पौधा होता है जिसकी कई तरह की किस्में होती हैं.
सफ़ेद जिन्सेंग और लाल जिन्सेंग यही दो तरह की जड़ों को सबसे ज़्यादा यूज़ किया जाता है. यह अमेरिका, चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों में पाया जाता है. यहाँ मैं बता देना चाहूँगा कि आयुर्वेदिक औषधि अश्वगंधा को इंडियन जिनसेंग भी कहा जाता है अश्वगंधा के जिनसेंग से मिलते-जुलते गुणों के कारन.
जिनसेंग में जिनसेनोसाइड्स(Ginsenosides) नाम का एक्टिव इनग्रीडेंट पाया जाता है जो कई प्रकार का होता है.
जिनसेंग के गुण -
जिनसेंग कई तरह के गुणों से भरपूर दवा है, इसके मेडिसिनल प्रॉपर्टीज की बात करें तो इसके गुण कुछ इस तरह से हैं-
टॉनिक या रसायन
यौन शक्ति वर्धक
एंटी ऑक्सीडेंट
Nervine Tonic
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला(Immunity Booster)
चिंता-तनाव नाशक(Anti-stress)
सुजन नाशक(Anti-inflammatory)
Anti-obesity, Anti-diabetic, Anti-wrinkle, Anti-tumor, Anti-cancer जैसे अनेको गुण पाए जाते हैं.
जिनसेंग के फ़ायदे-
जिनसेंग को जनरल टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, यह पूरी बॉडी के लिए एक बेहतरीन दवा और टॉनिक है जो बीमारियों को दूर कर शरीर कर हेल्दी बनाता है और इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाकर बीमारियों से बचाती भी है.
तनाव, चिंता, डिप्रेशन, मानसिक थकान, मेमोरी लॉस, चिडचिडापन, नींद की कमी जैसी प्रॉब्लम दूर होती है.
पुरुषों की यौन कमज़ोरी, शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, जोश और स्टैमिना की कमी जैसे पुरुष रोगों में इसे सबसे ज़्यादा यूज़ किया जाता है. यह पुरुष हॉर्मोन Testesterone का लेवल को बढ़ाता है, मेल ऑर्गन में ब्लड फ्लो बढ़ाकर प्रॉपर इरेक्शन में हेल्प करता है.
महिलाओं के पीरियड रिलेटेड प्रॉब्लम, मीनोपॉज और इनफर्टिलिटी में फ़ायदेमंद है.
यह लीवर, हार्ट, किडनी जैसे बॉडी के मेन ऑर्गन के फंक्शन को सही करता है और हेल्दी बनाता है.
जिनसेंग कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और ब्लड प्रेशर को नार्मल करता है.
यह खून में बढ़े हुवे ब्लड लेवल को कम करता है और डायबिटीज से बचाता भी है.
जिनसेंग बढ़ती उम्र के असर को कम करता है, एंटी एजिंग है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
एंटी ट्यूमर और एंटी कैंसर गुण होने से ट्यूमर और कैंसर की बीमारी होने से बचाता है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो बीमारियों को दूर करने और हेल्दी रहने के लिए यह एक बेहतरीन दवा और टॉनिक है, ऐसे ही नहीं इसे पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जाता है.
जिनसेंग की मात्रा और सेवन विधि -
जिनसेंग को कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है. इसके जड़ का पाउडर बनाकर भी यूज़ किया जाता है. इसका काढ़ा या अर्क भी पिया जाता है. जबकि इसे चाय की तरह भी बनाकर यूज़ कर सकते हैं.
जिनसेंग का बना बनाया सिरप भी मिलता है. इसके एक्सट्रेक्ट का कैप्सूल भी. होमियोपैथीक मेडिसिन में इसका Q. भी मिलता है.
यूज़ करने के लिए सबसे आसान इसका कैप्सूल ही होता है. इसे 200 mg से 1 ग्राम तक रोज़ एक बार लेना चाहिए. इसका डोज़ डिपेंड करता है आपकी ऐज और बॉडी कंडीशन पर.
जिनसेंग का साइड इफ़ेक्ट-
जिनसेंग ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, सही डोज़ में लेने से कोई नुकसान नहीं होता है. बच्चों में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. प्रेगनेंसी और ब्रेस्टफीडिंग में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
अधीक मात्रा में लेने से महिलाओं को हैवी ब्लीडिंग और ब्रैस्ट Tenderness हो सकता है. जबकि पुरुषों में अधीक डोज़ होने पर सर चकराना, चिडचिडापन, आँखों के सामने धुंधला दिखाई देना, उल्टी, जी मिचलाना जैसी प्रॉब्लम हो सकती है.
