मयूर चन्द्रिका भस्म बेजोड़ क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो जी मिचलाना या मतली और उल्टी के लिए बेहद असरदार है. यह हिचकी, खाँसी, हुपिंग कफ़ और अस्थमा में भी फ़ायदेमंद है, तो आईये जानते हैं कि मयूर चन्द्रिका भस्म क्या है? कैसे बनता है? और इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
मयूर चन्द्रिका भस्म का मतलब होता है मोर की पंख का भस्म, मोर नाम की बर्ड जिसे अंग्रेज़ी में पीकॉक कहते हैं. मोर का पंख जिसमे चाँद बना होता है, उसी की यह भस्म होती है. इसे मयूर पुच्छ भस्म भी कहते हैं. इसमें कॉपर, मैगनिज़, आयरन और जिंक जैसे मिनरल पाए जाते हैं.
मयूर चन्द्रिका भस्म कैसे बनता है?
इसका भस्म बनाना बहुत ही आसान होता है. भस्म बनाने के लिए पंख के चाँद वाले हिस्से को गाय का घी लगाकर या ऐसे ही माचिस की तीली या लाइटर से जला लिया जाता है. जलने के बाद काले रंग का जो पदार्थ मिलता है उसे खरल कर या पीसकर रख लिया जाता है जो की काले रंग का सुरमे की तरह का होता है. यही मयूर चन्द्रिका भस्म है.
मयूर चन्द्रिका भस्म एक बेहतरीन वमन नाशक या Antiemetic है.
मयूर चन्द्रिका भस्म के फ़ायदे -
मयूर चन्द्रिका भस्म के फ़ायदे की बात करें तो यह किसी भी वजह से होने वाली मतली, उल्टी और हिचकी के लिए बेहद असरदार दवा है. मतली और उल्टी में इसे अकेले शहद के साथ या फिर कपूर कचरी, जहरमोहरा पिष्टी में मिक्स कर शहद के साथ लेना चाहिए.
पित्त बढ़ जाने और एसिड की वजह से होने वाली उल्टी में इसके साथ प्रवाल पिष्टी, मुक्ताशुक्ति पिष्टी और कपर्द भस्म मिक्स कर ले सकते हैं.
इसी तरह से हिचकी आने पर पीपल की छाल के भस्म के साथ या फिर चन्द्रशुर के क्वाथ के साथ लेना चाहिए.
अस्थमा में पिप्पली चूर्ण और शहद के साथ लिया जा सकता है.
मयूर चन्द्रिका भस्म का डोज़-
125 mg से 250 mg तक रोज़ दो तीन बार तक ले सकते हैं. नवजात शिशु से लेकर बड़े-बूढ़े सभी लोग इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. छोटे बच्चों में अक्सर होने वाली उल्टी में इसे 30 mg शहद के साथ चटाना चाहिए. जैसा कि बताया गया है
जहरमोहरा पिष्टी के साथ बच्चों को दे सकते हैं. यह बिल्कुल सेफ़ दवा है, किसी तरह का कोई नुकसान या साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. प्रेगनेंसी में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें