त्रयोदशांग गुग्गुल क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो वात रोगों में प्रयोग की जाती है, इसके इस्तेमाल से जकड़न, जोड़ों का दर्द, गठिया, अर्थराइटिस, कमर दर्द, सर्वाइकल Spondylosis, मसल्स का दर्द, साइटिका, पक्षाघात, लकवा और नर्व से रिलेटेड दर्द दूर होते हैं, तो आईये जानते हैं त्रयोदशांग गुग्गुल का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल-
त्रयोदशांग गुग्गुल में शुद्ध गुग्गुल के अलावा कई सारी वात-नाशक जड़ी बूटियों का मिश्रण होता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें बबूल की छाल, अश्वगंधा, हाऊबेर, गिलोय, शतावर, गोखुरू, काला निशोथ, रास्ना, सौंफ़, कचूर, अजवाइन और सोंठ सभी को बराबर वज़न में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लिया जाता है और इस चूर्ण के बराबर वज़न में शुद्ध गुग्गुल मिक्स कर इमामदस्ते में ख़ूब कुटाई कर थोड़ा गाय का घी मिक्स कर 500 mg की गोलियाँ बनायी जाती हैं. यही त्रयोदशांग गुग्गुल है.
त्रयोदशांग गुग्गुल के गुण -
यह वातनाशक तो है ही, इसके अलावा सुजन दूर करने वाला(Anti-inflammatory), Anti-arthritic, गठियानाशक(Anti-gout), दर्द निवारक(Analgesic), Muscle Relaxant और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है.
त्रयोदशांग गुग्गुल के फ़ायदे -
वात रोगों ख़ासकर जिसमे कमज़ोरी और दर्द के साथ जकड़न हो, में लाभकारी है.
लकवा, पक्षाघात, साइटिका, नर्व का दर्द, अर्थराइटिस, ओस्टोअर्थराइटिस, गठिया, हड्डी का दर्द, मसल्स का दर्द, कमर दर्द, Osteoporosis जैसे रोगों में आयुर्वेदिक डॉक्टर, दूसरी दवाओं के साथ इसका इस्तेमाल करते हैं.
हड्डियाँ, जॉइंट्स, मसल्स और नर्व या स्नायु से रिलेटेड रोगों के लिए इस्तेमाल करना चाहिए.
त्रयोदशांग गुग्गुल की मात्रा और सेवन विधि -
एक से दो गोली सुबह-शाम वात नाशक औषधियों के साथ या फिर डॉक्टर की सलाह से लेना चाहिए. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, सही डोज़ में लेने से कोई नुकसान नहीं होता है, अधीक डोज़ लेने पर भूख की कमी और पाचन की समस्या हो सकती है.
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