अगर हार्ट की कोई दवा ले रहे हैं तो इसे लेने से पहले डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें.
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बच्चों की मालिश के लिए डाबर लाल तेल एक पोपुलर ब्रांड है, यह हड्डी और मसल्स को मज़बूत करता है और बच्चों की ग्रोथ को बढ़ाता है, तो आईये जानते हैं इसका कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
डाबर लाल तेल डाबर इंडिया लिमिटेड का एक गुणकारी प्रोडक्ट है और विज्ञापनों की वजह से यह काफ़ी पॉपुलर भी है. बच्चों के लिए मालिश का यह एक बेहतरीन आयुर्वेदिक तेल है. सबसे पहले जान लेते हैं इसका कम्पोजीशन-
लाल तेल के कम्पोजीशन की बात करें तो इसके 100 ML तेल में
शंखपुष्पी - 37.04 ग्राम
माष या उड़द दाल - 9.88 ग्राम
रतनजोत - 1.23 ग्राम
कपूर - 0.92 ग्राम
सरला तेल - 1.85 ग्राम
तिल तेल - Q.S. to 100 ML होता है. मतलब तिल तेल के बेस बना हुआ तेल है.
इसमें मिलाया गया शंखपुष्पी और माष मसल्स और हड्डी को ताक़त और मज़बूती देता है. रतनजोत से स्किन नर्म मुलायम रहती है और त्वचा में निखार लाता है. कपूर का मिश्रण त्वचा रोगों और स्किन इन्फेक्शन से बचाता है. सरला और तिल तेल ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है, मसल्स और हड्डियों को स्ट्रोंग बनाता है. सिर्फ तिल तेल ही बच्चों की मालिश के लिए असरदार होता है. शंखपुष्पी, माष, रतनजोत, कपूर और सरला तेल का मिश्रण इसे बेहद इफेक्टिव बना देता है. यहाँ मैं बता देना चाहूँगा कि लाल तेल में किसी तरह का कोई कलर नहीं मिलाया जाता है, रतनजोत के मिश्रण से ही यह नैचुरली लाल रंग का हो जाता है.
डाबर लाल तेल के फ़ायदे -
लाल तेल की रेगुलर मालिश से बच्चों का फिजिकल ग्रोथ होता है. यह बच्चों को बढ़ने में मदद करता है.
यह मसल्स को मज़बूत बनाता है और हड्डियों को ताक़त देता है.
लाल तेल की मालिश से स्किन ग्लो होती है और स्किन प्रॉब्लम से बचाता है.
इसकी मालिश से बच्चों को अच्छी नीन्द आती है. क्लिनिकल रिसर्च बताते हैं कि इसकी मालिश से बच्चों को दोगुना ग्रोथ होता है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो डाबर लाल तेल बच्चों के लिए मालिश का एक बेहतरीन आयुर्वेदिक तेल है जिसे नवजात शिशु से लेकर बड़े बच्चों तक में मालिश कर सकते हैं.
डाबर लाल तेल से रोज़ दो बार बच्चों की मालिश करनी चाहिए. इसे हल्का गर्म कर मालिश करने से ज़्यादा असर होता है. इस से कम से कम 15 से 30 मिनट तक मालिश करनी चाहिए.
इसे बच्चों की आँखों में लगने से बचाएँ और बच्चों के मुँह में भी नहीं जाना चाहिए. एक सौ, दो सौ और पांच सौ मिलीलीटर का यह मिलता है. 500 ML के पैक की क़ीमत क़रीब 330 रुपया है. इसे घर बैठे ऑनलाइन ख़रीदें निचे दिए लिंक से -
इसे भी जानिए -
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह लिवर से रिलेटेड बीमारियों की दवा है, इसके इस्तेमाल से फैटी लीवर, जौंडिस, हेपेटाइटिस और लीवर की कमज़ोरी जैसे रोगों में फ़ायदा होता है. तो आईये जानते हैं इसका कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
पतंजलि लिव D 38 पूरी तरह से आयुर्वेदिक दवा है जिसमे सिर्फ़ जड़ी-बूटियों का मिश्रण है, इसमें किसी तरह का भस्म नहीं मिलाया गया है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें भूमि आँवला, भृंगराज, गिलोय, कालमेघ, मकोय, पुनर्नवा, अर्जुन, दारूहल्दी और कुटकी का मिश्रण होता है.
इसमें मिलायी जाने वाली जड़ी-बूटियों के गुणों पर एक नज़र डालते हैं -
भूमि आँवला- यह लीवर और पाचन की समस्या को दूर करने की बेहतरीन दवा है.
भृंगराज - नेचुरल Antacid और हेयर ग्रोथ में भी हेल्प करता है.
गिलोय - गिलोय जिसे गुडूची और अमृता के नाम से भी जाना जाता है, अमृत के सामान गुणकारी है. लीवर और पाचन की समस्या, एसिडिटी को दूर करती है. एंटी एजिंग और बेहतरीन एंटी ऑक्सीडेंट है.
कालमेघ और मकोय - लिवर फंक्शन को सही करने, लिवर को Detoxify करने की बेहतरीन दवा होती है. सिर्फ़ मकोय का अर्क ही लीवर को नार्मल करने की पॉवर रखता है.
पुनर्नवा- सुजन या Inflammation को कम करने और बॉडी के Toxins को पेशाब से बाहर निकालने का काम करता है.
अर्जुन - हार्ट को ताक़त देना और हार्ट के फंक्शन को सही करना इसका मेन काम है,यह कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है.
दारूहल्दी- खून साफ़ करने वाला और नेचुरल एंटीबायोटिक का काम करती है. यह एक तरह की पीले रंग की लकड़ी होती है, कोई दारू या शराब नहीं.
कुटकी - लिवर फंक्शन को ठीक कर भूख बढ़ाने में मदद करती है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो पतंजलि लिव D 38 का कम्पोजीशन अपने आप में बेजोड़ है.
पतंजलि लिव D 38 के फ़ायदे -
लिवर को हेल्दी बनाना, लिवर का फंक्शन सही करना, लिवर से Toxins को बाहर निकालना और पाचन शक्ति को ठीक करना इस दवा का काम है.
लिवर की कमज़ोरी, फैटी लीवर, जौंडिस, हेपेटाइटिस जैसी प्रॉब्लम में इसका इस्तेमाल करना चाहिए.
यह लिवर के डैमेज हुवे सेल्स को Regenerate करता है और लिवर को हेल्दी बनाता है.
पतंजलि लिव D 38 के इस्तेमाल से भूख खुलकर लगने लगती है और शरीर में खून कमी भी दूर होती है.
लिवर की कमज़ोरी के कारन खाना हज़म नहीं होना, और दस्त होने भी फ़ायदेमंद है.
लिवर की हर तरह की प्रॉब्लम में इसे यूज़ करने से फ़ायदा होता है. नार्मल आदमी भी इसे हेल्थ सप्लीमेंट या लिवर प्रोटेक्टिव मेडिसिन के रूप में ले सकता है. अगर आप बॉडी बिल्डिंग करते हैं, जिम जाते हैं तो भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
पतंजलि लिव D 38 की मात्रा और सेवनविधि -
जौंडिस और हेपेटाइटिस जैसी प्रॉब्लम में दो टेबलेट रोज़ तीन बार तक खाना खाने से पहले लेना चाहिए.
नॉर्मली इसे एक टेबलेट रोज़ दो बार लेना चाहिए. अगर लीवर की कोई प्रॉब्लम नहीं हो तो इसे रोज़ एक टेबलेट लिवर प्रोटेक्टर के रूप में ले सकते हैं. बच्चों को कम डोज़ में देना चाहिए. इसका सिरप भी यूज़ कर सकते हैं. यह बिल्कुल सेफ़ दवा है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. 60 टेबलेट की क़ीमत क़रीब 70 रुपया है, इसे पतंजलि स्टोर से या फिर ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है.
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महारास्नादि क्वाथ क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जिसे हर तरह के वातरोगों यानि दर्दवाले रोगों में इस्तेमाल किया जाता है. इसके इस्तेमाल से अर्धांगवात, सर्वांगवात, जोड़ों का दर्द, सुजन-जकड़न, गठिया, अर्थराइटिस, Rheumatoid Arthritis, Osteoarthritis, साइटिका, कमरदर्द, लकवा, पक्षाघात, गैस और पेट के रोग जैसी बीमारियाँ दूर होती है. तो आईये जानते हैं महारास्नादि क्वाथ का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
महारास्नादि क्वाथ को महारास्नादि काढ़ा और महारास्नादि कषाय भी कहा जाता है. इसका मेन इनग्रीडेंट रास्ना नाम की जड़ी-बूटी होती है, इसी पर इसका नाम रखा गया है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें -
रास्ना - 2 भाग
धमासा, बला, एरण्डमूल, देवदार, कपूरकचरी, बच, वसाका, सोंठ, हरीतकी, चव्य, मोथा, पुनर्नवा, गिलोय, विधारा, सौंफ़, गोखुरू, असगंध, अतिविषा, अमलतास, शतावर, सहचर, पिप्पली, धनिया, कंटकारी और वृहती प्रत्येक 1-1 भाग का मिश्रण होता है. आयुर्वेदिक कंपनियों का यह काढ़ा बना बनाया सिरप के रूप में मिलता है. जबकि इसका मोटा कुटा हुआ जौकूट चूर्ण भी मिलता है जिसे उबालकर काढ़ा बनाकर भी यूज़ कर सकते हैं.
महारास्नादि क्वाथ के गुण -
यह वातदोष नाशक(Anti-rheumatic, Anti-arthritic), दर्द(Analgesic) और सुजन नाशक(Anti-inflammatory), नर्व को ताक़त देने वाला(Neuroprotective) और एंटी ऑक्सीडेंट जैसे गुणों से भरपूर होता है.
महारास्नादि क्वाथ के फ़ायदे -
यह मसल्स, नर्व, जोड़ों और हड्डी पर असर करने वाली दवा है. इसे कई तरह के वात रोगों में इस्तेमाल किया जाता है जैसे -
लकवा/पक्षाघात(Paralysis, Hemiplegia, Facial Paralysis)
गृध्रसी(साइटिका, Sciatica)
माँसपेशियों का दर्द(Muscles Pain)
गठिया, आमवात, जोड़ों का दर्द, सुजन(Gout, Arthritis, Rheumatism, Rheumatoid Arthritis, Osteoarthritis, Frozen Shoulder etc.)
आंत्र वृद्धि(Hernia)
आध्यमान(Flatulence) वगैरह
इसके इस्तेमाल से नए-पुराने हर तरह के वात रोग दूर होते हैं, दर्द-सुजन को कम करता है और भूख बढ़ाता है.
महारास्नादि क्वाथ की मात्रा और सेवनविधि -
इसका सिरप 30 ML से 60 ML तक सुबह शाम भोजन के बाद लेना चाहिए बराबर मात्रा में पानी मिलाकर. यही सबके लिए आसान होता है. डाबर, बैद्यनाथ, सांडू, झंडू जैसी कंपनियों का यह बना बनाया मिल जाता है.
इसका काढ़ा अगर चूर्ण के रूप में हो तो इसे 60 ग्राम लेकर आधा लीटर पानी में उबालना है, जब 100 ML पानी बचे तो ठण्डा होने पर छान लें और इसकी दो मात्रा बनाकर 50-50 ML सुबह शाम पीना चाहिए. इसका काढ़ा बनाकर भोजन से आधा घंटा पहले या ख़ाली पेट पीना है.
महारास्नादि क्वाथ ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है, लॉन्ग टाइम तक यूज़ कर सकते हैं.
दर्द वाले रोग या वातरोगों में इसके साथ वृहत वातचिंतामणि रस, योगराज गुग्गुल, रास्नादि गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल, वातगजान्कुश रस, महावातविध्वंसन रस जैसी दूसरी दवाएँ भी ली जाती हैं जिसे डॉक्टर की सलाह से यूज़ करना चाहिए.
परहेज़-
महारास्नादि क्वाथ का यूज़ करते हुए खाने में परहेज़ भी करना चाहिए, वातवर्धक आहार नहीं लेना चाहिए जैसे - चना, मटर, बैगन, उड़द की दाल, मिठाई, गरिष्ठ भोजन या हैवी फ़ूड, मसाला और मांस-मछली
खाना क्या चाहिए?
खाने में हल्का सुपाच्य भोजन लेना चाहिए. मूंग की दाल, परवल, करेला, लौकी जैसी सब्ज़ी खाएं. खाने में हींग और जीरा को भी ऐड करें.
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पंचकर्म एक आयुर्वेदिक प्रोसेस है जिसमे बॉडी की सफ़ाई की जाती है यानि शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकाला जाता है. इसे अंग्रेज़ी में Detoxification प्रोसेस कहते हैं, तो आईये जानते हैं पंचकर्म का प्रोसेस और फ़ायदे की पूरी डिटेल -
सबसे पहले जानते हैं कि पंचकर्म क्यों करवाना चाहिए?
जब तरह-तरह की दवा खाने से भी फ़ायदा नहीं हो रहा हो तो पंचकर्म करवाना चाहिए. पंचकर्म के बाद साधारण सी दवा भी तेज़ी से असर करती है. और बिना दवा के सिर्फ़ पंचकर्म से ही अनेकों रोग दूर हो जाते हैं.
जिस तरह से गन्दी और मैली चादर पर रंग नहीं चढ़ता है, ठीक उसी तरह शरीर में जब Toxinsऔर मल दोष जमा हों तो दवाइयाँ असर नहीं करती हैं. जब चादर धुली हुयी साफ़ और सफ़ेद हो तो आप आसानी से इसे कलर कर सकते हैं. इसी तरह पंचकर्म के बाद जब बॉडी साफ़ हो जाती है तो कोई भी दवा सही से असर करती है.
पंचकर्म एक छोटा सा शब्द है पर इसका प्रोसेस बहुत ही बड़ा होता है. पंचकर्म के बारे में विस्तार से बताऊंगा को घंटों का समय लग सकता है. आज पंचकर्म के बारे में ओवरव्यू देता हूँ ताकि आप सभी को समझ आ जाये कि पंचकर्म क्या होता है?
दोस्तों, पंचकर्म का शाब्दिक अर्थ होता है पाँच तरह का काम यानि पाँच तरह के प्रोसेस जिनका नाम कुछ तरह से है -
1. वमन (Vomiting)
2. विरेचन(Purgation)
3. बस्ति(Enema)
4. नस्य(Nasal Drops)
5. रक्तमोक्षण(Blood Letting)
पंचकर्म करने से पहले दो तरह का पूर्वकर्म किया जाता है जिसे करने के बाद पंचकर्म करने से बॉडी के Toxins निकल जाते हैं और बीमारी दूर होती है. इस पूर्वकर्म में दो तरह का प्रोसेस होता है - स्नेहन और स्वेदन
स्नेहन(Oil Massage)- स्नेहन कर्म में औषधि युक्त तेल और घी से बॉडी की मालिश भी की जाती है और दवा मिला हुवा तेल और घी पिलाया भी जाता है. स्नेहन कर्म से बॉडी पंचकर्म के लिए रेडी हो जाती है.
स्वेदन(Sweating)- बॉडी से पसीना निकलवाने के प्रोसेस को स्वेदन कहते हैं. इसके लिए भाप या Steam, गर्म कपड़े और धूप का भी इस्तेमाल किया जाता है. पूर्वकर्म के इन दोनों प्रोसेस के बाद ही पंचकर्म का सही लाभ होता है.
आईये अब जानते हैं पंचकर्म के पाँचों कर्म के बारे में-
वमन(Vomiting)-
वमन यानि उल्टी, इस प्रोसेस में उल्टी कराने वाली चीज़ें खिलाकर उल्टी कराया जाता है जिस से प्रकुपित दोष बाहर निकलता है. पेट में जमे कफ़ और पित्त जैसे दोष निकल जाते हैं. एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी, अस्थमा, खांसी, हार्ट के रोग, मोटापा जैसी कई तरह की प्रॉब्लम में इस से फ़ायदा होता है.
विरेचन(Purgation)-
विरेचन का मतलब होता है दस्त के ज़रिये शरीर के मल और प्रकुपित दोष को बाहर निकालना. इसमें मोशन लूज़ करने वाली 'ईच्छाभेदी रस' जैसी दवाएँ देकर पेट साफ़ कराया जाता है. इस प्रोसेस से स्किन डिजीज, कुष्ठ, पाइल्स-फिश्चूला, पाचन की समस्या जैसी कई तरह की बीमारियों में फ़ायदा होता है.
बस्ति (Enema)-
बस्ति या एनीमा पंचकर्म का वह प्रोसेस है जिसमे गुदामार्ग(Anus) के ज़रिये औषधियुक्त तेल या जड़ी-बूटी के काढ़े को स्पेशल डिवाइस से चढ़ाया जाता है. मूत्रमार्ग में भी बस्ति दी जाती है. बहुत सारी बीमारियों के लिए इस प्रोसेस को किया जाता है. इस से जोड़ों का दर्द, आमवात, अर्थराइटिस, कब्ज़, शुगर, पक्षाघात जैसे अनेकों रोग दूर होते हैं.
नस्य(Nasal Drops)-
इस प्रोसेस में जड़ी-बूटी से बने आयुर्वेदिक तेल या फिर जड़ी-बूटियों का फाइन पाउडर को नाक में डाला जाता है इसे नस्यकर्म कहते हैं. नस्यकर्म से सर के रोग, सर दर्द, माईग्रेन, Sinositis और अजीर्ण जैसे कई तरह के रोग दूर होते हैं.
रक्तमोक्षण(Blood Letting)-
रक्तमोक्षण पंचकर्म का वह प्रोसेस है जिसमे दूषित रक्त को निकाला जाता है. यानि इम्प्योर ब्लड या गंदे खून को निकाला जाता है. इस प्रोसेस में ब्लेड से चीरा लगाकर या फिर जलौकावचारण( Leech Treatment) किया जाता है. नसों के चीरा लगाकर खून निकालने को शिरावेध कहते हैं. जबकि एक दुसरे प्रोसेस Cupping Therapy में भी दूषित रक्त को निकाला जाता है. रक्तमोक्षण करने से कई तरह के जटिल रोग दूर होते हैं जैसे खून की ख़राबी, स्किन डिजीज, साइटिका, फ़ाइलेरिया वगैरह. जलौकावचारण या Leech Treatment से पुराना से पुराना फ़ाइलेरिया या हाथीपाँव भी ठीक हो जाता है. इसके बारे में पूरी डिटेल किसी दुसरे विडियो में दूंगा.
पंचकर्म अनुभवी डॉक्टर से ही करवाना चाहिए. पंचकर्म में पाँच तरह के प्रोसेस हैं और यह कोई ज़रूरी नहीं कि हर रोगी के लिए पाँचों तरह के प्रोसेस किये जाएँ. रोग और रोगी की कंडीशन के मुताबिक़ की प्रोसेस सेलेक्ट किये जाते हैं.
पंचकर्म में कितना समय लगता है?
रोग और रोगी की दशा के अनुसार इसमें अलग-अलग टाइम लगता है. इसमे सात, ग्यारह, इक्कीस और एकतालीस दिन तक का टाइम लग सकता है. यह सब डिपेंड करेगा किस तरह की बीमारी या है बीमारी कितना जटिल है.
पंचकर्म करते हुवे खान-पान पर भी बहुत ध्यान रखा जाता है. प्राकृतिक चिकित्सा वाले तो कई बार सिर्फ दूध, छाछ या जूस का ही इस्तेमाल कराते हैं. पंचकर्म के साथ छाछ कल्प, दुग्ध कल्प जैसे प्रयोग भी किये जाते हैं.
असरदार और गुणकारी होने के वजह से ही पंचकर्म हमारे देश भारत के अलावा दुसरे कई देशों में पोपुलर है.
तो दोस्तों, ये थी पंचकर्म के बारे में आज की जानकारी संक्षेप में. उम्मीद है अब आप समझ सकते हैं कि पंचकर्म क्या है.
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सर्वतोभद्र वटी जो है किडनी फ़ेल्योर और इस से रिलेटेड रोगों के लिए एक बेहतरीन क्लासिकल मेडिसिन है, तो आईये जानते हैं इसका कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
दोस्तों, आयुर्वेद में किडनी फ़ेल्योर और किडनी की बीमारीयों के लिए क्लासिकल आयुर्वेदिक दवाओं की कमी नहीं है सर्वतोभद्र वटी, महेश्वर वटी, चंद्रप्रभा वटी जैसी दवाओं का नाम सबसे पहले आता है. इन सब के अलावा भस्म और जड़ी बूटियों का भी प्रयोग किया जाता है.
सर्वतोभद्र वटी किडनी फ़ेल्योर के लिए सबसे हाई क्लास की दवा है जिसमे सोना-चाँदी जैसी क़ीमती चीज़ें मिली हुयी हैं. यह आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्यरत्नावली का योग है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें -
स्वर्ण भस्म, रजत भस्म, अभ्रक भस्म सहस्रपुटी, लौह भस्म, शुद्ध शिलाजीत, शुद्ध गंधक और स्वर्णमाक्षिक भस्म सभी को बराबर वज़न में लेकर वरुण के क्वाथ में सात दिनों तक खरलकर 125 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही सर्वतोभद्र वटी है.
सर्वतोभद्र वटी के फ़ायदे-
सर्वतोभद्र वटी किडनी फ़ेल्योर और इस से रिलेटेड रोगों में बेहद असरदार है जैसे - हर तरह की Nephritis और इस से रिलेटेड Symptoms, किडनी इनलार्जमेंट(Nephromegaly), Polycystic Kidney Disease, शुगर या डायबिटीज की वजह से होने वाली किडनी की प्रॉब्लम और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन वगैरह.
किडनी फ़ेल्योर और इस से रिलेटेड रोगों में इसके साथ दूसरी सहायक औषधि और जड़ी-बूटियों का क्वाथ लेने से ही अच्छा रिजल्ट मिलता है, तो आईये जानते हैं कि किस तरह की प्रॉब्लम में इसे किन दवाओं के साथ लेना चाहिए-
जैसा कि आप सभी जानते ही होंगे कि आयुर्वेद त्रिदोष के सिधान्त पर काम करता है. रोगी का कौन सा दोष बढ़ा हुआ है उसी के अनुसार आयुर्वेदिक डॉक्टर सर्वतोभद्र वटी के साथ दूसरी सहायक दवाओ को देते हैं. चूँकि ये सारी चीज़ Experienced Doctor नाड़ीज्ञान और लक्षणों से ही सही पता लगा सकते हैं, पर यहाँ पर मैं जनरल बात बता देता हूँ जिससे आप को भी कुछ समझ आ जाये.
सर्वतोभद्र वटी को कफ़ दोष में वरुण की छाल के काढ़े के साथ, पित्त दोष में गोक्षुर के काढ़े के साथ और वायु या वात दोष में शिलाजीत और दूध के साथ लिया जाता है.
अब जान लेते हैं कुछ डिटेल में कि कफ़, पित्त और वायु या वात दोष के लक्षण क्या रहेंगे और सर्वतोभद्र वटी को लेने का बेस्ट तरीका क्या रहेगा -
कफ़ दोष में -
अगर कफ़ दोष के कारण प्रॉब्लम होगी तो कुछ इस तरह के लक्षण रोगी में दीखते है जैसे -
भूख की कमी, आलस, नीन्द आते रहना, पेट भारी रहना, हल्का सर दर्द, ज़बान में सफेदी और मुँह का स्वाद मीठा/नमकीन लगना.
ऐसी कंडीशन में सर्वतोभद्र वटी 1 गोली + चंद्रप्रभा वटी 2 गोली सुबह शाम दें और साथ में पिप्पली, काली मिर्च, नागरमोथा और पुनर्नवा का चूर्ण भी देना चाहिए.
पित्त दोष में -
अगर पित्त दोष के कारण प्रॉब्लम होगी तो कुछ इस तरह के लक्षण रोगी में दीखते है जैसे - पेशाब की जलन, पेट में जलन, बॉडी की गर्मी, सीने में जलन, चक्कर, धड़कन बढ़ना, आँखों के सामने अँधेरा छाना, मुँह का स्वाद खट्टा/तीखा लगना वगैरह
ऐसी कंडीशन में सर्वतोभद्र वटी 1 गोली + 1 ग्राम गिलोय सत्व सुबह शाम गोक्षुर, धनिया और पित्तपापड़ा के काढ़े के साथ देना चाहिए
वात(वायु) दोष में -
अगर वात दोष के कारण किडनी फ़ेल्योर हुयी हो तो रोगी में कुछ इस तरह के लक्षण दीखते हैं जैसे - जोड़ों और हड्डियों में दर्द, जकड़न, तेज़ सर दर्द, साँस लेने में तकलीफ़, हिचकी, नींद नहीं आना, ड्राई स्किन और मुँह का स्वाद पता नहीं चलना वगैरह.
ऐसी कंडीशन में सर्वतोभद्र वटी 1 गोली + चंद्रप्रभा वटी 2 गोली सुबह शाम दूध से लेना चाहिए. साथ में असगंध और पिप्पली का चूर्ण भी. गिलोय, गोखुरू और त्रिनपंचमूल का काढ़ा बनाकर सुबह शाम लेना चाहिए.
यह तो हो गया कि कफ़, पित्त और वात दोष में दवा कैसे यूज़ करना है. पर कुछ रोगियों को एक साथ दो तरह के दोष या तीनो दोष या त्रिदोष भी बढ़े होते हैं, तो ऐसी कंडीशन में आयुर्वेदिक डॉक्टर सही निदान कर ही उचित अनुपान से दवा दे सकते हैं.
सर्वतोभद्र वटी को डोज़-
एक से दो गोली या 125 mg से 250 mg तक रोग और दोष के अनुसार उचित अनुपान के साथ जैसा की बताया गया है. इसे लगातार कम से कम एक से दो महिना तक लेना चाहिए.
सर्वतोभद्र वटी ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, इसे डॉक्टर की सलाह से और डॉक्टर की देख रेख में ही लेना चाहिए. उचित अनुपान और सहायक औषधियों के साथ लेने से ही फ़ायदा होता है. बैद्यनाथ, VHCA जैसी कुछ कम्पनियाँ ही इसे बनाती हैं. अगर यह मार्केट में न मिले तो लोकल वैद्य जी से बनवाकर यूज़ कर सकते हैं.
किडनी की बीमारियों के लिए काम करने वाली एक दवा है 'वृकदोषान्तक वटी' व्यास फार्मा की. वरुणादि वटी, चंद्रप्रभा वटी, महेश्वर वटी, गोक्षुरादी गुग्गुल वगैरह किडनी प्रॉब्लम के लिए दूसरी क्लासिकल आयुर्वेदिक दवाएं है.
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हेयरफॉल, Dandruff और बालों का रूखापन जैसी बालों की हर तरह की प्रॉब्लम के लिए यह एक इफेक्टिव हर्बल दवा है, तो आईये जानते हैं इसका कम्पोजीशन फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
बालों की प्रॉब्लम के लिए मैंने कई तरह के आयुर्वेदिक तेलों के बारे में बताया है पर बालों के लिए हिमालया हर्बल का यह पहला प्रोडक्ट है जिसके बारे में मैं बताने जा रहा हूँ. हिमालया हेयरज़ोन कोई हेयरआयल नहीं बल्कि एक तरह का घोल या Solution है जिसे बालों की जड़ों में लगाने से फ़ायदा होता है.
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें पलाश(Butea Monosperma) और पलाशभेद(Butea Parviflora) के मिश्रण को Solution बेस पर बनाया गया है.
हिमालया हेयरज़ोन एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल और एंटी वायरल गुणों से भरपूर होता है.
हिमालया हेयरज़ोन के फ़ायदे-
यह स्काल्प का रूखापन और इन्फेक्शन, बालों की जड़ों में होने वाली खुजली को दूर करता है जिस से बालों का गिरना या हेयरफॉल रुक जाता है.
बालों की जड़ों को मज़बूती देता है और रुसी या Dandruff को दूर करता है.
किसी भी वजह से होने वाले हेयरफॉल रोकने और हेयरग्रोथ के असरदार दवा है. यह गंजापन को दूर कर नए बाल उगाने में मदद करता है.
हिमालया हेयरज़ोन को यूज़ कैसे करना है?
हेयरज़ोन सोलूशन को बालों की जड़ों में स्प्रे करें और हल्के हाथों से पाँच-दस मिनट तक मालिश करें. या फिर सोने से पहले बालों में लगायें और सुबह बालों को वाश कर लें. प्रॉब्लम ज़्यादा हो तो रोज़ दो बार सुबह शाम यूज़ करना चाहिए. पूरा लाभ के लिए कम से कम तीन महिना तक यूज़ करना चाहिए.
हिमालया हेयरज़ोन का साइड इफ़ेक्ट और सावधानी -
यह सिर्फ़ एक्सटर्नल यूज़ या लगाने की दवा है और ऑलमोस्ट सेफ़ है, किसी तरह का नुकसान नहीं होता है. सिर्फ़ बालों की जड़ों में लगायें, जली-कटी जगह पर नहीं लगना चाहिए.
आँखों को भी इस से बचायें, अगर आँख में ग़लती से पड़ जाये तो आँखों में पानी मारना चाहिए. यह ज्वलनशील(Inflammable) होता इसलिए इसे आग से बचाएं.
हिमालया हेयरज़ोन के बारे में मेरी पर्सनल ओपिनियन यह है कि यह बालों के लिए हिमालया एक अच्छा प्रोडक्ट है, जिसका कम्पोजीशन सबसे अलग है. बालों के सबसे बेस्ट क्लासिकल दवा है महा भृंगराज तेल, इसके बाद दुसरे पेटेंट तेल हैं जैसे केश किंग, इदुलेखा, पतंजलि केशकान्ति वगैरह. हिमालया हेयरज़ोन और दुसरे कोई एक साथ यूज़ न करें, अलग टाइम में यूज़ कर सकते हैं. हिमालया हेयरज़ोन के 60 ML के पैक की क़ीमत क़रीब 250 रुपया है, इसे फ़ार्मेसी से या निचे दिए लिंक से ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं.
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